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Friday 26 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और याद करो जब हमने उस घर को (6) लोगों के लिये मरजअ (शरण स्थल) और अमन बनाया (7)  और इब्राहीम के खड़े होने की जगह को नमाज़ का मक़ाम बनाओ (8) और हमने ताक़ीद फ़रमाई इब्राहीम व इस्माईल को कि मेरा घर ख़ूब सुथरा करो तवाफ़ वालो (परिक्रमा वालों) और एतिक़ाफ़ वालों (मस्जिद में बैठने वालों) और रूकू व सिजदे वालों के लिये.


*तफ़सीर*

     (6) बैत से काबा शरीफ़ मुराद है और इसमें तमाम हरम शरीफ़ दाख़िल है.

     (7) अम्न बनाने से यह मुराद है कि हरमे काबा में क़त्ल व लूटमार हराम है या यह कि वहाँ शिकार तक को अम्न है. यहाँ तक कि हरम शरीफ़ में शेर भेड़िये भी शिकार का पीछा नहीं करते, छोड़ कर लौट जाते हैं. एक क़ौल यह है कि ईमान वाला इसमें दाख़िल होकर अज़ाब से सुरक्षित हो जाता है. हरम को हरम इसलिये कहा जाता है कि उसमें क़त्ल, ज़ुल्म, शिकार हराम और मना है. (अहमदी) अगर कोई मुजरिम भी दाख़िल हो जाए तो वहाँ उसपर हाथ न डाला जाएगा. (मदारिक)

     (8) मक़ामे इब्राहीम वह पत्थर है जिसपर खड़े होकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने काबए मुअज़्ज़मा की बिना फ़रमाई और इसमें आपके क़दम मुबारक का नशान था. उसको नमाज़ का मक़ाम बनाने का मामला महबबत के लिये है. एक कौ़ल यह भी है कि इस नमाज़ से तवाफ़ की दो रकअतें मुराद हैं. (अहमदी वग़ैरह)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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