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Sunday 18 November 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-18, आयत, ①⑤②*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

तो मेरी याद करो, मैं तुम्हारा चर्चा करूंगा (8) और मेरा हक़ मानो और मेरी नाशुक्री ना करो.


*तफ़सीर*

     (8) ज़िक्र तीन तरह का होता है (1) ज़बान से (2) दिल में (3) शरीर के अंगों से. जबानी ज़िक्र तस्बीह करना, पाकी बोलना और तारीफ़ करना वग़ैरह है. ख़ुत्बा, तौबा इस्तिग़फार, दुआ वग़ैरह इसमें आते हैं. दिल में ज़िक्र यानी अल्लाह तआला की नेअमतों को याद करना, उसकी बड़ाई और शक्ति और क्षमता में ग़ौर करना. उलमा जो दीन की बातों में विचार करते हैं, इसी में दाख़िल है. शरीर के अंगों के ज़रिये ज़िक्र यह है कि शरीर अल्लाह की फ़रमाँबरदारी में मशग़ूल हो, जैसे हज के लिये सफ़र करना, यह शारीरिक ज़िक्र में दाख़िल है. नमाज़ तीनों क़िस्मों के ज़िक्र पर आधारित है. तस्बीह, तकबीर, सना व क़ुरआन का पाठ तो ज़बानी ज़िक्र है. और एकाग्रता व यकसूई, ये सब दिल के ज़िक्र में है, और नमाज़ में खड़ा होना, रूकू व सिजदा करना वग़ैरह शारीरिक ज़िक्र है. इब्ने अब्बास रदियल्लाहो तआला अन्हुमा ने फ़रमाया, अल्लाह तआला फ़रमाता है तुम फ़रमाँबरदारी के साथ मेरा हुक्म मान कर मुझे याद करो, मैं तुम्हें अपनी मदद के साथ याद करूंगा. सही हदीस की किताबों में है कि अल्लाह तआला फ़रमाता है कि अगर बन्दा मुझे एकान्त में याद करता है तो मैं भी उसको ऐसे ही याद फ़रमाता हूँ और अगर वह मुझे जमाअत मे या सामूहिक रूप से याद करता है तो मैं उसको उससे बेहतर जमाअत में याद करता हूँ. क़ुरआन और हदीस में ज़िक्र के बहुत फ़ायदे आए हैं, और ये हर तरह के ज़िक्र को शामिल हैं, ऊंची आवाज़ में किये जाने वाले ज़िक्र भी और आहिस्ता किये जाने वाले ज़िक्र को भी.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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