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Wednesday 2 January 2019

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-25, आयत, ②ⓞ①* 

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और कोई यूँ कहता है कि ऐ रब हमारे हमें दुनिया में भलाई दे और हमें आखिरत में भलाई दे और हमें दोज़ख़ के अज़ाब से बचा (15)


*तफ़सीर*

(15) दुआ करने वालों की दो क़िस्में बयान फ़रमाई, एक वो काफ़िर जिनकी दुआ में सिर्फ़ दुनिया की तलब होती थी. आख़िरत पर उनका अक़ीदा न था, उनके बारे में इरशाद हुआ कि आख़िरत में उनका कुछ हिस्सा नहीं. दूसरे वो ईमानदार जो दुनिया और आख़िरत दोनों की बेहतरी की दुआ करते हैं. मूमिन दुनिया की बेहतरी जो तलब करता है वह भी जायज़ काम और दीन की हिमायत और मज़बूती के लिये, इसलिये उसकी यह दुआ भी दीनी कामों से है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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