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Thursday 17 January 2019

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-27, आयत, ②①⑧*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

वो जो ईमान लाए  और वो जिन्होंने अल्लाह के लिये अपने घरबार छोड़े  और अल्लाह की राह में लड़े वो अल्लाह की रहमत के उम्मीदवार हैं  और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है (8)


*तफ़सीर*

(8) अब्दुल्लाह बिन जहश की सरदारी में जो मुजाहिद भेजे गए थे उनके बारे में कुछ लोगों ने कहा कि चूंकि उन्हें ख़बर न थी कि यह दिन रजब का है इसलिये इस दिन जंग करना गुनाह तो न हुआ लेकिन उसका कुछ सवाब भी न मिलेगा. इस पर यह आयत उतरी. और बताया गया कि उनका यह काम जिहादे मक़बूल है. और इस पर उन्हें अल्लाह की रहमत का उम्मीदवार रहना चाहिये और यह उम्मीद ज़रूर पूरी होगी. (ख़ाज़िन). “यरजूना” (उम्मीदवार हैं) से ज़ाहिर हुआ कि अमल यानी कर्म से पुण्य या इनाम वाजिब या अनिवार्य नहीं होता, बल्कि सवाब देना केवल अल्लाह की मर्ज़ी और उसके फ़ज़्ल पर है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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