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Saturday 26 January 2019

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-28, आयत, ②②⑦*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और अगर छोड़ देने का इरादा पक्का कर लिया तो अल्लाह सुनता जानता है (6)


*तफ़सीर*

(6) जाहिलियत के दिनों में लोगों का यह तरीक़ा था कि अपनी औरतों से माल तलब करते, अगर वह देने से इन्कार करतीं तो एक साल, दो साल, तीन साल या इससे ज़्यादा समय तक उनके पास ना जाते और उनके साथ सहवास न करने की क़सम खा लेते थे और उन्हें परेशानी में छोड़ देते थे. न वो बेवा ही थीं कि कहीं अपना ठिकाना कर लेतीं, न शौहर वाली कि शौहर से आराम पातीं. इस्लाम ने इस अत्याचार को मिटाया और ऐसी क़सम खाने वालों के लिये चार महीने की मुद्दत निश्चित फ़रमादी कि अगर औरत से चार माह के लिये सोहबत न करने की क़सम खाले जिसको ईला कहते हैं तो उसके लिये चार माह इन्तिज़ार की मोहलत है. इस अर्से में ख़ूब सोच समझ ले कि औरत को छोड़ना उसके लिये बेहतर है या रखना. अगर रखना बेहतर समझे और इस मुद्दत के अन्दर रूजू करले तो निकाह बाक़ी रहेगा और क़सम का कफ़्फ़ारा लाज़िम आएगा, और अगर इस मुद्दत में रूजू न किया और क़सम न तोड़ी तो औरत निकाह से बाहर हो गई और उस पर तलाक़े बायन वाक़े हो गई. अगर मर्द सहवास की क्षमता रखता हो तो रूजू हमबिस्तरी से ही होगा और अगर किसी वजह से ताक़त न हो तो ताक़त आने के बाद सोहबत का वादा रूजू है. (तफ़सीरे अहमदी)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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