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Sunday 27 January 2019

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-28, आयत, ②②⑧*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और तलाक़ वालियाँ अपनी जानों को रोके रहें तीन हैज़  (माहवारी) तक (7) और उन्हें हलाल नहीं कि छुपाएँ वह जो अल्लाह ने उनके पेट में पैदा किया  (8) अगर अल्लाह और क़यामत पर ईमान रखती हैं (9) और उनके शौहरों को इस मुद्दत के अन्दर उनक फेर लेने का हक़ पहुंचता है अगर मिलाप चाहे (10) और औरतों का भी हक़ ऐसा ही है जैसा उनपर है शरीअत के अनुसार (11) और मर्दों को फ़ज़ीलत  (प्रधानता) है और अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है.


*तफ़सीर*

(7) इस आयत में तलाक़ शुदा औरतों की इद्दत का बयान है. जिन औरतों को उनके शौहरों ने तलाक़ दी, अगर वो शौहर के पास न गई थीं और उनसे तनहाई में सहवास न हुआ था, जब तो उन पर तलाक़ की इद्दत ही नहीं है जैसा कि आयत “फ़मालकुम अलैहिन्ना मिन इद्दतिन” यानी निकाह करो फिर उन्हें बेहाथ लगाए छोड़ दो तो तुम्हारे लिये कुछ इद्दत नहीं जिसे गिनो. (सूरए अहज़ाब, आयत 49) में इरशाद है और जिन औरतों को कमसिनी या बुढ़ापे की वजह से हैज़ या माहवारी न आती हो या जो गर्भवती हों, उनकी इद्दत का बयान सूरए तलाक़ में आएगा. बाक़ी जो आज़ाद औरतें हैं, यहाँ उनकी इद्दत और तलाक़ का बयान है कि उनकी इद्दत तीन 

माहवारी है.

(8) वह गर्भ हो या माहवारी का ख़ून, क्योंकि उसके छुपाने से, रजअत और वलद में जो शौहर का हक़ है, वह नष्ट होगा.

(9) यानी ईमानदारी का यही तक़ाज़ा है.

(10) यानी तलाक़े रजई में इद्दत के अन्दर शौहर औरत की तरफ़ पलट सकता है, चाहे औरत राज़ी हो या न हो. लेकिन अगर शौहर को मिलाप मंज़ूर हो तो ऐसा करे. कष्ट पहुंचाने का इरादा न करे जैसा कि जाहिल लोग औरतों को परेशान करने के लिये करते थे.

(11) यानी जिस तरह औरतों पर शौहरों के अधिकार की अदायगी वाजिब है, उसी तरह शौहरों पर औरतों के हुक़ूक़ की रिआयत लाज़िम है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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