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Monday 18 February 2019

तज़किरतुल अम्बिया* #393

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*बहुत भारी कीमत से गाय हासिल की* 

     उस वक्त आम तौर पर गाय की कीमत तीन दीनार तक होती थी लेकिन उन्होंने सवाल करके अपने लिए इतनी मुश्किल पैदा कर दी की  तमाम औसाफ़ किसी गाय में बयक वक़्त पाया जाना दुश्वार नजर आया। आखिरकार तलाश करते करते उन्हें एक बेवा और यतीम बच्चे के पास ऐसी गाय नज़र आई जिसमें बयान करदा सभी औसाफ़ मौजूद थे। बढ़ी नहीं थी और बछड़ी नहीं थी बल्कि दर्मियान उम्र की थी ज़र्द रंग था देखने वालों को खुश करता था जमीन में उराने हल नहीं चलया था और न ही खेती को सैराब किया था और इसमें कोई ऐब और दाग धब्बा नहीं था क्योंकि उस यतीम के बूढ़े, नैक परहेज़गार बाप ने अपनी एक बछड़ी को जंगल में छोड़कर अल्लाह तआला की हिफाज़त मैं दे दिया था की मेरा बच्चा कुछ बड़ा और समझदार होकर उसे ले जायेग। यह बच्चा भी वालीदेन का फरमां बरदार था अपने बाप की वफ़ात के कुछ अर्से बाद वह अपनी गाय जंगल से ले आया था उसी गाय में तमाम औसाफ मौजूद थे। मोटी ताज़ी थी, खूबसूरत थी बनी इस्राइल को उसके चमड़े में जितनी मिकदार में सोना आ सकता था उतनी मिकदार में सोना बतौर क़ीमत अदा करना पड़ा।

     शुबहानल्लाह ! मालिकुल मुल्क ने अपने बंदे की गाय की जंगल में हिफ़ाज़त फ़रमाई और उस नेक बंदे की बेवा और उसके यतीम बच्चे को कसीर मिकदार में माल व दौलत अता फरमाया। 

     बनी इस्राईल अगरचे गाय की भारी कीमत अदा करने पर खुशी से रजामंद नहीं थे और यह भी जानते थे कि अगर हमारा मकतूल जिन्दा हो गया तो हमारा अपना ही ऐब ज़ाहिर होगा लेकिन उन्हें फिर भी गाय जिबह करनी पड़ी क्योंकि अब उनके पास कोई उज़्र बाकी नहीं रह गया था अगरचे वह ज़िबह नहीं करना चाहते थे। 

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 325

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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