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Friday 10 June 2016

तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~08

_*सूरए बक़रह, पारह-1*_

*​आयत ③_​तर्जुमह*
जो मान जाए बे देखे और अदा करते है नमाज़ को, और उससे, जो दे रख्खा है हमने, खर्च करे।
*तफ़सीर*
उनकी पहचान ये है के जो मान जाए बे देखे अल्लाह को, फरिश्तों को, जन्नत व जहन्नम को, आसमानी किताबो को, तमाम अल्लाह के रसुलोको, क़यामत के दिन को, हशर को, नशर को, षवाब व अज़ाबको। अपने नबी से उन गैबो को सुना, ग़ैब का इल्म हुवा और फिर उसे क़बूल कर लिया। लेकिन ईमान ही पर इक्तेफा न करे (काफी न समजे)। बल्कि नेक काम भी करे और अदा करते रहे नमाज़ों को। और सिर्फ जिस्मानी इबादत ही काफी न समजे, बल्कि उस माल से जो दे रख्खा है हमने जिसको हम न देते तो वो किसी तदबीर से न पाते, हमारी राह में खर्च करे ज़कात दे, सदक़ा दे।
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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