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Wednesday 8 June 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~07

*सूरए बक़रह, पारह-1*

अल्लाह के नाम से शुरू जो बड़ा महेरबान और निहायत रहम करने वाला

क़ुरआने करीम की इस सूरह को जो मदिनेमे सबसे पहले नाज़िल हुई सुवा *इत्तकुन यौमन* से *तर्जुउन* तक, के हज्जतुल विदाके मैके पर मक्काह में नाज़िल हुई।

इसमें 286 आयते, 40 रूकू, 6121 कल्मे (शब्द), 25500 हरुफ़ है।

इसमें हज़ार कामो का हुक्म है, हज़ार बातो से रोका गया है। हज़ार हिकमते सिखाई गई है। और हज़ार खबरे दी गई है। जिसके पढ़ने में बड़ी बरकत है। शैतान इससे भागता है। इसके पढ़ने से क़ुरआन हमे हमेशा याद रहता है। जिसकी आयते क़ब्र के सिरहाने और पायेतिकी तरफ पढ़नेका हुक्म है।

ज़मान ए हज्जाज इब्ने युसूफ में दूसरी सूरतो के साथ उसका भी नाम ये रख्खा गया और इसको *सूरए बक़रह* कहा गया है। क्यू की इसमें गायका एक ऐसा अहम वाकेआ मौजूद है, जो दूसरी सूरतो में नही है।
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