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Tuesday 28 June 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~24
*सूरए बक़रह_पारह-01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*​आयत ②③_तर्जुमह*
और अगर हो तुम किसी शक में उससे, जो उतारा हमने अपने ख़ास बन्दे पर, तो ले आओ एक ही सूरत उसकी तरह, और दुहाई दो अपने साख्ता मददगारों की, अल्लाह को छोड़ कर, अगर तुम सच्चे हो।

*तफ़सीर*
(और अगर हो तुम) अय मुन्किरो ! किसी किस्मके (किसी शकमे उस) क़ुरआन की तरफ से (जो उतरा) है (हमने अपने ख़ास बन्दे) मुहम्मद पर, जो अपने बन्दा होने में बे मिस्ल व यकता है। जिसकी बंदगी तक दूसरे की रसाई {पहोच} नही। तो फिर सामबे आओ और ज़रा ले तो आओ पूरा क़ुरआन नही, बल्कि बस एक ही सूरत फ़साहत व बलाग़त {आसान मधुरवाणी}, हिकमत व रूहानियत, तकदिसे रीफअत {उच्च पाकी}, ग़ैब की खबर देने में उस क़ुरआन की किसी सूरत की तरह और तुम्हारी जान, अपनी ताकत से, ये बाहर हो तो इस मुश्किल में खूब (दुहाई दो) और मअबूद जान कर पुकारो, फरियाद करो और मदद मांगो (अपने सख्त) बनावटी मअबूदो की, जिनको तुमने अपना मअबूद बना रख्खा है, (अल्लाह को छोड़ कर) उस मअबूदे बरहक़ की खुदाई से मुह फेर कर, अय दुन्या भर के काफिरो ! क़ुरआन व रसूल व मअबूद पर जबसे इनकार कर देने में तुम हो सच्चे।
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