*आजमाइशे ओर उनसे खुलासी*
हिस्सा-02
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ*
मगर जब खालिक की तरफ से इसकी मदद नही होती तो सवाल, दुआ, आहोज़ारी और हम्द में मसरूफ़ हो जाता है और बीम दर्जे की इसी कैफियत में दुआकुन्ना होता है। फिर जब खुदावंदे तआला उसे इतना आजिज कर देता है के उसकी दुआको शर्फे कुबूल नहीं बख्शता और तमाम जाहिरी असबाब उससे छिन जाते है तो कजा व् कद्द के एहकामे इलाही उस पर नफिज़(जारी) होते है और वो तमाम असबाबे जाहिरी से बेताल्लुक हो जाता है। फ़ना होकर सिर्फ़ रूहकी सूरतमे बाकी रहता है।
तो वो खुदा के एहकाम के सिवा कुछ नही देखता और यकीन और तौहीदकी उस मंज़िल मे दाखिल होता है के उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ खुदा तआला फाएले हकीकी, हरकत व सुकून का खालिक, बुराई और ऩफा नुकसान का मालिक होने का यकीन हो जाता है। वो जान लेता है के वही अता करने वाला या न करनेवाला, इज़्ज़त व झिल्लत देनेवाला और मौत व हयातका मालिक है।
इस तरह वो कज़ा व कद्रकी उस मंज़िलमे आ जाता है।जैसे दाई के हाथमे बच्चा, गुसाल के हाथमे मुर्दा या चोगान खेलनेवाले के सामने गेंद होता है।
बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽फुतुह अल ग़ैब 6,7*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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तो वो खुदा के एहकाम के सिवा कुछ नही देखता और यकीन और तौहीदकी उस मंज़िल मे दाखिल होता है के उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ खुदा तआला फाएले हकीकी, हरकत व सुकून का खालिक, बुराई और ऩफा नुकसान का मालिक होने का यकीन हो जाता है। वो जान लेता है के वही अता करने वाला या न करनेवाला, इज़्ज़त व झिल्लत देनेवाला और मौत व हयातका मालिक है।
इस तरह वो कज़ा व कद्रकी उस मंज़िलमे आ जाता है।जैसे दाई के हाथमे बच्चा, गुसाल के हाथमे मुर्दा या चोगान खेलनेवाले के सामने गेंद होता है।
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