*क़ुरबानी वाजिब होने के लिये कितना माल होना चाहिये*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
हर बालिग़, मुकीम, मुसलमान मर्द व औरत, मालिक निसाब पर क़ुरबानी वाजिब है।
*✍🏽आलमगिरी, 5/292*
मालिके निसाब होने से मुराद ये है कि उस शख्स के पास साढ़े बावन तोले चांदी या उतनी मालिययत की रक़म या उतनी मालिय्यत का तिजारत का माल या उतनी मालिय्यत का हाजते अस्लिय्या के इलावा सामान हो और उस पर अल्ला या बन्दों का इतना कर्ज़ा न हो जिसे अदा करके ज़िक्र करदा निसाब बाक़ी न रहे।
फ़ुक़हाए किराम फरमाते है हाजते अस्लिय्या (यानी ज़रुरिय्याते ज़िन्दगी) से मुराद वो चीज़ है जिन की उमुमन इन्सान को ज़रूरत होती है जैसे रहने का घर, पहनने के कपड़े, सुवारि, इल्मे दिन से मुतअल्लिक़ किताबे, और पेशे से मुतअल्लिक़ औज़ार वगैरा।
*✍🏽अलहिदायह, 1/96*
अगर हाजते अस्लिय्या की तारीफ़ पेशे नज़र रखी जाए तो बखूबी मालुम होगा की हमारे घरो में बे शुमार चीज़े ऐसी है कि जो हाजते अस्लिय्या में दाखिल नही, चुनांचे अगर इनकी कीमत साढ़े बावन टोला चादी के बराबर पहुच गई तो क़ुरबानी वाजिब होगी।
आला हज़रत अलैरहमा से सुवाल किया गया की अगर ज़ैद के पास मक़ामे सुकुनत (यानी रिहाइशी मकान) के इलावा एक और मकान हो तो उस पर क़ुरबानी वाजिब होगया नही ?
अल जवाब : वाजिब है, जब की वो मकान तन्हा या इस के माल से हाजते अस्लिय्या से ज़ाइद हो।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 6*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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मालिके निसाब होने से मुराद ये है कि उस शख्स के पास साढ़े बावन तोले चांदी या उतनी मालिययत की रक़म या उतनी मालिय्यत का तिजारत का माल या उतनी मालिय्यत का हाजते अस्लिय्या के इलावा सामान हो और उस पर अल्ला या बन्दों का इतना कर्ज़ा न हो जिसे अदा करके ज़िक्र करदा निसाब बाक़ी न रहे।
फ़ुक़हाए किराम फरमाते है हाजते अस्लिय्या (यानी ज़रुरिय्याते ज़िन्दगी) से मुराद वो चीज़ है जिन की उमुमन इन्सान को ज़रूरत होती है जैसे रहने का घर, पहनने के कपड़े, सुवारि, इल्मे दिन से मुतअल्लिक़ किताबे, और पेशे से मुतअल्लिक़ औज़ार वगैरा।
*✍🏽अलहिदायह, 1/96*
अगर हाजते अस्लिय्या की तारीफ़ पेशे नज़र रखी जाए तो बखूबी मालुम होगा की हमारे घरो में बे शुमार चीज़े ऐसी है कि जो हाजते अस्लिय्या में दाखिल नही, चुनांचे अगर इनकी कीमत साढ़े बावन टोला चादी के बराबर पहुच गई तो क़ुरबानी वाजिब होगी।
आला हज़रत अलैरहमा से सुवाल किया गया की अगर ज़ैद के पास मक़ामे सुकुनत (यानी रिहाइशी मकान) के इलावा एक और मकान हो तो उस पर क़ुरबानी वाजिब होगया नही ?
अल जवाब : वाजिब है, जब की वो मकान तन्हा या इस के माल से हाजते अस्लिय्या से ज़ाइद हो।
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