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Tuesday 19 July 2016

फुतूह अल ग़ैब

औलियाअ अल्लाह कौन हैं?  cont…
 (फुतूहल गैब)

*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      याद रख्खो के खैर-व-शर अल्लाह ही के कबज़ए कुदरतमें हैं और इस पर यकीने कामिल तुम्हें कज़ा-व-कद्रके खोफसे बेनियाज़ कर देगा। बरकाते खैर तुम्हारे लिये बहोत ज़ियादा हो जाएंगी। फिर तुम हर खैरका सरचश्मा हर इबतिहाज व मुसर्रतका मुन्बाअ (पानीके निकलनेकी जगा-चश्मा), तमाम अमूरका मरकज़-व-मेहवर और अमन-व-आरामकी हर कैफियतके हामिल बन जाओगे।
   हक्के तमाम तालिब इसी फना के ख्वाहिशमन्द होते हैं और यही वो मकान है जहां औलिया-अल्लाह को मंज़िल मिलती है। अपने इरादोंकी शिकस्त-व-रिख्त (बिखरा हुआ) के बाद खुदा के इरादेमें महवं (मिटा हुआ) हो जाना तो दमे मर्ग तमाम औलियाए अल्लाह-व-अब्दाल का मत्मह (नज़र पडनेकी जगा) रहा है। इसी लिये इन्हें अब्दाल कहा जाता है। वो हक के इरादे में अपने इरादे को शरीक करना गुनाहे अज़ीम समज़ते हैं। अलबत्ता हालते जज़ब में या गल्बए हालमें या भूलकर उनसे कोइ ऐसा फैल सरज़द हो जाए तो खुदवन्दे तआला उन्हें खबरदार कर देता है और वो तौब-इस्तिगफारमें मश्गुल हो जाते है।
      औलिया अल्लाह अज़म और इरादे के एतेबार से मासूम तो नहीं होते,  ख्वाहिशे नफससे आज़ाद और मेहफूज़ तो महेज़ अंबियाए किराम और मलाएका (अलयहिस्सलाम) होते है। दिगर जिन्न-व-इन्स पर शरीयतकी पाबन्दी ज़ूरूरी है और इनमें से कोइ मासूम नहीं। औलियाए किराम और अब्दाले उज़्ज़ाम इरादा और ख्वाहिशे नफ्स से मेहफूज़ तो यकीनन होते है। मगर किसी वक़्त इस पर माइल हो जाना भी इनके लिये ऐन मुमकिन है। ये है के खुदावन्दे करीम अपनी रेहमत के बाइस बेदारी के आलममें उनकी लगज़िश पर मतलअ (आगाह) कर देता है और वो बरवक़्त इसकी तलाफी कर लेते हैं।

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 12,13
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