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Thursday 4 August 2016

फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 3)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      खुदावंदे करीम फरमाते है: “हर चीज़ खुदाकी हम्द सरा है और उसीकी तस्बीह करती है लेकिन तुम इस बातका शउर नहीं रखते”। नीज़ फरमाया: “खुदाने आसमानों और ज़मीनों से कहा के आमादगी से या गैर आमादगीसे बहरहाल मेरी इताअत करो,” उन्होने जवाब दिया के हम मुताबेअत(पैरवी) में हाज़िर है”।             लेहाज़ा इबादत की तकमील ये है के ख्वाहिशाते नफ्सकी मुखालेफत की जाए। अल्लाह करीमने फरमाया के नफ्से अम्मारा (बदीकी तरफ रगबत दिलानेवाले) की पैरवी न करो। के ये खुदाकी राह पे न चलने देगा।
     हज़रत दाउद अलैहिस्सलामसे भी फरमाया गया के, नफ्सानी ख्वाहिशात से ज़यादा राहे रास्तसे भटका देनेवाली कोइ चीज़ नहीं। इन्की पैरवी न कर और हज़रत बायज़ीद बुस्तामी रेहमतुल्लाह अलयहके मुताल्लिक मशहूर है के उन्होने खुदा तआला को खाव्बमें कहा के कोनसा रास्ता तुज़ तक पहोंचा देगा ?
जवाब मीला: नफ्स छोडकर।
     चुनांचे हज़रत बायज़ीद बुस्तामी फरमाते हैं मैंने अपने नफ्सको इस तरह छोड दिया जिस तरह सांप केंचली उतार फेंकता हैं।

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 22
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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