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Monday 12 September 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#34

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③①_*
और अल्लाह तआला ने आदम को सारी (चीज़ों के) नाम सिखाए(1)
फिर सब (चीज़ों) को फ़रिश्तों पर पेश करके फ़रमाया सच्चे हो तो उनके नाम तो बताओ (2)
*तफ़सीर*
     (1) अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पर तमाम चीज़ें और सारे नाम पेश फ़रमाकर उनके नाम, विशेषताएं, उपयोग, गुण इत्यादि सारी बातों की जानकारी उनके दिल में उतार दी.
     (2) यानी अगर तुम अपने इस ख़याल में सच्चे हो कि मैं कोई मख़लूक़ (प्राणी जीव) तुमसे ज़्यादा जगत में पैदा न करूंगा और ख़िलाफ़त के तुम्हीं हक़दार हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ क्योंकि ख़लीफ़ा का काम तसर्रूफ़ (इख़्तियार) और तदबीर, इन्साफ और अदल है और यह बग़ैर इसके सम्भव नहीं कि ख़लीफ़ा को उन तमाम चीज़ों की जानकारी हो जिनपर उसको पूरा अधिकार दिया गया और जिनका उसको फ़ैसला करना है.
     अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के फ़रिश्तों पर अफ़ज़ल (उच्चतर) होने का कारण ज़ाहिरी इल्म फ़रमाया. इससे साबित हुआ कि नामों का इल्म अकेलेपन और तनहाइयों की इबादत से बेहतर है. इस आयत से यह भी साबित हुआ कि नबी फ़रिश्तों से ऊंचे हैं.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③②_*
बोले पाकी है तुझे हमें कुछ इल्म नहीं मगर जितना तूने हमें सिखाया बेशक तू ही इल्म और हिकमत वाला है
*तफ़सीर*
     इसमें फ़रिश्तों की तरफ़ से अपने इज्ज़ (लाचारी) और ग़लती का ऐतिराफ और इस बात का इज़हार है कि उनका सवाल केवल जानकारी हासिल करने के लिये था, न कि ऐतिराज़ की नियत से. और अब उन्हें इन्सान की फ़ज़ीलत (बड़ाई) और उसकी पैदाइश का रहस्य मालूम हो गया जिसको वो पहले न जानते थे.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③③_*
फ़रमाया ऐ आदम बतादे उन्हें सब (चीज़ों) के नाम जब उसने (यानि आदम ने)उन्हें सब के नाम बता दिये(1)
फ़रमाया मैं न कहता था कि मैं जानता हूं जो कुछ तुम ज़ाहिर करते और जो कुछ तुम छुपाते हो (2)
*तफ़सीर*
     (1) यानी हज़रत आदम अहैहिस्सलाम ने हर चीज़ का नाम और उसकी पैदाइश का राज़ बता दिया.
     (2) फ़रिश्तों ने जो बात ज़ाहिर की थी वह थी कि इन्सान फ़साद फैलाएगा, ख़ून ख़राबा करेगा और जो बात छुपाई थी वह यह थी कि ख़िलाफ़त के हक़दार वो ख़ुद हैं और अल्लाह तआला उनसें ऊंची और जानकार कोई मख़लूक़ पैदा न फ़रमाएगा.
     इस आयत से इन्सान की शराफ़त और इल्म की बड़ाई साबित होती है और यह भी कि अल्लाह तआला की तरफ तालीम की निस्बत करना सही हैं. अगरचे उसको मुअल्लिम (उस्ताद) न कहा जाएगा, क्योंकि उस्ताद पेशावर तालीम देने वाले को कहते हैं.
     इससे यह भी मालूम हुआ कि सारे शब्दकोष, सारी ज़बानें अल्लाह तआला की तरफ़ से हैं. यह भी साबित हुआ कि फ़रिश्तों के इल्म और कमालात में बढ़ौत्री होती है.
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