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Friday 9 September 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#31
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②⑧_*
भला तुम कैसे ख़ुदा का इन्कार करोगे हालांकि तुम मुर्दा थे उसने तुम्हें जिलाया (जीवंत किया) फिर तुम्हें मारेगा फिर तुम्हें ज़िन्दा करेगा फिर उसी की तरफ़ पलटकर जाओगे

*तफ़सीर*
     तौहीद और नबुव्वत की दलीलों और कुफ़्र और ईमान के बदले के बाद अल्लाह तआला ने अपनी आम और ख़ास नेअमतो का, और क़ुदरत की निशानियों, अजीब बातों और हिकमतो का ज़िक्र फ़रमाया और कुफ़्र की ख़राबी दिल में बिठाने के लिये काफ़िरों को सम्बोधित किया कि तुम किस तरह ख़ुदा का इन्कार करते हो जबकि तुम्हारा अपना हाल उस पर ईमान लाने का तक़ाज़ा करता है कि तुम मुर्दा थे. मुर्दा से बेजान जिस्म मुराद है. हमारे मुहावरे में भी बोलते हैं- ज़मीन मुर्दा हो गई. मुहावरे में भी मौत इस अर्थ में आई. ख़ुद क़ुरआने पाक में इरशाद हुआ “युहयिल अरदा बअदा मौतिहा” (सूरए रूम, आयत 50) यानी हमने ज़मीन को ज़िन्दा किया उसके मरे पीछे.
     तो मतलब यह है कि तुम बेजान जिस्म थे, अन्सर (तत्व) की सुरत में, फिर ग़िजा की शक्ल में, फिर इख़लात (मिल जाना) की शान में, फिर नुत्फ़े (माद्दे) की हालत में. उसने तुमको जान दी, ज़िन्दा फ़रमाया. फिर उम्र् की मीआद पूरी होने पर तुम्हें मौत देगा. फिर तुम्हें ज़िन्दा करेगा.
     इससे या क़ब्र की ज़िन्दगी मुराद है जो सवाल के लिये होगी या हश्र की.
     फिर तुम हिसाब और जज़ा के लिये उसकी तरफ़ लौटाए जाओगे. अपने इस हाल को जानकर तुम्हारा कुफ़्र करना निहायत अजीब है.
     एक क़ौल मुफ़स्सिरीन का यह भी है कि “कैफ़ा तकफ़ुरूना” (भला तुम कैसे अल्लाह के इन्कारी हो गए) का ख़िताब मूमिनीन से है और मतलब यह है कि तुम किस तरह काफ़िर हो सकते हो इस हाल में कि तुम जिहालत की मौत से मुर्दा थे, अल्लाह तआला ने तुम्हें इल्म और ईमान की ज़िन्दगी अता फ़रमाई, इसके बाद तुम्हारे लिये वही मौत है जो उम्र गुज़रने के बाद सबको आया करती है. उसके बाद तुम्हें वह हक़ीक़ी हमेशगी की ज़िन्दगी अता फ़रमाएगा, फिर तुम उसकी तरफ़ लौटाए जाओगे और वह तुम्हें ऐसा सवाब देगा जो न किसी आंख ने देखा, न किसी कान ने सुना, न किसी दिल ने उसे मेहसूस किया.
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