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Tuesday 11 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #19
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_​​हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_*​​ #05
सब के सब हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की अज़मत व फ़ज़ीलत को खूब जानते पहचानते थे और आप की जलालत व मर्तबा का हर दिल मोतरीफ था। इस वजह से इब्ने साद ने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه से मुक़ाबला करने से इनकार किया। वो चाहता था की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के खून के इलज़ाम से वो बचा रहे मगर इब्ने ज़ियाद ने उसे मजबूर किया की अब दो ही सूरते है या तो रै की हुकूमत को छोड़ दे या इमाम से मुक़ाबला किया जाए।
     दुन्यवि हुकूमत के लालच ने उस को जंग पर आमद कर दिया। आखिर कार वो हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के मुक़ाबले के लिये रवाना हुवा और इब्ने ज़ियादे बद निहाद लशकरो को भेजता रहा यहाँ तक की अम्र बिन साद के पास 22000 का लश्कर जमा हो गए और उसने जमीअत के साथ कर्बला में पहुच कर फुरात के कनारे पड़ाव किया और अपना मर्कज़ क़ाइम किया।
     हैरत नाक बात है और दुन्या की किसी जंग में इस की मिषाल नही मिलती की कुल 82 तो आदमी, इनमे बिविया भी, बच्चे भी, बीमार भी, फिर वो भी की वो बिरादए जंग नही आए थे और इन्तिज़ाम हर्ब काफी न रखते थे। उनके लिये 22000 की ज़र्रार फ़ौज भेजी जाए। आखिर वो इन 82 नुफुसे मुक़द्दसा को अपने ख्याल में क्या समझते थे और उनकी शुजाअत व बसालत के कैसे कैसे मनाज़िर उन की आँखों ने देखे थे की छोटी सी जमाअत के लिये दो गुनी, चौगुनी, दस गुनी तो क्या सो गुनी तादाद को भी काफी न समझा, बे अंदाज़ा लश्कर भेज दिया, फौजो के पहाड़ लगा डाले, इस पर भी दिल खौफ ज़दा है और जंग आजमाओ, दिलावरो के हौसले पस्त है और वो समझते है की शैराने हक़ के हमले की ताब लाना मुश्किल है मजबूरन ये तदबीर करनी पड़ी की लश्करे इमाम पर पानी बंद किया जाए, प्यास की शिद्दत और गर्मी की हिद्द्त इन्तिहा को पहुच चुके तब जंग शुरू की जाए।

बाक़ी कल की पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 133*
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