*सवानहे कर्बला* #20
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_* #06
अहले बैते किराम पर पानी बंद करने और इन के खुनो के दरया बहाने के लिये बे गैरती से सामने आने वालो में ज़्यादा तादाद उन्ही बे हयाओ की थी जिन्होंने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को दरख्वास्ते भेज बुलाया था और मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه के हाथ पर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की बैअत की थी। मगर आज उन बे गैरतो को न अपने अहद व बैअत का ख्याल था न अपनी दावत व मेज़बानी का लिहाज़। फुरात का बे हिसाब पानी इस सियाह बातीनोने ख़ानदाने रिसालत पर बंद कर दिया था।
अहले बैत के छोटे छोटे फातिमि चमन के नौनिहाल खुश्क लब, नादान बच्चे एक एक क़तरे के लिये तड़प रहे थे, नूर की तस्वीरें प्यास की शिद्दत में दम तोड़ रही थी, सरे चश्म तयम्मुम से नमाज़े पढ़नी पड़ती थी, इस तरह 3 दिन गुज़र गए, छोटे छोटे बच्चे और बिविया सब भूक व प्यास से बेताब व तुवा हो गए।
इस ज़ुल्मो सितम में अगर रुस्तम भी होता तो उसके हौसले पस्त हो जाते मगर फरज़न्दे रसूल को मसाएब का हुजूम जगह से न हटा सका, हक़ व सदाक़त का हामी मुसीबतो की भयानक घटाओ से न डरा और तुफ़ाने बला के सेलाब से उसके पाए जुम्बिश भी न हुई, 10 मुहर्रम तक यही बहष रही की हज़रते इमाम यज़ीद की बैअत कर ले।
अगर आपرضي الله تعالي عنه यज़ीद की बैअत करते तो वो तमाम लश्कर आप के जिलव में होता, आप का कमाले इकराम व एहतिराम किया जाता, खज़ानों के मुह खोल दिये जाते और दौलते दुन्या क़दमो पर लूटा दी जाती मगर जिस का दिल हुब्बे दुन्या से खाली हो और दुन्या के राज़ जिस पर खुले हुए हो वो इस बात पर कब राज़ी होता है, जिस आँख ने हक़ीक़ी हुस्न के जल्वे देखे हो वो नुमाइशी रंगो रूप पर क्या नज़र डेल ?
हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने राहते दुन्या के मुह पर ठोकर मार दी और राहे हक़ में पहुचने वाली मुसीबतो का खुश दिली से खैर मक़दम किया और मुसलमानो की तबाही व बर्बादी गवारा न फ़रमाई, अपना घर लुटाना और अपना खून बहाना मंज़ूर किया मगर इस्लाम की इज़्ज़त में फ़र्क़ आना बर्दास्त न हो सका।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 135*
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अहले बैते किराम पर पानी बंद करने और इन के खुनो के दरया बहाने के लिये बे गैरती से सामने आने वालो में ज़्यादा तादाद उन्ही बे हयाओ की थी जिन्होंने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को दरख्वास्ते भेज बुलाया था और मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه के हाथ पर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की बैअत की थी। मगर आज उन बे गैरतो को न अपने अहद व बैअत का ख्याल था न अपनी दावत व मेज़बानी का लिहाज़। फुरात का बे हिसाब पानी इस सियाह बातीनोने ख़ानदाने रिसालत पर बंद कर दिया था।
अहले बैत के छोटे छोटे फातिमि चमन के नौनिहाल खुश्क लब, नादान बच्चे एक एक क़तरे के लिये तड़प रहे थे, नूर की तस्वीरें प्यास की शिद्दत में दम तोड़ रही थी, सरे चश्म तयम्मुम से नमाज़े पढ़नी पड़ती थी, इस तरह 3 दिन गुज़र गए, छोटे छोटे बच्चे और बिविया सब भूक व प्यास से बेताब व तुवा हो गए।
इस ज़ुल्मो सितम में अगर रुस्तम भी होता तो उसके हौसले पस्त हो जाते मगर फरज़न्दे रसूल को मसाएब का हुजूम जगह से न हटा सका, हक़ व सदाक़त का हामी मुसीबतो की भयानक घटाओ से न डरा और तुफ़ाने बला के सेलाब से उसके पाए जुम्बिश भी न हुई, 10 मुहर्रम तक यही बहष रही की हज़रते इमाम यज़ीद की बैअत कर ले।
अगर आपرضي الله تعالي عنه यज़ीद की बैअत करते तो वो तमाम लश्कर आप के जिलव में होता, आप का कमाले इकराम व एहतिराम किया जाता, खज़ानों के मुह खोल दिये जाते और दौलते दुन्या क़दमो पर लूटा दी जाती मगर जिस का दिल हुब्बे दुन्या से खाली हो और दुन्या के राज़ जिस पर खुले हुए हो वो इस बात पर कब राज़ी होता है, जिस आँख ने हक़ीक़ी हुस्न के जल्वे देखे हो वो नुमाइशी रंगो रूप पर क्या नज़र डेल ?
हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने राहते दुन्या के मुह पर ठोकर मार दी और राहे हक़ में पहुचने वाली मुसीबतो का खुश दिली से खैर मक़दम किया और मुसलमानो की तबाही व बर्बादी गवारा न फ़रमाई, अपना घर लुटाना और अपना खून बहाना मंज़ूर किया मगर इस्लाम की इज़्ज़त में फ़र्क़ आना बर्दास्त न हो सका।
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