*सवानहे कर्बला* #47
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत_* #08
इब्ने असाकिरرضي الله تعالي عنه ने मिन्हाल बिन अम्र से रिवायत की वो कहते है : वल्लाह ! में ने ब चश्मे खुद देखा की जब सरे मुबारके इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه को लोग नेज़े पर लिये जाते थे उस वक़्त में दमिश्क़ में था, सर मुबारक के सामने एक शख्स सूरए कहफ़ पढ़ रहा था जब वो इस आयत पर पहुचा *असहाबे कहफ़ व रक़ीम हमारी निशानियों में से अजब थे*
उस वक़्त अल्लाह ने सरे मुबारक को गोयाई दी, बज़बाने फसीह फ़रमाया : *असहाबे कहफ़ के वाक़ीए से मेरा क़त्ल और मेरे सर को लिये फिरना अजीब तर है*
और दर हक़ीक़त बात यही है क्यू की असहाबे कहफ़ पर काफिरो ने ज़ुल्म किया था और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को इन के जद की उम्मत ने मेहमान बना कर बुलाया, फिर बे वफाई से पानी तक बंद कर दिया, आल व असहाब को हज़रते इमाम के सामने शहीद किया, फिर खुद हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को शहीद किया, अहले बैत को असीर किया, सर मुबारक शहर शहर फिराया। असहाबे कहफ़ साल्हा साल की तवील ख्वाब के बाद बोले, ये ज़रूर अजीब है मगर सरे मुबारक का तन से जुदा होने के बाद कलाम फरमाना इससे अजीब तर है।
हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की शहादत के बाद जब बद नसीब कुफि सरे मुबारक को ले कर चले और एक मंज़िल में इस काफिले ने क़याम किया वह एक दैर था। दैर के राहिब ने उन लोगो को 80000 दिरहम दे कर सरे मुबारक को एक शब् अपने पास रखा। गुस्ल दिया इत्र लगाया, अदब व ताज़ीम के साथ तमाम शब् ज़ियारत करता और रोता रहा और रहमते इलाही के जो अनवार सरे मुबारक पर नाज़िल हो रहे थे उन का मुशाहीदा करता रहा हत्ता की ये उस के इस्लाम का बाईष हुवा। अश्किया ने जब दिरहम तक़सीम करने के लिये थैलियो को खोला तो देखा सब में ठीकरिया भरी हुई है और उन के एक तरफ लिखा है *और हरगिज़ अल्लाह को बे खबर न जानना जालिमो के काम से* (पारह 13) और दुआरी तरफ लिखा था *और अब जाना चाहते है ज़ालिम की किसी करवट पलटा खाएगे* (पारह, 19)
*✍🏽सवानहे कर्बला, 176*
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इब्ने असाकिरرضي الله تعالي عنه ने मिन्हाल बिन अम्र से रिवायत की वो कहते है : वल्लाह ! में ने ब चश्मे खुद देखा की जब सरे मुबारके इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه को लोग नेज़े पर लिये जाते थे उस वक़्त में दमिश्क़ में था, सर मुबारक के सामने एक शख्स सूरए कहफ़ पढ़ रहा था जब वो इस आयत पर पहुचा *असहाबे कहफ़ व रक़ीम हमारी निशानियों में से अजब थे*
उस वक़्त अल्लाह ने सरे मुबारक को गोयाई दी, बज़बाने फसीह फ़रमाया : *असहाबे कहफ़ के वाक़ीए से मेरा क़त्ल और मेरे सर को लिये फिरना अजीब तर है*
और दर हक़ीक़त बात यही है क्यू की असहाबे कहफ़ पर काफिरो ने ज़ुल्म किया था और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को इन के जद की उम्मत ने मेहमान बना कर बुलाया, फिर बे वफाई से पानी तक बंद कर दिया, आल व असहाब को हज़रते इमाम के सामने शहीद किया, फिर खुद हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को शहीद किया, अहले बैत को असीर किया, सर मुबारक शहर शहर फिराया। असहाबे कहफ़ साल्हा साल की तवील ख्वाब के बाद बोले, ये ज़रूर अजीब है मगर सरे मुबारक का तन से जुदा होने के बाद कलाम फरमाना इससे अजीब तर है।
हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की शहादत के बाद जब बद नसीब कुफि सरे मुबारक को ले कर चले और एक मंज़िल में इस काफिले ने क़याम किया वह एक दैर था। दैर के राहिब ने उन लोगो को 80000 दिरहम दे कर सरे मुबारक को एक शब् अपने पास रखा। गुस्ल दिया इत्र लगाया, अदब व ताज़ीम के साथ तमाम शब् ज़ियारत करता और रोता रहा और रहमते इलाही के जो अनवार सरे मुबारक पर नाज़िल हो रहे थे उन का मुशाहीदा करता रहा हत्ता की ये उस के इस्लाम का बाईष हुवा। अश्किया ने जब दिरहम तक़सीम करने के लिये थैलियो को खोला तो देखा सब में ठीकरिया भरी हुई है और उन के एक तरफ लिखा है *और हरगिज़ अल्लाह को बे खबर न जानना जालिमो के काम से* (पारह 13) और दुआरी तरफ लिखा था *और अब जाना चाहते है ज़ालिम की किसी करवट पलटा खाएगे* (पारह, 19)
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