*सवानहे कर्बला* #48
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_शहादत के बाद के वाक़ीआत_* #01
हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه का वुजुदे मुबारक यज़ीद की बे क़ैदियों के लिये एक ज़बरदस्त मोहता्सिब था, वो जानता था के आप के ज़मानए मुबारक में इसको बे मोहारी का मौक़ा मुयस्सर न आएगा और उस की किसी गुमराही पर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه सब्र न फर्माएगे, उसको नज़र आता था की इमाम जेसे दीनदार की ताजिर हर वक़्त उसके सर पर घूम रहा है इसी वजह से वो और भी ज़्यादा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की जान का दुश्मन था और इसी लिये हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की शहादत उसके लिये बाईशे मसर्रत हुई।
हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه का साया उठना था, यज़ीद खुल खिला और अन्वअ व एक्साम के मअसि की गर्म बाज़ारी हो गई। ज़िना, हरामकारी, भाई-बहन की शादी, सूद, शराब, नमाज़ों की पाबन्दी उठ गई, सरकशी इन्तिहा को पहुची, शैतान ने यहाँ तक ज़ोर किया की मुस्लिम इब्ने उक़बा को 12 या 20 हज़ार का लश्कर ले कर मदीना की चढ़ाई के लिये भेज।
ये सी. 63 ही. का वाक़या है। इस नामुराद लश्कर ने मदीना में वो तूफ़ान बरपा किया की क़त्ल, गारत और तरह तरह के मज़ामिल हमसाएगाने रसूलुल्लाह पर किए। वहा के साकिनिन के घर लूट लिये, 700 सहाब को शहीद कर दिया और दूसरे आम बाशिंदे मिला कर 10 हज़ार से ज़्यादा को शहीद किया, लड़को को क़ैद कर लिया, ऐसी ऐसी बदतमीज़िया की जिन का ज़िक्र करना ना गवारा है। मस्जिदे नबवी के सुतुनो में घोड़े बांधे, तिन दिन तक मस्जिद में लोग नमाज़ से मुशर्रफ न हो सके। सिर्फ सईद इब्ने मुसय्याब मजनून बन कर वहा हाज़िर रहे। हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने इन्ज़ला इब्ने गसिल ने फ़रमाया की यज़ीदियो के नाशाइस्ता हरकत इस हद पर पहुच है के हमे अन्देशा होने लगा की इसने की बदकारियो की वजह से कहि आसमान से पथ्थर न बरसे।
फिर ये लश्कर शरारत अशर मक्का की तरफ रवाना हुवा, रास्ते में अमीरे लश्कर मर गया और दूसरा शख्स उसका क़ाइम मक़ाम किया गया। मक्का पहुच कर इन बे दिनों ने मिनजनिक से संग बारी की (मिनजनिक पथ्थर फेकने का आला होता है जिस से पथ्थर फेक कर मारा जाता है उसकी ज़द बड़ी ज़बरदस्त और दूर की मार होती है) इस संग बारी से हरम शरीफ का सहन मुबारक पतथरो से भर गया और मस्जिदे हराम के सुतून टूट पड़े और काबए मुक़द्दस के गिलाफ शरीफ और छत को इन बे दिनों ने जला दिया। इसी छत में उस दुम्बे के सिंग भी तबर्रुक के तौर पर महफूज़ थे जो हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम के फिदये में कुर्बानी किया गया था वो भी जल गए, काबए मुक़द्दसा कई रोज़ तक बे लिबास रहा और वहा के बाशिंदे सख्त मुसीबत में मुब्तला रहे।
बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 178*
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हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه का वुजुदे मुबारक यज़ीद की बे क़ैदियों के लिये एक ज़बरदस्त मोहता्सिब था, वो जानता था के आप के ज़मानए मुबारक में इसको बे मोहारी का मौक़ा मुयस्सर न आएगा और उस की किसी गुमराही पर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه सब्र न फर्माएगे, उसको नज़र आता था की इमाम जेसे दीनदार की ताजिर हर वक़्त उसके सर पर घूम रहा है इसी वजह से वो और भी ज़्यादा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की जान का दुश्मन था और इसी लिये हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की शहादत उसके लिये बाईशे मसर्रत हुई।
हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه का साया उठना था, यज़ीद खुल खिला और अन्वअ व एक्साम के मअसि की गर्म बाज़ारी हो गई। ज़िना, हरामकारी, भाई-बहन की शादी, सूद, शराब, नमाज़ों की पाबन्दी उठ गई, सरकशी इन्तिहा को पहुची, शैतान ने यहाँ तक ज़ोर किया की मुस्लिम इब्ने उक़बा को 12 या 20 हज़ार का लश्कर ले कर मदीना की चढ़ाई के लिये भेज।
ये सी. 63 ही. का वाक़या है। इस नामुराद लश्कर ने मदीना में वो तूफ़ान बरपा किया की क़त्ल, गारत और तरह तरह के मज़ामिल हमसाएगाने रसूलुल्लाह पर किए। वहा के साकिनिन के घर लूट लिये, 700 सहाब को शहीद कर दिया और दूसरे आम बाशिंदे मिला कर 10 हज़ार से ज़्यादा को शहीद किया, लड़को को क़ैद कर लिया, ऐसी ऐसी बदतमीज़िया की जिन का ज़िक्र करना ना गवारा है। मस्जिदे नबवी के सुतुनो में घोड़े बांधे, तिन दिन तक मस्जिद में लोग नमाज़ से मुशर्रफ न हो सके। सिर्फ सईद इब्ने मुसय्याब मजनून बन कर वहा हाज़िर रहे। हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने इन्ज़ला इब्ने गसिल ने फ़रमाया की यज़ीदियो के नाशाइस्ता हरकत इस हद पर पहुच है के हमे अन्देशा होने लगा की इसने की बदकारियो की वजह से कहि आसमान से पथ्थर न बरसे।
फिर ये लश्कर शरारत अशर मक्का की तरफ रवाना हुवा, रास्ते में अमीरे लश्कर मर गया और दूसरा शख्स उसका क़ाइम मक़ाम किया गया। मक्का पहुच कर इन बे दिनों ने मिनजनिक से संग बारी की (मिनजनिक पथ्थर फेकने का आला होता है जिस से पथ्थर फेक कर मारा जाता है उसकी ज़द बड़ी ज़बरदस्त और दूर की मार होती है) इस संग बारी से हरम शरीफ का सहन मुबारक पतथरो से भर गया और मस्जिदे हराम के सुतून टूट पड़े और काबए मुक़द्दस के गिलाफ शरीफ और छत को इन बे दिनों ने जला दिया। इसी छत में उस दुम्बे के सिंग भी तबर्रुक के तौर पर महफूज़ थे जो हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम के फिदये में कुर्बानी किया गया था वो भी जल गए, काबए मुक़द्दसा कई रोज़ तक बे लिबास रहा और वहा के बाशिंदे सख्त मुसीबत में मुब्तला रहे।
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