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Wednesday 2 November 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #66
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑦⑧_*
और उनमें कुछ अनपढ़ हैं कि जो किताब को नहीं जानते मगर ज़बानी पढ़ लेना या कुछ अपनी मनघड़त और वो निरे गुमान (भ्रम)  में है

*तफ़सीर*
      किताब से तौरात मुराद है.
      अमानी का अर्थ है ज़बानी पढ़ लेना. यह उमनिया का बहुवचन है. हज़रत इब्ने अब्बास से रिवायत है कि आयत के मानी ये हैं कि किताब को नहीं जानते मगर सिर्फ़ ज़बानी पढ़ लेना, बिना समझे
*✍🏽ख़ाज़िन*
     कुछ मुफ़स्सिरों ने ये मानी भी बयान किये हैं कि “अमानी” से वो झूटी गढ़ी हुई बातें मुराद हैं जो यहूदियोँ ने अपने विद्वानों से सुनकर बिना जांच पड़ताल किये मान ली थीं.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑦⑨_*
तो ख़राबी है उनके लिये जो किताब अपने हाथ से लिखें फिर कह दें ये ख़ुदा के पास से है कि इसके बदले थोड़े दाम हासिल करें तो ख़राबी है उनके लिये उनके हाथों के लिखे से और ख़राबी उनके लिये उस कमाई से

*तफ़सीर*
     जब सैयदे अंबिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मदीनए तैय्यिबह तशरीफ़ लाए तो यहूदियों के विद्वानों और सरदारों को यह डर हुआ कि उनकी रोज़ी जाती रहेगी और सरदारी मिट जाएगी क्योंकि तौरात में हुज़ूर का हुलिया (नखशिख) और विशेषताएं लिखी है. जब लोग हुज़ूर को इसके अनुसार पाएंगे, फ़ौरन ईमान ले आएंगे और अपने विद्वानों और सरदारों को छोड़ देंगे. इस डर से उन्होंने तौरात के शब्दों को बदल डाला और हुज़ूर का हुलिया कुछ का कुछ कर दिया. मिसाल के तौर पर तौरात में आपकी ये विशेषताएं लिखी थीं कि आप बहुत ख़ूबसूरत हैं, सुंदर बाल वाले, सुंदर आँख़े सुर्मा लगी जैसी, क़द औसत (मध्यम) दर्जे का है. इसको मिटाकर उन्होंने यह बनाया कि हुज़ूर का क़द लम्बा, आंख़े कंजी, बाल उलझे हुए हैं. यही आम लोगों को सुनाते, यही अल्लाह की किताब का लिखा बताते और समझते कि लोग हुज़ूर को इस हुलिये से अलग पाएंगे तो आप पर ईमान न लाएंगे, हमारे ही असर में रहेंगे और हमारी कमाई में कोई फ़र्क़ नहीं आएगा.
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