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Tuesday 22 November 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #84
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ⑤_*
     वो जो काफ़िर हैं किताबी या मुश्रिक (4)
वो नहीं चाहते कि तुम पर कोई भलाई उतरे तुम्हारे रब के पास से(5)
और अल्लाह अपनी रहमत से ख़ास करता है जिसे चाहे और अल्लाह बड़े फ़ज्ल़ वाला है

*तफ़सीर*
     (4) यहूदियों की एक जमाअत मुसलमानों से दोस्ती और शुभेच्छा जा़हिर करती थी. उसको झुटलाने के लिये यह आयत उतरी मुसलमानों को बताया गया कि काफ़िर दोस्ती और शुभेच्छा के दावे में झूटे है.
*✍🏽जुमल*
     (5)यानी काफ़िर एहले किताब और मुश्रिकीन दोनों मुसलमानों से दुश्मनी और कटुता रखते हैं और इस दुख में है कि उनके नबी मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को पैग़म्बरी और वही (देववाणी) अता हुई और मुसलमानों को यह बङी नेअमत मिली.
*✍🏽ख़ाज़िन*
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