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Monday 9 January 2017

*जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ*​ #17
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_या गौषे आज़म ! खुदा के लिये कुछ अता हो_* #01
     *सवाल :* वजीफा - ऐ "या हज़रत सुलतान शैख़ सैय्यिद शाह अब्दुल क़ादिर जिलानी शैअन लिल्लाह" पढ़ना हम लोग जायज़ कहते है, जबकि कुछ लोग इसे कुफ़्र व शिर्क कहते है। सही क्या है ?

     *जवाब :* इसका तर्जुमा ये है : "ऐ हज़रत सुलतान शैख़ शाह अब्दुल क़ादिर जिलानी ! खुदा के लिए कुछ अता हो"
     अरबी का ये वाक्य बिलकुल ऐसा ही है जेसे आम बोल चाल में हम कहा करते है की, खुदा के लिये मेरी मदद कीजिये। यानी अपनी इमदाद के लिए में खुदा का वास्ता देता हु, यहाँ इसका मतलब ये नही की, खुदा मोहताज है इसलिए उसके लिए कुछ अता कीजिए, मआज़ल्लाह
     ऐसा अक़ीदा रखना यक़ीनन कुफ़्र है। मगर ऐसा अक़ीदा जाहिल से जाहिल भी नही रखता जनाब ये मुहावरा आम-ख़ास सभी में रिवाज पड़ा हुआ है। लेकिन आज तक किसी ने इस लर ऐतराज़ नही किया।

*✍🏽जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ, 22*
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