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Wednesday 29 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #179
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③⑦_*
     और अगर तुमने औरतों को बे छुए तलाक़ दे दी और उनके लिये कुछ मेहर निश्चित कर चुके थे तो जितना ठहरा था उसका आधा अनिवार्य है मगर यह कि औरतें कुछ छोड़ दें (5) या वह ज़्यादा दे(6) जिसके हाथ में निकाह की गिरह है (7) और ऐ मर्दों, तुम्हारा ज़्यादा देना परहेज़गारी से नज़्दीकतर है और आपस में एक दूसरे पर एहसान को भुला न दो बेशक अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है (8)

*तफ़सीर*
(5) अपने इस आधे में से.
(6) आधे से जो इस सूरत में वाजिब है.
(7) यानी शौहर.
(8) इसमें सदव्यवहार और महब्बत और नर्मी से पेश आने की तरग़ीब है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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