*अहकामे रोज़ा* #26
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_मकरुहाते रोज़ा_* 01
जिनके करने से रोज़ा हो तो जाता है मगर उस की नुरानिय्यत चली जाती है।
फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم :
★ जो बुरी बात कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो अल्लाह को इस की कुछ हाजत नही की उस ने खाना, पीना छोड़ दिया है।
*✍🏼सहीह बुखारी, 1/628, हदिष:1903*
★ रोज़ा ढाल है जब तक उसे फाड़ा न हो। अर्ज़ की गई, किस चीज़ से फाड़ेगा ? इर्शाद फ़रमाया, झूट या गीबत से।
*✍🏼अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/94, हदिष:3*
★ झूट, चुगली, गीबत, बद निगाही, गली देना, बिला इजाज़ते शरई किसी का दिल दुखाना, दाढ़ी मुंडाना वगैरा चीज़े वेसे भी ना जाइज़ व हराम है रोज़े में और ज़्यादा हराम और उन की वजह से रोज़े में कराहिय्यत आती और रोज़े की नुरानिय्यत चली जाती है।
★ रोज़ादार का बिला उज़्र किसी चीज़ को चखना या चबाना मकरूह है। चखने के लिये उज़्र ये है की मसलन औरत का शौहर बद मिज़ाज है की नमक कम या ज़्यादा होगा तो उस की नाराज़गी का बाइस होगा। इस वजह से चखने में हरज नही।
चबाने के लिये उज़्र ये है की इतना छोटा बच्चा है की रोटी नही चबा सकता और कोई नर्म ग़िज़ा नही जो उसे खिलाई जा सके, न हैज़ो निफ़ास वाली औरत या कोई और ऐसा है की उसे चबा कर दे। तो बच्चे के खिलाने के लिये रोटी वगैरा चबाना मकरूह नही।
मगर पूरी एहतियात रखिये अगर हल्क़ से निचे कुछ् उतर गया तो रोज़ा टूट गया।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 213*
*तमाम मोमिनो के इसले षवाब के लिये*
*___________________________________*
मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
*DEEN-E-NABI ﷺ*
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जिनके करने से रोज़ा हो तो जाता है मगर उस की नुरानिय्यत चली जाती है।
फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم :
★ जो बुरी बात कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो अल्लाह को इस की कुछ हाजत नही की उस ने खाना, पीना छोड़ दिया है।
*✍🏼सहीह बुखारी, 1/628, हदिष:1903*
★ रोज़ा ढाल है जब तक उसे फाड़ा न हो। अर्ज़ की गई, किस चीज़ से फाड़ेगा ? इर्शाद फ़रमाया, झूट या गीबत से।
*✍🏼अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/94, हदिष:3*
★ झूट, चुगली, गीबत, बद निगाही, गली देना, बिला इजाज़ते शरई किसी का दिल दुखाना, दाढ़ी मुंडाना वगैरा चीज़े वेसे भी ना जाइज़ व हराम है रोज़े में और ज़्यादा हराम और उन की वजह से रोज़े में कराहिय्यत आती और रोज़े की नुरानिय्यत चली जाती है।
★ रोज़ादार का बिला उज़्र किसी चीज़ को चखना या चबाना मकरूह है। चखने के लिये उज़्र ये है की मसलन औरत का शौहर बद मिज़ाज है की नमक कम या ज़्यादा होगा तो उस की नाराज़गी का बाइस होगा। इस वजह से चखने में हरज नही।
चबाने के लिये उज़्र ये है की इतना छोटा बच्चा है की रोटी नही चबा सकता और कोई नर्म ग़िज़ा नही जो उसे खिलाई जा सके, न हैज़ो निफ़ास वाली औरत या कोई और ऐसा है की उसे चबा कर दे। तो बच्चे के खिलाने के लिये रोटी वगैरा चबाना मकरूह नही।
मगर पूरी एहतियात रखिये अगर हल्क़ से निचे कुछ् उतर गया तो रोज़ा टूट गया।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 213*
*तमाम मोमिनो के इसले षवाब के लिये*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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