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Tuesday 20 June 2017

*नमाज़ के 7 फराइज़* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_2 क़याम :_* #01
     कमी की जानिब क़याम की हद ये है की हाथ बढ़ाए तो घुटनो तक न पहुचे और पूरा क़याम ये है की सीधा खड़ा हो।
     क़याम इतनी देर तक है जितनी देर तक किरअत है। ब क़दरे किराअते फ़र्ज़ क़याम भी फ़र्ज़, ब क़दरे वाजिब में वाजिब और ब क़दरे सुन्नत में सुन्नत।
     फ़र्ज़, वित्र्, इदैन और सुन्नते फ़र्ज़ में क़याम फ़र्ज़ है। अगर बिल उज़्रे सहीह कोई ये नमाज़े बैठ कर अदा करेगा तो न होगी।
     खड़े होने से महज़ कुछ तकलीफ होना उज़्र नही बल्कि क़याम उस वक़्त साकित होगा की खड़ा न हो सके या सज्दा न कर सके या खड़े होने या सज्दा करने में ज़ख्म बहता है या खड़े होने में क़तरा आता है या चौथाई सित्र खुलता है या किराअत से मजबूर महज़ हो जाता है। युही खड़ा हो सकता है मगर उस से मरज़ में ज्यादती होती अहै या देर में अच्छा होगा या ना क़ाबिले बर्दास्त तकलीफ होगी तो बैठ कर पढ़े।
     अगर असा या बैसाखी खादिम या दिवार पर टेक लगा कर खड़ा होना मुम्किन है तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर पढ़े।
     अगर सिर्फ इतना खड़ा होना मुमकिन है की खड़े खड़े तकबीरे तहरिमा कह लेगा तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर "अल्लाहु अक्बर" कहले और अब खड़ा रहना मुम्किन नही तो बैठ जाए।

बाक़ी अगली पोस्ट में. ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 162*

*तमाम मोमिनो के इसले षवाब के लिये*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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