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Sunday 16 July 2017

*इमामे के फ़ज़ाइल* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_हिकायत_*
     हज़रते सालिम बिन अब्दुल्लाह बिन उमर رضي الله عنه फ़रमाते है की में अपने वालिद के हुज़ूर हाज़िर हुवा वो इमामा बांध रहे थे जब बांध चुके तो मेरी तरफ इल्तीफात कर के फ़रमाया : तुम इमामा को दोस्त रखते हो ? में ने अर्ज़ की : क्यू नही ! फ़रमाया : इसे दोस्त रखो इज़्ज़त पाओगे और जब शैतान तुम्हे देखेगा तुम से पीठ फेर लेगा, ऐ फ़रज़न्द इमामा बांध की फ़रिश्ते जुमुआ के दिन इमामा बांधे आते है और सूरज डूबने तक इमामा बांधने वालो पर सलाम भेजते रहते है।

     इमामे पेच सीधी जानिब होने चाहिए चुनान्चे इमाम अहमद रज़ा खान عليه رحما इमामा शरीफ इस तरह बांधते की शिमलाए मुबारका सीधे शाना पर रहता। नीज़ बांधते वक़्त उस की गर्दिश बाए हाथ से फ़रमाते जब की सीधा हाथ पेशानी पर रखते और इसी से हर पेच की गरिफ्त फ़रमाते।

*_इमामा के आदाब_*
★ इमामा 7 हाथ (साढ़े तिन गज़) से छोटा न हो और 12 हाथ (छ गज़) से बड़ा न हो।
★ इमामा के शिम्ले की मिक़दार कम अज़ कम चार उंगल और ज़्यादा से ज़्यादा इतना हो की बैठने में न दबे।
★ इमामा उतारते वक़्त भी एक एक के पेच खोलना चाहिये। इमामा किब्ला की तरफ रुख कर के खड़े खड़े बांधे।

     ऐ हमारे प्यारे अल्लाह ! हमे इमामा की सुन्नत पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमा।
اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 112*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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