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Saturday 15 July 2017

*हर नेकी मुश्किल नही होती*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     सच्ची बात तो ये है की "हर नेकी मुश्किल नही होती, हमारा नफ़्स इन्हें मुश्किल समझता है।" अलबत्ता कुछ नेकियां ऐसी होती है जिन में थोड़ी बहुत मेहनत मशक़्क़त करनी पड़ती है लेकिन अगर हिम्मत कर के इन्हें शुरू कर दिया जाए तो वक़्त के साथ साथ आसानी पैदा हो जाती है, मशलन नींद कुर्बान कर के तहज्जुद पढ़ना बेहद मुश्किल महसूस होता है लेकिन जो इस का मामूल बना ले उस के लिये नमाज़े तहज्जुद की अदाएगी क़दरे आसान हो जाती है। बहर हाल कोई नेकी दुश्वार भी हो तो छोड़नी नही चाहिये और मशक़्क़त नही बल्कि इनआम को पेशे नज़र रखना चाहिये क्यू की आरज़ी मशक़्क़त खत्म हो जाएगी जब की इस का इनआम أن شاء الله हमेशा आप के पास रहेगा।

*_जितनी मशक़्क़त ज़्यादा उतना षवाब ज़्यादा_*
     अपना मदनी ज़हन बना लीजिये की नेकी में जितनी मशक़्क़त ज़्यादा होगी أن شاء الله उतना ही षवाब ज़्यादा मिलेगा जैसा की मन्कुल है : अफ़्ज़ल इबादत वो है जिस में ज़हमत (तकलीफ) ज़्यादा है।
     इमाम शर्फुद्दीन नववी عليه رحما फ़रमाते है : इबादत में मशक़्क़त और खर्च ज़्यादा होने से षवाब और फ़ज़ीलत ज़्यादा हो जाती है।
     हज़रते इब्राहिम बिन अदहम का फरमान है : दुन्या में जो नेक अमल जितना दुश्वार होगा क़यामत के रोज़ नेकियों के पलड़े में उतना ही ज़्यादा वज़नदार होगा।
*✍🏼आसान नेकियां, 10*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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