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Tuesday 25 July 2017

*4-निय्यत की अहमिय्यत* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

इबादत की दो किस्मे...
     *(1) मक़्सूदा :* जेसे नमाज़, रोज़ा। की इनसे मक़सूद हुसुले षवाब है इन्हें अगर बगैर निय्यत अदा किया जाए तो ये सहीह न होंगे इस लिये की इन से मक़सूद षवाब था और जब षवाब मक़सूद हो गया तो इस की वजह से असल शै ही अदा न होगी।

     *(2) गैर मक़सूद :* वो जो दूसरी इबादतों के लिये ज़रीआ हो जैसे नमाज़ के लिये चलना, वुज़ू, गुस्ल वगैरा। इन इबादतें गैर मक़्सूदा को अगर कोई निय्यते इबादत के साथ करेगा तो उसे षवाब मिलेगा और अगर बिला निय्यत करेगा तो षवाब नही मिलेगा मगर इस का ज़रीआ या वसीला बनना अब भी दुरुस्त होगा और इन से नमाज़ सहीह हो जाएगी।

     एक अमल में जितनी निय्यते होंगी उतनी नेकियों का षवाब मिलेगा, मसलन मोहताज़ क़राबत दार की मदद करने में अगर निय्यत फ़क़त अल्लाह के लिये देने की होगी तो एक निय्यत का षवाब पाएगा और अगर सीलए रहमी की निय्यत भी करेगा तो दोहरा षवाब पाएगा। इसी तरह मस्जिद में नमाज़ के लिये जाना भी एक अमल है इस में बहुत सी निय्यते की जा सकती है, हज़रत अहमद रज़ा खान عليه رحما फ़रमाते है : बेशक जो इल्मे निय्यत जानता है एक एक फेल को अपने लिये कई कई नेकियां कर सकता है।
     बल्कि मुबाह कामो में भी अच्छी निय्यत करने से षवाब मिलेगा, मसलन खुशबु लगाने में इत्तबाए सुन्नत, ताज़ीम मस्जिद, फरहते दिमाग और अपने इस्लामी भाइयो से न पसन्द बू दूर करने की निय्यत हो तो हर निय्यत का अलग षवाब होगा।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 11*

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