بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
हुज़ूर ﷺ का मा'मूल था कि जब कोई ग़रीब मुसलमान ख़िदमते मुबारक़ में हाज़िर होता और उस के बदन पर कपड़े न होते तो हज़रते बिलाल रदिअल्लाहो तआला अन्हो को हुक्म देते और वो क़र्ज़ ले कर उस की ख़ुराक व लिबास का इन्तिज़ाम करते।
एक बार किसी मुशरिक से इस ग़रज़ के लिये क़र्ज़ लिया। लेकिन एक दिन उस ने देखा तो निहायत सख़्त लहजे में कहा, ओ हबशी तुझे मा'लूम है कि अब महीने में कितने दिन रह गए हैं? सिर्फ चार दिन इसी अर्से में क़र्ज़ वुसूल कर लूं। वरना जिस तरह तू पहले बकरियां चराया करता था इसी तरह बकरियां चरवाऊंगा।
हज़रते बिलाल रदिअल्लाहो तआला अन्हो को इस से सख़्त रंज हुवा, ईशा के बाद आप ﷺ की ख़िदमत में आए और कहा कि मुशरिक ने मुझे येह कुछ कहा है, और वोह मुझे ज़लील कर रहा है, इजाज़त फ़रमाइये तो जब तक क़र्ज़ अदा न हो जाए मुसलमान कबाइल में भाग कर पनाह लूं। घर वापस आए तो भागने का तमाम सामान भी जमा कर लिया, लेकिन रज़्ज़के आलम ने सुबह तक ख़ुद क़र्ज़ के अदा करने का तमाम सामान कर दिया।
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 187
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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