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Sunday 19 August 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #224


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*सालेह عليه السلام की तबलीग से दो फरीक़ बन गये*

     आप عليه السلام की तबलीग पर कुछ लोग ईमान ले आये और दूसरे लोगोंने कुफ्र पर क़ायम रहे इस तरह दो गिरोह बन गये। ये आपस मे एक दूसरे से बहसों में उलझे रहते थे लेकिन ईमान वालो की तरफ से झगड़ा दीन के हक़ होने में होता ये जिदाल हक़ था।

     सालेह عليه السلام की तबलीग पर क़ौम के इनकार और आपके अज़ाब से डराने पर क़ौम का ये कहना: और बोले ऐ सालेह हम पर ले आओ जिसका तुम वादा दे रहे हो।

     इसके जवाब में आपने कहा ए मेरी क़ौम तुम अच्छाई के बदले में जल्दी क्यों करते हो। यानी ये दुन्यावी नेअमतों का आराम तुम्हें हासिल है लेकिन इसके बदले तुम अज़ाब और अपनी बर्बादी व तबाही तलब कर रहे हो, ये कहाँ की अक़्ल है, तुम्हें अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी तलब करनी चाहिये ताकि तुम पर रहम करे।

*तज़किरतुल अम्बिया* 183

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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