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Monday 6 August 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-4, आयत, ③②*



بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     बोले पाकी है तुझे हमें कुछ इल्म नहीं मगर जितना तूने हमें सिखाया बेशक तू ही इल्म और हिकमत वाला है(6) 


*तफ़सीर*

     (6) इसमें फ़रिश्तों की तरफ़ से अपने इज्ज़ (लाचारी) और ग़लती का ऐतिराफ और इस बात का इज़हार है कि उनका सवाल केवल जानकारी हासिल करने के लिये था, न कि ऐतिराज़ की नियत से. और अब उन्हें इन्सान की फ़ज़ीलत (बड़ाई) और उसकी पैदाइश का रहस्य मालूम हो गया जिसको वो पहले न जानते थे.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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