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Friday 28 September 2018

*हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #09


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     सोचने वाली बात है कि जब इमाम हुसैन رضي الله عنه ने अपनी जान देना पसन्द किया लेकिन बद अमल को क़ुबूल करना पसंद न किया। तो आज हम बद अमली बन के "हुसैन का दामन नहीं छोड़ेंगे" के नारे लगाते है क्या वो इमाम हुसैन को पसन्द आएगा? और क्या आप बद अमल को पसन्द फरमाएंगे? 

     कर्बला के मैदान में तपती रेत में 3 दिन तक भूखे प्यासे रह कर भी आपने नमाज़ को न छोड़ा। बल्कि ऐसी खौफनाक मुसीबत के हालात में भी आप साथियों के साथ जमाअत से नमाज़ अदा करते थे। जब आप ज़ख्मो की हालत में ज़मीन पर तशरीफ़ ले आए वो दिन जुमुआ का था, आपने उसी हालत में आने सर को सजदे में झुका दिया और ज़िन्दगी का आखरी सजदा किया। 

     ज़बाने हाल से कर्बला की ज़मीन को गवाह बनाई के अय ज़मीन! तू गवाह रहना की हुसैन ने अपनी नमाज़ को क़ज़ा न होने दी।

     जब इमाम हुसैन ने लड़ाई के मैदान में भूखे प्यासे रह कर भी नमाज़ को न छोडा, तो फिर हम उनके अक़ीदत मंद और मुहब्बत का दावा करके अपने घरों में आराम से रह कर नमाज़ को भूल बैठे है वो कितनी शर्मिंदगी की बात है।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 25

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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