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Friday 21 September 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-10, आयत, ⑧⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ये हैं वो लोग जिन्होंने आख़िरत के बदले दुनिया की ज़िन्दग़ी मोल ली, तो न उनपर से अज़ाब हल्का हो और उनकी मदद की जाए.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑧⑦*

     और बेशक हमने मूसा को किताब अता की (1) और उसके बाद एक के बाद रसूल भेजे (2) और हमने मरयम के बेटे ईसा को खुली निशानियां अता फ़रमाई (3) और पवित्र आत्मा (4) से उसकी मदद की(5) तो क्या जब तुम्हारे पास कोई रसूल वह लेकर आए जो तुम्हारे नफ़्स (मन) की इच्छा नहीं, घमण्ड करते हो तो उन (नबियों) में एक गिरोह (समूह) को तुम झुटलाते हो और एक गिराह को शहीद करते हो (6)


*तफ़सीर*

     (1) इस किताब से तौरात मुराद है जिसमें अल्लाह तआला के तमाम एहद दर्जे थे. सबसे अहम एहद ये थे कि हर ज़माने के नबियों की इताअत (अनुकरण) करना, उन पर ईमान लाना और उनकी ताज़ीम व तौक़ीर करना.

     (2) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम तक एक के बाद एक नबी आते रहे. उनकी तादाद चार हज़ार बयान की गई है. ये सब हज़रत मूसा की शरीअत के मुहाफ़िज़ और उसके आदेश जारी करने वाले थे. चूंकि नबियों के सरदार के बाद किसी को नबुव्वत नहीं मिल सकती, इसलिये हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की शरीअत की हिफ़ाज़त और प्रचार प्रसार की ख़िदमत विद्वानों और दीन की रक्षा करने वालों को सौंपी गई.

      (3) इन निशानियों से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के मोज़िज़े (चमत्कार) मुराद हैं जैसे मुर्दे ज़िन्दा कर 

देना, अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देना, चिड़िया पैदा करना, ग़ैब की ख़बर देना वग़ैरह.

     (4) रूहिल कुदुस से हज़रत जिब्रील मुराद हैं कि रूहानी हैं, वही (देववाणी) लाते हैं जिससे दिलों की ज़िन्दगी है. वह हज़रत ईसा के साथ रहने पर मामूर थे. आप 33 साल की उम्र में आसमान पर उठाए गए, उस वक्त तक हज़रत जिब्रील सफ़र व सुकूनत में कभी आप से जुदा न हुए. रूहुल क़ुदुस की ताईद (समर्थन) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की बड़ी फ़ज़ीलत है. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के कुछ मानने वालों को भी रूहुल क़ुदुस की ताईद (मदद) हासिल हुई. सही बुख़ारी वग़ैरह में है कि हज़रत हस्सान (अल्लाह उनसे राज़ी) के लिये मिम्बर बिछाया जाता. वह नात शरीफ़ पढ़ते, हुज़ूर उनके लिये फ़रमाते “अल्लाहुम्मा अय्यिदहु बिरूहिल क़ुदुस” (ऐ अल्लाह, रूहुल क़ुदुस के ज़रिये इसकी मदद फ़रमा).

      (5) फिर भी ऐ यहूदियो, तुम्हारी सरकशी में फ़र्क़ नहीं आया.

      (6) यहूदी, पैग़म्बरों के आदेश अपनी इच्छाओं के ख़िलाफ़ पाकर उन्हें झुटलाते और मौक़ा पाते तो क़त्ल कर डालते थे, जैसे कि उन्होंने हज़रत ज़करिया और दूसरे बहुत से अम्बिया को शहीद किया. सैयदुल अंबिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम  के पीछे भी पड़े रहे. कभी आप पर जादू किया, कभी ज़हर दिया, क़त्ल के इरादे से तरह तरह के धोखे किये.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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