*कंज़ुल ईमान*
*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-18, आयत, ①⑤①*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
जैसा हमने तुममें भेजा एक रसूल तुम में से (5) कि तुमपर हमारी आयतें तिलावत करता है (पढ़ता है) और तुम्हें पाक करता (6) और किताब और पुख़्ता इल्म सिखाता है (7) और तुम्हें वह तालीम फ़रमाता है जिसकी तुम्हें जानकारी न थी.
*तफ़सीर*
(5) यानी सैयदे आलम मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.
(6) नापाकी, शिर्क और गुनाहों से.
(7) हिकमत से मुफ़स्सिरीन ने फ़िक़्ह मुराद ली है.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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