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Thursday 31 January 2019

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-30, आयत, ②③②*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और उनकी मीआद पूरी हो जाए (1) तो ऐ औरतों के वालियों (स्वामियों), उन्हें न रोको इससे कि अपने शौहरों से निकाह कर लें  (2) जब कि आपस में शरीअत के अनुसार रज़ामंद हो जाएं (3) यह नसीहत उसे दी जाती है जो तुम में से अल्लाह और क़यामत पर ईमान रखता हो यह तुम्हारे लिये ज़्यादा सुथरा और पाकीज़ा है और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते.


*तफ़सीर*

(1) यानी उनकी इद्दत गुज़र चुके.

(2) जिनको उन्होंने अपने निकाह के लिये चुना हो, चाहे वो नए हों या यही तलाक़ देने वाले या उनसे पहले जो तलाक़ दे चुके थे.

(3) अपने क़ुफ़्व यानी बराबर वाले में मेहरे मिस्ल पर, क्योंकि इसके ख़िलाफ़ की सूरत में सरपरस्त हस्तक्षेप और एतिराज़ का हक़ रखते हैं. मअक़ल बिन यसार मुज़नी की बहन का निकाह आसिम बिन अदी के साथ हुआ था. उन्होंने तलाक़ दी और इद्दत गुज़रने के बाद फिर आसिम ने दरख़ास्त की तो मअक़ल बिन यसार आड़े आए. उनके बारे में यह आयत उतरी. (बुख़ारी शरीफ़)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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