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Tuesday 5 February 2019

*ईमान का बयान* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - क्या दिल से तस्दीक के साथ जुबान से इकरार करना भी जरूरी है ? 

     *जवाब* - मुसलमन होने के लिये दिल की तस्दीक के साथ जुबान से इक़रार करना भी शर्त है ताकि दूसरे लोग उसे मुसलमान समझे और मुसलमान उस के साथ मुसलमानों जैसा सुलूक करें। इस की तफ्सील येह है कि अगर तस्दीक के बाद इज़हार का मौकअ न मिला तो इन्दल्लाह मोमिन है और अगर मौकअ मिला और उस से मुतालबा किया गया और इकरार न किया तो काफिर है और अगर मुतालबा न किया गया तो अहकामे दुन्या में काफ़िर समझा जाएगा न उस के जनाजे की नमाज़ पढ़ेंगे न मुसलमानों के कब्रिस्तान में दफ्न करेंगे मगर इन्दल्लाह मोमिन हैं अगर कोई अम्र खिलाफे इस्लाम जाहिर न किया हो। 

     *तम्बीह* : मुसलमान होने के लिये ये भी शर्त है कि जुबान से किसी ऐसी चीज़ का इन्कार न करे जो ज़रूरियते दीन से हैं, अगर्चे बाकी बातों क इक़रार करता हो, अगचें वोह येह कहे कि सिर्फ जबान से इन्कार हे दिल में इन्कार नहीं कि बिला इकराहे शरई मुस्लमान केलिमए कुफ्र सादिर नहीं कर सकता, वोही शख्स ऐसी बात मुंह पर लाएगा जिस के दिल में इतनी ही वुक़अत है कि जब चाहा इन्कार कर दिया और ईमान तो ऐसी तस्दीक है जिस के खिलाफ की असलन गुन्जाइश नहीं।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 53

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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