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Thursday 14 February 2019

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-32, आयत, ②④⑥*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ऐ मेहबूब क्या तुमने न देखा बनी इस्राइल के एक दल को जो मूसा के बाद हुआ (5) जब अपने एक पैगम्बर से बोले हमारे लिये खड़ा कर दो एक बादशाह कि हम ख़ुदा की राह में लड़ें. नबी ने फ़रमाया क्या तुम्हारे अन्दाज़ ऐसे हैं कि तुम पर जिहाद फ़र्ज़  किया जाए तो फिर न करो, बोले हमें क्या हुआ कि हम अल्लाह की राह में न लड़ें हालांकि हम निकाले गए हैं अपने वतन  और अपनी  औलाद से  (6) तो फिर जब उनपर जिहाद फर्ज़ किया गया, मुंह फेर गए मगर उनमें के थोड़े (7) और अल्लाह ख़ूब जानता है ज़ालिमों को.


*तफ़सीर*

(5) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बाद जब बनी इस्राइल की हालत खराब हुई और उन्होंने अल्लाह का एहद भुला दिया. मूर्ति पूजा में मशग़ूल हुए, सरकशी और कुकर्म चरम सीमा पर पहुंचे, उन पर जालूत की क़ौम छा गई जिसको इमालिक़ा कहते हैं. जालूत अमलीक़ बिन आस की औलाद से एक बहुत ही अत्याचारी बादशाह था. उसकी क़ौम के लोग मिस्त्र और फ़लस्तीन के बीच रोम सागर के तट पर रहते थे. उन्होंने बनी इस्राइल के शहर छीन लिये, आदमी गिरफ़तार किये, तरह तरह की सख्तियाँ कीं. उस ज़माने में कोई नबी बनी इस्राइल में मौजूद न थे. ख़ानदाने नबुव्वत से सिर्फ़ एक बीबी रही थीं जो गर्भ से थीं. उनके बेटा हुआ. उनका नाम शमवील रखा. जब वो बड़े हुए तो उन्हें तौरात का इल्म हासिल करने के लिये बैतुल मक़दिस में एक बूढ़े विद्वान के हवाले किया गया. वह आपको बहुत चाहते और अपना बेटा कहते. जब आप जवान हुए तो एक रात आप उस आलिम के पास आराम कर रहे थे कि हज़रत जिब्रीले अमीन ने उसी आलिम की आवाज़ में “या शमवील” कहकर पुकारा. आप आलिम के पास गए और फ़रमाया कि आपने मुझे पुकारा है. आलिम ने यह सोचकर कि इन्कार करने से कहीं आप डर न जाएं, यह कह दिया, बेटे तुम सो जाओ. दोबारा फिर हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने उसी तरह पुकारा, और हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम आलिम के पास गए. आलिम ने कहा ऐ बेटे, अब अगर मैं तुम्हें फिर पुकारूं तो तुम जवाब न देना. तीसरी बार हज़रत जिब्रील अमीन अलैहिस्सलाम ज़ाहिर हो गए और उन्होंने बशारत दी कि अल्लाह तआला ने आपको नबी बनाया, आप अपनी क़ौम की तरफ़ जाइये और अपने रब के आदेश पहुंचाइये. जब आप अपनी क़ौम की तरफ़ तशरीफ़ लाए, उन्होंने झुटलाया और कहा, आप इतनी जल्दी नबी बन गए. अच्छा अगर आप नबी हैं तो हमारे लिये एक बादशाह क़ायम कीजिये.  (ख़ाज़िन वग़ैरह)

(6) कि क़ौमे जालूत ने हमारी क़ौम के लोगों को उनके वतन से निकाला, उनकी औलाद को क़त्ल किया. चार सौ चालीस शाही ख़ानदान के फ़रज़न्दों को गिरफ़तार किया. जब हालत यहाँ तक पहुंच चुकी तो अब हमें जिहाद से क्या चीज़ रोक सकती है. तब नबी ने अल्लाह से दुआ की जिसकी बदौलत अल्लाह तआला ने उनकी दरख़ास्त क़ुबूल फ़रमाई और उनके लिये एक बादशाह मुक़र्रर किया और जिहाद फ़र्ज़ फ़रमाया. (ख़ाज़िन)

(7) जिनकी संख्या बद्र वालों के बराबर यानी तीन सौ तेरह थी.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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