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Thursday 14 February 2019

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-32, आयत, ②④⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

है कोई  जो अल्लाह को  क़र्ज़ हसन दे (3)  तो अल्लाह  उसके लिये  बहुत गुना बढ़ा दे  और अल्लाह तंगी और कुशायश (वृद्धि)  करता है (4) और तुम्हें उसी की तरफ़ फिर जाना.


*तफ़सीर*

(3) यानी ख़ुदा की राह में महब्बत के साथ ख़र्च करने को क़र्ज़ से ताबीर फ़रमाया. यह बड़ी ही दया और मेहरबानी है. बन्दा उसका बनाया हुआ और बन्दे का माल उसी का दिया हुआ, हक़ीक़ी मालिक वह और बन्दा उसकी अता से नाम भर का मालिक है. मगर क़र्ज़ से ताबीर फ़रमाने में यह बताना मजूंर है कि जिस तरह क़र्ज़ देने वाला इत्मीनान रखता है कि उसका माल बर्बाद नहीं हुआ, वह उसकी वापसी का मुस्तहिक है, ऐसा ही खुदा की राह में ख़र्च करने वाले को इत्मीनान रखना चाहिये कि वह इस ख़र्च करने का बदला और इनाम ज़रूर ज़रूर पाएगा और बहुत ज़्यादा पाएगा.

(4) जिसके लिये चाहे रोज़ी तंग करे, जिसके लिये चाहे खोल दे. बन्द करना और खोल देना रोज़ी का उसके क़ब्ज़े में है, और वह अपनी राह में ख़र्च करने वाले से विस्तार या वुसअत का वादा करता है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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