*अगर कोई हमसे किना रखता हो तो क्या करना चाहिये ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
बाज़ अवक़ात किसी इस्लामी भाई को सुनी सुनाई बातो की बुन्याद पर ये ख़याल सताने लगता है कि फुला शख्स मुझ से किना रखता है या हसद करता है, हालाकि ऐसा कुछ भी नही होता महज़ उस की बद गुमानी या वहम होता है। क्यू की किना हो या हसद ! इसका तअल्लुक़ बातिन से है और किसी की बातिनी केफिय्यत का यक़ीनी पता चलाना हमारे इख़्तियार में नही ही।
इसलिये हुस्न ज़न की आदत बना ली जाए की हुस्ने ज़न में कोई नुकसान नही और बद गुमानी में कोई फायदा नही।
हा ! अगर किसी की हरकतब्व सकनात और बुरे सुलूक से आप को वाज़ेह तौर महसूस हो कि ये मुझ से किना रखता है तो भी अफव् दर गुज़र से काम लीजिये और हुस्ने सुलूक से उसकी दुश्मनी को दोस्ती में बदलने की कोशिश कीजिये।
हज़रते इमाम गजाली अलैरहमा फरमाते है :
1 उसका वो हक़ पूरा किया जाए जिसका वो मुस्तहिक़ है और उस में किसी किस्म की कमी ज़्यादती न की जाए उसे अदल कहते है और ये सालिहीन का इन्तिहाई दर्जा है।
2 अफव् दर गुज़र और सिलए रहमी के ज़रीए उसके साथ नेकी की जाए ये सिद्दीक़ीन का तर्ज़े अमल है।
3 उस के साथ ऐसी ज़्यादती करना जिस का वो मुस्तहिक़ नही ये ज़ुल्म है और कमीने लोग का तरीक़ा है।
*✍🏽अहयाउल उलूम 3/224*
*✍🏽बुग्ज़ व किना 52*
___________________________________
📮Posted by:-
*DEEN-E-NABI ﷺ*
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बाज़ अवक़ात किसी इस्लामी भाई को सुनी सुनाई बातो की बुन्याद पर ये ख़याल सताने लगता है कि फुला शख्स मुझ से किना रखता है या हसद करता है, हालाकि ऐसा कुछ भी नही होता महज़ उस की बद गुमानी या वहम होता है। क्यू की किना हो या हसद ! इसका तअल्लुक़ बातिन से है और किसी की बातिनी केफिय्यत का यक़ीनी पता चलाना हमारे इख़्तियार में नही ही।
इसलिये हुस्न ज़न की आदत बना ली जाए की हुस्ने ज़न में कोई नुकसान नही और बद गुमानी में कोई फायदा नही।
हा ! अगर किसी की हरकतब्व सकनात और बुरे सुलूक से आप को वाज़ेह तौर महसूस हो कि ये मुझ से किना रखता है तो भी अफव् दर गुज़र से काम लीजिये और हुस्ने सुलूक से उसकी दुश्मनी को दोस्ती में बदलने की कोशिश कीजिये।
हज़रते इमाम गजाली अलैरहमा फरमाते है :
1 उसका वो हक़ पूरा किया जाए जिसका वो मुस्तहिक़ है और उस में किसी किस्म की कमी ज़्यादती न की जाए उसे अदल कहते है और ये सालिहीन का इन्तिहाई दर्जा है।
2 अफव् दर गुज़र और सिलए रहमी के ज़रीए उसके साथ नेकी की जाए ये सिद्दीक़ीन का तर्ज़े अमल है।
3 उस के साथ ऐसी ज़्यादती करना जिस का वो मुस्तहिक़ नही ये ज़ुल्म है और कमीने लोग का तरीक़ा है।
*✍🏽अहयाउल उलूम 3/224*
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