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Monday 4 September 2017

*अल्लाह के लिये महब्बत करना*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : सब से बेहतरीन अमल अल्लाह के लिये महब्बत करना और अल्लाह के लिये दुश्मनी करना है।
*✍🏼سنن ابن داود*

     अल्लाह के लिये महब्बत का मतलब ये है की किसी से इस लिये महब्बत की जाए की वो दीनदार है और अल्लाह के लिये अदावत का मतलब ये है की किसी से अदावत हो तो इस बिना पर हो की वो दीन का दुश्मन है या दीनदार नहीं।
*✍🏼نزهت القارى*

     इमाम ग़ज़ाली عليه رحما फ़रमाते है : अगर कोई शख्स बावर्ची से इस लिये महब्बत करता है की इस से अच्छा खाना पकवा कर फुकरा को बांटे तो ये अल्लाह के लिये महब्बत है और अगर आलिमे दीन से इस लिये महब्बत करता है की इस से इल्में दीन सिख कर दुन्या कमाए तो ये दुन्या के लिये महब्बत है।
*✍🏼मीरआतुल मनाजिह्, 1/54*

     इमाम नववी عليه رحما फ़रमाते है :अल्लाह और रसूल की महब्बत में ज़िन्दा और इन्तिक़ाल कर जाने वाले औलिया व सालिहिन की महब्बत भी शामिल है और अल्लाह व रसूल की अफ़्ज़ल तरीन महब्बत ये है उन के अहकाम पर अमल और नवाहि से इजतिनाब किया जाए।
*✍🏼شرح مسلم النووى*
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 78*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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