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Monday 18 February 2019

नमाज़े क़ज़ा करने का वबाल*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जिसकी नमाज़ क़ज़ा हो गई समझो उसके अहल व माल जाते रहे यानी उसके घर वाले और उसकी दौलत सब बर्बाद हो गए।

*✍🏼सहीह इब्ने हिब्बान* 1468

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: 3 आदमी ऐसे है जिनकी अल्लाह नमाज़ और ज़िक्र कुबूल नहीं करता। उसमें से एक वो है जो वक़्त गुज़र जाने के बाद नमाज़ पढ़ता है।

*✍🏼मकाशफतुल क़ुलूब* 391

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 41

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-33, आयत, ②⑤③*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ये रसूल है की हमने इन में एक को दुसरे पर अफ़जल किया (10) इन में किसी से अल्लाह ने कलाम फरमाया (11) और कोई वह है जिसे सब पर दर्जों बलन्द किया (12) और हमने मरयम के बेटे ईसा को खुली निशानियाँ दी (13) और पाकीज़ा रूह से उसकी मदद की (14) और अल्लाह चाहता तो उनके बाद वाले आपस में न लड़ते बाद इसके की उनके पास खुली निशानियाँ आचुकी (15) लेकिन वो मख्तलिफ़ हो गए उनमें कोई ईमान पर रहा और कोई काफ़िर होगया (16) और अल्लाह चाहता तो वो न लड़ते मगर अल्लाह जो चाहे करे (17)


*तफ़सीर*

(10) इससे मालूम हुआ कि नबियों के दर्जे अलग अलग हैं. कुछ हज़रात से कुछ अफ़ज़ल हैं. अगरचे नबुव्वत में कोई फ़र्क़ नहीं, नबुव्वत की ख़ूबी में सब शरीक हैं, मगर अपनी अपनी विशेषताओं, गुणों और कमाल में अलग अलग दर्जे हैं. यही आयत का मज़मून है और इसी पर सारी उम्मत की सहमति है. (ख़ाज़िन व जुमल)

(11) यानी बिला वास्ता या बिना माध्यम के, जैसे कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को तूर पहाड़ पर संबोधित किया और नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को मेराज में. (जुमल).

(12) वह हुज़ूर पुरनूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हैं कि आपको कई दर्जों के साथ सारे नबियों पर अफ़ज़ल किया. इस पर सारी उम्मत की सहमति है. और कई हदीसों से साबित है. आयत में हुज़ूर के इस बलन्द दर्जे का बयान फ़रमाया गया और नामे मुबारक की तसरीह यानी विवरण न किया गया. इससे भी हुज़ूर अलैहिस्सलातो वस्सलाम की शान की बड़ाई मक़ूसद है, कि हुज़ूर की मुबारक ज़ात की यह शान है कि जब सारे नबियों पर फ़ज़ीलत या बुजुर्गी का बयान किया जाए तो आपकी पाक ज़ात के सिवा किसी और का ख़याल ही न आए और कोई शक न पैदा हो सके. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की वो विशेषताएं और गुण जिनमें आप सारे नबियों से फ़ायक़ और अफ़ज़ल हैं और आपका कोई शरीक नहीं, बैशुमार हैं कि क़ुरआने पाक में यह इरशाद हुआ “दर्जों बलन्द किया” इन दर्जों की कोई गिनती क़ुरआन शरीफ़ में ज़िक्र नहीं फरमाई, तो अब कौन हद लगा सकता है. इन बेशुमार विशेषताओं में से कुछ का इजमाली और संक्षिप्त बयान यह है कि आपकी रिसालत आम है, तमाम सृष्टि आपकी उम्मत है. अल्लाह तआला ने फ़रमाया “वमा अरसलनाका इल्ला काफ्फ़तल लिन्नासे बशीरौं व नज़ीरा” (यानी ऐ मेहबूब हमने तुमको न भेजा मगर ऐसी रिसालत से जो तमाम आदमियों को घेरने वाली है, खुशख़बरी देता और डर सुनाता) (34 :28). दूसरी आयत में फ़रमाया : “लियकूना लिलआलमीना नज़ीरा” (यानी जो सारे जहान को डर सुनाने वाला हो) (25:1). मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में इरशाद हुआ “उरसिलतो इलल ख़लाइक़े काफ्फ़तन” (और आप पर नबुव्वत ख़त्म की गई). क़ुरआने पाक में आपको ख़ातिमुन्नबीय्यीन फ़रमाया हदीस शरीफ़ में इरशाद हुआ “ख़ुतिमा बियन नबिय्यूना”. आयतों और मोजिज़ात में आपको तमाम नबियों पर अफ़ज़ल फ़रमाया गया. आपकी उम्मत को तमाम उम्मतों पर अफ़ज़ल किया गया. शफ़ाअते कुबरा आपको अता फ़रमाई गई. मेराज में ख़ास क़ुर्ब आपको मिला. इल्मी और अमली कमालात में आपको सबसे ऊंचा किया और इसके अलावा बे इन्तिहा विशेषताएं आपको अता हुई. (मदारिक, जुमल, ख़ाज़िन, बैज़ावी वग़ैरह).

(13) जैसे मुर्दे को ज़िन्दा करना, बीमारों को तन्दुरूस्त करना, मिट्टी से चिड़ियाँ बनाना, ग़ैब की ख़बरें देना वग़ैरह.

(14) यानी जिब्रील अलैहिस्सलाम से जो हमेशा आपके साथ रहते थे.

(15) यानी नबियों के चमत्कार.

(16) यानी पिछले नबियों की उम्मतें भी ईमान और कुफ़्र में विभिन्न रहीं, यह न हुआ कि तमाम उम्मत मुतीअ हो जाती.

(17) उसके मुल्क में उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ कुछ नहीं हो सकता और यही ख़ुदा की शान है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सहाबए किराम से मुतअल्लिक़ कुफ़्रिय्या कलिमात*

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     *सुवाल* - हज़रते अबू बक्र सिद्दीक व हज़रते उमर फारूके आजम رضي الله عنه की ख़िलाफ़त के इन्कार का क्या हुक्म है ? 

     *जवाब* - हज़राते शैखैन की शाने पाक में सब्बो शितम करना, तबर्रा कहना या हज़रते सिद्दीके अक्बर رضي الله عنه की सोहबत या इमामत व खिलाफ़त से इन्कार करना कुफ्र है। हज़रते उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका رضي الله عنها की शाने पाक में क़ज़फ़ जैसी नपाक तोहमत लगाना यकीनन कतअन कुफ्र है।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 70

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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फ़र्ज़ नमाज़ के बाद की दुआ* #03

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اَللّٰهُمَّ اَنْتَ السَّلَامُ وَمِنْكَ السَّلَامُ تَبَارَكْتَ يَاذَاالْجَلَالِ وَالْاِكْرَامِ

*तर्जमा* - ऐ अल्लाह ! तू सलामती देने वाला है और तेरी ही तरफ से सलामती है तू बरकत वाला है ऐ जलाल व बुज़ुर्गी वाले।

*✍🏽सहीह मुस्लिम, 298*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 225*


*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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तज़किरतुल अम्बिया* #395

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*क़ौमे मूसा अलैहिस्सलाम में क़ारून* #01

     क़ारून (हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम) का करीबी रिश्तेदार था ज्यादा मशहूर यह है कि आप का चचाजाद भाई था बाज़ हज़रात ने आपका खलाजाद भाई कहा है। उसने मूसा अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सताम की नबुव्वत पर हसद करते हुए मुनाफकत इख्तयार कर ली थी आपकी फौम में सामरी मुनाफिक था। कारून खूबसूरत होने की वजह से मुनव्वर कहलाता था और तौरात का भी बहुत बड़ा कारी था। लेकिन नबी का गुस्ताख होने की वजह से जलील हुआ। वह बहुत बड़ा मालदार था दस आदमियों की जमाअत उसके माल को शुमार नहीं कर सकती थी या यह लोग उसके ख़ज़ानों को उठा नहीं सकते थे। 

     हजरत इब्ने अब्बास और हसन रज़ियल्लाहु अन्हुम के मुख्तार मसलक यह है कि मफातेह से मुराद  माल लिया जाये यानी उसके माल को दस आदमी नहीं उठा सकते थे। 

     जिस रिवायत में ये ज़िक्र है कि क़ारून के ख़ज़ानो की चाबियां साठ सवारियों का बोझ था इसका ज़िक्र क़ुरआन पाक में नहीं लिहाजा इस रिवायत को क़बूल नहीं किया जायेगा।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 327

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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अव्वल वक़्त नमाज़ पढ़ने की फ़ज़ीलत*

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     हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله عنه फ़रमाते है कि मेने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया: या रसूलल्लाह ﷺ! कौन सा अमल अल्लाह को सबसे ज़्यादा पसन्द है? फ़रमाया: वक़्त पर नमाज़ पढ़ना।

*✍🏼सहीह बुखारी* 504

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अव्वल वक़्त नमाज़ पढ़ना अल्लाह की ख़ुशनूदी का सबब है और आखिर वक़्त नमाज़ पढ़ना अल्लाह की तरफ से अफ्वो दरगुज़र का सबब है।

*✍🏼सुनने तिर्मिज़ी* 172

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अल्लाह ने 5 नमाज़े फ़र्ज़ की है, जिसने अच्छी तरह वुज़ू किया, वक़्त पर नमाज़ पढ़ी और दिल जमाकर अच्छी तरह रूकू और सज्दा किया तो अल्लाह ने ये वादा फ़रमाया है कि वो ऐसे आदमी को बख्श देगा और जो ऐसा न करे उसके लिये कोई वादा नहीं है।

*✍🏼अत्तरगिब् वत्तरहिब*

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जब बन्दा अव्वल वक़्त में नमाज़ पढ़ता है तो उसकी नमाज़ आसमानों की तरफ जाती है और वो नूरानी शक्ल में होती है यहाँ तक कि अर्शे इलाही तक जा पहुंचती है और नमाज़ी के लिये क़यामत तक दुआ करती रहती है कि अल्लाह तेरी हिफाज़त फरमाए जैसे तूने मेरी हिफाज़त की है और जब आदमी बे वक़्त नमाज़ पढ़ता है तो उसकी नमाज़ काली शक्ल में आसमानों की तरफ चढ़ती है जब वो आसमान तक पहुँचती है तो उसे पुराने कपड़े की तरह लपेटकर पढ़ने वाले के मुह पर मार दिया जाता है।

*✍🏼मकासफतुल क़ुलूब* 391

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 40

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-33, आयत, ②⑤②*

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ये अल्लाह की आयतें हैं कि हम ऐ मेहबूब तुमपर ठीक ठीक पढ़ते हैं और तुम बेशक रसूलों में हो (9)


*तफ़सीर*

(9) ये हज़रात जिनका ज़िक्र पिछली आयतों में और ख़ास कर आयत “इन्नका लमिनल मुरसलीन” (और तुम बेशक रसूलों में हो) में फ़रमाया गया.

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अम्बियाए किराम से मुतअल्लिक़ कुफ़्रिय्या कलिमात*

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     *सुवाल* - अम्बियाए किराम عليه السلام की तरफ बे हयाई की निस्बत करने का क्या हुक्म है ?

     *जवाब* - अम्बिया عليه السلام की तौहीन करना, उन की जनाब में गुस्ताखी करना या उन को फ़वाहिश व बे हया की तरफ़ मन्सूब करना कुफ़ है, मसलन معاذ الله यूसुफ़ عليه السلام की ज़िना की तरफ़ निस्बत करना। 


     *सुवाल* - नबिय्ये अकरम ﷺ को खातमुन्नबिय्यीन न जानने वाले नीज़ आप ﷺ से मन्सूब अश्या की तौहीन करने वाले के बारे में क्या हुक्म है ? 

     *जवाब* - जो शख्स हुजूरे अक्दस ﷺ को तमाम अम्बिया में आखिरी नबी न जाने या हुजूर ﷺ की किसी चीज़ की तौहीन करे या ऐब लगाए, आप के मूए मुबारक को तहकीर से याद करे, आप के लिबास मुबारक को गन्दा और मैला बताए, हुजुर ﷺ के नाखुन बड़े बड़े कहे येह सब कुफ्र हैं, बल्कि अगर किसी के इस कहने पर कि । हुजूर ﷺ को कद्दु पसन्द था कोई यह कहे मुझे पसन्द नहीं तो बाज़ उलमा के नज़दीक काफिर हैं और हकीकत येह कि अगर इस हैसिय्यत से उसे ना पसन्द हैं कि हुजूर ﷺ को पसन्द था तो काफ़िर है। यूहीं किसी ने ये कहा कि हुजूरे अक्दस ﷺ खाना तनावुल फ़रमाने के बाद तीन बार अंगुश्तहाए मुबारका चाट लिया करते थे, उस पर किसी ने कहा : ये अदब के खिलाफ हैं या किसी सुन्नत की तहकिर करे, मसलन दाढ़ी बढ़ाना, मूंछे कम करना, इमामा बांधना या शिम्ला लटकाना, इन की इहानत कुफ्र है जब कि सुन्नत की तौहीन मक्सूद हो। 


     *सुवाल* - अपने आप को पैगम्बर कहने वाले का क्या हुक्म है ? 

     *जवाब* - अब जो अपने को कहे मैं पैगम्बर हूं और उस का मतलब येह बताए कि मैं पैगाम पहुंचाता हूं वह काफ़िर है यानी येह तावील मसमूअ नहीं कि उर्फ में येह लफ्ज़ रसूल व नबी के माना में है। 

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 68

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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फ़र्ज़ नमाज़ के बाद की दुआ* #02

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اَللّٰهُمَّ اَعِنِّى عَلٰى ذِكْرِكَ وَشُكْرِكَ وَحُسْنِ عِبَادَتِكَ

*तर्जमा* - ऐ अल्लाह तू अपने ज़िक्र व शुक्र और हुस्ने इबादत पर मेरी मदद फरमा।

*✍🏽सुनन इब्नइ दाऊद, 2/123*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 225*


*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।

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तज़किरतुल अम्बिया* #394

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*गाए के जिबह करने में हिकमत*

     एक वजह तो यही थी कि नेक आदम के यतीम बच्चे और उस की बेवा को कसीर माल अता करन था इसलिए गाय जिबह करने का हुक्म दिया और बनी इस्राईल के ज़हनों में यह बात डाल दी कि वह सवाल करते हैं इस तरह वह गाय कहीं और न मिल सकी। दूसरी वजह यह थी कि गाय की कुरबानी का तरीका पहले से चला आ रहा था और वह लोग गाय की कुरबानी को अज़ीम समझते थे इसलिए उन्हें गाय जिबह करने का हुक्म दिया ताकि उनके जेहन उसे कुबूल करले की गाय की कुरबानी में यह असर होगा मक़तूल को ज़िन्दा करने का यह अजीब अंदाज बयान करके वाजेह किया कि अल्लाह तआला जैसे चाहे मुर्दा को ज़िन्दा करता है नीज़ यह काम उनके अपने हाथों से कराया ताकि मूसा अलैहिस्सलाम पर वह जादूगरी का इल्ज़ाम आयद न कर सकें।

*✍️ताज़किरतुल अम्बिया* 325

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जमाअत छोड़ने पर वईदें*

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     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो शख्स दिन को रोज़े रखता है, रात को इबादत करता है मगर जुमुआ और जमाअत में नहीं आता तो वो दोज़ख में जाएगा।

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: मोमिन की बदबख्ति और नामुरादी के लिये यही काफी है कि मुअज्ज़िन को अज़ान कहते हुए सुने और जमाअत में हाज़िर न हो।

*✍🏼अल-मोजमुल कबीर लित्तिबरानी* 3/16805

     फरमाने मुस्तफा ﷺ:लोग जमाअत छोड़ने से बाज़ आ जाएं वरना में ज़रूर उनके घरों को आग लगा दूंगा।

*✍🏼सुनने इब्ने माजा* 795

     हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله عنه फ़रमाते है कि अगर तुमने जमाअत छोड़ने वाले इस शख्स की तरह नमाज़ पढ़ी तो तुम अपने नबी ﷺ की सुन्नत के छोड़ने वाले हो जाओगे और अगर तुमने अपने नबी की सुन्नत को छोड़ दिया तो तुम गुमराह हो जाओगे।

*✍🏼मुस्लिम शरीफ* 1520

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: ये सरासर ज़ुल्म व ज़्यादती, कुफ़्र व निफ़ाक़ की बात है कि आदमी अल्लाह के मुनादी की आवाज़ सुने जो उसे नमाज़ के लिये पुकार रहा हो लेकिन वो नमाज़ को न जाए।

*✍🏼मुसन्दे अहमद* 16032

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 38

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-33, आयत, ②⑤ⓞ*

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اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

फिर जब सामने आए जालूत और उसके लश्करों के, अर्ज़ की ऐ रब हमारे हम पर सब्र उंडेल और हमारे पाँव जमे रख काफ़िर लोगों पर हमारी मदद कर .


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-33, आयत, ②⑤①*

     तो उन्होंने उनको भगा दिया अल्लाह के हुक्म से और क़त्ल किया दाऊद ने जालूत को (5) और अल्लाह ने उसे सल्तनत और हिकमत (बोध) (6) अता फ़रमाई और उसे जो चाहा सिखाया  (7) और अगर अल्लाह लोगों में कुछ से कुछ को दफ़ा (निवारण)  न करे (8) तो ज़रूर तबाह हो जाए मगर अल्लाह सारे जहान पर फ़ज़्ल (कृपा) करने वाला है.


*तफ़सीर*

(5) हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के वालिद ऐशा तालूत के लश्कर में थे और उनके साथ उनके सारे बेटे भी. हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम उन सब में सबसे छोटे थे, बीमार थे, रंग पीला पड़ा हुआ था, बकरियाँ चराते थे. जब जालूत ने बनी इस्राइल को मुक़ाबले के लिये ललकारा, वो उसकी जसामत देख कर घबराए, क्योंकि वह लम्बा चौड़ा ताक़तवार था. तालूत ने अपने लश्कर में ऐलान किया कि जो शख़्स जालूत को क़त्ल करे, मैं अपनी बेटी उसके निकाह में दूंगा और आधी जायदाद उसको दूंगा. मगर किसी ने उसका जवाब न दिया तो तालूत ने अपने नबी शमवील अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि अल्लाह के सामने दुआ करें. आपने दुआ कि तो बताया गया कि हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम जालूत को क़त्ल करेंगे. तालूत ने आपसे अर्ज़ की कि अगर आप जालूत को क़त्ल करें तो मैं अपनी लड़की आपके निकाह में दूँ और आधी जायदाद पेश करूँ. आपने क़ुबूल फ़रमाया और जालूत की तरफ़ रवाना हो गए. मुक़ाबले की सफ़ क़ायम हुई. हज़रत दाऊद  अलैहिस्सलाम अपने मुबारक हाथों में ग़ुलेल या गोफन लेकर सामने आए. जालूत के दिल में आपको देखकर दहशत पैदा हुई मगर उसने बड़े घमण्ड की बातें कीं और आपको अपनी ताक़त के रोब में लाना चाहा. आपने गोफन में पत्थर रखकर मारा वह उसकी पेशानी को तोड़कर पीछे से निकल गया और जालूत गिर कर मर गया. हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने उसको लाकर तालूत के सामने डाल दिया. सारे बनी इस्राइल बहुत ख़ुश हुए और तालूत ने वादे के मुताबिक़ आधी जायदाद दी और अपनी बेटी का आपके साथ निकाह कर दिया. सारे मुल्क पर हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की सल्तनत हुई. (जुमल वग़ैरह)

(6) हिकमत से नबुव्वत मुराद है.

(7) जैसे कि ज़िरह बनाना और जानवरों की बोली समझना.

(8) यानी अल्लाह तआला नेकों के सदक़े में दूसरों की बलाएं भी दूर फ़रमाता है. हज़रत इब्ने उमर रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला एक नेक मुसलमान की बरकत से उसके पड़ोस के सौ घर वालों की बला दूर करता है. सुब्हानल्लाह ! नेकों के साथ रहना भी फ़ायदा पहुंचाता है. (ख़ाज़िन)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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अल्लाह की जाते मुबारका के मुतअल्लिक कुफ्रीय्या कलिमात* #04

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - अल्लाह के नाम की तसगीर करना कैसा है ? 

     *जवाब* - अल्लाह के नाम की तसगीर करन कुफ्र है, जैसे किसी का नाम अब्दुल्लाह या अब्दुल खालिक या अब्दुर्रहमान हो उसे पुकारने में आखिर में अलिफ वगैरा ऐसे हुरूफ़ मिला दे जिस से तसगिर समझी जाती है।


     *सुवाल* - तेरा बाप अल्लाह अल्लाह करता है ये कहना

कैसा ?

     *जवाब* - एक शख्स नमाज़ पढ़ रहा है उसका लड़का बाप को तलाश कर रहा था और रोता था किसी ने कहा : चुप रह तेरा बाप अल्लाह अल्लाह करता है ये कहना कुफ्र नहीं क्योंकि इसके मन ये है कि खुदा की याद करता है। और ब्ज़ जाहिल ये कहते है कि लाइलाह पड़ता है ये बहुत क़बीह है  कि ये नफ़ी महज़ है, जिस का मतलब ये हुवा की कोई खुदा नही और ये माना कुफ्र है।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 65

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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फ़र्ज़ नमाज़ के बाद की दुआ* #01

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

हर नमाज़ के बाद पेशानी यानी सर के अगले हिस्से पर हाथ रख कर पढ़े :

بِسْمِ اللّٰهِ الَّذِىْ لَآاِلٰهَ اِلَّاهُوَ الرَّحْمٰنُ الرَّحِيْمُ اَللّٰهُمَّ اَذْهِبْ عَنِّى الْهَمَّ وَالْحُزْنَ

*तर्जमा* - अल्लाह के नाम से जिस के सिवा कोई मअबूद नही, वो रहमान व रहीम है, ऐ अल्लाह मिझ से गम व रन्ज को दूर कर दे।


और हाथ खीच कर माथे तक ले जाए।

*✍🏽मजमउ ज़्ज़वाइद, 10/144*

*✍🏽बहारे शरीअत, जी। अव्वल, हिस्सा सीवुम, 539*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 225*


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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,

गर होजाए यक़ीन के.....

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तज़किरतुल अम्बिया* #393

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*बहुत भारी कीमत से गाय हासिल की* 

     उस वक्त आम तौर पर गाय की कीमत तीन दीनार तक होती थी लेकिन उन्होंने सवाल करके अपने लिए इतनी मुश्किल पैदा कर दी की  तमाम औसाफ़ किसी गाय में बयक वक़्त पाया जाना दुश्वार नजर आया। आखिरकार तलाश करते करते उन्हें एक बेवा और यतीम बच्चे के पास ऐसी गाय नज़र आई जिसमें बयान करदा सभी औसाफ़ मौजूद थे। बढ़ी नहीं थी और बछड़ी नहीं थी बल्कि दर्मियान उम्र की थी ज़र्द रंग था देखने वालों को खुश करता था जमीन में उराने हल नहीं चलया था और न ही खेती को सैराब किया था और इसमें कोई ऐब और दाग धब्बा नहीं था क्योंकि उस यतीम के बूढ़े, नैक परहेज़गार बाप ने अपनी एक बछड़ी को जंगल में छोड़कर अल्लाह तआला की हिफाज़त मैं दे दिया था की मेरा बच्चा कुछ बड़ा और समझदार होकर उसे ले जायेग। यह बच्चा भी वालीदेन का फरमां बरदार था अपने बाप की वफ़ात के कुछ अर्से बाद वह अपनी गाय जंगल से ले आया था उसी गाय में तमाम औसाफ मौजूद थे। मोटी ताज़ी थी, खूबसूरत थी बनी इस्राइल को उसके चमड़े में जितनी मिकदार में सोना आ सकता था उतनी मिकदार में सोना बतौर क़ीमत अदा करना पड़ा।

     शुबहानल्लाह ! मालिकुल मुल्क ने अपने बंदे की गाय की जंगल में हिफ़ाज़त फ़रमाई और उस नेक बंदे की बेवा और उसके यतीम बच्चे को कसीर मिकदार में माल व दौलत अता फरमाया। 

     बनी इस्राईल अगरचे गाय की भारी कीमत अदा करने पर खुशी से रजामंद नहीं थे और यह भी जानते थे कि अगर हमारा मकतूल जिन्दा हो गया तो हमारा अपना ही ऐब ज़ाहिर होगा लेकिन उन्हें फिर भी गाय जिबह करनी पड़ी क्योंकि अब उनके पास कोई उज़्र बाकी नहीं रह गया था अगरचे वह ज़िबह नहीं करना चाहते थे। 

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 325

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जमाअत की फ़ज़ीलत*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया: जमाअत की नमाज़ तन्हा नमाज़ से षवाब में 27 दर्जा बढ़कर है।

*✍🏼सहीह मुस्लिम* 1509

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया: जिसने मुकम्मल वुज़ू किया फिर फ़र्ज़ नमाज़ के लिये चला और इमाम के साथ नमाज़ पढ़ी तो उसके गुनाह बख्श दिये जाएंगे।

*✍🏼सहीह इब्ने खुज़ैम* 1489

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया: जो अल्लाह की रिज़ा के लिये 40 दिन नमाज़ जमाअत के साथ पढ़े और तकबीर उला पाए उसके लिये दो आज़ादियाँ लिख दी जाएंगी: (1) जहन्नम से (2) निफ़ाक़ से।

*✍🏼तिर्मिज़ी शरीफ* 241

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया: जिसने जमाअत से ईशा की नमाज़ पढ़ी समझो आधी रात उसने क़याम किया (यानी इबादत की) और जिसने फजर की नमाज़ जमाअत से पढ़ी समझो पूरी रात उसने क़याम किया।

*✍🏼सहीह मुस्लिम* 1523

     हज़रत उमर बिन खत्ताब رضي الله عنه फ़रमाते है मेने नबीए करीम ﷺ को ये फ़रमाते हुए सुना: बेशक अल्लाह जमाअत की नमाज़ को पसन्द फ़रमाता है।

*✍🏼मुसन्दे अहमद बिन हम्बल* 5112

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 37

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-33, आयत, ②④⑨*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

फिर जब तालूत लश्करों को लेकर शहर से जुदा हुआ (1) बोला बेशक अल्लाह तुम्हें एक नहर से आज़माने वाला है तो जो उसका पानी पिये वह मेरा नहीं और जो न पिये वह मेरा है मगर वह जो एक चुल्लू अपने हाथ से ले ले (2) सब ने उससे पिया मगर थोड़ों ने (3) फिर जब तालूत और उसके साथ के मुसलमान नहर के पार गए बोले हम में आज ताक़त नहीं जालूत और उसके लश्करों को बोले वो जिन्हें अल्लाह से मिलने का यक़ीन था कि अकसर कम जमाअत ग़ालिब आई है ज़्यादा गिरोह पर अल्लाह के हुक्म से और अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है  (4)


*तफ़सीर*

(1) यानी बैतुल मक़दिस से दुश्मन की तरफ़ रवाना हुआ. वह वक़्त निहायत सख़्त गर्मी का था. लश्करियों ने तालूत से इसकी शिकायत की और पानी की मांग की.

(2) यह इम्तिहान मुक़र्रर फ़रमाया गया था कि सख़्त प्यास के वक़्त जो फ़रमाँबरदारी पर क़ायम रहा वह आगे भी क़ायम रहेगा और सख़्तियों का मुक़ाबला कर सकेगा और जो इस वक़्त अपनी इच्छा के दबाव में आए और नाफ़रमानी करे वह आगे की सख़्तियों को क्या बर्दाश्त करेगा.

(3) जिनकी तादाद तीन सौ तेरह थी, उन्होंने सब्र किया और एक चूल्लू उनके और उनके जानवरों के लिये काफ़ी हो गया और उनके दिल और ईमान को क़ुव्वत हुई और नहर से सलामत गुज़र गए और जिन्होंने ख़ूब पिया था उनके होंट काले हो गए, प्यास और बढ़ गई और हिम्मत टूट गई.

(4) उनकी मदद फ़रमाता है और उसी की मदद काम आती है.

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अल्लाह की जाते मुबारका के मुतअल्लिक कुफ्रीय्या कलिमात* #03

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - अगर कोई यह कहे मैं ان شاء الله के बिगैर काम करूंगा तो क्या हुक्म हैं ?  

     *जवाब* - किसी ने कहा : ان شاء الله तुम इस काम को करोगे, उस ने कहा : मैं बिगैर ان شاء الله करूंगा या एक ने दूसरे पर जुल्म किया, मज़लूम ने कहा : खुदा ने येही मुकद्दर किया था, ज़ालिम ने कहा : मैं बिगैर अल्लाह  के मुकद्दर किये करता हूं, येह कुफ़ हैं।


     *सुवाल* - क्या मोहताजी कुफ़ है ? 

     *जवाब* - किसी मिस्कीन ने अपनी मोहताजी को देख कर यह कहा : ऐ खुदा ! फुलां भी तेरा बन्दा है उस को तू ने कितनी नेमतें दे रखी हैं और मैं भी तेरा बन्दा हूं मुझे किस कदर रंजो तक्लीफ़ देता है आखिर येह क्या इन्साफ़ है ऐसा कहना कुफ्र है। हदीस में ऐसे ही के लिये फ़रमाया : मोहताजी कुफ्र के करीब हैं कि जब मोहताजी के सबब ऐसे ना मुलाइम कलिमात सादिर हों जो कुफ्र हैं तो गोया खुद मोहताजी करीब ब कुक्र है। 

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 67

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तज़किरतुल अम्बिया* #392

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*गाय के गोश्त से मक़तूल को ज़िंदा करने का वाकिया*

     बनी इस्राइल में से एक शख्स ने अपने एक रिश्तेदार को क़त्ल कर दिया ताकि उसका वारिस बन जाये। कत्ल करके उसकी लाश को चौराहे में फेंक देया फिर मूसा अलैहिस्सलाम के पास शिकायत लेकर आ गया मूसा अलैहिस्सलाम ने कोशिश की कातिल का पता लगाने की लेकिन पता न चल सका वह लोग कहने लगे अपने रब तआला से दुआ कजिये ताकि वह बताये कि इसका कातिल कौन है आपने अपने रब तआला से दुआ की तो अल्लाह तआला ने आपको वही की आपने अपनी क़ौम को बता दिया कि अल्लाह तआला हुक्म देता है कि गाय जिबह करके उसका गोश्त मुर्दा को मारो वह जिन्दा होकर बताएगा कि मेर क़ातिल कौन है ? उन्हें ने ताज्जुब किया कि जिबह शुदा गाय का गश्त मुर्दा को कैसा ज़िन्दा करेगा यह तो एक मज़ाह नजर आ रहा है। आपने फ़रमाया अल्लाह तआला की पनाह मैं जाहिलों से हो जाऊं । 

     यानी मजाह उडाना जाहिलो और नादनों का काम है नबी की शान के लायक नहीं कि वह किसी से मजाह उड़ाए और खुसूसन दीनी मामलात में मज़ाह उड़ाना शदीद अज़ाब और वईद का सबब है कि अल्लाह तआला के नबी के मुतअल्लिक़ यह तसव्वुर करना भी मुहाल है कि वह ऐसा इक़दाम कर सकता है जो अज़ाब का सबब बने। 

     हज़रत इब्ने अबास रज़ियल्लाहु अन्हुमा फरमाते है : अगर वह कोई गाय भी ज़िबह करते तो उनको किफ़ायत करती लेकिन उन्होंने खुद बार बार सवाल करके अपने आप पर सख्ती की तो अल्लाह तआला ने उन पर सख्ती की। 

     हज़रत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है के आप सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम ने फ़रमायाः उस ज़ात की कसम जिसके क़ब्ज़े में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जान है अगर वह इंशाअल्लाह न कहते तो हमेशा उनके और गाय के हुसूल में सवालात हाइल रहते। यानी जब उन्होंने कहा कि अगर अल्लाह तआला ने चाहा तो हम हिदायत पायेंगे तो उसी वक्त उनको सवालात खत्म करने की तौफीक हासिल हुई।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 324

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Thursday 14 February 2019

जुमुआ छोड़ने पर वईदे*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूर ﷺ ने उन लोगों के बारे में फ़रमाया जो जुमुआ की नमाज़ में नहीं आते: जी चाहता है कि अपने पीछे एक शख्स को इमाम बनाऊँ जो लोगों को नमाज़ पढ़ाए और में खुद नमाज़े जुमुआ छोड़ने वालों के घरों को आग लगाकर फूंक दूँ।

*✍🏼मुस्लिम शरीफ* 1517

     हुज़ूर ﷺ का इर्शाद है: नमाज़े जुमुआ तर्क करने से बाज़ आ जाओ वरना तुम्हारे दिलों पर मुहर कर दी जाएगी और तुम गाफिलिन में कर दिये जाओगे।

*✍🏼मुस्लिम शरीफ*

     हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया: जो बिला उज़्र 3 जुमुआ छोड़ दे उसे अल्लाह के यहाँ मुनाफ़िक़ लिख दिया जाता है।

*✍🏼अल-मोजमुल कबीर लित्तिबरानी* 1/425

     एक और रिवायत में है कि जो पै दर पै मुसलसल 3 जुमुआ चजोड़ दे उसने इस्लाम को अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया है।

*✍🏼इहयाउल उलूम*

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 36

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-32, आयत, ②④⑧*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और उनसे उनके नबो ने फरमाया उसकी बादशाही की निशानी यह है कि आए तुम्हारे पास ताबूत (15) जिसमे तुम्हारे रब की तरफ से दिलो का चैन है और कुछ बची हुई चीज़े है मोअज्ज़ज़ मूसा और मोअज्ज़ज़  हारून के तरका की, उठाते लायेंगे उसे फरिश्ते बेशक उसमें बड़ी निशानी है तुम्हारे लिए अगर ईमान रखते हो.


*तफ़सीर*

(15) यह ताबूत शमशाद की लकड़ी का एक सोने से जड़ाऊ सन्दूक़ था जिसकी लम्बाई तीन हाथ की और चौड़ाई दो हाथ की थी. इसको अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पर उतारा था. इसमें सारे नबियों की तस्वीरें थीं उनके रहने की जगहें और मकानों की तस्वीरे थीं और आख़िर में नबियों के सरदार मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की और हुज़ूर के मुक़द्दस मकान की तस्वीर एक सुर्ख़ याक़ूत में थी कि हुज़ूर नमाज़ की हालत में खड़े हैं और आपके चारों तरफ़ सहाबए किराम. हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने इन सारी तस्वीरों को देखा. यह सन्दूक़ विरासत में चलता हुआ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तक पहुंचा. आप इसमें तौरात भी रखते थे और अपना ख़ास सामान भी. चुनान्वे इस ताबूत में तौरात की तख़्तियों के टुकडे थी थे, और हज़रत मूसा की लाठी और आपके कपड़े, जूते और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम की पगड़ी और उनकी लाठी और थोड़ा सा मन्न, जो बनी इस्राइल पर उतरता था. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जंग के अवसरों पर इस सन्दूक़ को आगे रखते थे, इससे बनी इस्राइल के दिलों को तस्कीन रहती थीं. आपके बाद यह ताबूत बनी इस्राइल में लगातार विरासत में चला आया. जब उन्हें कोई मुश्किल पेश आती, वो इस ताबूत को सामने रखकर दुआएं करते और कामयाब होते. दुश्मनों के मुक़ाबले में इसकी बरकत से फ़तह पाते. जब बनी इस्राइल की हालत ख़राब हुई और उनके कुकर्म बहुत बढ़ गए तो अल्लाह तआला ने उन पर अमालिक़ा को मुसल्लत किया तो वो उनसे ताबूत छीन ले गए और इसको अपवित्र और गन्दे स्थान पर रखा और इसकी बेहुरमती यानी निरादर किया और इन गुस्ताख़ियों की वजह से वो तरह तरह की मुसीबतों में गिरफ़तार हुए. उनकी पाँच बस्तियाँ तबाह हो गईं और उन्हें यक़ीन हो गया कि ताबूत के निरादर से उन पर बर्बादी और मौत आई है. तो उन्होंने एक बेल गाड़ी पर ताबूत रखकर बैलों को हाँक दिया और फ़रिश्ते उसको बनी इस्राइल के सामने तालूत के पास लाए और इस ताबूत का आना बनी इस्राइल के लिये तालूत की बादशाही की निशानी मुक़र्रर हुआ. बनी इस्राइल यह देखकर उसकी बादशाही पर राज़ी हो गए और फ़ौरन जिहाद के लिये तैयार हो गए क्योंकि ताबूत पाकर उन्हें अपनी फ़तह का यक़ीन हो गया. तालूत ने बनी इस्राइल में से सत्तर हज़ार जवान चुने जिनमें हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम भी थे. (जलालैन व जुमल व ख़ाज़िन व मदारिक वग़ैरह) इससे मालूम हुआ कि बुज़ुर्गों की चीज़ों का आदर और एहतिराम लाज़िम है. उनकी बरकत से दुआएं क़ूबूल होती हैं और हाजतें पूरी होती हैं और तबर्रूकात का निरादर गुमराहों का तरीक़ा और तबाही का कारण है. ताबूत में नबियों की जो तस्वीरें थीं वो किसी आदमी की बनाई हुई न थीं, अल्लाह की तरफ़ से आई थीं.

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अल्लाह की जाते मुबारका के मुतअल्लिक कुफ्रीय्या कलिमात* #02

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - अल्लाह के लिये मकान साबित करने का क्या हुक्म है ? 

     *जवाब* - खुदा के लिये मकान साबित करना कुफ्र है कि वोह मकान से पाक है येह कहना कि ऊपर खुदा है नीचे तुम येह कलिमए कुफ़ है। 


     *सुवाल* - जो कहे मैं जहन्नम से या अज़ाब से नहीं डरता उस के बारे में क्या हुक्म है ? 

     *जवाब* - किसी से कहा : गुनाह न कर, वरना खुदा तुझे जहन्नम में डालेगा, उस ने कहा : मैं जहन्नम से नहीं डरता, या कहा : खुदा के अज़ाब की कुछ परवा नहीं। या एक ने दूसरे से कहा : तू खुदा से नहीं डरता ? उस ने गुस्से में कहा : नहीं, या कहा : खुदा क्या कर सकता है ? इस के सिवा क्या कर सकता है कि दोजख में डाल दे। या कहा : खुदा से डर, उस ने कहा : खुदा कहां है ? येह सब कुफ़्र के कलिमात हैं।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 66

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #22

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_दुआए बराए रोशनिये चश्म_*

     आयतुल कुरसी हर नमाज़ के बाद एक बार पढ़ी जाए और नमाज़े पन्जगाना की पाबन्दी करे, और जब इस कलिमे पर पहुचे

وَلَاَيَءُوْدُهُ حِفْظُهُمَا

तो दोनों हाथ की उंगलियो के पोरे आँखों पर रख कर इस कलिमे को 11 बार पढ़े फिर आयतुल कुर्सी पूरी करले और दोनों हाथो की उंगलियो पर डीएम कर के आँखों पर फेर ले।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 224*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,

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तज़किरतुल अम्बिया* #391

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*मन व सलवा से एराज़ और ज़िल्लत का तसल्लुत*

 बनी इस्राइल अर्सा दराज़ तक बिला नागा मन व सलवा खाते रहने की वजह से उकता कर मूसा अलैहिस्सलाम से कहने लगे कि हम अब एक ही किस्म के खाने पर सब्र न कर सकेंगे। मन व सलवा की दो मुख्तलिफ किस्म के खानों को एक खाना इसलिए कहा गया कि दोनों किस्म के खाने वह एक साथ खाते थे या इसलिए कि हर रोज़ बतौर गिज़ा उन्हें यही दो चीजें मिलती थी यह नफ़ीस खाना बाकी खानों से बेहतर था लेकिन बनी इस्राईल के इसरार पर इरशाद हुआ तुम मिस्र में उतर जाओ जो कुछ तुमने मांगा वह तुमहें वहां मिलेगा इन मिस्र के बारे में इख़्तलाफ हैं कि यह फ़िरऔन का मिस्र था या फोई और शहर। राइज है कि इससे गैर मुअय्यन शहर मुराद है बज़ाहिर मालूम होता है कि वादी तह के करीब कोई शहर था जिसमें आरजी तौर पर जाने का हुक्म उनकी ख्वाहिश के मुताबिक दिया गया था बढ़ती हुई नफ़सानी ख्वाहिशात की बिना पर ताअत और बंदगी की हदूद से बार बार यहूद का तजावुज़ और तुगियानी उनके हक में दाईमी जिल्लत व मसकनत (मिस्कीनी) पर मनतज हुआ।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 322

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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जुमुआ की नमाज़ की फ़ज़िलतें*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया: जिसने अच्छी तरह वुज़ू किया फिर जुमुआ की अदायगी के लिये आया, ख़ुत्बा सुना और ख़ुत्बा के दौरान खामोश रहा तो उसके उन गुनाहों की मगफिरत हो जाएगी जो उस जुमुआ और दूसरे जुमुआ के दर्मियान है और मज़ीद 3 दिन के गुनाह मुआफ़ किये जाएंगे।

*✍🏼अबू दाऊद* हदिष:1052

     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया: जुमुआ की नमाज़ कफ़्फ़ारा है उन गुनाहों के लिये जो उस जुमुआ और उसके बाद वाले जुमुआ के दर्मियान हों और 3 दिनों के और। ये इसलिये कि अल्लाह फ़रमाता है: जो एक नेकी करेगा उसके लिये उसका 10 गुना षवाब है।

*✍🏼अल-मोजमुल कबीर लित्तिबरानी* हदिष:3381

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 36

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-32, आयत, ②④⑦*

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اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और उनसे उनके नबी ने फरमाया बेशक अल्लाह ने तालुत को  तुम्हारा बादशाह बनाकर भेजा है (8) बोले उसे हम पर बादशाही क्यों कर होंगी (9) और हम उससे ज़्यादा सल्तनत के मुसतहिक़ है और उसे माल में भी वुसअत नही दी गई (10) फरमाया उसे अल्लाह ने तुम पर चुन लिया (11) और उसे इल्म और जिस्म में कुशादगी ज़्यादा दी (12) और अल्लाह अपनी मुल्क जिसे चाहे दे (13) और अल्लाह वुसअत वाला इल्म वाला है (14)


*तफ़सीर*

(8) तालूत, बिनयामीन बिन हज़रते याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद से हैं. आपका नाम क़द लम्बा होने की वजह से तालूत है. हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला की तरफ़ से एक लाठी मिली थी और बताया गया था कि जो व्यक्ति तुम्हारी क़ौम का बादशाह होगा उसका क़द इस लाठी के बराबर होगा. आपने उस लाठी से तालूल का क़द नाप कर फ़रमाया कि मैं तुम को अल्लाह के हुक्म से बनी इस्राइल का बादशाह मुक़र्रर करता हूँ और बनी इस्राइल से फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने तालूत को तुम्हारा बादशाह बना कर भेजा है. (ख़ाज़िन व जुमल)

(9) बनी इस्राइल के सरदारों ने अपने नबी हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम से कहा कि नबुव्वत तो लावा बिन याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद में चली आती है, और सल्तनत यहूद बिन याक़ूब की औलाद में, और तालूत इन दोनों ख़ानदानों में से नहीं है, तो बादशाह कैसे हो सकते है.

(10) वो ग़रीब व्यक्ति हैं. बादशाह को माल वाला होना चाहिये.

(11) यानी सल्तनत विरासत नहीं कि किसी नस्ल व ख़ानदान के साथ विशेष हो. यह केवल अल्लाह के करम पर है. इसमें शियों का रद है जिनका अक़ीदा है कि इमामत विरासत है.

(12) यानी नस्ल व दौलत पर सल्तनत का अधिकार नहीं. इल्म व क़ुव्वत सल्तनत के लिये बड़े मददगार हैं और तालूत उस ज़माने में सारे बनी इस्राइल में ज़्यादा इल्म रखते थे और सबसे ज़्यादा मज़बूत 

जिस्म वाले और ताक़तवर थे.

(13) इसमें विरासत को कुछ दख़्ल नहीं.

(14) जिसे चाहे  ग़नी यानी  मालदार कर दे और माल में विस्तार फ़रमा दे. इसके बाद बनी इस्राइल ने 

हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि अगर अल्लाह ने उन्हें सल्तनत के लिये मुक़र्रर किया है तो इसकी निशानी क्या है. (ख़ाज़िन व मदारिक)

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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अल्लाह की जाते मुबारका के मुतअल्लिक कुफ्रीय्या कलिमात* #01

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اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - अल्लाह की जाते मुबारक से मुतअल्लिक बोले जाने वाले चन्द कुफ्रिय्या कलिमात बता दें ? 

     *जवाब* - ● अगर येह कहा : खुदा मुझे उस काम के लिये हुक्म देता जब भी न करत तो काफिर हैं। 

     ● एक ने दूसरे से कहा : मैं और तुम खुदा के हुक्म के मुवाफिक काम करें दूसरे ने कहा : मैं खुदा का हुक्म नहीं जानता, या कहा : यहां किसी का हुक्म नहीं चलता। 

     ● कोई शख्स बीमार नहीं होता या बहुत बूढ़ा है मरता नहीं उस के लिये येह कहना कि इसे अल्लाह भूल गए हैं। 

     ● किसी ज़बान दराज़ आदमी से येह कहना कि खुदा तुम्हारी ज़बान का मुकाबला कर ही नहीं सकता मैं किस तरह करू येह कुफ्र है। 

     ● एक ने दूसरे से कहा : अपनी औरत को काबू में नहीं रखता, उस ने कहा : औरतों पर खुदा को तो कुदरत हैं नहीं, मुझ को कहां से होगी।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 66

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दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #21

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*_ताज़िय्यत करते वक़्त की दुआ_*

اِنَّ لِلّٰهِ مَآ اَخَذَ وَلَهُ مَآ اَعْطٰى وَكُلٌّ عِنْدَهُ بِاَجَلٍ مُسَمًّى فَلْتَصْبِرْ وَلْتَحْتَسِبْ

*तर्जमा* - बेशक अल्लाह ही का है जो उस ने ले लिया और जो कुछ उसने दिया है हर चीज़ की उस बारगाह में मीआद मुक़र्रर है पस चाहिये कि तू सब्र करे और षवाब की उम्मीद रखे।


*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।

*✍🏽सहीह बुखारी, 1/434*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 223*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #390


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*मैदान तीह से नजात और उन्की सरकशी* #02

     जब मूसा अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी का वाकिया मुराद लिया जाये तो बस्ती से मुराद रीहा होगी क्योंकि मूसा अलैहिस्सलाम बैतुल मुकद्दस में दाखिल नहीं हुए अगर बैतुल मुकद्दस मुराद लिया जाये तो यह वाकिया हजरत हारून अलैहिस्सलाम और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की जिन्दगी के बाद यूशा अलैहिस्सलाम के ज़माने से मुताल्लिक होगा रब तअला ने उस कौम को कहा कि जब तुम शहर में दाखिल हो तो सज्दा करते हुए इज्ज़ व इंकिसारी से दाखिल होना और ज़बान से हित-ततुन कहना लेकिन कौम ने अपनी साबिका रिवायात को बरकरार रखते हुए सरकशी से, सज्दा करते हुए दाखिल होने के बजाए अपनी सुरीनों के बल घसीटते हुए दाखिल होना इख्तियार किया और हित-ततुन की जगह हन्ततुन (हमें गन्दुन चाहिये) कहा उनकी सरकशी और हुदूद से तजावुज़ की वजह से अल्लाह तआला ने ताऊन का अज़ाब भेजा जिससे वह चौबीस हज़ार की तादाद में मर गये।


*मन व सलवा से एराज़ और ज़िल्लत का तसल्लुत* अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 321

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नमाज़ में सुस्ती पर मुसीबतें*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत इमाम ग़ज़ाली رحمة الله عليه फ़रमाते है कि जो नमाज़ में सुस्ती करता है अल्लाह उसे 15 मुसीबतों में मुब्तला कर देता है, उनमें से 5 दुन्या में, 3 मौत के वक़्त, 3 क़ब्र में, 3 क़ब्र से निकलते वक़्त होती है।

     *दुन्यवी मुसीबतें* :

(1) उम्र से बरकत छीन ली जाती है।

(2) उसके चेहरे से नेकों की निशानी मिट जाती है।

(3) उसके किसी भी अमल का अल्लाह षवाब नहीं देता।

(4) उसकी दुआ आसमान की तरफ बुलन्द नहीं होती (यानी क़ुबूल नहीं होती)

(5) नेकों की दुआओं में उसका कोई हिस्सा नहीं होता (यानी अगर नेक आदमी भी दुआ करे तो नमाज़ में सुस्ती करने वाले के हक़ में क़ुबूल नहीं होगी)

     *मौत के वक़्त की मुसीबतें* :

(1) वो ज़लील होकर मरेगा।

(2) भूखा मरेगा।

(3) प्यास मरेगा, अगर्चे उसे दुन्या के तमाम समन्दर का पानी पिला दिया जाए फिर भी उसकी प्यास नही बुझेगी।

     *क़ब्र की मुसीबतें* :

(1) क़ब्र तंग होगी यहाँ तक कि उसकी पसलियां रक दूसरे से मिल जाएंगी।

(2) क़ब्र में आग भड़काई जाएगी जिसके अंगारों पर वो रात दिन लोटता रहेगा।

(3) उसकी क़ब्र में एक अज़दहा मुक़र्रर कर दिया जाएगा वो कड़कदार बिजली जेसी आवाज़ में मैय्यत से बात करेगा और कहेगा कि मेरे रब ने मुझे हुक्म दिया है कि में तुझे नमाज़े बर्बाद करने के बदले सुबह से शाम तक डसता रहूँ। और जब वो अज़दहा मैय्यत को डसेगा तो वो 70 हाथ ज़मीन में घंस जाएगा फिर इसी तरह क़यामत तक उसको ये अज़ाब होता रहेगा।

     *क़ब्र से निकलते हुए हशर के मैदान मेझेलने वाली मुसीबते*

(1) सख्त हिसाब

(2) अल्लाह की नाराज़गी

(3) जहन्नम में दाखिला

     अल्लाह मुसलमानों को ऐसे भयानक अन्जाम से बचाए।

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 34

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-32, आयत, ②④⑥*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ऐ मेहबूब क्या तुमने न देखा बनी इस्राइल के एक दल को जो मूसा के बाद हुआ (5) जब अपने एक पैगम्बर से बोले हमारे लिये खड़ा कर दो एक बादशाह कि हम ख़ुदा की राह में लड़ें. नबी ने फ़रमाया क्या तुम्हारे अन्दाज़ ऐसे हैं कि तुम पर जिहाद फ़र्ज़  किया जाए तो फिर न करो, बोले हमें क्या हुआ कि हम अल्लाह की राह में न लड़ें हालांकि हम निकाले गए हैं अपने वतन  और अपनी  औलाद से  (6) तो फिर जब उनपर जिहाद फर्ज़ किया गया, मुंह फेर गए मगर उनमें के थोड़े (7) और अल्लाह ख़ूब जानता है ज़ालिमों को.


*तफ़सीर*

(5) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बाद जब बनी इस्राइल की हालत खराब हुई और उन्होंने अल्लाह का एहद भुला दिया. मूर्ति पूजा में मशग़ूल हुए, सरकशी और कुकर्म चरम सीमा पर पहुंचे, उन पर जालूत की क़ौम छा गई जिसको इमालिक़ा कहते हैं. जालूत अमलीक़ बिन आस की औलाद से एक बहुत ही अत्याचारी बादशाह था. उसकी क़ौम के लोग मिस्त्र और फ़लस्तीन के बीच रोम सागर के तट पर रहते थे. उन्होंने बनी इस्राइल के शहर छीन लिये, आदमी गिरफ़तार किये, तरह तरह की सख्तियाँ कीं. उस ज़माने में कोई नबी बनी इस्राइल में मौजूद न थे. ख़ानदाने नबुव्वत से सिर्फ़ एक बीबी रही थीं जो गर्भ से थीं. उनके बेटा हुआ. उनका नाम शमवील रखा. जब वो बड़े हुए तो उन्हें तौरात का इल्म हासिल करने के लिये बैतुल मक़दिस में एक बूढ़े विद्वान के हवाले किया गया. वह आपको बहुत चाहते और अपना बेटा कहते. जब आप जवान हुए तो एक रात आप उस आलिम के पास आराम कर रहे थे कि हज़रत जिब्रीले अमीन ने उसी आलिम की आवाज़ में “या शमवील” कहकर पुकारा. आप आलिम के पास गए और फ़रमाया कि आपने मुझे पुकारा है. आलिम ने यह सोचकर कि इन्कार करने से कहीं आप डर न जाएं, यह कह दिया, बेटे तुम सो जाओ. दोबारा फिर हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने उसी तरह पुकारा, और हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम आलिम के पास गए. आलिम ने कहा ऐ बेटे, अब अगर मैं तुम्हें फिर पुकारूं तो तुम जवाब न देना. तीसरी बार हज़रत जिब्रील अमीन अलैहिस्सलाम ज़ाहिर हो गए और उन्होंने बशारत दी कि अल्लाह तआला ने आपको नबी बनाया, आप अपनी क़ौम की तरफ़ जाइये और अपने रब के आदेश पहुंचाइये. जब आप अपनी क़ौम की तरफ़ तशरीफ़ लाए, उन्होंने झुटलाया और कहा, आप इतनी जल्दी नबी बन गए. अच्छा अगर आप नबी हैं तो हमारे लिये एक बादशाह क़ायम कीजिये.  (ख़ाज़िन वग़ैरह)

(6) कि क़ौमे जालूत ने हमारी क़ौम के लोगों को उनके वतन से निकाला, उनकी औलाद को क़त्ल किया. चार सौ चालीस शाही ख़ानदान के फ़रज़न्दों को गिरफ़तार किया. जब हालत यहाँ तक पहुंच चुकी तो अब हमें जिहाद से क्या चीज़ रोक सकती है. तब नबी ने अल्लाह से दुआ की जिसकी बदौलत अल्लाह तआला ने उनकी दरख़ास्त क़ुबूल फ़रमाई और उनके लिये एक बादशाह मुक़र्रर किया और जिहाद फ़र्ज़ फ़रमाया. (ख़ाज़िन)

(7) जिनकी संख्या बद्र वालों के बराबर यानी तीन सौ तेरह थी.

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ईमान व इस्लाम से मुतअल्लिक कुफ़िय्या क्वलिमात* 

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     *सुवाल* - किसी शख्स को अपने ईमान में शक हो तो ऐसे के बारे में क्या हुक्म है ? 

     *जवाब* - जिस शख्स को अपने ईमान में शक हो यानी कहता है कि मुझे अपने मोमिन होने का यकीन नहीं या कहता हैं मालूम नहीं में मोमिन हूं या काफ़िर वोह काफ़िर है। हां अगर उस का मतलब येह हो कि मालूम नहीं मेरा ख़ातिमा ईमान पर होगा या नहीं तो काफिर नहीं। जो शख्स ईमान व कुफ़ को एक समझे यानी कहता है कि सब ठीक है खुदा को सब पसन्द है वोह कफ़िर है। युहीं जो शख्स ईमान पर राजी नहीं या कुफ्र पर राजी है वोह भी काफ़िर है। 


     *सुवाल* - इस्लाम को बुरा कहने वाले के बारे में क्या हुक्म है ? 

     *जवाब* - एक शख्स गुनाह करता है लोगों ने उसे मन्अ किया तो कहने लगा इस्लाम का काम इसी तरह करना चाहिये यानी जो गुनाह व मासिय्यत को इस्लाम कहता है वोह काफ़िर है। यूहीं किसी ने दूसरे से कहा : मैं मुसलमान हूं, उस ने जवाब में कहा : तुझ पर भी लानत और तेरे इस्लाम पर भी लानत, ऐसा कहने वाला काफ़िर हैं। 

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 65

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दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* # 20

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_मुसीबत के वक़्त की दुआ_*

اِنَّالِلّٰهِ وَاِنَّآ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ o اَللّٰهُمَّ اَجِرْنِىْ فِىْ مُصِيْبَتِىْ وَاَخْلِفْ لِىْ خَيْرًا مَّنْهَا

*तर्जमा* - बेशक हम अल्लाह के है और बेशक हम उसी की तरफ लौटने वाले है, ऐ अल्लाह ! मेरी मुसबित में मुझे अज्र दे और मुझे इस से बेहतर अता फरमा।

*✍🏼सहीह मुस्लिम, 457*

*✍🏼मदनी पंजसुरह, 222*


*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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तज़किरतुल अम्बिया* #389

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*मैदान तीह से नजात और उन्की सरकशी* #01

     इस शहर को बनी इस्राइल में मूसा अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी के अख़ीर ज़माना में फ़तह किया और वहां बड़ी बदकारिया की जिनके नतीजे में खुदा ने उन पर वबा भेजी और चौबीस इज़ार आदमी हलाके कर दिये। 

     एक चीज कुरआन का मुताला करते वक्त हमेशा नज़र में रहनी चाहिए वह यह कि कुरआन जिन वाक़ियात का जिक्र करता है इससे मक़सद सिर्फ इबारत व मोएजत होती है इससे उस वाकिया की तारीखी हैसियत का ब्यान मतलूब नहीं होता इसलिए कुरआन उन वाकीयात में सिर्फ उन पहलुओं को बयान करता है जिनमें दरसे इबरत हो उमूमन गैर जरूरी तफ़सीलात को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है जो लोग कुरआन हकीम की इस खुसुसियत को मलहूज़ नहीं रखते वह कससे कुरआनी में तारीख़ी कुतुब की तरह तफ़सीलात का तसलसुल और ज़मान व मकान का तअय्यून नहीं पाते तो वह तरह तरह के शकूक व शुबहात में मुब्तला हो जाते हैं। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 321

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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बे वुज़ू नमाज़ पढ़ने पर अज़ाब*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     हज़रत जलालुद्दीन सुयूती رحمة الله عليه फ़रमाते है कि एक आदमी जिसे लोग मुत्तक़ी (परहेज़गार) की हैसिय्यत से पहचानते थे, जब उसका इन्तिक़ाल हो गया और लोगों ने उसे दफ़्न कर दिया तो फरिश्तों ने उससे कहा कि हम तुझे अज़ाब के सौ कोड़े मारेंगे। उसने कहा: क्यों मारोगे? में तो मुत्तक़ी था। फरिश्तों ने कहा: अच्छा चल! पचास कोड़े ही मारेंगे। फिर वो आदमी बराबर बहस करता रहा कि मुझे क्यों मोरोगे? यहाँ तक कि फ़रिश्ते एक कोड़े पर आ गए और उन्होंने एक कोड़ा मार ही दिया जिससे पूरी क़ब्र आग से भर गई और वो जलकर खाकिस्तर हो गई फिर उसे ज़िन्दा किया गया तो उसने पूछा: अब ये बताओ कि तुमने मुझे ये कोड़ा क्यों मारा? फरिश्तों ने जवाब दिया: तूने एक रोज़ बे-वुज़ू नमाज़ पढ़ ली थी, ये उसी की सजा है।

     वाज़ेह (मालुम) रहे कि जान बूझकर बे-वुज़ू नमाज़ पढ़ना बाज़ फ़ुक़हा के नज़्दीक कुफ़्र है यानी आदमी बे-वुज़ू नमाज़ पढ़ने से काफ़िर हो जाता है।

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 33

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-32, आयत, ②④⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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है कोई  जो अल्लाह को  क़र्ज़ हसन दे (3)  तो अल्लाह  उसके लिये  बहुत गुना बढ़ा दे  और अल्लाह तंगी और कुशायश (वृद्धि)  करता है (4) और तुम्हें उसी की तरफ़ फिर जाना.


*तफ़सीर*

(3) यानी ख़ुदा की राह में महब्बत के साथ ख़र्च करने को क़र्ज़ से ताबीर फ़रमाया. यह बड़ी ही दया और मेहरबानी है. बन्दा उसका बनाया हुआ और बन्दे का माल उसी का दिया हुआ, हक़ीक़ी मालिक वह और बन्दा उसकी अता से नाम भर का मालिक है. मगर क़र्ज़ से ताबीर फ़रमाने में यह बताना मजूंर है कि जिस तरह क़र्ज़ देने वाला इत्मीनान रखता है कि उसका माल बर्बाद नहीं हुआ, वह उसकी वापसी का मुस्तहिक है, ऐसा ही खुदा की राह में ख़र्च करने वाले को इत्मीनान रखना चाहिये कि वह इस ख़र्च करने का बदला और इनाम ज़रूर ज़रूर पाएगा और बहुत ज़्यादा पाएगा.

(4) जिसके लिये चाहे रोज़ी तंग करे, जिसके लिये चाहे खोल दे. बन्द करना और खोल देना रोज़ी का उसके क़ब्ज़े में है, और वह अपनी राह में ख़र्च करने वाले से विस्तार या वुसअत का वादा करता है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

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वो सूरतें जो कुफ्रिय्या नहीं हैं*

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     *सुवाल* - जबान फिसलने की वजह से कुफ़िय्या बात निकल गई तो क्या हुक्म है ? 

     *जवाब* - कहना कुछ चाहता था और ज़बान से कुफ़ की बात निकल गई तो काफ़िर न हुवा यानी जब कि इस अम्र से इज़हारे नफ़रत करे कि सुनने वालों को भी मालूम हो जाए कि गलती से येह लफ्ज़ निकला है और अगर बात की पच की तो अब काफ़िर हो गया कि कुफ्र की ताईद करता है। 


     *सुवाल* - कुफ़्रिय्या बात का दिल में ख्याल पैदा हुवा तो क्या काफ़िर हो जाएगा? 

     *जवाब* - कुफ़्रिय्या बात का दिल में खयाल पैदा हुवा और ज़बान से बोलना बुरा जानता है तो येह कुफ्र नहीं बल्कि खास ईमान की अलामत है कि दिल में ईमान न होता तो उसे बुरा क्यूं जानता ? 

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 63

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #19

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*_इयादत करते वक़्त की दो दुआए_*


لَا بَاْسَ طَهُوْرٌ اِنْ شَآءَ اللّٰهُ

*तर्जमा* - कोई हरज की बात नही انشاء الله ये मरज़ गुनाहो से पाक करने वाला है।

*✍🏽सहीह बुखारी, 2/505*


اَسْأَلُ اللّٰهَ الْعَظِيْمَ رَبَّ الْعَرْشِ الْعَظِيْمِ اَنْ يَّشْفِيَكَ

*तर्जमा* - में अज़मत वाले से सुवाल करता हु जो अर्शे अज़ीम का मालिक है की वो तुझे शिफ़ा दे।

*✍🏽सुनन अबी दाऊद, 3251*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 222*


*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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तज़किरतुल अम्बिया* #388

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*पथ्थरों से पानी निकालना* 

     मैदान में छः लाख की तादाद में बारह मील पर फैले हुए लश्कर को जब प्यस की शिद्दत महसूस हुई तो उन्होंने मूसा अलैहिस्सलाम के सामने अपनी बेबसी का जिक्र किया मूसा अलैहिस्सलाम ने रब तआला से दुआ की तो अल्लाह तआला ने आपकी दुआ को कबूल कीया और हुक्म दिया के ऐ मूसा अपना अशा पत्थर पर मारो पानी ज़ारी हो जायेगा आपने अपन अशा पत्थर पर मारा तो बारह चश्मे ज़ारी हो गये हर क़बीले ने एक एक चश्मा अपने लिए मख्तस कर लिया पत्थर से जारी होने वाला पानी इतनी बड़ी तादाद के लोगों के लिए काफी था पत्थर "मुकअअब" (जिसकी लंबाई चौड़ई और गहराई बराबर हो) शक्ल का था और हर तरफ से तीन तीन चश्मे जारी हुए।


*मैदान तीह से नजात और उन्की सरकशी* अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 321

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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क़ब्र में शोले भड़क उठे*

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     एक आदमी ने अपनी बहन को दफ़्न किया तो उसकी रक़म की थैली गफलत में क़ब्र में गिर गई। जब सब लोग उसे दफ़्न करके चले गए तो उसे अपनी थैली याद आई चुनान्चे वो लोगों के चले जाने के बाद बहन की क़ब्र के पास पहुंचा और क़ब्र खोदने लगा ताकि थैली निकाल ले मगर ये देख कर उसकी हैरत की कोई इन्तिहा न रही कि क़ब्र में शोले भड़क रहे है। ये देखते ही उसने क़ब्र पर मिट्टी डाल दी और इन्तिहाई गमगीन हालत में रोता हुआ अपनी मां के पास पहुंचा। माँ से पूछा : मेरी बहन की आदत केसी थी कि उसकी क़ब्र में आग के शोले भड़क रहे है ? ये सुनकर माँ भी रोने लगी और कहा तेरी बहन नमाज़ में सुस्ती करती थी और नमाज़ों को उनके वक़्त से देर करके पढ़ती थी।

*✍🏼शरहुस्सुदुर* 161

*✍🏼मकाशफतुल क़ुलूब* 394

     अल्लाहु अकबर ! ये तो उसका हाल है जो नमाज़ों को उनके वक़्तों से देर करके पढ़ा करती थी। ज़रा सोचिये! उन लोगों का क्या हाल होगा जो सिरे से नमाज़ पढ़ते ही नहीं ?

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 32

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-32, आयत, ②④④*


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और लड़ों अल्लाह की राह में (2) और जान लो कि अल्लाह सुनता जानता है ,


*तफ़सीर*

(2) और मौत से न भागे, जैसा बनी इस्राइल भागे थे, क्योंकि मौत से भागना काम नहीं आता.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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मुर्तद की तारीफ और चंद मख़सूस अहकाम* #01

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     *सुवाल* - मुर्तद कौन होता है ? 

     *जवाब* - मुर्तद वोह शख्स है कि इस्लाम के बाद किसी ऐसे अम्र का इन्कार करे जो जरूरियाते दीन से हो यानी ज़बान से कलिमए कुफ़ बके जिस में तावीले सहीह की गुन्जाइश न हो। यूंहीं बाज़ अफ़आल भी ऐसे हैं जिन से काफ़िर हो जाता है मसलन बुत को सजदा करना। मुस्हफ़ शरीफ़ को नजासत की जगह फेंक देना। याद रहे कि जो बतौरे तमस्खुर और ठठे के (यानी मज़ाक मस्ख़री में) कुफ्र करेगा वोह भी मुर्तद है अगचे कहता है कि ऐसा एतिकाद नहीं रखता।


     *सुवाल* - मुर्तद होने की क्या शराइत हैं ? 

     *जवाब* - मुर्तद होने की चन्द शर्ते हैं। 

     (1) अक्ल। ना समझ बच्चा और पागल से ऐसी बात निकली तो हुक्मे कुफ्र नहीं। 

     (2) होश। अगर नशे में बका तो काफ़िर न हुवा।  

     (3) इख्तियार। मजबूरी और इकराह की सूरत में हुक्मे कुफ़ नही। मजबूरी के येह माना हैं कि जान जाने या उज़व कटने या ज़र्बे शदीद का सहीह अन्देशा हो इस सूरत में सिर्फ ज़बान से इस कलिमे के कहने की इजाज़त है बशर्ते कि दिल में वोही इत्मीनाने ईमानी हो।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 56

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #18


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*_कुफ़्र व फक्र से पनाह की दुआ_*

اَللّٰهُمَّ اِنِّىْٓ اَعُوْذُبِكَ مِنَ الْكُفْرِ وَالْفَقْرِ وَعَذَابِ الْقَبْرِ

*तर्जमा* - ऐ अल्लाह ! में कुफ़्र, फक्र और अज़ाबे क़ब्र से तेरी पनाह चाहता हु।

*सुनन नसाई, 132*

*मदनी पंजसुरह, 222*


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तज़किरतुल अम्बिया* #387

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*बनी इस्राईल की सरकेशी के बावजूद उन पर इनामात*

     बनी इस्राईल की इंतेहाई सरकशी के बावजूद अल्लाह तआला ने उन पर बेशुमार इनामात फरमाये इस आयत में जिन नेमतों का जिक्र है उनका तल्लुक मैंदाने तीह है जहा' वह चालीस बरस तक परेशान हाली और सरगदानी में रहे इस वादी में न कोई साया है न कोई दरख्त न ही कोई इमारत न पीने के लिए पानी न खाने के लिए कोई चीज न रौशनी थी और न जरूरयात जिन्दग के दीगर लुवाजमात। 

     इस बे सरो सामानी और गरीबुल वतन के आलम में मूसा अलैहिस्सला की दुआ से उनके सब सामान मुहय्या हो गये अल्लाह तआला ने धूप से बचाओ और साया के हुसूल के लिए बादल बतौर सायबान नाज़िल फ़रमा दिया खाने के लिए मन, सलवा भेज दिया। 

     मन् सवला के बारे में मुख्तलिफ अकाल हैं सही यही है कि मन से मुराद तुरन्जबीन हैं जो एक नफीस शीरीं जाइकादार मद्दा था जो शबनम की तरह सुबह के वक्त आसमान से उतरता और कसीर मिकदार में छोटे छोटे दरख्तों पर जमा हो जाता था सलवा के बारे में अकवाल हैं सही यही है कि वह बटेर था बाज ने कहा कि वह भुन हुआ उतरता था और बाज़ का कौल है कि बकसरत ज़िन्दा परिन्दे उनके पास जमा हो जाते थे वह उन्हें ज़िन्दा पकड़ लेते और जिबह करते। 

     अलगर्ज मन और सल्वा उनकी शीरीं और नमकीन गिजाएं थीं जिन्हें शिकम सैर होकर वह खाते थे। तारीकी दूर करने के लिए उमूदी शक्ल में एक रौशनी जाहिर हो जाती थी। लिबास के बारे में अल्लह तआला ने मुसा अलैहिस्सलाम की एजाज़ी शान इस पर जाहिर फरमई कि न इन लोगों के कपड़े मैले होते और न ही फटते और उनके बच्चों के जिस्म के साथ बच्चों का लिबान भी बढ़ता रहता था। 


*पथ्थर से पानी निकलना* अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 320

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नमाज़ के खिलाफ इब्लीस की तहरीक*

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     हज़रत फ़क़ीह अबुल्लैस समरकन्दी फ़रमाते है : जब नमाज़ का हुक्म नाज़िल हुआ तो इब्लीस बौखला गया, उसने अपनी औलाद को जमा किया। इस मौके पर नमाज़ पढ़ने वालों को नमाज़ से दूर रखने की ये तरकीब बनाई कि नमाज़ियों को वक़्त पर नमाज़ पढ़ने से रोका जाए। इसका तरीक़ा ये है कि उन्हें हर तरफ से दुन्यवी कामों के ज़रिये घेरा जाए और हर तरफ से पुकारा जाए : इधर देखो, उधर देखो, निचे देखो, उपर देखो यानी किसी न किसी काम में लगा दिया जाए। (तम्बीहुल गाफिलिन)

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 32

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-32, आयत, ②④③*

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ऐ  मेहबूब क्या तुमने न देखा था उन्हें जो अपने घरों से निकले और वो हज़ारों थे मौत के डर से तो अल्लाह ने उनसे फ़रमाया मर जाओ फिर उन्हें ज़िन्दा फ़रमाया बेशक अल्लाह लोगों पर फ़ज़्ल (कृपा) करने वाला है मगर अकसर लोग नाशुक्रे हैं  (1)


*तफ़सीर*

(1) बनी इस्राइल की एक जमाअत थी जिसकी बस्तियों में प्लेग हुआ तो वो मौत के डर से अपनी बस्तियाँ छोड़ भागे और जंगल में जा पड़े. अल्लाह का हुक्म यूं हुआ कि सब वहीं मर गए. कुछ अर्से बाद हज़रत हिज़क़ील अलैहिस्सलाम की दुआ से उन्हें अल्लाह तआला ने ज़िन्दा फ़रमाया और वो मुद्दतों ज़िन्दा रहे. इस घटना से मालूम होता है कि आदमी मौत के डर से भागकर जान नहीं बचा सकता तो भागना बेकार है. जो मौत निश्चित है, वह ज़रूर पहुंचेगी. बन्दे को चाहिये कि अल्लाह की रज़ा पर राज़ी रहे. मुजाहिदों को समझना चाहिये कि जिहाद से बैठ रहना मौत को रोक नहीं सकता. इसलिये दिल मज़बूत रखना चाहिये.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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ईमान का बयान* #06

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - मुसलमान कौन है ? 

      *जवाब* - जो ज़बान से इस्लाम का इक़रार और दिल से उस की तस्दीक करे और जरूरियाते दीन में से किसी का इन्कार न करे। 


      *सुवाल* - जो ज़बन से इकरार करे लेकिन दिल से तस्दीक न करे, क्या वोह भी मुसलमान है ? 

      *जवाब* - वोह मुनाफिक है जो काफिर से भी बदतर है और उस का ठिकाना दोज़ख का सब से नीचे वाला तबका है । 


      *सुवाल* - जो न दिल से तस्दीक करे न जबान से इकरार करे उसे क्या कहेंगे ? 

      *जवाब* - वोह भी यकीनन् काफ़िर हैं। 


      *सुवाल* - जो दिल से तस्दीक भी करे और जबान से इक़रार भी और हर तरह के कुफ़ो शिर्क से बचे लेकिन गुनाह करे उस के बारे में क्या हुक्म है ? 

      *जवाब* - वोह मुसलमान तो है लेकिन फ़ासिक (गुनहगार व ना फरमान) हैं।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 55

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #17

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*_ज़बान की नुकनत की दुआ_*

رَبِّ اشْرَحْ لِىْ صَدٍرِىْ o وَيَسِّرْ لِىْٓ اَمْرِىْ o وَاحْلُلْ عُقْدَةًمِّنْ لِّسَانِىْ o يَفْقَهُوْا قَوْلِىْ o

*तर्जमा* - ऐ मेरे रब ! मेरे लिये मेरा सीना खोल दे और मेरे लिये मेरा काम आसान कर और मेरी ज़बान की गिरह खोल दे की वो मेरी बात समझे।

*✍🏽पारह 16, ताहा, 25-28*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 21*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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तज़किरतुल अम्बिया* #386

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*अमालक़ा से जिहाद का हुक्म और बनी इस्राइल की रुगरदानी* #03

     दूसरे दो सरदारों हज़रत युशा बिन नून और कालिब ने बहुत समझाया कि ना मर्द न बनो जरा हिम्मत कर के दुश्मन के शहर के दरवाजे से दाखिल होकर हमला करके देखो। नुसरते इलाही किस तरह तुम्हारे दुश्मनों को कुचल कर रख देती हैं, लेकिन उनपर इसका कोई असर न हुआ जब वह अमालक़ा की ताकत का हाल सुनकर दिल छोड़ बैठे और जिहाद से मुंह मोड़ कर वापस लौटे अल्लाह ने उनके इस जुर्म की सज़ा यूं दी कि वह अपने घरों तक वापस न पहुंच सके और चालीस साल तक वादी तीह में हैरान व परेशान घूमते रहे।

     तीह मिस्र और शाम के दर्मियान एक वसी और खुला मैदान था तीह के मायने ही हैरानी व परेशानी के हैं बनी इस्राईल इस मैदान में चालीस साल तक इंतेहाई हैरानी और परेशानी के आलम में सरगर्दा रहे इसलिए इसे वदी तीह कहा जता है बनी इस्राइल अपने घरों तक जाने की फ़िक्र में दिन भर सफ़र करते रात बसर करने के बाद सुबह अपने आपको वहीं पाते जहां से गुजश्ता सुबह उन्होंने सफ़र का आगाज किया था।


*बनी इस्राईल की सरकेशी के बावजूद उन पर इनामात* अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 319

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*मनहूस दिन*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     किसी ने क़सम खाई कि वो अपनी बीवी के पास मनहूस दिन के अलावा कभी नहीं जाएगा (वरना उसकी बीवी पर तलाक़ है) फिर उलमा से उसने फतवा दरयाफ़्त किया। उलमा ने जवाब दिया कि दिन तो सारे ही बाइसे बरकत है लिहाज़ा तेरी औरत पर तलाक़ पड़ गई। लेकिन वो इस जवाब से मुतमइन न हुआ फिर वो हज़रत अब्दुल अज़ीज़ दैरानी رحمة الله عليه के पास पंहुचा और उनसे इस मसअला दरयाफ़्त किया। शैख़ ने उससे पूछा : क्या तूने आज नमाज़ पढ़ी है ? उसने कहा : नहीं! आज नहीं पढ़ी। आप ने फ़रमाया जा! अपनी बीवी के पास क्योंकि तेरे लिये यही मनहूस दिन है क्योंकि बन्दा जिस दिन नमाज़ नहीं पढ़ता वही उसके लिये मनहूस दिन होता है।

*✍🏼नुज़हतुल मनाजिह्* 1/491

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 31

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-31, आयत, ②④①*

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और तलाक वालियों के लिये भी मुनासिब तौर पर नान नफ़क़ा है ये वाजिब है परहेज़गारों पर.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-31, आयत, ②④②*

अल्लाह यूं ही बयान करता है तुम्हारे लिये अपनी आयतें कि कहीं तुम्हें समझ हो.

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ईमान का बयान* #05

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     *सुवाल* - कुफ्रो शिर्क क्या होता है ? 

     *जवाब* - शिर्क येह है कि अल्लाह के सिवा किसी और को खुदा या इबादत के लाइक समझो और कुफ्र वेह है कि ज़रूरियाते दीन यानी वोह उमुर जिन का दीने मुस्तफा ﷺ से होना यकीनी तौर पर मालूम हो उन में से किसी का इन्कार करे।


     *सुवाल* - क्या कुफ्र कुछ आफ़आल करने से भी सरज़द हो जाता है या सिर्फ ज़बान से बोलने या दिल से ही मानने से होता है ? 

     *जवाब* - बाज़ अफ्आल जो इस्लाम की तकज़िब व इन्कार की अलामात हैं उन पर भी हुक्मे कुफ्र दिया जाता है जैसे जुन्नार पहनना, कश्का लगाना वगैर। 


      *सुवाल* - मुसलमानों और काफिरों का आखिरे कार अन्जाम क्या होगा ? 

     *जवाब* - काफ़िर हमेशा दोज़ख में रहेंगे और मुसलमान कितना भी गुनहगार हो कभी न कभी जरूर नजात पाएगा। 

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 54

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Friday 8 February 2019

तज़किरतुल अम्बिया* #385

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*अमालक़ा से जिहाद का हुक्म और बनी इस्राइल की रुगरदानी* #02

     हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने वहां के लोगों के हालात मालूम करने के लिए बारह सरदार रवाना किए जो चालीस रोज़ तक वहां के हालात का मुशाहिदा करते रहे जब वापस आए तो मूसा अलैहिस्सलाम ने उन्हें फरमाया की क़ौम के सामने ऐसी कोई बात न कहना जिससे उनके हौसले पस्त हो। लेकिन बारह में से दस ने वहां के लोगों की क़ुव्वत व जबरुत उनकी क़द व कामत उनके किलों की मजबूती का ऐसा नक़शा खींचा कि बनी इस्राईल चिल्ला उठे और इंतेहाई बेबाकी से अपने पैगम्बर को कह दिया कि हम ऐसी जाबिर क़ौम से टक्कर लेकर अपने बच्चों को यतीम और अपनी बीवियों को बेवा करने के लिए हरगिज़ तैयार नहीं। आप और आपका खुदा पहले जाकर उनसे लड़े उनसे मुल्क को पाक करे फिर हम अपने आबाई वतन का रुख करेंगे। उन्होंने कहा हम शाम की ज़रखेज़ ज़मीनो ठंडे पानी के उबलते हुए चश्मों और फलों से लदे हुए बागात और वहां की इज्जत की ज़िन्दगी से बाज़ आए हम तो वापस मिस्र जाते हैं।


बाकी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 319

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*शैतान का साथी*


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     हज़रत हक़ीह अबुल्लैस समरकन्दी رحمة الله عليه फ़रमाते है : किसी ने शैतान से कहा में चाहता हु कि तेरी तरह बन जाऊं। शैतान ने कहा नमाज़ पढ़ना छोड़ दे और कभी सच्ची क़सम न खाना (तो बिलकुल मेरी तरह हो जाएगा)

*✍🏼नुज़हतुल मजलिस* 1/493

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 31

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-31, आयत, ②③⑨*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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फिर अगर डर में हो तो प्यादा या सवार जैसे बन पड़े, फिर जब इत्मीनान से हो तो अल्लाह की याद करो जैसा उसने सिखाया जो तुम न जानते थे.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-31, आयत, ②④ⓞ*

     और जो तुम में मरें और बीवियां छोड़ जाएं वो अपनी औरतों के लिये वसीयत कर जाएं (12) साल भर तक नान नफ़क़ा देने की बे निकाले (13) फिर अगर वो ख़ुद निकल जाएं तो तुम पर उसका कोई हिसाब नहीं जो उन्होंने अपने मामले में मुनासिब तौर पर किया और अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है.


*तफ़सीर*

(12) अपने रिश्तेदारों को.

(13) इस्लाम की शुरूआत में विधवा की इद्दत एक साल की थी और पूरे एक साल व शौहर के यहाँ रहकर रोटी कपड़ा पाने की अधिकारी थी. फिर एक साल की इद्दत तो “यतरब्बसना बि अन्फ़ुसेहिन्ना अरबअता अशहुरिन व अशरा” (यानी चार माह दस दिन अपने आप को रोके रहें – सूरए बक़रह – आयत 234) से स्थगित हुई, जिसमें विधवा की इद्दत चार माह दस दिन निश्चित फ़रमा दी गई और साल भर का नान नफ़्क़ा मीरास की आयत से मन्सूख़ यानी रद्द हुआ जिसमें औरत का हिस्सा शौहर के छोड़े हुए माल से मुक़र्रर किया गया. लिहाज़ा अब वसिय्यत का हुक्म बाक़ी न रहा. हिकमत इसकी यह है कि अरब के लोग अपने पूर्वज की विधवा का निकलना या ग़ैर से निकाह करना बिल्कुल गवारा नहीं करते थे,  इसको बड़ी बेशर्मी समझते थे. इसलिये अगर एक दम चार माह दस रोज़ की इद्दत मुक़र्रर की जाती तो यह उन पर बहुत भारी होता. इसी लिये धीरे धीरे उन्हें राह पर लाया गया.

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ईमान का बयान* #04

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     *सुवाल* - कबीरा गुनाह क्या होता है ? 

     *जवाब* - वह गुनाह जिस के बारे में कुरआन व हदीस में हृद या वईद बयान की गई हो। याद रहे कि सगीरा गुनाह भी इसरार (यानी बिगैर तौबा के बार बार करने) से कबीरा हो जाता हैं यूंही हल्का जान कर करने से भी कबीरा हो जाता है। 


     *सुवाल* - वह कौन से गुनाह हैं जो कभी न बख्शे जाएंगे ? 

     *जवाब* - शिर्क व कुफ्र कभी न बख्शे जाएंगे और मुशरिक व काफिर जिस की मौत कुफ्रो शिर्क पर हो उस की हरगिज़ मगफिरत न होगी। इन के सिवा अल्लाह तआला जिस गुनाह को चाहेगा अपने महबूब बन्दों की शफाअत से या महज़ अपने करम से बख्श देगा। 

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 54

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दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #16

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*_सख्त खतरे के वक़्त की दुआ_*

اَللّٰهُمَّ اسْتُرْ عَوْرَاتِنَا وَاٰمِنْ رَوْعَاتِنَا

*तर्जमा* - इलाही ! हमारी पर्दादारी फरमा और हमारी घबराहट को बे खौफ व इत्मिनान से बदल दे.

*✍🏽इमाम अहमद बिन हम्बल, 4/7, हदिष, 10996*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 221*

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तज़किरतुल अम्बिया* #384

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*अमालक़ा से जिहाद का हुक्म और बनी इस्राइल की रुगरदानी* #01

     बनी इस्राईल का असल आबाई वतन मुल्के शाम था। युसूफ अलैहिस्सलाम के दौर में यह लोग मिस्र आकर मुकिम हुए और मुख्तलिफ़ हालात से गुजरते रहे फिरऔने मिस्र की गुलामी का कठिन दौर भी उन लोगो ने मिस्र में गुजारा। आख़िरकार अल्लाह तआला ने हजरत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़रिए इन्हें नजात दिलाई फ़िरऔन दरिया में ग़र्क़ हुआ और बनी इस्राईल ने इत्मीनान का सांस लीया इस दौरान मुल्क पर कौम अमालक़ा काबिज हो चुकी थी और उन्होंने वहा तसल्लुत कायम कर लीया था फ़िरऔन की गुलामी से नजात हास्लि करने के बाद बनी इस्राईल को हुक्म हुआ कि अमालक़ा से जिहाद करके उनसे अपना असल वतन आजाद कराये और वहां जाकर मुकाम हो जायें।


बाकी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 318

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Wednesday 6 February 2019

*बे-नमाज़ी की नहूसत*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत ईसा عليه السلام एक गांव के क़रीब से गुज़रे जहाँ कसरत से दरख्त थे, नहरें जारी थीं, लोग बड़े खुशहाल और मेहनत नवाज़ थे, लोगों ने आपका स्वागत किया, खूब खिदमत की। हज़रत ईसा عليه السلام उन लोगों की इस क़द्र फ़रमाँबरदारी और माल की फराखि (खूब होना) को देखकर हैरत में पड़ गए फिर तीन साल के बाद उसी गांव में आपका जाना हुआ तो आपने देखा कि दरख्त खुश्क हो चुके है, नहरे भी बन्द है और गांव उजड़ चुका है। आप हैरान थे कि आखिर ये बदलाव इतनी मुख़्तसर सी मुद्दत में कैसे आई ? इतने में जिब्राइल अमीन आए और कहा : ऐ रूहल्लाह ! यहाँ से एक बे-नमाज़ी का गुज़र हुआ था जिसने इन झरनों से मुंह धोया था, उसकी नहूसत का ये असर हुआ कि दरख्त मुरझा गए, नहरें खुश्क हो गई और गांव वीरान हो गया। ऐ ईसा ! जब नमाज़ का छोड़ना दीन की बर्बादी का सबब है तो दुन्या की तबाही का सबब भी बन सकता है।

*✍🏼नुज़हतुल मजालिस* 1/493

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 30

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-31, आयत, ②③⑧*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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निगहबानी करो सब नमाज़ों की (9) और बीच की नमाज़ की (10) और खड़े हो अल्लाह के हुज़ूर अदब से (11)


*तफ़सीर*

(9) यानी पाँच वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ों को उनके औक़ात पर भरपूर संस्कारों और शर्तों के साथ अदा करते रहो. इसमें पाँचों नमाज़ों के फ़र्ज़ होने का बयान है. और औलाद और बीवी के मसाइल और अहकाम के बीच नमाज़ का ज़िक्र फ़रमाना इस नतीजे पर पहुंचाता है कि उनको नमाज़ की अदायगी से ग़ाफ़िल न होने दो और नमाज़ की पाबन्दी से दिल की सफ़ाई होती है, जिसके बिना मामलों के दुरूस्त होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

(10) हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा और अक्सरो बेशतर सहाबा का मज़हब यह है कि इससे अस्त्र की नमाज़ मुराद है. और हदीसों में भी प्रमाण मिलना है.

(11) इससे नमाज़ के अन्दर क़याम का फ़र्ज़ होना साबित हुआ.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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ईमान का बयान* #03

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* - अगर कोई जान से मार डालने की धमकी दे और वोह इस डर की वज्ह से जुबान से कलिमए कुफ्र बक दे, दिल ईमान पर मुत्मइन हो तो क्या वोह मोमिन ही रहेगा ? 

     *जवाब* - हां! अगर वाकेई ऐसी हालत है कि जान का खौफ़ है और तस्दीके कल्बी में कुछ खलल यानी खराबी न आए यानी ईमान पर दिल मुतमइन रहे ते ऐसा शख्स मोमिन होगा अगर्चे उस को मजबूरी की हलत में ज़बान से कलिमए कुफ्र कहना भी पड़ जाए मगर बेहतर यही है कि ऐसी हलत में भी कलिमए कुफ्र ज़बान पर न लाए। 


     *सुवाल* - क्या कबीरा गुनाह करने से बन्दा ईमान से खारिज हो जाता है ? 

     *जवाब* - गुनाहे कबीरा करने से आदमी काफिर और ईमान से खारिज नहीं होता। 

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 53

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* # 15

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_किसी क़ौम से खतरे के वक़्त की दुआ_*

اَللّٰهُمَّ اِنَّا نَجْعَلُكَ فِىْ نُحُوْرِهِمْ وَنَعُوْذُ بِكَ مِنْ شُرُوْرِهِمْ

*तर्जमा* - ऐ अल्लाह !हम तुझे दुश्मनो के मुक़ाबिल करते है और उन की शरारतो से तेरी पनाह चाहते है।

*✍🏽सुनन इब्ने दाउद, 2/127*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 220*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Tuesday 5 February 2019

तज़किरतुल अम्बिया* #383

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*क़ौम का अहकामे खुदावंदी मानने से इंकार*

     कौम ने मूसा अलैहिस्सलाम से खुद ही मुतालबा किया कि हमारे पास अल्लाह ताला की कोई किताब आनी चाहिये जिसके अहकाम के मुताबिक हम अपनी ज़िन्दगी बसर करें और इन अहकाम की रौशनी में फलाह और भलाई की राह पायें। मूसा अलैहिस्सलाम जब उनके पास अल्लाह तआला की किताब तोरात लाए तो उसमें उनकी तबई सरकशी और तुगियान के लिहाज से कुछ भारी अहकाम भी थे, मगर ऐसे नहीं जो नाक़ाबिले अमल हों बल्कि उनकी हालत और हिकमते इलाहिया के ऐन मुताबिक थे बनी इस्राईल ने सिर्फ बगावत और सरकशी की वजह से उन्हें कबूल करने से इंकार कर दिया। 

     अल्लाह तआला के हुक्म से जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने पहाड़ का एक हिस्सा उन पर उठा लिय और इरशाद हुआ: हमने तुन्हें जो कुछ दिया उसे मजबूती के साथ पकड़ लो। उस पर उनसे पुख्ता अहद लिया गया लेकिन उन्होंने अहद तोड़ दिया। अल्लाह तआला ने उनके बातिनी फ़साद को खूब अच्छी तरह ज़ाहिर करने और उन्हें रुसवा करने के लिए कुरआन मजीद में अल्फाज़ र-फ़अना के साथ उन पर पहाड़ उठा लेने का जिक्र बार बार फरमाय।


*अमालक़ा से जिहाद का हुक्म और बनी इस्राइल की रुगरदानी* अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 318

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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नमाज़ छोड़ने वाला मलऊन (ना-लाइक) है*

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत अब्दुर्रहमान सफुरी رحمة الله عليه फ़रमाते है : अल्लाह ने अपनी किसी नाज़िल की हुई किताब में फ़रमाया : नमाज़ छोड़ने वाला मलऊन है और अगर उसका पड़ोसी भी उसके इस काम से राज़ी है तो वो भी मलऊन है, अगर मुझे अदलो इन्साफ का लिहाज़ न होता तो में फरमा देता कि क़यामत तक उसकी होने वाली नस्ल मलऊन है।

*✍🏼नुज़हतुल मजालिस* 1/490

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 30

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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ot.in

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-31, आयत, ②③⑦*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और अगर तुमने  औरतों को  बे छुए तलाक़ दे दी  और उनके लिये कुछ मेहर  निश्चित कर चुके थे तो जितना 

ठहरा था उसका आधा अनिवार्य है मगर यह कि औरतें कुछ छोड़ दें (5) या वह ज़्यादा दे (6) जिसके हाथ में निकाह की गिरह है (7) और ऐ मर्दों, तुम्हारा ज़्यादा देना परहेज़गारी से नज़्दीकतर है और आपस में एक दूसरे पर एहसान को भुला न दो बेशक अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है (8)


*तफ़सीर*

(5) अपने इस आधे में से.

(6) आधे से जो इस सूरत में वाजिब है.

(7) यानी शौहर.

(8) इसमें सदव्यवहार और महब्बत और नर्मी से पेश आने की तरग़ीब है.

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*ईमान का बयान* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     *सुवाल* - क्या दिल से तस्दीक के साथ जुबान से इकरार करना भी जरूरी है ? 

     *जवाब* - मुसलमन होने के लिये दिल की तस्दीक के साथ जुबान से इक़रार करना भी शर्त है ताकि दूसरे लोग उसे मुसलमान समझे और मुसलमान उस के साथ मुसलमानों जैसा सुलूक करें। इस की तफ्सील येह है कि अगर तस्दीक के बाद इज़हार का मौकअ न मिला तो इन्दल्लाह मोमिन है और अगर मौकअ मिला और उस से मुतालबा किया गया और इकरार न किया तो काफिर है और अगर मुतालबा न किया गया तो अहकामे दुन्या में काफ़िर समझा जाएगा न उस के जनाजे की नमाज़ पढ़ेंगे न मुसलमानों के कब्रिस्तान में दफ्न करेंगे मगर इन्दल्लाह मोमिन हैं अगर कोई अम्र खिलाफे इस्लाम जाहिर न किया हो। 

     *तम्बीह* : मुसलमान होने के लिये ये भी शर्त है कि जुबान से किसी ऐसी चीज़ का इन्कार न करे जो ज़रूरियते दीन से हैं, अगर्चे बाकी बातों क इक़रार करता हो, अगचें वोह येह कहे कि सिर्फ जबान से इन्कार हे दिल में इन्कार नहीं कि बिला इकराहे शरई मुस्लमान केलिमए कुफ्र सादिर नहीं कर सकता, वोही शख्स ऐसी बात मुंह पर लाएगा जिस के दिल में इतनी ही वुक़अत है कि जब चाहा इन्कार कर दिया और ईमान तो ऐसी तस्दीक है जिस के खिलाफ की असलन गुन्जाइश नहीं।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 53

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #14

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_नज़रे बद लगने पर पढ़े_*

وَاِنْ يَّكَادُ الَّذِيٍنَ كَفَرُوْا لَيُزْلِقُوْنَكَ بِاَبْصَارِهِمْ لَمَّا سَمِعُواالذِّكْرَ وَيَقُوْلُوْنَ اِنَّهُ لَمَجْنُوْنٌ o

*तर्जमा* - और ज़रूर काफ़िर तो ऐसे मालुम होते है की गोया अपनी बद नज़र लगा कर तुम्हे गिरा देंगे, जब क़ुरआन सुनते है और कहते है ये ज़रूर अक़्ल से दूर है।

*पारह 29*


    ये आयत नज़रे बद से बचने के लिये इक्सिर है।

*✍🏽नुरुल इरफ़ान, 971*


     हज़रते हसनرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : जिस को नज़र लगे उस पर ये आयत पढ़ कर दम कर दी जाए।

*✍🏽खज़ाइनुल इरफ़ान, 1019*


اَللَّهُمَّ اَذْهِبْ عَنْهُ حَرَّهَا وَبَرْدَهَا وَوَصَبَهَا

*तर्जमा* - ऐ अल्लाह ! इस (नज़रे बद) की गर्मी, सर्दी और मुसीबत इस से दूर कर दे।

*✍🏽अलमुस्तदरक लिल्हाकिम, 5/305*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 219*


*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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तज़किरतुल अम्बिया* #382

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*बनी इस्राईल की पशेमानी के बाद भी कज रवी*

     बछड़े की पूजा करने और मूसा अलैहिस्सलाम के गुस्सा करने के बाद वह लोग बहुत पशेमान हुए तो अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि आप अपनी क़ौम के बेहतरीन अफ़राद को साथ लेकर तुर पर आ जाये ताकि वह तमाम कौम की तरफ से बछड़े की पूजा के जुर्म की माफी तलब करें। 

     आप उनको जब साथ ले गये तो उन्होंने कहा ऐ मूसा अलैहिस्सलाम तुम अपने रब तआला से सवाल करो यहां तक कि हम भी उसका कलाम सुनेंगे। मूसा अलैहिस्सलाम ने रब तआला के हुजूर अर्ज किया तो उसे कबूल कर लिया गया। 

     जब आप पहाड़ के क़रीब पहुंचे तो सतून की शक्ल में बादल नमूदार हुआ जिसने तमाम पहाड़ को अपनी लपेट में ले लिया हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उस बादल के करीब हुए यहां तक कि उसमें दाखिल हो गये मूसा अलैहिस्सलाम ने जब अपने रब तआला से कलाम किया तो आपकी पेशानी से एक नूर चमकने लगा इंसानों से कोई उसे देखने की ताकत नहीं रखता था क़ौम ने अल्लाह तआला के कलाम को सुना जो उसने मूसा अलैहिस्सलाम को कहा यह करो और यह न करो जब कलाग का सिलसिला खत्म हुआ तो बादल को उठा लिया गया। 

     कौम ने कहा हम हरगिज़ तुम्हारा यक़ीन नहीं करेंगे जब तक अल्लाह तआला को ज़ाहिर नहीं देख लेंगे तो उनको बिजली की कड़क ने अपनी गिरफ्त में ले लिया और सब मर गये। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम खड़े हुए आसान की तरफ हाथ उठा कर दुआ करने लगे और अर्ज किया ऐ अल्लाह तआला बनी इस्राईल के सत्तर आदमियों को मुन्तखब करके लाया था ताकि उनकी तौबा के कबूल होने पर मेरे गवाह बनें अब मैं उनकी तरफ वापस जाऊंगा तो मेरे साथ कोई एक भी जब नहीं होगा तो वह मेरे मुताल्लिक क्या ख्याल करेंगे ? मूसा अलहस्सलाम दुआ फरमाते रहे यहा तक कि अल्लाह तआला ने उनकी रूहों को लौटा दिया।


*क़ौम का अहकामे खुदावंदी मानने से इंकार* अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 317

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Monday 4 February 2019

*नमाज़ छोड़ने के नुक्सानात हक़ीक़त की रौशनी में* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

      हदिष में बे-नमाज़ी को डराते हुए जो कहा गया है कि "बे-नमाज़ी क़यामत के दिन क़ारून, फ़िरऔन, हामान और उबय बिन खल्फ़ (जैसे दुश्मनाने खुदा के साथ) होगा" इसकी वज़ाहत करते हुए हज़रत इमाम ग़ज़ाली رحمة الله عليه तहरीर फ़रमाते है कि (क़ारून, फ़िरऔन, हामान और उबय बिन खल्फ़ के साथ) नमाज़ छोड़ने वाला इसलिये उठाया जाएगा क्योंकि अगर उसने अपने मालो अस्बाब में मशगुलियत की वजह से नमाज़ छोड़ी होगी तो वो क़ारून की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा, अगर मुल्क की मशगुलियत की वजह से नमाज़ न पढ़ी तो वो फ़िरऔन की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा और अगर वज़ारत की मशगुलियत उसे नमाज़ से रोकती है तो वो हामान की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा और अगर तिजारत में लगे रहने की वजह से नमाज़ नहीं पढ़ी तो वो उबय बिन खल्फ़ मक्का के ताजिर की तरह है उसी के साथ उठाया जाएगा।

*✍🏼मकशफतुल कुलूब* 383

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 29

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-31, आयत, ②③⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

तुम पर कुछ मुतालिबा (अभियाचना)  नहीं (1)  तुम औरतों को तलाक़ दो जब तक तुम ने उनको हाथ न लगाया हो या कोई मेहर (रक़म,दैन)  निश्चित कर लिया हो, (2) और उनको कुछ बरतने को दो. (3) हैसियत वाले पर उसके लायक़ और तंगदस्त पर उसके लायक़, दस्तूर के अनुसार कुछ बरतने की चीज़, ये वाजिब है भलाई वालों पर (4)


*तफ़सीर*

(1) मेहर का.

(2) यह आयत एक अन्सारी के बारे में नाज़िल हुई जिन्हों ने बनी हनीफ़ा क़बीले की एक औरत से निकाह किया और कोई मेहर निश्चित न किया. फिर हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दी. इससे मालूम हुआ कि जिस औरत का मेहर निश्चित न किया हो, अगर उसको छूने से पहले तलाक़ दे दी तो मेहर की अदायगी लाज़िम नहीं. हाथ लगाने या छूने से हम बिस्तरी मुराद है, और ख़िलवते सहीहा यानी भरपूर तनहाई उसके हुक्म में है. यह भी मालूम हुआ कि मेहर का ज़िक्र किये बिना भी निकाह दुरूस्त है, मगर उस सूरत में निकाह के बाद मेहर निश्चित करना होगा. अगर न किया तो हमबिस्तरी के बाद मेहरे मिस्ल लाज़िम हो जाएगा, यानी वो मेहर जो उसके ख़ानदान में दूसरों का बंधता चला आया है.

(3) तीन कपड़ों का एक जोड़ा.

(4) जिस औरत का मेहर मुक़र्रर न किया हो, उसको दुख़ूल यानी संभोग से पहले तलाक़ दी हो उसको तो जोड़ा देना वाजिब है. और इसके सिवा हर तलाक़ वाली औरत के लिये मुस्तहब है. (मदारिक)

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