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अब्लाक़ घोड़े सुवार





*अब्लक़ घोड़े सुवार*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अहमद बीन इस्हाक़ अलैरहमा फरमाते है : मेरा भाई बा वुजुदे गुरबत रिज़ाए इलाही की निय्यत से हर साल बकरह इद में क़ुरबानी किया करता था। उस के इंतिक़ाल के बाद में ने एक ख्वाब देखा कि क़यामत बरपा हो गई है और लोग अपनी अपनी क़ब्रो से निकल आए है, यकायक मेरा मर्हुम भाई एक अब्लक़ (यानी दो रंगे चितकुब्रे) घोड़े पर सुवार नज़र आया, उसके साथ और भी बहुत सारे घोड़े थे।
     मेने पूछा : ऐ मेरे भाई ! अल्लाह ने आल के साथ क्या मुआमला फ़रमाया ? कहने लगा : अल्लाह ने मुझे बख्श दिया। पूछा : किस अमल के सबब ? कहा : एक दिन किसी गरीब बुढ़िया को ब निय्यते षवाब में ने एक दिरहम दिया था वही काम आ गया। पूछा : ये घोड़े कैसे है ? बोला : ये सब मेरी *बक़रह ईद की कुर्बानिया है* और जिस पर में सुवार हु ये मेरी सबसे पहली क़ुरबानी है। मेने पूछा : अब कहा का अज़्म है ? कहा : जन्नत का।
     ये कह कर मेरी नज़र से ओझल हो गया। अल्लाह की उन पर रहमत हो ओर उनके सदके हमरी बे हिसाब मगफिर हो।
*✍🏽अब्लक़ घोडा 1*
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*क़ुरबानी के 4 फरामिने मुस्तफा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

क़ुरबानी करने वाले को क़ुरबानी के जानवर के हर बाल के बदले में एक नेकी मिलती है।
*✍🏽तिर्मिज़ी 3/162*

जिसने खुश दिली से तालिबे षवाब हो कर क़ुरबानी की, तो वो आतशे जहन्नम से हिजाब (यानी रोक) हो जाएगी।
*✍🏽अल-मोजमुल कबीर 3/84*

ऐ फातिमा ! अपनी क़ुरबानी के पास मौजूद रहो क्यू कि इसके खून का पहला क़तरा गिरेगा तुम्हारे सारे गुनाह मुआफ़ कर दिये जाएंगे।
*✍🏽बहकी 9/476*

जिस शख्स में क़ुरबानी करने की वुसअत हो फिर भी वो क़ुरबानी न करे तो वो हमारी ईबादत के क़रीब न आए।
*✍🏽इब्ने माजह 3/529*
*✍🏽अब्लाक़ घोडा 2*
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*क्या क़र्ज़ ले कर भी क़ुरबानी करनी होगी ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     जो लोग क़ुरबानी की इस्तिताअत रखते है उस के बा वुजूद अपनी वाजिब क़ुरबानी अदा नही करते, उनके लिये लम्हाए फ़िक्रिया है,
     अव्वल ये नुक़सान क्या कम था कि क़ुरबानी न करने से इतने बड़े षवाब से महरूम हो गए, मज़ीद ये कि वो गुनाहगार और जहन्नम के हक़दार भी है।
     फतावा रज़विय्या जिल्द 3 सफा 315 पर है : अगर किसी पर क़ुर्बानी वाजिब है और उस वक़्त उसके पास रुपए नही है तो क़र्ज़ ले कर या किसी चीज़ फरोख्त कर के क़ुरबानी करे।

*✍🏽अब्लाक़ घोडा 3*
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*पुल सिरात की सवारी*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : इन्सान बक़रह ईद के दिन कोई ऐसी नेकी नही करता जो अल्लाह को खून बहाने से ज़्यादा प्यारी हो, ये क़ुरबानी क़यामत में अपने सींगो, बालो और खुरो के साथ आएगी, और क़ुरबानी का खून ज़मीन पर गिरने से पहले अल्लाह के हां क़बूल छ्प जाता है। लिहाज़ा खुश दिली से क़ुरबानी करो।
*✍🏽तिर्मिज़ी 3/162*

     शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहलवी अलैरहमा फरमाते है : क़ुरबानी अपने करने वाले के नेकियों के पल्ले में रखी जाएगी जिस से नेकियों का पलड़ा भारी होगा।

     हज़रते अल्लामा अली क़ारी अलैरहमा फरमाते है : फिर उस के लिये सुवारि बनेगी जिस के ज़रिए ये शख्स ब आसानी पुल सिरात से गुज़रेगा और उस (जानवर) का हर उज़्व मालिक (यानी क़ुरबानी पेश करने वाला) के हर उज़्व के लिये जहन्नम से आज़ादी का फिदया बनेगा।
*✍🏽मीराआत 2/375*
*✍🏽अब्लाक़ घोडा 3,4*
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*क़ुरबानी करने वाले बाल, नाख़ून न काटे*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा एक हदिष, "जब अशरा आ जाए और तुम में से कोई क़ुरबानी करना चाहे तो अपने बाल व खाल को बिलकुल हाथ न लगाए", के तहत फरमाते है : यानी अमीर वुजुबन या फ़क़ीर नफ़्लन क़ुरबानी का इरादा करे वो जुल हिज्जतील हराम का चाँद देखने से क़ुरबानी करने तक नाख़ून, बाल और (अपने बदन की) मुर्दार खाल वगैरा न काटे न कटवाए ताकि हाजियो से क़दर (यानी थोड़ी) मुशा-बहत हो जाए की वो लोग ऐहराम में हजामत नही करा सकते और ताकि क़ुरबानी हर बाल, नाख़ून के लिये जहन्नम से आज़ादी का फिदया बन जाए।
     ये हुक्म वाजिब नही, मुस्तहब है और हत्तल इम्कान मुस्तहब पर भी अमल करना चाहिए अलबत्ता किसी ने बाल या नाख़ून काट लिये तो गुनाह भी नही और ऐसा करने से क़ुरबानी में खलल भी नही आता, क़ुरबानी दुरुस्त हो जाती है। लिहाज़ा क़ुरबानी वाले का हजामत न करना बेहतर है लाज़िम नही।
     इस से मालुम हुवा की अच्छो की मुशा-बहत (यानी नकल) भी अच्छी है।

*_गरीबो की क़ुरबानी_*
     मुफ़्ती साहब मज़ीद फरमाते है : बल्कि जो क़ुरबानी न कर सके वो भी इस अशरह में हजामत न कराए, बक़रह ईद के दिन बादे  नमाज़े ईद हजामत कराए तो इन्शा अल्लाह क़ुरबानी का षवाब पाएगा।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह 2/370*
*✍🏽अब्लाक़ घोडा 4*
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*क़ुरबानी के मसाइल*
*_मुस्तहब काम के लिये गुनाह की इजाज़त नही_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     याद रहे ! 40 दिन के अंदर नाख़ून तराशना, बगलो और नाफ के निचे के बाल साफ़ करना ज़रूरी है, 40 दिनसे ज़्यादा ताखीर गुनाह है।
     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : जुल हिज्जा के इब्तिदाई 10 दिन में नाख़ून वगैरा न काटने का हुक्म सिर्फ इस्तिहबाबी है, करे तो बेहटरहै न करे तो मुज़ायक़ा नही, न इस को हुक्म ना फ़रमानी कह सकते है, न क़ुरबानी में खामी आने की कोई वजह,
     बल्कि अगर किसी शख्स ने 31 दिन से किसी उज़्र के सबब ख्वाह बिला उज़्र नाख़ून न तराशे हो की चाँद ज़िल हिज्जा का हो गया तो वो अगरचे क़ुरबानी का इरादा रखता हो इस मुस्तहब पर अमल नही कर सकता की अब 10वी तक रखेगा तो नाख़ून तरशवाए हुए 41 दिन हो जाएगा और 40 दिन से ज़्यादा न बनवाना गुनाह है। फेल मुस्तहब के लिये गुनाह नही कर सकता।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 20/353*
*✍🏽अब्लाक़ घोडा, 5,6*
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*क़ुरबानी वाजिब होने के लिये कितना माल होना चाहिये*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हर बालिग़, मुकीम, मुसलमान मर्द व औरत, मालिक निसाब पर क़ुरबानी वाजिब है।
*✍🏽आलमगिरी, 5/292*

     मालिके निसाब होने से मुराद ये है कि उस शख्स के पास साढ़े बावन तोले चांदी या उतनी मालिययत की रक़म या उतनी मालिय्यत का तिजारत का माल या उतनी मालिय्यत का हाजते अस्लिय्या के इलावा सामान हो और उस पर अल्ला या बन्दों का इतना कर्ज़ा न हो जिसे अदा करके ज़िक्र करदा निसाब बाक़ी न रहे।
     फ़ुक़हाए किराम फरमाते है हाजते अस्लिय्या (यानी ज़रुरिय्याते ज़िन्दगी) से मुराद वो चीज़ है जिन की उमुमन इन्सान को ज़रूरत होती है जैसे रहने का घर, पहनने के कपड़े, सुवारि, इल्मे दिन से मुतअल्लिक़ किताबे, और पेशे से मुतअल्लिक़ औज़ार वगैरा।
*✍🏽अलहिदायह, 1/96*

     अगर हाजते अस्लिय्या की तारीफ़ पेशे नज़र रखी जाए तो बखूबी मालुम होगा की हमारे घरो में बे शुमार चीज़े ऐसी है कि जो हाजते अस्लिय्या में दाखिल नही, चुनांचे अगर इनकी कीमत साढ़े बावन टोला चादी के बराबर पहुच गई तो क़ुरबानी वाजिब होगी।
     आला हज़रत अलैरहमा से सुवाल किया गया की अगर ज़ैद के पास मक़ामे सुकुनत (यानी रिहाइशी मकान) के इलावा एक और मकान हो तो उस पर क़ुरबानी वाजिब होगया नही ?
     अल जवाब : वाजिब है, जब की वो मकान तन्हा या इस के माल से हाजते अस्लिय्या से ज़ाइद हो।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 6*
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*क़ुरबानी के मदनी फूल*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     बाज़ लोग पुरे घर की तरफ से सिर्फ एक बकरा क़ुरबान करते है हाला की बाज़ अवक़ात घर के कई अफ़राद साहिबे निसाब होते है और इस बिना पर उन सारो पर क़ुरबानी वाजिब होती है उन सब की तरफ से अलग अलग क़ुरबानी की जाए। एक बकरा जो सब की तरफ किया गया किसी का भी वाजिब अदा न हुवा की बकरे में एक से ज़्यादा हिस्से नही हो सकते किसी एक तै शुदा फर्द ही की तरफ से बकरा क़ुरबान हो सकता है।
     गाय (भेस) और ऊंट में 7 कुर्बानिया हो सकती है।
*✍🏽आलमगिरी 5/304*

     ना बालिग़ की तरफ से अगर्चे वाजिब नही मगर कर देना बेहतर है (और इजाज़त भी ज़रूरी नही)। बालिग़ औलाद या ज़ौजा की तरफ से क़ुरबानी करना चाहे तो उन से इजाज़त तलब करे अगर उनसे इजाज़त लिए बगर कर दी तो उनकी तरफ से वाजिब अदा नही होगा।
*✍🏽आलमगिरी 5/293*
*✍🏽बहारे शरीअत 3/428*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार 9*
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*क़ुरबानी के मदन फूल*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     क़ुरबानी के वक़्त में क़ुरबानी करना ही लाज़िम है कोई दूसरी चीज़ इसके क़ाइम मक़ाम नही हो सकती, मसलन बजाए क़ुरबानी के बक़रा या उस की क़ीमत सदक़ा कर दी जाए ये नाकाफी है।
*✍🏽आलमगिरी 5/293*
*✍🏽बहारे शरीअत 3/335*

*_क़ुरबानी के जानवर की उम्र_*
     ऊंट 5 साल का, गाय दो साल की, बकरा (इसमें बकरी, दुम्बा और भेड़ नर व मादा दोनों शामिल है) एक साल का। इससे कम उम्र हो तो क़ुरबानी जाइज़ नही, ज़्यादा हो तो जाइज़ बल्कि अफज़ल है।
     दुम्बा या भेड़ का 6 महीने का बच्चा अगर इतना बड़ा हो की दूर से देखने में साल भर का मालुम हो तो उसकी क़ुरबानी जाइज़ है।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 9/533*
याद रखिये ! मुतलकन 6 माह के दुम्बे की क़ुरबानी जाइज़ नही, इस का इतना तगड़ा और क़द आवर होना ज़रूरी है कि दूर से देखने में साल भर का लगे। अगर 6 माह बल्कि साल में एक दिन भी कम उम्र का दुम्बे या भेड़ का बच्चा दूर से देखने में साल भर का नही लगता तो उस की क़ुरबानी नही होगी।
     क़ुरबानी का जानवर बे ऐब होना ज़रूरी है अगर थोडा सा ऐब हो (मसलन कान में चिर या सुराख हो) तो क़ुरबानी मकरूह होगी और ज़्यादा ऐब हो तो क़ुरबानी नही होगी।
*✍🏽बहारे शरीअत 3/340*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार 10*
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*क़ुरबानी के मसाइल*
*_ज़बह में कितनी रगे कटनी चाहिए?_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती अमजद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है : जो रगे ज़बह में काटी जाती है वो 4 है। हुल्कूम ये वो है जिसमे सास आती जाती है, मुरी इस से खाना पीना उतरता है इन दोनों के अगल बगल और दो रगे है जिन में खून की रवानी है इन को वदजैन कहते है। ज़बह की 4 रगो में से तिन का कट जाना काफी है यानी इस सूरत में भी जानवर हलाल हो जाएगा की अक्सर के लिये वही हुक्म है जो कुल के लिये है और अगर चारो में से हर एक का अक्सर हिस्सा कट जाएगा जब भी हलाल हो जाएगा और अगर आधी आधी हर रग कट गई और आधी बाक़ी है तो हलाल नही।
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/312*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 12*
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*ज़बह में कितनी रगे कटनी चाहिए?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती अमजद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है : जो रगे ज़बह में काटी जाती है वो 4 है। हुल्कूम ये वो है जिसमे सास आती जाती है, मुरी इस से खाना पीना उतरता है इन दोनों के अगल बगल और दो रगे है जिन में खून की रवानी है इन को वदजैन कहते है। ज़बह की 4 रगो में से तिन का कट जाना काफी है यानी इस सूरत में भी जानवर हलाल हो जाएगा की अक्सर के लिये वही हुक्म है जो कुल के लिये है और अगर चारो में से हर एक का अक्सर हिस्सा कट जाएगा जब भी हलाल हो जाएगा और अगर आधी आधी हर रग कट गई और आधी बाक़ी है तो हलाल नही।
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/312*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 12*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*क़ुरबानी का तरीका*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     चाहे क़ुरबानी हो या वेसे ही ज़बह करना हो सुन्नत ये चली आ रही है कि ज़बह करने वाला और जानवर दोनों कीब्ला रु हो, हमारे अलाके (यानी हिन्द व पाक) में कीब्ला मगरिब (west) में है, इस लिये जानवर का सर जुनुब (south) की तरफ होना चाहिये ताकि जानवर बाए यानी उलटे पहलू लेटा हो, और उस की पीठ मशरिक (east) की तरफ हो ताकि उसका मुह किबले की तरफ हो जाए, और ज़बह करने वाला अपना दाया (सीधा) पाउ जानवर की गर्दन के दाए (सीधे) हिस्से (यानि गर्दन के क़रीब पहलू) पर रखे और ज़बह करे और खुद अपना या जानवर का मुह किबले की तरफ करना तर्क किया तो मकरूह है।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 20/216*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवर, 13*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*क़ुरबानी का जानवर ज़बह करने से पहले ये दुआ पढ़ी जाए*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*اِنِّىْ وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِيْ فَطَرَاسَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ حَنِيْفًا وَمَآاَنَا مِنَ الْمُشْرِكِيْنَ o اِنَّ صَلَاتِىْ وَنُسُكِىْ وَمَحْيَاىَ وَمَمَاتِىْ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ o لَاشَرِيْكَ لَهُ وَبِذٰلِكَ اُمِرْتُ وَاَنَامِنَ الْمُسْلِمِيْنَ*
*तर्जमह :* मेने अपना मुह उस की तरफ किया जिसने आसमान व ज़मीन बनाए एक उसी का हो कर और में मुश्रिकों में नही। बेशक मेरी नमाज़ और मेरी कुरबानिया और मेरा जीना और मरना सब अल्लाह के लिये है जो रब सारे जहान का। उसका कोई शरीक नही मुझे यही हुक्म है और में मुसलमान में हु।
     और जानवर की गर्दन के क़रीब पहलू पर अपना सीधा पाउ रख कर *اَللّٰهُمَّ لَكَ وَمِنْكَ بِسْمِ اللّٰهِ اللّٰهُ اكْبَر*  (*तर्जमह :* ऐ अल्लाह ! तेरे ही लिये और तेरी दी हुई तौफ़ीक़ से, अल्लाह के नाम से शुरू अल्लाह सबसे बड़ा है) पढ़ कर तेज़ छुरी से जल्द ज़बह कर दीजिये। क़ुरबानी अपनी तरफ से हो तो ज़बह के बाद ये दुआ पढ़िये :
*اَللّٰهُمَّ تَقَبَّلْ مِنِّىْ كَمَا تَقَبَّلْتَ مِنْ خَلِيْلِكَ اِبْرَاهِيْم عَلَيْهِ الصَّلٰةُ وَالسَّلَامُ وَحَبِيْبِكَ مُحَمَّدٍ صَلَّى اللّٰهُ تَعَالٰى عَلَيْهِ وَاٰلهٖ وَسَلَّم*
*तर्जमह :* ऐ अल्लाह ! तू मुझसे इस क़ुरबानी को क़ुबूल फरमा जैसा तूने अपने खलील इब्राहीम अलैहिस्सलाम और अपने हबीब मुहम्मद से क़बूल फ़रमाई।
     अगर दूसरे की तरफ से क़ुरबानी करे तो مِنِّىْ के बजाए مِنْ कह कर उस का नाम लीजिये। (ब वक़्ते ज़बह पेट पर घुटना या पाउ न रखिये की इस तरह बाज़ अवक़ात खून के इलावा ग़िज़ा भी निकल ने लगती है)
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/352*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 14*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*क़ुरबानी के मसाइल*
*_जानवरो पर रहम की अपील_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     गाय वगैरा को गिराने से पहले ही किब्ले का तअय्युन कर लिया जाए, लिटाने के बाद बिल खुसुस पथरीली ज़मीन पर घसीट कर कीब्ला रुख करना बे ज़बान जानवर के लिये सख्त अज़िय्यत का बाइस है। ज़बह करने में इतना न काटे कि छुरी गर्दन के मोहरे (हड्डी) तक पहुच जाए कि ये बे वजह की तकलीफ है,
     फिर जब तक जानवर मुकम्मल तौर पर ठन्डा न हो जाए न उस के पाउ काटे न खाल उतारे, ज़बह कर लेने के बाद जब रूह न निकल जाए छुरी न ही कटे हुए गले पर मस (touch) करे न ही हाथ।
     बाज़ कस्साब जल्द ठन्डा करने के लिये ज़बह के बाद तड़पती गाय की गर्दन की ज़िन्दा खाल उधेड़ कर छुरी घोप कर दिल की रगे काटते है, इसी तरह बकरे को ज़बह करने के फौरन बाद बेचारे की गर्दन चटखा देते है, बे ज़बानों पर इस तरह कि बिला वजह इज़ा पहुचाने वाले को रोके। अगर बा वुजुदे कुदरत नही रोकेगा तो खुद भी गुनहगार और जहन्नम का हक़दार होगा।
     जानवर पर ज़ुल्म करना ज़िम्मी काफिर और (अब दुन्या में सब काफिर हर्बि है) ज़ुल्म करने से ज़्यादा बुरा है और ज़िम्मी पर ज़ुल्म करना मुस्लिम पर ज़ुल्म करने से भी बुरा है क्यू की जानवर का कोई मुईन व मददगार अल्लाह के सिवा नही इस गरीब को इस ज़ुल्म से कौन बचाए।
*✍🏽दुर्रेमुखतार व रद्दलमोहतर, 9/662*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 15*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*क़ुरबानी के मसाइल*
*_ज़बिहा को आराम पहुँचाइये_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते सद्दाद बिन औसرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि नबीﷺ ने फ़रमाया : अल्लाह ने हर चीज़ के साथ नेकी करने का हुक्म दिया है, लिहाज़ा जब तुम किसी को क़त्ल करो तो अहसन (यानी बहुत अच्छे) तरीके से क़त्ल करो और जब तुम ज़बह करो तो अहसन (यानी खूब उम्दा) तरीके से ज़बह करो और तुम अपनी छुरी को अच्छी तरह तेज़ कर लिया करो और ज़बिहा को आराम दिया करो।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 1080*

     ब वक़्ते ज़बह रिज़ाए इलाही की निय्यत से जानवर पर रहम खाना कारे षवाब है जैसा कि एक सहाबी ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ! मुझे बकरी ज़बह करने पर रहम आता है। फ़रमाया : अगर उस पर रहम करोगे अल्लाह भी तुम पर रहम फ़रमाएगा।
*✍🏽इमाम अहमद बिन हम्बल, 5/304*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 18*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*जानवर को भूका प्यासा ज़बह न करे*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते मुफ़्ती अमजद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है : क़ुरबानी से पहले उसे चारा पानी दे दे यानि भूका प्यास ज़बह न करे और एक के सामने दूसरे को न ज़बह करे और पहले से छुरितेज़ कर ले ऐसा न हो कि जानवर गिराने के बाद उस के सामने छुरी तेज़ की जाए।
*✍🏽बहरे शरीअत, 3/352*
    
     यहाँ एक अज़ीबो गरीब हिकायत मुलाहजा हो चुनांचे...
     हज़रते अबू ज़फ़र अलैरहमा फरमाते है : एक बार में ने ज़बह के लिये बकरी लिटाई इतने में मशहूर बुज़ुर्ग हज़रते अय्यूब सख्तियानी इधर आ निकले, में ने छुरी ज़मीन पर दाल दी और गुफ्त गु में मशगूल हुवा, दरी अस्ना बकरी ने दिवार की जड़ में अपने खुरो से एक गढ़ा खोदा और पाउ से छुरी उस में धकेल दी पर उस पर मिटटी डाल दी ! हज़रते अय्यूब सख्तियानी फरमाने लगे : अरे देखो तो सही ! बकरी ने ये क्या किया ! ये देख कर मेने पुख्ता अज़्म कर लिया कि अब कभी भी किसी जानवर को अपने हाथ से ज़बह नही करूँगा।
*✍🏽हयातुल हैवान, 2/61*

     ईस हिकायत से मआज़ल्लाह ये मुराद नही कि ज़बह करना कोई गलत काम है। बस इस तरह के वाक़ीआत बुज़ुर्गो के ग़ालबए हाल पर मब्नी होते है। वरना मसअला येही है कि अपने हाथ से ज़बह करना सुन्नत है।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 19*
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*क़ुरबानी के मसाइल*
*_बकरी छुरी की तरफ देख रही थी_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     नबीए करीमﷺ एक आदमी के क़रीब से गुज़रे, वो बकरी की गर्दन पर पाउ रख कर छुरी तेज़ कर रहा था और बकरी उसकी तरफ देख रही थी, आप ने इरशाद फ़रमाया : क्या तुम पहले ऐसा नही कर सकते थे ? क्या तुम इसे कई मौते मारना चाहते हो ? इसे लिटाने से पहले अपनी छुरी तेज़ क्यू न कर ली ?
*✍🏽मुस्तदरक, 5/327*
*✍🏽बहकी, 9/481*

*_ज़बह के लिये टांग मत घसीटो !_*
     हज़रते फारुके आज़मرضي الله تعالي عنه ने एक शख्स को देखा जो बकरी को ज़बह करने के लिये उसे टांग से पकड़ कर घसीट रहा है, आप ने इरशाद फ़रमाया : तेरे लिये खराबी हो, इसे मौत की तरफ अच्छे अन्दाज़ में ले कर जा।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 20*
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*क़ुरबानी के मसाइल*
*_इज्तिमाई क़ुरबानी का गोश्त वज़्न कर के तक़सीम करना होगा*_
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अगर शिर्कत में गाय की क़ुरबानी कि तो ज़रूरी है कि गोश्त वज़्न कर के तक़सीम किया जाए, अंदाज़े से तक़सीम मरना जाइज़ नही, करेंगे तो गुनाहगार होंगे। बख़ुशी एक दूसरे को कम ज़्यादा मुआफ़ लार देना काफी नही।
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/335*
     हा अगर सब एक ही घर में रहते है कि मिल कर ही बटेंगे और खाएंगे या शुरका अपना अपना हिस्सा लेना नही चाहते, ऐसी सूरत में वज़्न करने की हाजत नही।

*_अंदाज़े से गोश्त तक़सीम करने के दो हिले_*
     अगर शुरका अपना अपना हिस्सा ले जाना चाहते हो तो वज़्न करने की मशक्कत से बचने के लिये ये दो हिले कर सकते है :
     1 ज़बह के बाद इस गाय का सारा गोश्त एक ऐसे बालिग़ मुसलमान को हिबा (यानि तोहफ्तन मालिक) कर दे जो उन की क़ुरबानी में शरीक न हो और अब वो अंदाज़े से सब में तक़सीम कर सकता है।
     2 दूसरा हिला इस से भी आसान है जैसा कि फ़ुक़हाए किराम फरमाते है : गोश्त तक़सीम करते वक़्त उस में कोई दूसरी जीन्स (मसलन कलेजी मग्ज़ वगैरा) शामिल की जाए तो भी अंदाज़े से तक़सीम कर सकते है।
*✍🏽दुर्रेमुखतार, 9/527*
     अगर कोई चीज़ डाली है तो हर एक में से टुकड़ा टुकड़ा देना लाज़िम है। गोश्त के साथ सिर्फ एक चीज़ देना भी काफी है। मसलन, तिल्ली, कलेजी, सीरी पाए डाले है तो गोश्त के साथ किसी को तिल्ली दे दी, किसी को कलेजी का टुकड़ा, किसी को पाया, किसी को सीरी। अगर सारी चीज़ों में से टुकड़ा टुकड़ा देना चाहे तब भी हर्ज नहीं।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 22*
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*_क़ुरबानी के गोश्त के 3 हिस्से_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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     क़ुरबानी का गोश्त खुद भी खा सकते है और दूसरे शख्स गनी या फ़क़ीर को दे सकता है खिला सकता है बल्कि इस में से कुछ खा लेना क़ुरबानी करने वाले के लिये मुस्तहब है।
     बेहतर ये है कि गोश्त के 3 हिस्से करे, एक हिस्सा फ़ुक़रा के लिये और एक हिस्सा दोस्तों व अहबाब के लिये और एक हिस्सा अपने घरवालो के लिये।
*✍🏽आलमगिरी, 5/300*
     अगर सारा गोश्त खुद ही रख लिया तब भी कोई गुनाह नही। आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : 3 हिस्से करना सिर्फ इस्तिहबाबी अम्र है कुछ ज़रूरी नही, चाहे तो सब अपने इस्तिमाल में कर ले या सब अज़ीज़ों करिबो को दे दे, या सब मसाकिन को बाट दे।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 20/253*

*_वसिय्यत की क़ुरबानी का गोश्त का मसअला_*
     मन्नत या मर्हुम की वसिय्यत पर की जाने वाली क़ुरबानी का सब गोश्त फ़ुक़रा और मसाकिन को सदक़ा करना वाजिब है, न खुद खाए न मालदारों को दे।
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/345*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 23*
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*_चंदे की रकम से इज्तिमाई क़ुरबानी के लिये गाए खरीदना_*
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सुवाल :
मज़हबी या फलाही इदारे के चंदे की रक़म से इज्तिमाई क़ुरबानी के लिये बेचने के वासिते गाए खरीदी जा सकती है या नही ?

जवाब :
चंदे की रक़म कारोबार में लगाना जाइज़ नही। इस के लिये चन्दा देने वाले से सराहतन यानी साफ़ लफ़्ज़ों में इजाज़त लेनी ज़रूरी है।
(जो इसकी इजाज़त दे सिर्फ उसी के चंदे की रक़म जाइज़ कारोबार में लगाई जा सकती है यु ही बिला इजाज़ते मालिक उसके दिये हुए चंदे की रक़म क़र्ज़ देने की भी इजाज़त नही)
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 24*
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*_गरीब को खाले लेने दीजिये_*
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सुवाल :
अगर कोई शख्स हर साल गरीबो को खाल देता हो, उस पर इंफिरादि कोशिश कर के अपने मदरसे या दीगर दीनी कामो के लिये खाल लेना और गरीबो को महरूम कर देना केसा है ?

जवाब :
अगर वाक़ई कोई ऐसा गरीब मुस्तहिक़ आदमी है जिस का गुज़ारा उसी खाल या ज़कात व फीत्रा पर मौक़ूफ़ है तो अब उस को मिलने वाले इन अतिय्यात की अपने इदारे के लिये तरकिब कर के उस गरीब को महरूम करने की हरगिज़ इजाज़त नही।
     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : अगर कुछ लोग अपने यहाँ की खाले हाजत मन्द यतिमो, बेवाओं, मिस्कीनों को देना चाहे कि इन की सूरते हाजत रवाई यही है, उसे कोई वाइज़ (यानी वाइज़ कहने वाला) या मदरसे वाला रोक कर मदरसे के लिये ले ले तो ये उसका ज़ुल्म होगा।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 20/501*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 25*
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*_अपनी क़ुरबानी की खाल बेच दी तो ?_*
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सुवाल :
किसी ने अपनी क़ुरबानी की खाल बेच कर रक़म हासिल कर ली अब वो मस्जिद में दे सकता है या नही ?

जवाब :
यहाँ निय्यत का एतिबार है। अगर अपनी क़ुरबानी की खाल अपनी ज़ात के लिये रक़म के एवज़ बेची तो यु बेचना भी नाजाइज़ है और ये रक़म इस शख्स के हक़ में माले खबीस है और इस का सदक़ा करना वाजिब है लिहाज़ा किसी शरई फ़क़ीर को दे दे। और तौबा भी करे।
     और अगर किसी कारे खैर के लिये मसलन मस्जिद में देने ही की निय्यत से बेचीं तो बेचना भी जाइज़ है और अब मस्जिद में देने में कोई हर्ज नही।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 28*
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*_गोश्त के आज्ज़ा जो नही खाए जाते_*
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     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : हलाल जानवर के सब आज्ज़ा हलाल है मगर बाज़ कि हराम या ममनुअ या मकरूह है,
रगो का खून
पित्ता
फुकना (यानी मसाना)
अलामाते मादा व नर
बैज़े (यानी कपुरे)
गुदुद
हराम मग्ज़
गर्दन के दो पठ्ठे कि शानो तक खिचे होते है
जिगर (यानी कलेजी) का खून
तिल्ली का खून
गोश्त का खून की बादे ज़बह गोश्त में से निकलता है
दिल का खून
पित यानि वो ज़र्द पानी कि पित्ते में होता है
नाक की रतुबत, कि भेड़ में अक्सर होती है
पाखाने का मक़ाम
ओझड़ी
आंते
नुत्फा (मनी), वो नुत्फा कि खून हो गया, वो नुत्फा कि गोश्त का लोथड़ा हो गया, वो नुत्फा की पूरा जानवर बन गया और मुर्दा निकला या बे ज़बह मर गया।
     समझदार कस्साब बाज़ ममनुआ चीज़े निकल दिया करते है मगर बाज़ में इन को भी मालूमात नही होती या बे एहतियाती बरतते है।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 37*
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