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Monday 31 October 2016

*मुसाफिर की नमाज़* #08
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*क़सर के बदले चार की निय्यत बांध ली तो..?*_
     मुसाफिर ने क़सर के बजाए चार रकअत फ़र्ज़ की निय्यत बांध ली फिर याद आने पर दो पर सलाम फेर दिया तो नमाज़ हो जाएगी।
*✍🏽दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार 2/97*

_*क्या मुसाफिर को सुन्नते मुआफ़ है ?*_
     सुन्नतो में क़सर नही बल्कि पूरी पढ़ी जाएगी, खौफ और घबराहट की हालत में सुन्नते मुआफ़ है और अम्न की हालत में पढ़ी जाएगी।
*✍🏽आलमगिरी 1/139*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 234*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #64
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​सूरतुल बक़रह, आयत ⑦④_*
फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख्त़ हो गये (3)
तो वह पत्थरों जैसे है बल्कि उनसे भी ज्य़ादा करें और पत्थरों में तो कुछ वो हैं जिनसे नदियां बह निकलती हैं और कुछ वो है जो फट जाते हैं तो उनसे पानी निकलता हैं और कुछ वो हैं जो अल्लाह के डर से गिर पड़ते हैं (4)
और अल्लाह तुम्हारे कौतुकों से बेख़बर नहीं

*तफ़सीर*
     (3) क़ुदरत की ऐसी बड़ी निशानियों से तुमने इबरत हासिल न की.
     (4) इसके बावुजूद तुम्हारे दिल असर क़ुबूल नहीं करते. पत्थरों में अल्लाह ने समझ और शऊर दिया है, उन्हें अल्लाह का ख़ौफ़ होता है, वो तस्बीह करते हैं इम मिन शैइन इल्ला युसब्बिहो बिहम्दिही यानी कोई चीज़ ऐसी नहीं जो अल्लाह की तारीफ़ में उसकी पाकी न बोलती हो. (सूरए बनी इस्त्राईल, आयत 44). मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत जाबिर (अल्लाह उनसे राज़ी) से रिवायत है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया मैं उस पत्थर को पहचानता हूँ जो मेरी नबुव्वत के इज़्हार से पहले मुझे सलाम किया करता था, तिरमिज़ी में हज़रत अली (अल्लाह उनसे राज़ी) से रिवायत है कि मैं सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ मक्का के आस पास के इलाक़े में गया. जो पेड़ या पहाड़ सामने आता था अस्सलामो अलैका या रसूलल्लाह अर्ज़ करता था.

*_​​सूरतुल बक़रह, आयत ⑦⑤_*
तो ऐ मुसलमानों, क्या तुम्हें यह लालच है कि यहूदी तुम्हारा यक़ीन लाएंगे और उनमें का तो एक समूह वह था कि अल्लाह का कलाम सुनते फिर समझने के बाद उसे जान बूझकर बदल देते

*तगसिर*
     जैसे उन्होंने तौरात में कतर ब्योंत की और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तारीफ़ के अल्फ़ाज़ बदल डाले.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #15
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مُصَوِّرُ*

जो बाँझ औरत रोज़े रखे और इफ्तार के वक़्त 21 बार *اَلْمُصَوِّرُ* पढ़ कर पानी पर दम करके पी लिया करे, अल्लाह उसे नेक बेटा अता करेगा ان شاء الله

*✍🏽मदनु पंजसुरह, 248*
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Sunday 30 October 2016

*गफलत* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

_*मौत के तीन क़ासिद*_
     मन्कुल है : हजरते सैय्यिदुना या'कूब और हजरते सैय्युदूना इज्राइल अलैहिस्सलाम म-लकुम मौत में दोस्ती थी ।एक बार जब हजरते सैय्यिदुना म-लकुम मौत आए तो हजरते सैय्यिदुना या'कूब अलैहिस्सलाम ने इस्तिफसार फ़रमाया की आप मुलाकात के लिये तशरीफ़ लाए है या मेरी रूह कब्ज करने के लिये ? कहा : मुलाक़ात के लिये । फ़रमाया : मुझे वफ़ात देने से कब्ल मेरे पास अपने क़ासिद भेज देना । म-लकुल मौत ने कहा : में आप की तरफ दो या तीन क़ासिद भेज दूंगा ।
     चुनान्चे जब रूह कब्ज करने के लिये म-लकुल मौत आए तो आप ने इर्शाद फ़रमाया : आपने मेरी वफात से कब्ल क़ासिद भेजने थे वोह क्या हुवा ? हजरते सैय्यिदुना म-लकुल मौत ने कहा : सियाह या'नी काले बालो के बा'द सफ़ेद बाल, जिस्मानी ताकत के बा'द कमजोरी और सीधी कमर के बा'द कमर का झुकाव, ऐ या'कूब ! मौत से पहले इन्सान की तरफ मेरे क़ासिद ही तो है ।
     एक अ-रबी शाइर के इन दो अश्आर में किस कदर इब्रत है :
(1) वक़्त और दिन गुजर गए मगर गुनाह बाक़ी है, मौत का फिरिश्ता आ पहुंचा और दिल ग़ाफ़िल है
(2) तुजे दुन्या में मिलने वाली ने-मत धोका और तेरे लिये बाइसे हसरत है, और दुन्या में दाइमी या'नी हमेशा बाकी रहने वाली रहते पानी का तसव्वुर तेरी ख़म ख़याली (या'नी गलत फहमी ) है ।

_*बीमारी भी मौत का क़ासिद है*_
     मा'लूम हुवा के आने से पहले म-लकुल मौत अपने फासिद् भेजते है । बयान करदा तीन कासीदीन के इलावा भी अहादिसे मुबा-रका में मजीद कासिदिन का तज्किरा मिलता है। चुन्नाचे मरज, कानो और आंखो का तग्ययुर भी मौत के क़ासिद है ।
     हम में से बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन के पास म-लिकुल मौत के क़ासिद तशरीफ़ ला चुके होंगे मगर क्या कहिये इस गफलत का ! अगर सियाह बालों के बा'द सफ़ेद बाल होने लगते है हाला की येह मौत का क़ासिद है मगर बन्दा अपने दिल को ढारस देने के लिये कहता है की येह तो नज्ले से बाल सफ़ेद हो गए है ! इसी तरह बीमारी जो की मौत का नुमाया क़ासिद है मगर इस में भी सरासर गफलत बरती जाती है हाला की "बीमारी" ही के सबब रोजाना बे शुमार अफ़राद मौत का शिकार होते है ! मरीज को बहुत जियादा मौत याद आनी चाहिये कि क्या मा-लूम जो बीमारी मा-लूम लग रही है वोही मोहलिक सूरत इख़्तियार कर के आन की आन में फना के घाट उतार दे फिर अपने रोएं धोएं, दुश्मन खुशिया मनाए और मरने वाला मौत से ग़ाफ़िल मरीज मनो मिटटी तले अँधेरी कब्र में जा पड़े आह ! अब मरने वाला होगा और उस के अच्छे बुरे आ-माल ।
*✍🏽गफलत, 8*
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खादिमे दिने नबीﷺ *ज़ैद वहोरा*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #63
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑦②_*
और जब तुमने एक ख़ून किया तो एक दूसरे पर उसकी तोहमत (आरोप) डालने लगे और अल्लाह को ज़ाहिर करना था जो तुम छुपाते थे

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑦②_*
तो हमने फ़रमाया उस मक्त़ूल को उस गाय का एक टुकड़ा मारो (1)
अल्लाह यूं ही मुर्दें ज़िन्दा करेगा और तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता है कि कहीं तुम्हें अक्ल़ हो (2)

*तफ़सीर*
     (1) बनी इस्राईल ने गाय ज़िब्ह करके उसके किसी अंग से मुर्दे को मारा. वह अल्लाह के हुक्म से ज़िन्दा हुआ. उसके हल्क़ से ख़ून के फ़व्वारे जारी थे. उसने अपने चचाज़ाद भाई को बताया कि इसने मुझे क़त्ल किया है. अब उसको भी क़ुबूल करना पड़ा और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उस पर क़िसास का हुक्म फ़रमाया।
     और उसके बाद शरीअत का हुक्म हुआ कि क़ातिल मृतक की मीरास से मेहरूम रहेगा. लेकिन अगर इन्साफ़ वाले ने बाग़ी को क़त्ल किया या किसी हमला करने वाले से जान बचाने के लिये बचाव किया, उसमें वह क़त्ल हो गया तो मृतक की मीरास से मेहरूम न रहेगा.
     (2) और तुम समझो कि बेशक अल्लाह तआला मुर्दे ज़िन्दा करने की ताक़त रखता है और इन्साफ़ के दिन मुर्दो को ज़िन्दा करना और हिसाब लेना हक़ीक़त है.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #14
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا بَارِىُٔ*

हर जुमुआ 10 बार पढ़ लिया करे ان شاء الله उस को बेटा अता होगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 248*
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Saturday 29 October 2016

*इस्लाम पर्दे का हुक्म क्यों देता हैं? पेश हैं एक वैज्ञानिक रिपोर्ट*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

बेशक इस्लाम औरत को हुक्म देता हैं कि वह पर्दे में रहे। दुनिया के सामने अपने जिस्म और खूबसूरती की नुमाइश (प्रदर्शन) न करें सिवाय उसके शौहर (पति) के। क्यों इस्लाम ने सिर्फ औरतों को ही पर्दे में रहने का हुक्म दिया? क्यों सारी पाबंदियां सिर्फ औरतों के लिए ही हैं? क्यों मर्दों के लिए इस्लाम पर्दे का हुक्म नहीं देता? क्यों इस्लाम में मर्दों पर किसी भी तरह की पाबंदी नहीं हैं? लगता हैं इस्लाम एक पुराना और रूढ़िवादी धर्म हैं।

कुछ अज्ञानी लोग बिना इस्लाम को पढ़े और समझें इस्लाम पर इस तरह के बेहूदा इल्जाम लगाने से नहीं चूकते। हालांकि इससे इस्लाम को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस्लाम का प्रत्येक कानून प्रत्येक कसौटी (criterion) पर खरा उतरता हैं चाहे वो सामाजिक कसौटी (Social criterion) हो, तार्किक कसौटी (logical criterion) हो या फिर वैज्ञानिक कसौटी (Scientific criterion) हो। फिर भी इन बेतुके सवालों के जवाब देने जरूरी हैं ताकि सच्चाई सबके सामने आ सकें।

इस्लाम में पर्दे का हुक्म सिर्फ औरतों के लिए ही नहीं बल्कि मर्दों के लिए भी हैं। जैसा कि कुरान ए पाक में लिखा है;
*“ऐ नबी (मुहम्मद साहब स.अ.व.) कह दो मोमिन (मुसलमान) मर्दों से की अपनी नजरें नीची रखे और अपनी शर्मगाहो (शरीर के खास अंगों) की हिफाजत करें, ये उनके लिए बेहतर हैं”*
कुरान (24 :30)

कुरान की इस आयत के जरिये अल्लाह (ईश्वर) मुसलमान मर्दों को यह हुक्म दे रहा है कि वे अपनी नजरें नीची रखे और अपनी शर्मगाहो (शरीर के खास अंगों) की हिफाजत करें क्योंकि इसी में उनकी भलाई हैं। यहाँ नजरें नीची रखने का ताल्लुक (सम्बन्ध) पर्दे से ही हैं पर कुछ लोगों के मन में यह सवाल उठ सकता हैं कि नजरें नीची रखने से पर्दा कैसे हुआ? तो आइये इस सवाल का जवाब हम विज्ञान से ही पूछ लेते हैं क्योंकि हो सकता हैं कि इस्लाम के तर्क (logics) को कुछ लोग कुबुल ना करे हालांकि हकीकत तो यह हैं कि जो भी विज्ञान आज बता रहा हैं इस्लाम 1500 साल पहले ही बता चुका हैं। ये मै अपने Articles (लेखों) द्वारा साबित भी कर चुका हूँ।

अमेरिका की एक मशहूर Anthropologist (मानव विज्ञानी) जिसका नाम Helen Fisher हैं पिछले 30 सालों से Rutger University, America में Anthropology (मानव विज्ञान) की professor हैं और Human Behaviour (मानव व्यवहार) पर रिसर्च कर रही हैं और इसी विषय पर कई किताबें भी लिख चुकी हैं। उसने अपने रिसर्च से बताया कि इन्सान के शरीर में कुछ हार्मोन (hormones) होते हैं जैसे Testosterone और Estrogens और दिमाग में कुछ neurotransmitters (रसायन) होते हैं जैसे Dopamine और Serotonin और ये औरतों की तुलना में मर्दों में ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं जो किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।

और वह कहती हैं कि जब भी किसी मर्द की नजर किसी औरत पर पड़ती हैं तो ये हार्मोन और रसायन active (सक्रिय) हो जाते हैं और फिर मर्द उस औरत को देखकर उत्तेजित हो जाता हैं। और ऐसा तब होता हैं जब या तो औरत बहुत खूबसूरत (Charming) हो या उसका जिस्म का उभार (Figure) दिखाई देता हो। और ऐसा सिर्फ इन्सानो में ही नहीं बल्कि पक्षियों और जानवरों में भी होता हैं। आपने सुना भी होगा और देखा भी होगा कि जब कोई हाथी पागल हो जाता है तो वह तबाही मचाने लग जाता हैं। लेकिन विज्ञान कहता है कि वह हाथी पागल नहीं होता है वह तो ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसमें Testosterone की मात्रा बहुत बढ़ जाती हैं।

इसी तरह एक शेर दूसरे शेरों के बच्चों को मार देता है ताकि शेरनी उसकी तरफ (Mating) के लिए आकर्षित हो जाए। और सभी प्रकार के नर जानवर मादा को पाने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। John Hopkins University के वैज्ञानिकों ने पक्षियों के व्यवहार पर रिसर्च किया और मालूम किया कि नर पक्षी गाना गाते हैं मतलब अलग अलग तरह की आवाजें निकालते हैं ताकि वे मादा पक्षियों को आकर्षित कर सकें।

तो विज्ञान के मुताबिक औरतों (मादाओं) के जिस्म और खूबसूरती को देखकर मर्द (नर) उत्तेजित हो जाते हैं। अगर मर्दों को औरतों की तरफ आकर्षित होने से रोकना है तो औरतें अपनी खूबसूरती व जिस्म को पर्दे में रखें और मर्द भी औरतों को न घुरे तो कुरान में अल्लाह (ईश्वर) ने हमें यही तो हुक्म दिया हैं कि मुसलमान औरतें अपने आप को पर्दे में रखे और मुसलमान मर्द अपनी नजरें नीची रखे मतलब औरत को न घुरे। तो यह साबित हो गया कि इस्लाम ने सिर्फ औरतों को ही नहीं बल्कि मर्दों को भी पर्दा करने का हुक्म दिया हैं और इसी में इन्सानो की भलाई हैं।

http://timesmedia24.com/hindi/why-does-islam-command-the-curtains-a-scientific-report-presented/
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*मुसाफिर की नमाज़* #06
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*काम हो गया तो चला जाऊंगा*

मुसाफिर किसी काम के लिये या अहबाब के इन्तिज़ार में दो चार या तेरह चौदह दिन की निय्यत से ठहरा, या ये इरादा है कि काम हो जाएगा तो चला जाएगा, दोनों सूरतो में अगर आज कल आज कल करते बरसो गुज़र जाए जब भी मुसाफिर ही है, वो नमाज़ क़सर पढ़ेगा।

*✍🏽आलमगिरी 1/139*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 227*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #62
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑦①_*
कहा वह फ़रमाता है कि वह एक गाय है जिससे ख़िदमत नहीं ली जाती कि ज़मीन जोते और न खेती को पानी दे. बे ऐब है, जिसमें कोई दाग़ नहीं. बोले अब आप ठीक बात लाए (11)
तो उसे ज़िब्ह किया और ज़िब्ह करते मालूम न होते थे (12)

*तफ़सीर*
     (11) यानी अब तसल्ली हुई और पूरी शान और सिफ़त मालूम हुई. फिर उन्होंने गाय की तलाश शुरू की. उस इलाक़े में ऐसी सिर्फ़ एक गाय थी. उसका हाल यह है कि बनी इस्राईल में एक नेक आदमी थे और उनका एक छोटा सा बच्चा था उनके पास सिवाए एक गाय के बच्चे के कुछ न रहा था. उन्हों ने उसकी गर्दन पर मुहर लगाकर अल्लाह के नाम पर छोड़ दिया और अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ किया – ऐ रब, मैं इस बछिया को इस बेटे के लिये तेरे पास अमानत रखता हूं. जब मेरा बेटा बड़ा हो, यह उसके काम आए. उनका तो इन्तिक़ाल हो गया. बछिया जंगल में अल्लाह की हिफ़ाज़त में पलती रही. यह लड़का बड़ा हुआ और अल्लाह के फ़ज़्ल से नेक और अल्लाह से डरने वाला, माँ का फ़रमाँबरदार था. एक रोज़ उसकी माँ ने कहा बेटे तेरे बाप ने तेरे लिये जंगल में ख़ुदा के नाम पर एक बछिया छोड़ी है. वह अब जवान हो गई होगी. उसको जंगल से ले आ और अल्लाह से दुआ कर कि वह तुझे अता फ़रमाए. लड़के ने गाय को जंगल में देखा और माँ की बताई हुई निशानियाँ उसमें पाई और उसको अल्लाह की क़सम देकर बुलाया, वह हाज़िर हुई. जवान उसको माँ की ख़िदमत में लाया. माँ ने बाज़ार ले जाकर तीन दीनार में बेचने का हुक्म दिया और यह शर्त की कि सौदा होने पर फिर उसकी इजाज़त हासिल की जाए. उस ज़माने में गाय की क़ीमत उस इलाक़े में तीन दीनार ही थी. जवान जब उस गाय को बाज़ार में लाया तो एक फ़रिश्ता ख़रीदार की सूरत में आया और उसने गाय की क़ीमत छ: दीनार लगा दी, मगर इस शर्त से कि जवान माँ की इजाज़त का पाबन्द न हो. जवान ने ये स्वीकार न किया और माँ से यह तमाम क़िस्सा कहा. उसकी माँ ने छ: दीनार क़ीमत मंजू़र करने की इजाज़त तो दे दी मगर सौदे में फिर दोबारा अपनी मर्ज़ी दरयाफ़्त करने की शर्त रखी. जवान फिर बाज़ार में आया. इस बार फ़रिश्ते ने बारह दीनार क़ीमत लगाई और कहा कि माँ की इजाज़त पर मौक़ूफ़ (आधारित) न रखो. जवान न माना और माँ को सूचना दी. वह समझदार थी, समझ गई कि यह ख़रीदार नहीं कोई फ़रिश्ता है जो आज़मायश के लिये आता है. बेटे से कहा कि अब की बार उस ख़रीदार से यह कहना कि आप हमें इस गाय की फ़रोख़्त करने का हुक्म देते हैं या नहीं. लड़के ने यही कहा. फ़रिश्ते ने जवाब दिया अभी इसको रोके रहो. जब बनी इस्त्राईल ख़रीदने आएं तो इसकी क़ीमत यह मुक़र्रर करना कि इसकी खाल में सोना भर दिया जाए. जवान गाय को घर लाया और जब बनी इस्राईल खोजते खोजते उसके मकान पर पहुंचे तो यही क़ीमत तय की और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ज़मानत पर वह गाय बनी इस्त्राईल के सुपुर्द की. इस क़िस्से से कई बातें मालूम हुई. (1) जो अपने बाल बच्चों को अल्लाह के सुपुर्द करे, अल्लाह तआला उसकी ऐसी ही ऊमदा पर्वरिश फ़रमाता है. (2) जो अपना माल अल्लाह के भरोसे पर उसकी अमानत में दे, अल्लाह उसमें बरकत देता है. (3) माँ बाप की फ़रमाँबरदारी अल्लाह तआला को पसन्द है. (4) अल्लाह का फ़ैज़ (इनाम) क़ुर्बानी और ख़ैरात करने से हासिल होता है. (5) ख़ुदा की राह में अच्छा माल देना चाहिये. (6) गाय की क़ुरबानी उच्च दर्जा रखती है.
     (12) बनी इस्राईल के लगातार प्रश्नों और अपनी रूस्वाई के डर और गाय की महंगी क़ीमत से यह ज़ाहिर होता था कि वो ज़िब्ह का इरादा नहीं रखतें, मगर जब उनके सवाल मुनासिब जवाबों से ख़त्म कर दिये गए तो उन्हें ज़िब्ह करना ही पड़ा.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #13
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا خَالِقُ*

जो 300 बार पढ़े ان شاء الله उसका दुश्मन मगलूब होगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 247*
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Friday 28 October 2016

*मुसाफिर की नमाज़* 05
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_वतन की किस्मे_*
वतन की दो किस्मे है
1 वतने असली : यानी वो जगह जहा इसकी पैदाइश हुई है या इस के घर के लोग वहा रहते है या वहा सुकूनत कर ली और ये इरादा है कि यहा से न जाएगा।
2 वतने इक़ामत : यानी वो जगह कि मुसाफिर ने 15 दिन या इससे ज़्यादा ठहर ने का वहा इरादा किया हो।

*_वतने इक़ामत बातिल होने की सूरत_*
वतने इक़ामत दूसरे वतने इक़ामत को बातिल कर देता है यानी एक जगह 15 दिन के इरादे से ठहरा फिर दूसरी जगह इतने ही दिन के इरादे से ठहरा तो पहली जगह वतन न रही। दोनों के दरमियान मसाफते सफर हो या न हो। यु ही वतने इक़ामत वतने असली और सफर से बातिल हो जाता है।
*✍🏽आलमगिरी 1/145*
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*गफलत* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_अनोखी नदामत_*
     हजरते सैय्यिदुना शैख अबू अली दक्कक फरमाते है : एक बड़े वलिय्युल्लाह सख्त बीमार थे, मैं इयादत के लिये हाजिर हुवा, इर्द गिर्द मो'तकिदीन का हुजूम था, वोह बुजुर्ग रो रहे थे । मैं ने अर्ज़ की : ऐ शैख ! क्या दुन्या छूटने पर रो रहे है ? फ़रमाया : नहीं बल्कि नमाजे क़ज़ा होने पर रो रहा हूं । मै ने अर्ज की : हुजूर ! आप की नमाजे क्यूंकर क़ज़ा हो गई ? फ़रमाया : मै ने जब भी सजदा किया तो गफलत के साथ और जब सजदे से सर उठाया तो गफलत के साथ और जब गफलत ही मौत से हम-आगोश हो रहा हूं, फिर एक आहे सर्द दिले पुरदर्द से खींच कर  चार अ-रबी अशआर पढ़े जिन का तरजमा येह है :
     (1) मै ने अपने हशर्, क़ियामत के दिन और कब्र में अपने रुखसार के पड़ा  होने के बारे में गौर किया (2) इतनी इज्जत व् रिफअत के बा'द मै अकेला पड़ा होऊंगा और अपने जुर्म के बिना पर रहन (या'नी गिरवी) होऊंगा और खाक ही मेरा तकया होगा (3) मै ने अपने हिसाब की तिलावत और  नामए आ'माल दिये जाने के वक्त की रुसवाई के बारे में भी सोचा (4) मगर ऐ मुझे पैदा कर ने वाले और मुझे पालने वाले ! मुझे तुजसे रेहमत की उम्मीद है, तुही मेरी खताओ को बख्शने वाला है ।

*_रोता हुवा दाखिले जहन्नम होगा_*
     इस हिकायत में किस कदर इब्रत है । जरा इन अल्लाह वालो को देखिये जिनका हर लम्हा यादे इलाही में बसर होता है मगर फिर भी इन्किसारी का आलम येह है की अपनी इबादत व् रियाजत को किसी खातिर में नहीं लाते और अल्लाह की बे नियाजी और उस की खुफ़या तदबीर से डरते हुए गियॉ व् जारी करते है ।
     उन गफलत के मारो पर सद करोड़ अफ़सोस की नेकी के नुन का नुक़्ता तक जिन के पल्ले नहीं, इखलास का दूर दूर तक नामो निशान नहीं मगर हाल येह है की अपनी इबादतों के बुलंद बांग दा'वे करते नहीं थकते ! अल्लाह के नेक बन्दे गुनाहो से महफूज होने के बा वुजूद खौफ इलाही से थर थराते कप-कपाते और टपटप आंसू गिरते है मगर गफलत शिआर बन्दों का हाल येह है की बे धड़क मा'सियत का सिलसिला चलाते, अपने गुनाहो का आम ए'लान सुनाते और फिर इस पर जोर जोर से कहकहे लगाते जरा भी नही सरमाते, कान खोल कर सुनिये ! हजरते सैय्यिदुना इब्ने अब्बासرضي الله تعالي عنه फरमाते है : "जो हंस हंस कर गुनाह करेगा वोह रोता हुवा जहन्नम में दाखिल होगा ।"

*_अगर ईमान बरबाद हो गया तो..._*
     हंस हंस कर झुट बोलने वालो, हंस हंस कर वा'दा खिलाफी करने वालो, हंस हंस कर मिलावट वाला माल बेचने वालो, हंस हंस कर फिल्में डिरामे देखने वालो और गाने बाजे सुनने वालो, हंस हंस कर मुसल्मानो को सताने और बिला इजाजते शर-ई उन की दिल आजरिया करने वालो के लीये लम्हा फ़िक्रिया हे, अगर अल्लाह नाराज हो गया और उसके प्यारे महबूबﷺ रूठ गए और गफलत के सबब दीद दिलेरी के साथ हंस हंस कर गुनाहो का इरतिकाब करने के बाइस ईमान बरबाद हो गया और जहन्नम मुकद्दर बन गया तो क्या बनेगा ! जरा दिल के कानो से खुदाए रहमान का फरमाने इब्रत निशान सुनिये !
     चुनान्चे पारह 10 सु-रतुत्तौबह की आयत 82 में इर्शाद होता है :
*तो उन्हें चाहीये के थोडा हंसे और बहुत रोएं ।*
*✍🏽गफलत, 7*
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*सिरते मुस्तफा*
*_दसवा बाबा_* #05

*_मुनाफ़िक़ीन की शरारत_* #02
     जब अब्दुल्लाह बिन उबय्य की बेहूदा बात हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه के कान में पड़ी तो वो इस क़दर तैश में आ गए की नगी तलवार ले कर आए और अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ ! मुझे इजाज़त दीजिये की में इस मुनाफ़िक़ की गर्दन उड़ा दू।
     हुज़ूरﷺ ने निहायत नरमी के साथ इरशाद फ़रमाया की ऐ उमर ! खबरदार ऐसा न करो, वरना कुफ़्फ़ार में ये खबर फेल जाएगी की मुहम्मद अपने साथियो को भी क़त्ल करने लगे है। ये सुन कर हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه बिलकुल ही खामोश हो गए.
     मगर इस खबर का पुरे लश्कर में चर्चा हो गया, ये अज़िब बात है की अब्दुल्लाह इब्ने उबय्य जितना बड़ा इस्लाम और बानिये इस्लाम का दुश्मन था इस से कहि ज़्यादा बढ़ कर उस के बेटे इस्लाम के सच्चे शैदाई और हुज़ूरﷺ के जानिशार सहाबी थे, उनका नाम भी अब्दुल्लाह था, जब अपने बाप की बकवास का पता चला तो वो गैज़ो गज़ब में भरे हुए बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया की या रसुलल्लाहﷺ ! अगर आप मेरे बाप के क़त्ल को पसन्द फरमाते हो तो मेरी तमन्ना है की किसी दूसरे के बजाए में खुद अपनी तलवार से अपने बाप का सर काट कर आप के क़दमो में डाल दू।
     आपﷺ ने इरशाद फ़रमाया की नही हरगिज़ नही, में तुम्हारे बाप के साथ कभी भी कोई बुरा सुलूक नही करूँगा।
     और एक रिवायत में ये भी है की मदीने के क़रीब वादिये अक़ीक़ में वो अपने बाप का रास्ता रोक कर खड़े हो गए और कहा की तुम ने मुहाजिरिन और रसूलल्लाहﷺ को ज़लील कहा है खुदा की क़सम ! में उस वक़्त तक तुमको मदीने में दाखिल नही होने दूंगा जब तक रसूलल्लाहﷺ इजाज़त अता न फरमाए और जब तक तुम अपनी ज़बान से ये न कहो की हुज़ूरﷺ तमाम औलादे आदम में सबसे ज़्यादा इज़्ज़त वाले है और तुम सारे जहान वालो में सबसे ज़्यादा ज़लील हो।
     तमाम लोग इन्तिहाई हैरत और ताज्जुब के साथ ये मन्ज़र देख रहे थे, जब हुज़ूरﷺ वहा पहुचे और ये देखा की बेटा बाप का रस्ता तोके हुए खड़ा है और अब्दुल्लाह बिन उबय्य ज़ोर ज़ोर से कह रहा है की "में सबसे ज़्यादा ज़लील हु और हुज़ूर सबसे ज़्यादा इज़्ज़त दार है। आपﷺ ने ये देखते ही हुक्म दिया की इस का रास्ता छोड़ दो ताकि ये मदीने में दाखिल हो जाए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 308*
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Thursday 27 October 2016

*मुसाफिर की नमाज़* #04
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_सफर के दो रास्ते_*
किसी जगह जाने के दो रास्ते है एक से मसाफ़ते सफर है दूसरे से नही (यानी नजदीक वाले रस्ते से जाए तो 90 k.m और दूर वाले रस्ते से 92k.m है) तो जिस रास्ते से ये जाएगा उस का ऐतिबार है, नज़दीक वाले रास्ते से गया तो मुसाफिर नही और दूर वाले से गया तो है अगर्चे इस रास्ते के इख़्तियार करने में इस की कोई गरजे सहीह न हो।
*✍🏽आलमगिरी 1/138*
*✍🏽दुर्रेमुखतर मअ रद्दलमोहतर 2/603*

*_मुसाफिर कब तक मुसाफिर है_*
मुसाफिर उस वक़्त तक मुसाफिर है जब तक अपनी बस्ती में पहुच न जाए या आबादी में पुरे 15 दिन ठहर ने की निय्यत न करले, ये उस वक़्त है जब पुरे 92 k.m चल चूका हो अगर 92 k.m पहले वापसी का इरादा कर लिया तो मुसाफिर न रहा अगर्चे जंगल में हो।
*✍🏽दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतर 2/605*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 226*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #61
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥⑧_*
बोले अपने रब से दुआ कीजिये कि वह हमें बता दे गाय कैसी? कहा, वह फ़रमाता है कि वह एक गाय है न बूढ़ी और न ऊसर, बल्कि उन दोनों के बीच में, तो करो जिसका तुम्हें हुक्म होता है

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥⑨_*
बोले अपने रब से दुआ कीजिये हमें बता दे उसका रंग क्या है? कहा वह फ़रमाता है वह एक पीली गाय है जिसकी रंगत डहडहाती, देखने वालों को ख़ुशी देती

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑦ⓞ_*
 बोले अपने रब से दुआ कीजिये कि हमारे लिये साफ़ बयान करदे वह गाय कैसी है? बेशक गायों में हमको शुबह पड़ गया और अल्लाह चाहे तो हम राह पा जाएंगे

*तफ़सीर*
     हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, अगर वो इन्शाअल्लाह न कहते, हरग़िज़ वह गाय न पाते. हर नेक काम में इन्शाअल्लाह कहना बरकत का कारण है.
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*मुर्दो की चीखो पुकार बेकार है*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     सिर्फ और सिर्फ दुन्या के धन की फिरावनी की धुन में मगन रहने वालो, हुसुले माल की खातिर दुन्या के मुख़्तलिफ़ ममालिक में भटकते फिरने वालो मगर मस्जिद की हाजिर से कतराने वालो, अपने मकानात के डेकोरेशन पर पानी की तरह पैसा बहाने वालो मगर राहे खुदा में खर्च करने से जी चुराने वालो, दौलत में इजाफे के लिये मुख़्तलिफ़ गुर अपनाने वालो मगर नेकियों में ब-र-कत के मुआ-मले में बे नियाज रहने वालो को ख्वाबे गफलत से बेदार हो कर झटपट तौबा कर लेनी चाहिये कही ऐसा न हो की मौत अचानक आ कर रोशनियों से जग-मगाते कमरे में फोम के आराम गद्दे से मुज्य्यन् खूब सूरत पलंग से उठा कर कीड़े मकोड़े से उभरती हुई खौफनाक अँधेरी कब्र में सुला दे और वोही चिल्लाते रह जाए की या अल्लाह ! मुजे दुबारा दुन्या में भेज दे ताकि वहा जा कर में तेरी इबादत करू । मौला ! दोबारा दुन्या में पहुंचा दे मै वा'दा करता हूं अपना सारा माल तेरी राह में लूटा दूंगा..... पांचों नमाजे अदा करूँगा, तहज्जुद भी कभी नहीं छोड़ूंगा बल्कि मस्जिद ही में पड़ा रहूँगा.... दाढ़ी तो दाढ़ी जुल्फ़े भी बढ़ा लूंगा.... सर पर हर वक़्त इमामा शरीफ का ताज सजाए रहूँगा.... या अल्लाह ! मुझे वापस भेज दे...एक बार फिर मोहलत दे दे दुन्या से फैशन का खातिमा कर के हर तरफ सुन्नतो का परचम लहरा दूंगा... परवर दिगार ! सिर्फ और सिर्फ एक बार मोहलत अता फरमा दे ताकि मै खूब नेकियों कर लू....
     रात दिन गुनाहो में मशगूल रहने वाले गफलत शिआरो की मौत के बा'द चीखो पुकार यक़ीनन ला हासिल रहेगी । क़ुरआने पाक पहले ही से मु-तनब्बेह कर चूका है चुनान्चे पारह 28 सू-रतुल मुनाफिकिन की आयत 10 और 11 में इर्शाद होता है:
*और हमारे दिये में से कुछ हमारी राह में खर्च करो कब्ल इस के की तुम में किसी को मौत आए फिर कहने लगे, ऐ मेरे रब ! तूने मुझे थोड़ी मुद्दत तक क्यूं मोहलत न दी की में स-दका और नेको में होता, और हरगिज अल्लाह किसी जान को मोहलत न देगा जब उस का वा'दा आ जाए और अल्लाब को तुम्हारे कामो की खबर है ।*

*✍🏽गफलत, 5*
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खादिमे दिने नबीﷺ *ज़ैद वहोरा*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا جبَّارُ*
जो कोई मुसलसल विर्द रखेगा अपनी गीबत से ان شاء الله बचा रहेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 247*
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Wednesday 26 October 2016

*सिरते मुस्तफा*
*_दसवा बाबा_* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_मुनाफ़िक़ीन की शरारत_* #01
     गज़्वाए मुरैसीअ में माले गनीमत के लालच में बहुत से मुनाफ़िक़ीन भी शरीक हो गए थे। एक दिन पानी लेने पर एक मुहाजिर और एक अंसारी में कुछ तकरार हो गई मुहाजिर ने बुलंद आवाज़ से "ऐ मुहाजिरों फरियाद है" और अन्सार ने " ऐ अन्सारियो फरियाद है" का नारा मारा, ये नारा सुनते ही अंसारीर व मुहाजिरिन दौड़ पड़े और इस क़दर बात बढ़ गई की आपस में जंग की नौबत आ गई।
     राईसुल मुनाफ़िक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबय्य को शरारत का एक मौक़ा मिल गया उस ने इश्तिआल दिलाने के लिये अन्सारियो से कहा की "लो ! ये तो वही मिष्ल हुई की तुम अपने कुत्ते को फरबा करो ताकि वो तुम्ही को खा डाले"। तुम अन्सारियो ही ने इन मुहाजिरिन का हौसला बढ़ा दिया है लिहाज़ा अब इन मुहजीरिन की माली इम्दाद व मदद बिलकुल बंद कर दो ये लोग ज़लिलो ख्वार है और हम अन्सार इज़्ज़त दार है अगर हम मदीना पहुचे तो यक़ीनन हम इन ज़लील लोगो को मदीने से निकाल बाहर कर देंगे।
     हुज़ूरﷺ ने जब इस हंगामे का शोर सुना तो अंसारीर व मुहाजिरिन से फ़रमाया की क्या तुम लोग ज़मानए जाहिलिय्यत की नाराबाज़ी कर रहे हो ? जमाले नुबुव्वत देखते ही अन्सार व मुहाजिरिन बर्फ की तरह ठन्डे पड़ गए और रहमते आलमﷺ के चन्द फ़िक़रो ने महब्बत का ऐसा दरिया बहा दिया की फिर अन्सार व मुहाजिरिन शिरो शकर की तरह घुल मिल गए।

     जब अब्दुल्लाह बिन उबय्य की बेहूदा बात हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه के कान में पड़ी तो वो तैश में आ गए....
बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 307*
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*मुसाफिर की नमाज़* #03
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_मुसाफिर बनने के लिये शर्त_*

सफर के लिये ये भी ज़रूरी है कि जहा से चला वहा से 92 k.m. का इरादा हो
और अगर 92 k.m के कम के इरादे से निकला वहा पहुच कर दूसरी जगह का इरादा हुवा की वो भी 92 k.m से कम का रास्ता है यु ही सारी दुन्या घूम कर आए तो वो मुसाफिर नही।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 2/209*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 225*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #60
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥⑦_*
और जब मूसा ने अपनी कौम से फ़रमाया खुदा तुम्हें हुक्म देता है कि एक गाय ज़िब्ह करो(7)
बोले की आप हमें मसख़रा बनाते हैं (8)
फ़रमाया ख़ुदा की पनाह कि मैं जाहिलों से हूं(9)

*तफ़सीर*
     (7) बनी इस्राईल में आमील नाम का एक मालदार था. उसके चचाज़ाद भाई ने विरासत के लालच में उसको क़त्ल करके दूसरी बस्ती के दर्वाजे़ पर डाल दिया और ख़ुद सुबह को उसके ख़ून का दावेदार बना. वहां के लोगों ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से विनती की कि आप दुआ फ़रमाएं कि अल्लाह तआला सारी हक़ीक़त खोल दे. इस पर हुक्म हुआ कि एक गाय ज़िब्ह करके उसका कोई हिस्सा मक़तूल (मृतक) को मारें, वह ज़िन्दा होकर क़ातिल का पता देगा.
     (8) क्योंकि मक़तूल (मृतक) का हाल मालूम होने और गाय के ज़िब्ह में कोई मुनासिबत (तअल्लुक़) मालूम नहीं होती.
      (9) ऐसा जवाब जो सवाल से सम्बन्ध न रखे जाहिलो का काम है. या ये मानी हैं कि मुहाकिमे (न्याय) के मौक़े पर मज़ाक उड़ाना या हंसी करना जाहिलों का काम है. और नबियों की शान उससे ऊपर है.
     बनी इस्राईल ने समझ लिया कि गाय का ज़िब्ह करना अनिवार्य है तो उन्होंने अपने नबी से उसकी विशेषताएं और निशानियाँ पूछीं. हदीस शरीफ़ में है कि अगर बनी इस्राईल यह बहस न निकालते तो जो गाय ज़िब्ह कर देते, काफ़ी हो जाती.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #10
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا عَزِيْزُ*
हाकिम या अफसर वगैरा के पास जाने से क़ब्ल 41 बार पढ़ लीजिये ان شاء الله वो हाकिम या अफसर महेरबान हो जाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 247*
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Tuesday 25 October 2016

*सोने की ईंट*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     मन्कुल है : एक नेक शख्स को कहि से सोने की ईंट हाथ लग गई। वह दौलत की महब्बत में मस्त हो कर रात भर तरह तरह के मनसूबे बंधता रहा की अब तो में बहुत अच्छे अच्छे खाने खाऊंगा, बेहतरीन लिबास सिलवाऊंगा और बहुत सारे खुद्दाम अपनाउंगा । अल गरज मालदार बन जाने के सबब वोह राहतो और आसाइसो के तसव्वुरात में गुम हो कर उस रात रब्बे अकबर से यक्सर ग़ाफ़िल हो गया । सुब्ह इसी धन की धुन में मगन मकान से निकला, इत्तफाकन कब्रिस्तान के करीब से उसका गुजर हुवा, क्या देखता हे की एक शख्स ईंटे बनाने के लिये एक कब्र पर मिटटी गूंध रहा है, येह मन्ज़र देख कर यकदम् उस की आँखों से गफलत का पर्दा हट गया और इस तसव्वुर से उस की आँखों से आंसू जारी हो गए की शायद मरने के बा 'द मेरी कब्र की मिटटी से भी लोग ईंटे बनाएंगे, आह ! मेरी आलीशान मकानात और उम्दा मल्बूसात वगैरा धरे के धरे रह जाएंगे लिहाजा सोने की ईंट से दिल लगाना तो जिंन्दगी को सरासर गफलत में गवाना है, हां अगर दिल लगाना ही हे तो मुझे अपने प्यारे प्यारे अल्लाह से लगाना चाहिये । चुनान्चे उस ने सोने की ईंट तर्क की जोहदो क़नाअत इख्तियार की ।

*_गफलत के अस्बाब_*
     वाकेइ दुनिया की कसरत की सूरत में मिलने वाली ने'मत में सरासर गफलत का अंदेशा है, जो दुन्यवी ने'मत से दिल लगाता है वोह गफलत का शिकार हो कर रह जाता है, गफलत फिर गफलत है, गफलत बन्दे को रब्बुल इज्जत से दूर कर देती है ।
     अच्छी तिजारत भी ने'मत है, दौलत भी ने'मत है, आलिशान मकान भी ने'मत है, उम्दा सुवारी भी ने'मत है, माँ बाप के लिये औलाद भी ने'मत है किसी भी दुन्यवी ने'मत में जरुरत से जियादा मशगुलियात बाइसे गफलत है ।
     चुंनांचे पारह 28 सू-रतुल मुनाफिकुन की आयात 9 में इर्शाद होता है:
*ऐ ईमान वालो ! तुम्हारे माल न तुम्हारी औलाद कोई चीज तुम्हे अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल न करे और जो ऐसा करे तो वोही लोग नुकशान में है ।*
     इस आयते मुक़द्दसा के उन लोगो को दर्से इब्रत हासिल करना चाहिये की जिनको नेकी की दा'वत पेस की जाती है और नमाज के लिये बुलया जाता है तो कह दिया करते है : "जनाब ! हम तो अपने रिज्क् की फिक्र में लगे रहते है, रोजी कमाना और बाल बच्चों की खिदमत करना भी तो इबादत है हमें इस से फुरसत मिलेगी तो आप के साथ मस्जिद में भी चलेंगे ।" यक़ीनन ऐसी बाते गफलत ही करवाती है ।
*✍🏽गफलत, 2*
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खदिमे दिने नबीﷺ *ज़ैद वहोरा*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_गज़्वाए मुरैसीअ_*
     इसका दूसरा नाम " गज़्वाए बनी अल मुस्तलिक" भी है "मुरैसीअ" एक मक़ाम का नाम है जो मदीने से 8 मंज़िल दूर है।  
     क़बिलए खज़ाआ का एक खानदान " बनू अल मुस्तलिक" यहाँ आबाद था और इस क़बीले का सरदार हारिष बिन ज़रार था इसने भी मदीने पर फ़ौज़ कशी के लिये लश्कर जमा किया था, जब ये खबर मदीने पहुची तो 2 शाबान सी.5 ही. को हुज़ूरﷺ मदीने पर हज़रते ज़ैद बिन हारिषाرضي الله تعالي عنه को अपना खलीफा बना कर लश्कर के साथ रवाना हुए। इस गज़्वे में हज़रते बीबी आइशा और हज़रते बीबी उम्मे सलमहرضي الله تعالي عنها भी आपﷺ के साथ थी।
     जब हारिष बिन ज़रार को आपﷺ की तशरीफ़ आवरी की खबर हो गई तो उस पर ऐसी दहशत सुवार हो गई की वो और उस की फ़ौज़ भाग कर मुन्तशिर हो गई मगर खुद मुरैसीअ के बाशिन्दों ने लश्करे इस्लाम का सामना किया और जम कर मुसलमानो पर तीर बरसाने लगे लेकिन जब मुसलमानो ने एक साथ मिल कर हमला कर दिया तो 10 कुफ़्फ़ार मर गए और एक मुसलमान भी शहीद हो गया, बाक़ी सब कुफ़्फ़ार गिरफ्तार हो गए जिन की तादाद 700 से ज़ाइद थी, 2000 ऊंट और 5000 बक़रीया माले गनीमत में सहाबए किराम के हाथ आई।
     गज़्वाए मुरैसीअ जंग के ऐतिबार से तो कोई ख़ास अहमिय्यत नही रखता मगर इस जंग में बाज़ ऐसे अहम वाक़ीआत दरपेश हो गए की ये गज़्वा तारीखे नबवी का एक बहुत ही अहम और शानदार उन्वान बन गया है,

     इन मश्हूर वाक़ीआत में से चाँद वाक़ीआत इन्शा अल्लाह अगली पोस्ट में देखेंगे...
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 307*
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*मुसाफिर की नमाज़* #02
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*शरई सफर की मसाफत*_
शरअन मुसाफिर वो शख्स है जो साठे 57 मिल (तकरीबन 92 किलो मीटर) के फासिल तक जाने के इरादे से अपने मक़ामे इक़ामत मसलन शहर या गाउ से बाहर हो गया।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 8/270*

*_मुसाफिर कब होगा_*
महज़ निययते सफर से मुसाफिर न होगा बल्कि मुसाफिर का हुक्म उस वक़्त है कि बस्ती की आबादी से बाहर हो जाए शहर में है तो शहर से, गाउ है तो गाउ से, और शहर वालो के लिये ये भी ज़रूरी है की शहर के आस पास जो आबादी शहर से मुत्तसिल है उससे भी बाहर आ जाए।
*✍🏽दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार 2/599*

*_आबादी खत्म होने का मतलब_*
आबादी से बाहर होने से मुराद ये है कि जिधर जा रहा है उस तरफ आबादी खत्म हो जाए अगर्चे उसकी बराबर दूसरी तरफ खत्म न हुई हो
*✍🏽गुन्यातल मुस्तमली 536*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 224*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #59
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥⑤_*
और बेशक ज़रूर तुम्हें मालूम है तुम में के वो जिन्होंने हफ्ते (शनिवार) में सरकशी की तो हमने उनसे फ़रमाया कि हो जाओ बन्दर धुत्कारे हुए

*तफ़सीर*
     इला शहर में बनी इस्राईल आबाद थे उन्हें हुक्म था कि शनिवार का दिन इबादत के लिये ख़ास कर दें, उस रोज़ शिकार न करें, और सांसारिक कारोबार बन्द रखें. उनके एक समूह ने यह चाल की कि शुक्रवार को दरिया के किनारे बहुत से गढ़े खोदते और सनीचर की सुबह को दरिया से इन गढ़ो तक नालियां बनाते जिनके ज़रिये पानी के साथ मछलियां आकर गढ़ों में कै़द हो जातीं. इतवार को उन्हें निकालते और कहते कि हम मछली को पानी से सनीचर के दिन नहीं निकालतें.
     चालीस या सत्तर साल तक यह करते रहे. जब हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की नबुव्वत का एहद आया तो आपने उन्हें मना किया और फ़रमाया कि क़ैद करना ही शिकार है, जो सनीचर को करते हो, इससे हाथ रोको वरना अज़ाब में गिरफ़्तार किये जाओगे.  वह बाज़ न आए. आपने दुआ फ़रमाई. अल्लाह तआला ने उन्हें बन्दरों की शक्ल में कर दिया, उनकी अक्ल और दूसरी इन्द्रियाँ (हवास) तो बाक़ी रहे, केवल बोलने की क़ुव्वत छीन ली गई. शरीर से बदबू निकलने लगी. अपने इस हाल पर रोते रोते तीन दिन में सब हलाक हो गए. उनकी नस्ल बाक़ी न रही. ये सत्तर हज़ार के क़रीब थे.
     बनी इ्स्रईल का दूसरा समूह जो बारह हज़ार के क़रीब था, उन्हें ऐसा करने से मना करता रहा. जब ये न माने तो उन्होंने अपने और उनके मुहल्लों के बीच एक दीवार बनाकर अलाहिदगी कर ली. इन सबने निजात पाई.
     बनी इस्राईल का तीसरा समूह ख़ामोश रहा, उसके बारे में हज़रत इब्ने अब्बास के सामने अकरमह ने कहा कि वो माफ़ कर दिये गए क्योंकि अच्छे काम का हुक्म देना फ़र्जे किफ़ाया है, कुछ ने कर लिया तो जैसे कुल ने कर लिया. उनकी ख़ामोशी की वजह यह थी कि ये उनके नसीहत मानने की तरफ़ से निराश थे. अकरमह की यह तक़रीर हज़रत इब्ने अब्बास को बहुत पसन्द आई और आप ख़ुशी से उठकर उनसे गले मिले और उनका माथा चूमा.
*✍🏽फ़त्हुल अज़ीज़*
     इससे मालूम हुआ कि ख़ुशी में गले मिलना रसूलुल्लाह के साथियों का तरीक़ा है. इसके लिये सफ़र से आना और जुदाई के बाद मिलना शर्त नहीं.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥⑥_*
तो हमने (उस बस्ती का) ये वाक़िया (घटना) उसके आगे और पीछे वालों के लिये इबरत कर दिया और परहेज़गारों के लिये नसीहत
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مُهَيْمِنُ*
29 बार रोज़ाना पढ़ने वाला ان شاء الله हर आफत व बला से महफूज़ रहेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 247*
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Monday 24 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #51
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​शहादत के बाद में वाक़ीआत​_* #04
     इसके बाद मुख्तार ने इब्ने साद और उस के बेटे और शिमर नापाक की गर्दन मारने का हुक्म दिया और इन सब के सर कटवा कर हज़रते मुहम्मद बिन हनफिया दरबारे हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के पास भेज दिये और शिमर की लाश को घोड़े के सूमो से रौंदवा दिया जिस से उसके सीने और पसली की हड्डिया चकना चूर हो गई।
     शिमर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के क़ातिलों में से है और इब्ने साद उस लश्कर का क़ाफ़िला सालार व कमान दार था जिसने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर मज़ालिम के तूफ़ान तोड़े। आज इन जालिमो के सर तन से जुदा कर के दश्त ब दश्त फिराए जा रहे है और दुन्या में कोई इन की बे कसी पर अफ़सोस करने वाला नही। हर शख्स मलामत करता है और नज़रे हक़ारत से देखता है और इन की इस ज़िल्लत व रुसवाई की मौत पर खुश होता है।
     मुसलमानो ने मुख्तार के इस कारनामे पर इज़हारे फरह किया और इस को दुश्मनाने इमाम से बदला लेने पर मुबारक बाद दी।
     इसके बाद मुख्तार ने एक हुक्मे आम दिया की कर्बला में जो जो शख्स अम्र बिन साद का शरीक था वो जहां पाया जाए मार डाला जाए। ये हुक्म सुन कर कूफा के जफ़ा शिआर सुरमा बसरा भागना शुरू हुए। मुख्तार के लश्कर ने उन का तआक़ुब किया जिस को जहां पाया खत्म कर दिया, लाशो जला डाली, घर लूट लिये।
     खोली बिन यज़ीद वो खबिश् है जिस ने हज़रते इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه का सरे मुबारक तने अक़दस से जुदा किया था, ये रु सियाह भी गिरफ्तार करके मुख्तार के पास लाया गया। मुख्तार ने पहले उस के हाथ पैर कटवाए फिर सूली चढ़ाया, आखिर आग में झोक दिया। इस तरह लश्करे इब्ने साद के तमाम अशरार् को तरह तरह के अज़ाबो के साथ हलाक किया। छे हज़ार कुफि जो हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के क़त्ल में शरीक थे उन को मुख्तार ने तरह तरह के अज़ाबो के साथ हलाक कर दिया।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 180*

*मुकम्मल...*
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*मुसाफिर की नमाज़* #01
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

अल्लाह तआला सुरतुन्निसाअ की आयत 101 में इरशाद फ़रमाता है :
*और जब तुम ज़मीन में सफर करो तो तुम पर गुनाह नही कि बाज़ नमाज़े कसर से पढ़ो। अगर तुम्हे अंदेशा हो कि काफ़िर तुम्हे इज़ा देंगे, बेशक कुफ्फार तुम्हारे खुले दुश्मन है*

हज़रत मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा फरमाते है :
खौफे कुफ्फार कसर के लिये शर्ट नही, हज़रत याला बिन उमय्या ने हज़रत उमर رضي الله تعالي عنه से अर्ज़ की, कि हमतो अमन में है, फिर हम क्यू क़सर करते है ? फ़रमाया : इसका मुझे भी तअज्जुब हुवा था तो मेने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया। हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : तुम्हारे लिए ये अल्लाह की तरफसे सदक़ा है तुम उसका सदक़ा क़बूल करो।
*✍🏽सहीह मुस्लिम 1/231*

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत है, अल्लाह के रसूल ﷺ ने सफर की दो रकअते मुक़र्रर फ़रमाई और ये पूरी है कम नही यानी अगर्चे बी ज़ाहिर दो रकअत कम हो गई मगर षवाब में चार के बराबर है।
*✍🏽सुनन इब्ने माजह 2/59*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 222*
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*सवानहे कर्बला​* #50
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​शहादत के बाद में वाक़ीआत​_* #03
     अहले मक्का को उनके सर से नजात मिली। अहले हिजाज़, यमन व इराक़ व खुरासान ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه के दस्ते मुबारक पर बैअत की और अहले मिस्र व शाम ने मुआविया बिन यज़ीद के हाथ पर बैअत की। ये मुआविया अगर्चे यज़ीद पलीद की अव्लाद थी मगर आदमी नेक और सालेह था, बाप के नापाक अफआल को बुरा जनता था।
     इनान हुक़ूमत हाथ में लेते वक़्त ता दमे मर्ग बीमार ही रहा और किसी काम की तरफ नज़र न डाली और चालीस दिन या दो तिन माह की हुकूमत के बाद 21 साल की उम्र में मर गया। आखिर वक़्त में उस से कहा गया की किसी को खिलाफा करे। उसका जवाब उस ने ये दिया की में ने खिलाफत में कोई हलावत नही पाई तो में इस तल्खी में किसी दूसरे को क्यू मुब्तला करू।
      मुआविया बिन यज़ीद के इन्तिकाल के बाद अहले मिस्र व शाम ने अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه की बैअत की फिर मरवान बिन हुकम ने खुरुज किया और उस को शाम व मिस्र पर क़ब्ज़ा हासिल हुवा। सी .65 ही. में उस का इन्तिकाल हुवा और उसकी जगह उसका बेटा अब्दुल मलिक इसका क़ाइम मक़ाम हुवा। अब्दुल मलिक के अहद में मुख्तार बिन उबैद शक़्फि ने अम्र बिन साद को बुलाया, इब्ने साद का बेटा हफ़्स हाज़िर हुवा। मुख्तार ने दरयाफ़्त किया : तेरा बाप कहा है ? कहा की वो खलवत नशीन हो गया है, घर से बाहर नही निकलता। इस पर मुख्तार ने कहा की अब वो रे की हुक़ूमत कहा है ? जिसकी चाहत में फरज़न्दे रसूल से बे वफाई की थी, अब क्यू इससे दस्त बरदार हो कर घर में बेठा है।
     इसके बाद मुख्तार ने इब्ने साद और उस के बेटे और शिमर नापाक की गर्दन मारने का हुक्म दिया

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 179*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مُؤْمِنُ*
जो 115 बार पढ़ कर अपने ऊपर दम करेगा, أن شاء الله तंदुरस्ती पाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 247*
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Sunday 23 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #49
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहादत के बाद में वाक़ीआत_*​​​ #02
*_यज़ीद का अंजाम_*
     वाकिया ए कर्बला के कुछ ही दिनों बाद यज़ीद एक हलाकत ख़ेज़ और इन्तिहाई मुजी मरज़ में मुब्तला हुवा, पेट के दर्द और आतो के ज़ख्मो की तकलीफ से जिस तरह मछली पानी के बगैर तड़पती है उस तरह तड़पता रहता था, हिम्स में जब उसे अपनी मोत का यक़ीन हो गया तो अपने बड़े लड़के मुआविय्या को बिस्तरे मर्ग पर बुलाया और उमुरे सल्तनत के बारे में कुछ कहना ही चाहता था की बे साख्ता बेटे के मुह से चीख निकली और निहायत ज़िल्लतो हक़ारत के साथ ये कहते हुवे बाप की पेशकश को ठुकरा दिया की जिस ताजो तख्त पर आले रसूल के खून के धब्बे है, में उसे हरगिज़ क़बूल नही कर सकता, खुदा इस मनहूस सल्तनत की विरासत से मुझे महरूम रखे, जिस की बुनयादी नवासए रसूल के खून पर रखी गई है।
     यज़ीद अपने बेटे के मुह से ये अलफ़ाज़ सुन कर तड़प गया और शिद्दते रंजो अलम से बिस्तर पर पाउ पटखने लगा, मौत के कुछ दीन पहले यज़ीद की आंते सड गई और उस में कीड़े पड़ गए, तकलीफ की शिद्दत से खिन्ज़िर की तरह चीखता था, पानी का क़तरा हलक के निचे उतरने के बाद निश्तर की तरह चुभने लगता था, अज़ीब क़हरे इलाही की मार थी, पानी के बगैर भी तड़पता था और पानी पा कर भी चीखता था, बिल आखिर इसी दर्द की शिद्दत से तड़प तड़प कर उसकी जान निकली, लाश में ऐसी हौलनाक बदबू थी की क़रीब जाना मुश्किल था, जेसे तैसे उसको ख़ाक के सुपुर्द किया गया।
*✍🏽तारीखे कर्बला, 345*

*_यज़ीद की क़ब्र का हाल_*
     दमिश्क के पुराने क़ब्रस्तान बाबुस्सगिर के कुछ आगे यज़ीद की क़ब्र का निशान था, जिस पर आज से की सालो पहले लोग ईटे पथ्थर मारते थे और अक्सर इटो का ढेर लगा रहता था, वहा अब शीशा और लोहा गलाने की भट्टी लगी हुई है, उस कारखाने में शीशे के बर्तन बनाए जाते है, उस लोहे और काच को गलाने की आग वाली भट्टी ठीक उसी जगह है जहा यज़ीद की क़ब्र थी। गोया यज़ीद की क़ब्र पर हर वक़्त आग जलती रहती है।
*✍🏽शहादते नवासए सय्यिदुल अबरार, 918*
*✍🏽यज़ीद का दर्दनाक अंजाम, 113*
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Saturday 22 October 2016

*अज़ान के फ़ज़ाइल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अज़ान जन्नत में ले जाने वाला अमल है और जन्नत की कुंजियों मेसे एक कुंजी है। अज़ान के फ़ज़ाइल में बहुत ज़्यादा हादिशे है, जिनमे चन्द ये है :
     हज़रते इब्ने अब्बासرضي الله تعالي عنه से रिवायत है के हुज़ूरﷺ फ़रमाया : जो सात साल षवाब तलब करने की निय्यत से अज़ान पढ़े उसके लिये जहन्नम नजात का परवाना लिख दिया जाता है।
     हज़रत अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है, हम नबीﷺ के साथ थे के हज़रते बिलालرضي الله تعالي عنه ने खड़े हो कर अज़ान पढ़ने लगे। फिर जब वो खामोश हो गए तो नबीﷺ फ़रमाया के जो शख्स यक़ीन रखते हुए अज़ान के मिस्ल कहेगा, वो जन्नत में दाखिल होगा।
     हज़रते आमिर मुआवियाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया के मोअज़्ज़िनो की गर्दन क़यामत के दिन तमाम लोगो से ज़्यादा लंबी होगी।
     हज़रत जाबिरرضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जो सख्स अज़ान सुन कर *अज़ान के बाद की दुआ* पढ़े तो उसके लिये क़यामत के दिन मेरी शफ़ाअत हलाल हो गई।
*✍🏽मिश्कात शरीफ*

*_अज़ान के दुन्यवि फायदे_*
     अज़ान की आवाज़ से शैतान दूर भाग जाता है जहा अज़ान की आवाज़ न पहुचे।
     आग लगे तो अज़ान पढ़ने से आग का ज़ोर कम हो जाता है और आग बजने लगती है।
     अज़ान पढ़ने से सख्त आंधी का तूफ़ान जल्द खत्म हो जाता है।
     बारिश अगर नुक़सान करने वाली होने लगे या सैलाब से तबाही का अन्देशा हो तो अज़ान पढ़ने से नुक़सान और तबाही का खतरा टल जाता है।
     जिस घर या बस्ती में पथ्थर गिरने लगे तो अज़ान पढ़ने से पथ्थर गिरना बंद हो जाते है।
     जिस घर में जिन्नात, शैतान या जादू वगैर का अमले दाखल हो, तो मगरिब के बाद उस घर में चन्द दिन अज़ान पढ़ने से शैतान और जादू दफा हो जाते है।
     प्लेग जेसी खतरनाक बिमारी फेल गई हो तो बस्ती में गलियो के अंदर बहुत से लोग अज़ान पढ़े, खुसुशन रात में अज़ान पढ़े तो वबाओ को ज़ोर कम हो जाता है।
     मैयत को दफ़्न करने के बाद क़ब्र के पास अज़ान पढ़ने से मुर्दे को मुन्कर-नकीर के सवालो के जवाब देने में आसानी होती है, और मुर्दे का डर और घबराहट दूर हो जाती है।
     पागल के कान में अज़ान पढ़ने से पागलपन में कमी हो जाती है।
     जंगल या मैदान में रास्ता भूल जाए तो अज़ान पढ़ने से गैबी मदद का जूहुर होता है।
     कुफ़्फ़ार से जंग के वक़्त अज़ान पढ़ने से कुफ़्फ़ार खौफ ज़दा होते है और मुसलमानो में इस्लामी जोश पैदा होता है।
*✍🏽शामी, जिल्द अव्वल*
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*सवानहे कर्बला​* #48
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​शहादत के बाद के वाक़ीआत​_* #01
     हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه का वुजुदे मुबारक यज़ीद की बे क़ैदियों के लिये एक ज़बरदस्त मोहता्सिब था, वो जानता था के आप के ज़मानए मुबारक में इसको बे मोहारी का मौक़ा मुयस्सर न आएगा और उस की किसी गुमराही पर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه सब्र न फर्माएगे, उसको नज़र आता था की इमाम जेसे दीनदार की ताजिर हर वक़्त उसके सर पर घूम रहा है इसी वजह से वो और भी ज़्यादा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की जान का दुश्मन था और इसी लिये हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की शहादत उसके लिये बाईशे मसर्रत हुई।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه का साया उठना था, यज़ीद खुल खिला और अन्वअ व एक्साम के मअसि की गर्म बाज़ारी हो गई। ज़िना, हरामकारी, भाई-बहन की शादी, सूद, शराब, नमाज़ों की पाबन्दी उठ गई, सरकशी इन्तिहा को पहुची, शैतान ने यहाँ तक ज़ोर किया की मुस्लिम इब्ने उक़बा को 12 या 20 हज़ार का लश्कर ले कर मदीना की चढ़ाई के लिये भेज।
     ये सी. 63 ही. का वाक़या है। इस नामुराद लश्कर ने मदीना में वो तूफ़ान बरपा किया की क़त्ल, गारत और तरह तरह के मज़ामिल हमसाएगाने रसूलुल्लाह पर किए। वहा के साकिनिन के घर लूट लिये, 700 सहाब को शहीद कर दिया और दूसरे आम बाशिंदे मिला कर 10 हज़ार से ज़्यादा को शहीद किया, लड़को को क़ैद कर लिया, ऐसी ऐसी बदतमीज़िया की जिन का ज़िक्र करना ना गवारा है। मस्जिदे नबवी के सुतुनो में घोड़े बांधे, तिन दिन तक मस्जिद में लोग नमाज़ से मुशर्रफ न हो सके। सिर्फ सईद इब्ने मुसय्याब मजनून बन कर वहा हाज़िर रहे। हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने इन्ज़ला इब्ने गसिल ने फ़रमाया की यज़ीदियो के नाशाइस्ता हरकत इस हद पर पहुच है के हमे अन्देशा होने लगा की इसने की बदकारियो की वजह से कहि आसमान से पथ्थर न बरसे।
     फिर ये लश्कर शरारत अशर मक्का की तरफ रवाना हुवा, रास्ते में अमीरे लश्कर मर गया और दूसरा शख्स उसका क़ाइम मक़ाम किया गया। मक्का पहुच कर इन बे दिनों ने मिनजनिक से संग बारी की (मिनजनिक पथ्थर फेकने का आला होता है जिस से पथ्थर फेक कर मारा जाता है उसकी ज़द बड़ी ज़बरदस्त और दूर की मार होती है) इस संग बारी से हरम शरीफ का सहन मुबारक पतथरो से भर गया और मस्जिदे हराम के सुतून टूट पड़े और काबए मुक़द्दस के गिलाफ शरीफ और छत को इन बे दिनों ने जला दिया। इसी छत में उस दुम्बे के सिंग भी तबर्रुक के तौर पर महफूज़ थे जो हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम के फिदये में कुर्बानी किया गया था वो भी जल गए, काबए मुक़द्दसा कई रोज़ तक बे लिबास रहा और वहा के बाशिंदे सख्त मुसीबत में मुब्तला रहे।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 178*
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*सवानहे कर्बला​* #47
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #08
     इब्ने असाकिरرضي الله تعالي عنه ने मिन्हाल बिन अम्र से रिवायत की वो कहते है : वल्लाह ! में ने ब चश्मे खुद देखा की जब सरे मुबारके इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه को लोग नेज़े पर लिये जाते थे उस वक़्त में दमिश्क़ में था, सर मुबारक के सामने एक शख्स सूरए कहफ़ पढ़ रहा था जब वो इस आयत पर पहुचा *असहाबे कहफ़ व रक़ीम हमारी निशानियों में से अजब थे*
     उस वक़्त अल्लाह ने सरे मुबारक को गोयाई दी, बज़बाने फसीह फ़रमाया : *असहाबे कहफ़ के वाक़ीए से मेरा क़त्ल और मेरे सर को लिये फिरना अजीब तर है*
     और दर हक़ीक़त बात यही है क्यू की असहाबे कहफ़ पर काफिरो ने ज़ुल्म किया था और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को इन के जद की उम्मत ने मेहमान बना कर बुलाया, फिर बे वफाई से पानी तक बंद कर दिया, आल व असहाब को हज़रते इमाम के सामने शहीद किया, फिर खुद हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को शहीद किया, अहले बैत को असीर किया, सर मुबारक शहर शहर फिराया। असहाबे कहफ़ साल्हा साल की तवील ख्वाब के बाद बोले, ये ज़रूर अजीब है मगर सरे मुबारक का तन से जुदा होने के बाद कलाम फरमाना इससे अजीब तर है।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की शहादत के बाद जब बद नसीब कुफि सरे मुबारक को ले कर चले और एक मंज़िल में इस काफिले ने क़याम किया वह एक दैर था। दैर के राहिब ने उन लोगो को 80000 दिरहम दे कर सरे मुबारक को एक शब् अपने पास रखा। गुस्ल दिया इत्र लगाया, अदब व ताज़ीम के साथ तमाम शब् ज़ियारत करता और रोता रहा और रहमते इलाही के जो अनवार सरे मुबारक पर नाज़िल हो रहे थे उन का मुशाहीदा करता रहा हत्ता की ये उस के इस्लाम का बाईष हुवा। अश्किया ने जब दिरहम तक़सीम करने के लिये थैलियो को खोला तो देखा सब में ठीकरिया भरी हुई है और उन के एक तरफ लिखा है *और हरगिज़ अल्लाह को बे खबर न जानना जालिमो के काम से* (पारह 13) और दुआरी तरफ लिखा था *और अब जाना चाहते है ज़ालिम की किसी करवट पलटा खाएगे* (पारह, 19)
*✍🏽सवानहे कर्बला, 176*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مَلِكُ*
गरीब व नादार रोज़ाना 90 बार पढ़ा करे ان شاء الله गुर्बत से नजात पाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 246*
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Friday 21 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #46
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #07
     इस वाक़ीए से हुज़ूरﷺ को जो रंज पहुचा और कल्बे मुबारक को जो सदमा हुवा अंदाज़ा और कियास से बाहर है। इमाम अहमद व बेहक़ी ने हज़रते इब्ने अब्बासرضي الله تعالي عنه से रिवायत की, एक रोज़ में दीपहर के वक़्त हुज़ूरे अक़दसﷺ की ज़ियारत से ख्वाब में मुशर्रफ हुवा। मेने देखा की सुम्बुल मुअम्बर व गैसुए मुअत्तर बिखरे हुए और गुबार आलूदा है, दस्ते मुबारक में एक खून भरा शीशा है। ये हालत देख कर दिल बे चैन हो गया, में ने अर्ज़ किया : ऐ आक़ा ! ये क्या हाल है ? फ़रमाया हुसैन और उन के रफ़ीक़ो का खून है, में इसे आज सुब्ह से उठाता रहा हु। हज़रते अब्बअसرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाते है : मेने उस तारीख व वक़्त को याद रखा जब खबर आई तो मालुम हुवा की हज़रते इमाम उसी वक़्त शहीद किये गए।
*✍🏽इमाम अहमद बिन हम्बल, 1/606*

     हज़रते उम्मे सलमाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है, उन्हों ने भी इसी तरह हुज़ूरﷺ को ख्वाब में देखा की आप के सरे मुबारक व रिशे अक़दस पर गुर्दो गुबार है, अर्ज़ किया : या रसूलल्लाहﷺ ! ये क्या हाल है? फ़रमाया अभी इमामे हुसैन के मक़्तल में गया था।
*✍🏽बाहीक, 7/48*

     बेहक़ी व अबू नुएम ने बसरा अज़दिया से रिवायत की, की जब हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه शहीद किये गए तो आसमान से खून बरसा। सुब्ह को हमारे मटके, घड़े और तमाम बर्तन खून से भरे हुए थे।
*✍🏽बेहक़ी, 6/471*
*✍🏽सवानहे कर्बला, 172*
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*सवानहे कर्बला​* #45
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #06
     सादिक़ जाबाज़ ने अहदे वफ़ा पूरा किया और दिने हक़ पर क़ाइम रह कर अपना कुम्बा, अपनी जान राहे खुदा में इस उलुलअज़मी से नज़्र की, सुखा गला काटा गया और कर्बला की ज़मीन सय्यिदुश्शोहदा के खून से गुलज़ार बनी, सर व तन को ख़ाक में मिला कर अपने जद्दे करीम के दिन की हक़्क़ानिय्यत की अमली शहादत दी।
      मुहर्रम सी.61 ही. की 10वी तारीख के रोज़ 56 साल क माह 5 दिन की उम्र में हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने इस नापाएदार से रिहलत फ़रमाई और दाइये अजल को लबैक कहि।
     जालिमो ने इस पर बस नहीं किया और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की मुसीबतो का इसी पर खातिमा नही हो गया। दुश्मनोने आप के सरे मुबारक को तने अक़दस से जुदा करना चाहा और नज़्र इब्ने खुरशा इस नापाक इरादे से आगे बढ़ा मगर इमाम की हैबत से उसके हाथ काप गए और तलवार छूट पड़ी। खोली इब्ने यज़ीद पलीद ने या शबल इब्ने यज़ीद ने बढ़ कर आप के सरे अक़दस को तने मुबारक से जुदा किया।
     इब्ने ज़ियाद ने सरे मुबारक को कूफा के कूचे व बाज़ार में फिरवाया और इस तरह अपनी बे हम्मिययति व बे हयाई का इज़हार किया फिर हज़रते हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه और उनके तमाम जाबाज़ शुहदा के सरो को असिराने अहले बैत के साथ शिमरे नापाक की हमराही में यज़ीद पलीद के पास दिमशक भेजा। यज़ीद ने सरे मुबारक और हल बैत को हज़रते ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه के साथ मदीना भेजा और वहा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه का सर मुबारक आप की वालिदा हज़रते खातुने जन्नतرضي الله تعالي عنها या हज़रते हसनرضي الله تعالي عنه के पहलु में मदफुन हुवा।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 170*
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

दरख्त, आदमी और जानवर वगैरा का भी आड़ हो सकता है।

आदमी को इस हालत में आड़ किया जाए जब कि उसकी पीठ नमाज़ी की तरफ हो। (अगर नमाज़ पढ़ने वाले के ऍन रुख की तरफ किसी ने मुह किया तो अब कराहत नमाज़ी पर नही उस मुह करने वाले पर है, लिहाज़ा इमाम के सलाम फेरने के बाद मुड कर पीछे देखने में एहतियात ज़रूरी है कि आप के ऍन पीछे की जानिब अगर कोई नमाज़ पढ़ रहा होगा और उस की तरफ आप अपना मुह करेंगे तो गुनाहगार होंगे)

एक शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहता है और दूसरा शख्स उसी को आड़ बना कर उसके चलने की रफ़्तार के ऍन मुताबिक़ उसके साथ ही गुज़र जाए तो पहला शख्स गुनाहगार हुवा और दूसरे के लिये हि पहला शख्स आड भी बन गया।

नमाज़े बा जमाअत में अगली सफ में जगह होने के बा वुजूद किसी ने पीछे नमाज़ शुरू कर दी तो आने वाला उसकी गर्दन फलांगता हुवा जा सकता है कि उसने अपनी हुरमत अपने आप खोई।

बाक़ी कल अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 216*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا رَحِيْمُ*
जो कोई हर रोज़ 500 बार पढ़ेगा ان شاء الله दौलत पाएगा और मख्लूक़ उस पर महेरबान और शफ़ीक़ होगी।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 246*
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Thursday 20 October 2016

*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا رَحْمٰنُ*
जो कोई भी सुब्ह की नमाज़ के बाद 298 बार पढ़ेगा अल्लाह उस पर बहुत रहम करेगा, ان شاء الله

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 246*
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Wednesday 19 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #44
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #05
     इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه ने ज़मीने कर्बला में बहादुराने कूफा का खेत बो दिया, नामवराने सफ सिकन के खूनो से कर्बला के तीशना रेगिस्तान को सैराब फरमा दिया, लश्करे आदा में शोर बरपा हो गया की जंग का ये अंदाज़ रहा तो हैदर का शेर कूफा के ज़न व इतफाल को बेवा व यतीम बना कर छोड़ेगा, मौक़ा मर दो और चारो तरफ से घेर कर एकसाथ हमला करो। हज़ारो जवान दौड़ पड़े और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को घेर लिया और तलवार बरसानी शुरू की।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने जिस तरफ घोडा बढ़ा दिया पर्रे के पर्रे काट डाले। दुश्मन हैबत ज़दा हो गए और हैरत में आ गए की इमाम के हमले से रिहाई की कोई सूरत नही। हज़ारो आदमियो में घिरे हुए है और दुश्मनो का सर इस तरह उड़ा रहे है जिस तरह बादे खज़ा के झोके दरख्तो से पत्ते गिराते है।
     इब्ने साद और उस के मुशिरो को बहुत तश्विश हुई की अकेले इमाम के मुक़ाबिले हज़ारो की जमाअते हेच है। कुफियो की इज़्ज़त ख़ाक में मिल गई, तमाम नामवरो की कुफि जमाअत एक हिजाज़ी जवान के हाथ से जान न बचा सकी। तालीमे आलम में हमारी नामर्दी का ये वाकिया अहले कूफा को हमेशा रूस्वाए आलम करता रहेगा, कोई तदबीर करनी चाहिए। तजवीज़ ये हुई की चारो तरफ से इमाम पर तिर बरसाये जाए और जब खूब ज़ख़्मी हो चुके तो नेज़ो के हमलो से तन को मजरूह किया जाए।
     तीर अंदाज़ों की जमाअत ने चारो तरफ से हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को घेर लिया और तीर बरसाने शुरू कर दिये, घोडा इस क़दर ज़ख़्मी हो गया की उस में काम करने की क़ुव्वत न रही नाचार हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को एक जगह ठहरना पड़ा, हर तरफ से तीर आ रहे है और इमाम का तन निशाना बना हुआ है, नूरानी जिस्म ज़ख्मो से चकना चूर और लहू लुहान हो रहा है।
     एक तीर पेशानिए अक़दस पर लगा। ये पेशानी मुस्तफाﷺ की बोसा गाह थी। बे अदबाने कूफा ने इस पेशानिये मुस्तफाﷺ और इस जबीने पुरज़िया को तीर से घायल किया, हज़रत को चक्कर आ गए और घोड़े से निचे आए, अब नामर्दाने सियाह बातिन ने नेज़ो से वार किया, नूरानी पैकर खून में नहा गया और आप शहीद हो कर ज़मीन पर गिर पड़े। اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 170*
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रना सख्त गुनाह है*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

सरकार मदीना ﷺ ने फ़रमाया :
अगर कोई जानता कि अपने भाई के सामने नमाज़ में आड़े हो कर गुज़रने में क्या है तो 100 बरस खड़ा रहना उस एक क़दम चलने से बेहतर समझता।
*✍🏽सुनन इब्ने मजह 1/506*

हज़रते इमाम मालिक رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हज़रते काबुल अहबार का इरशाद है, नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला अगर जानता कि इस पर क्या गुनाह है तो ज़मीन में धस जाने को गुज़रने से बेहतर जानता।

नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला बेशक गुनाहगार है मगर खुद नमाज़ी की नमाज़ में इस से कोई फर्क नही पड़ता।
*✍🏽फतवा रज़विय्या 7/254*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 214*
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*सवानहे कर्बला​* #43
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*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #04
     दूसरा बढ़ा और, लशकरियो को यक़ीन था की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर भूक प्यास की तकलीफ हद से गुज़र चुकी है, सदमो ने ज़ईफ़ कर दिया है ऐसे वक़्त इमाम पर ग़ालिब आ जाना कुछ मुश्किल नही है।
     जब वो गुस्ताख सामने आया तो हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : तु मुझे जानता नही जो मेरे मुक़ाबिल इस दिलेरी से आता है, हुसैन कक बे कस व कमज़ोर देख कर होसला मन्दियो का इज़हार कर रहु हो, नामर्दो ! मेरी नज़र में तुम्हारी कोई हक़ीक़त नही।
     वो गुस्ताख ये सुन कर और तेश में आया और बजाए जवाब के हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर तलवार का वार किया, हज़रते इमाम ने उस का वार बचा कर कमर पर तलवार मारी, मालुम होता था खीरा था काट डाला।
     अहले शाम को अब ये इत्मीनान था की हज़रत के सिवा अब और तो कोई बाक़ी ही न रहा, कहा तक न थकेंगे। प्यास की हालत, धुप की तपिश मुज़्महल कर चुकी है, बहादुरी के जोहर दिखाने का वक़्त है। जहा तक हो एक एक मुक़ाबिल किया जाए, कोई तो कामयाब होगा। इस तरह नए नए बदम शिर सुलत हज़रते इमाम के मुक़ाबिल आते रहे मगर जो सामने आया एक ही हाथ में उसका किस्सा तमाम फ़रमाया।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 167*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا قُدُّوْسُ*
जो कोई दौराने सफर विर्द करता रहे ان شاء الله थकन से महफूज़ रहेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 267*
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Tuesday 18 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #42
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #03
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की ज़बान से ये कलिमात सुन कर कुफियो में से बहुत लोग रो पड़े, दिल सब के जानते थे की वो बर सरे ज़ुल्मो जफ़ा है और हिमायते बातिल के लिये उन्हों ने दारैन की रुसियाही इख़्तियार की है और ये भी सब को यक़ीन था की इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه हक़ पर है। आप की बात से बहुत से लोगो पर अशर हुवा और ज़ालिमाने बद बातिन ने भी एक लम्हे के लिये जससे अशर लिया।
     लेकिन शिमर वगैरा बद सीरत व पलीद कुछ मुतअस्सिर न हुए बल्कि ये देख कर की लशकरियो पर हज़रते इमाम की तक़रीर का कुछ अशर मालुम होता है, कहने लगे की आप किस्से कोताह कीजिये और इब्ने ज़ियाद के पास चल कर यज़ीद की बैअत कर लीजिये तो कोई आप से तारूज़ न करेगा वरना बजुज़ जंग के कोई चारा नही है।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को अंजाम मालुम था लेकिन ये तक़रीर इक़ामते हुज्जत के लिये फ़रमाई थी की उन्हें कोई उज़्र बाक़ी न रहे। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने इत्मीनान फ़रमाया की इनके लिये कोई उज़्र बाक़ी न रहा और वो किसी तरह खूने नाहक व ज़ुल्मे बे निहायत से बाज़ आने वाले नही तो इमाम ने फ़रमाया की तुम जो इरादा रखते हो पूरा करो और जिस को मेरे मुक़ाबले के लिये भेजना चाहते हो भेजो।
     मसहूर बहादुर जिन को सख्त वक़्त के लिये महफूज़ रखा गया था मैदान में भेजे गए। एक बे हया तलवार चमकाता आता है, आते ही हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की तरफ तलवार खिचता है, अभी हाथ उठा ही था की इमाम ने ज़र्ब फ़रमाई, सर कट कर दूर जा पड़ा और गुरूरे शुजाअत ख़ाक में मिल गया।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 166*
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*सवानहे कर्बला​* #41
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*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #02
     हज़रत ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया की मेरे भाई तो जां निषारि की सआदत पा चुके और हुज़ूर के सामने ही साकिये कौषर के आगोश में पहुचे, में तड़प रहा हु। मगर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने कुछ पज़िराना फ़रमाया और इमाम ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه को इन तमाम ज़िम्मेदारियों का हामिल किया और खुद जंग के लिये तैयार हुए, इमामرضي الله تعالي عنه मैदान जाने के लिये घोड़े पर सुवार हुए।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने अपने अहले बैत को तल्किने सब्र फ़रमाई। रिज़ाए इलाही पर साबिरो शाकिर रहने की हिदायत की और सब को सुपुर्दे खुदा करके मैदान की तरफ रुख किया, आप ने एक ख़ुत्बा फ़रमाया और इसमें हम्दो सलात के बाद फ़रमाया : ऐ क़ौम ! खुदा से डरो, जो सबका मालिक है, जान देना, जान लेना सब उसके कुदरत व इख़्तियार में है। अगर तुम ख़ुदावन्दे आलम पर यक़ीन रखते और मेरे हज़रते अम्बिया मुहम्मद मुस्तफाﷺ पर ईमान लाए हो तो डरो की क़यामत के दिन मीज़ाने अदल क़ाइम होगी, आमाल का हिसाब किया जाएगा, मेरे वालीदेन मेहशर में अपनी आल के बे गुनाह खुनो का मुतालबा करेगे। हुज़ूरﷺ जिन की शफ़ाअत गुनाहगारो की मग्फिरत का ज़रिया है और तमाम मुसलमान जिनकी शफ़ाअत के उम्मीद वार है वो तुम से मेरे और मेरे जानिषारो के खूने नाहक़ का बदला चाहेंगे, खबरदार हो जाओ की ऐशे दुन्या में पाएदारी व क़याम नही, अगर सल्तनत की तमअ में मेरे दरपै आज़ार हो तो मुझे मौक़ा दो की में अरब छोड़ कर दुन्या के किसी और हिस्से में चला जाऊ। अगर ये कुछ मंज़ूर न हो और अपनी हरकात से बाज़ न आओ तो हम अल्लाह के हुक्म और उसकी मर्ज़ी पर साबिर व शाकिर है।

     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की ज़बान से ये कलिमात सुन कर कुफियो में से बहुत लोग रो पड़े, बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 165*
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*सज्दए शुक्र का बयान*
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औलाद पैदा हुई या माल पाया या गुम हुई चीज़ मिल गई या मरीज़ ने शिफ़ा पाई या मुसाफिर वापस आया अल गरज़ किसी नेमत के हुसूल पर सज्दए शुक्र करना मुस्तहब है। इसका तरीक़ा वही है जो सज्दए तिलावत का है।
*✍🏽आलमगिरी 1/136*

इसी तरह जब भी कोई खुश खबरी या नेमत मिले तो सज्दए शुक्र करना कारे सवाब है, मसलन हज़ का वीज़ा लग गया, किसी सुन्नी आलिमे बा अमल की ज़ियारत हो गई, मुबारक ख्वाब नज़र आया, तालिबे इल्मे दीन इम्तिहान में कामयाब हुवा, आफत टली या कोई दुश्मने इस्लाम मरा वगैरा वगैरा।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 214*
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*सवानहे कर्बला​* #40
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत_* #01
     अब तक जां निषार एक एक करके रुख्सत हो चुके और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर जाने क़ुरबान कर गए, अब तन्हा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه है और एक फ़रज़न्द हज़रते ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه वो भी बीमार व ज़ईफ़। बा वुजूद इस ज़ोफ़् व नाताक़ति के ख़ैमे से बाहर आए और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को तन्हा देख कर मसाफ़े कारज़ार जाने और अपनी जान निषार करने के लिये नेज़ा दस्ते मुबारक में लिया लेकिन बिमारी, सफर की कोफ़्त, भूक प्यास, फाक़ो और पानी की तकलीफो से ज़ोफ़् इस दर्जे तरक़्क़ी कर गया था की खड़े होने से बदन मुबारक लरजता था बा वुजूद इसके हिम्मते मर्दाना का ये हाल था की मैदान का अज़्म कर दिया।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : लौट आओ, मैदान जाने का क़स्द न करो, में कुम्बा क़बीला, अज़ीज़ों अक़ारिब, खुद्दाम जो हमराह थे राहे हक़ में निषार कर चूका। तुम्हारी ज़ात के साथ बहुत उम्मीदे वाबस्ता है, बे कसाने अहले बैत को वतन तक कौन पहुचाएगा ? बीवियों की निगहदष्ट कौन करेगा ? क़ुरआन की मुहाफ़ज़त और हक़ की तबलीग का फ़र्ज़ किस के सर पर रखा जाएगा ? मेरी नस्ल किस्से चलेगी ? ये सब तुम्हारी ज़ात से वाबस्ता है। दुदमाने रिसालत व नबुव्वत के आखरी चराग तुम ही हो। ऐ नुरे नज़र ! लखते जिगर ! ये तमाम काम तुम्हारे ज़िम्मे किये जाते है, मेरे बाद तुम ही मेरे जानशीन होंगे, तुम्हे मैदान जाने की ज़रूरत नही है।

     हज़रते ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه ने जो अर्ज़ किया, वो अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 162*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*هُوَا اللّٰهُ الرَّ حِيْمُ*
जो हर नमाज़ के बाद 7 बार पढ़ लिया करेगा ان شاء الله शैतान के शर से बचा रहेगा और उस का ईमान पर खातिमा होगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 246*
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Monday 17 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #39
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहादत के वाक़ीआत_* #19
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के छोटे फ़रज़न्द अली असगर जो अभी कमसिन है, शिरख्वार है, प्यास से बेताब है, शिद्दते तिशनगी से तड़प रहे है, माँ का दूध खुश्क हो गया है, इस छोटे बच्चे की खुश्क नन्ही ज़बान बाहर आती है, बे चैनी में हाथ पाउ मारते है और पेच खा खा कर रह जाते है, कभी माँ की तरफ देखते है और इनको सुखी ज़बान दिखलाते है, कभी बाप की तरफ इशारा करता है वो जानता था की हर चीज़ ये ला कर दिया करते थे।
     छोटे बच्चे की बेताबी देखि न गई। वालीदाने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه से अर्ज़ किया : इस नन्ही सी जान की बेताबी देखि नही जाती। इस को गोद में ले जाइये और इसका हाल जालिमो को दिखाये। इस पर तो रहम आएगा। इस को तो चन्द क़तरे दे देंगे। ये न जंग करने के लाइक़ है न मैदान के लाइक़ है। इससे क्या अदावत हैं।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه इस छोटे नुरे नज़र को सीने से लगा कर दुश्मनो के सामने पहुचे और फ़रमाया की अपना तमाम तो तुम्हारी बे रहमी और जोरो जफ़ा के नज़र कर चूका और अब अगर आतशे बुग्ज़ो इनाद जोश पर है तो इस के लिये में हु। ये शिरख्वार बच्चा प्यास से दम तोड़ रहा है इस की बे ताबी देखो और कुछ रहम करो जसका हल्क़ तर करने को *एक घुट* पानी दो।
     उन संगदीलो पर इसका कुछ अशर न हुवा और उन को ज़रा रहम न आया। बजाए पानी के एक बद बख्त ने तीर मारा जो अली असगरرضي الله تعالي عنه का हल्क़ छेदता हुवा इमाम के बाज़ू में बैठ गया। इमामرضي الله تعالي عنه ने वो तीर खीचा, बच्चे ने तड़प के जान दी, बाप की गोद से एक नूर का पुतला लिपटा हुवा है, खून में नहा रहा है, अहले खैमा को गुमान है की सियाह दिलाने बे रहम इस बच्चे को ज़रूर पानी दे देगा लेकिन जब इमाम बच्चे को खेमे में लाए और उसकी वालिदा ने देखा की बे करारी नही है, गुमान हुवा की पानी दे दिया होगा। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : ये भी साकिए कौषर में जामे रहमत व करम से सैराब होने के लिये अपने भाइयो से जा मिला, अल्लाह ने हमारी ये छोटी कुर्बानी भी क़बूल फ़रमाई।
     रिज़ा व तस्लीम की इम्तिहान गाह में इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه और उन के मुतवस्सिलिन ने वो षाबित कदमी दिखाई की आलमें मलाइका भी हैरत में आ गये होंगे। *मुझे मालुम है जो तुम नही जानते* (पारह,1) का राज़ इन पर मुन्काशिफ् हो गया होगा।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 161*
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*सवानहे कर्बला​* #38
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहादत के वाक़ीआत_* #18
     हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه फिर मैदान की तरफ लौटे और लश्करे दुश्मन के यमीन व यसयार पर हमला करने लगे, इस मर्तबा लश्कर ने यकबारगि चारो तरफ से घेर कर आप पर हमला कर दिया। आप भी हमला फरमाते रहे और दुश्मन हलाक होते रहे, लेकिन हरो तरफ से नेज़ो के ज़ख्मो ने तने नाज़नीन को चकना चूर कर दिया था और उनका तन अपने खून में नहा गया था, इस हालत आप पुश्ते ज़ीन से रुए ज़मीन पर आए और सरो क़ामत ने खाके कर्बला पर इस्तीराहत की।
     उस वक़्त आप ने आवाज़ दी : ऐ बाबा जान ! मुझ को लीजिये। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه घोडा बढ़ा कर मैदान में पहुचे और जांबाज़ नौनिहाल को ख़ैमे में लाए, उसका सर गोद में लिया, हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه ने आँख खोली और अपना सर वालिद की गोद में देख कर फ़रमाया : में देख रहा हु आसमान के दरवाज़े खुले हुए है बहिश्ती हरे शर्बत के जाम लिये इन्तिज़ार कर रही है। ये कहा और जान, जाने आफरी के सुपर्द की।
     अहले बैत का सब्रो तहम्मुल अल्लाहु अकबर ! अली अकबर को इस हाल में देखा और अलहम्दु लिल्लाह कहा, नाज़ के पालो को कुर्बान कर दिया और शुक्रे इलाही बजा लाए, फाके पर फाके है, पानी का नामो निशान नहीं, भूके प्यासे फ़रज़न्द तड़प तड़प कर जाने दे चुके है, जलते रेत पर फ़ातिमी नौ निहाल ज़ुल्मो जफ़ा से ज़बह किये गए। अहले बैत के काफिले में सन्नाटा हो गया है। जिन का कलिमा तस्कीने दिल व राहते जान था वो नूर की तस्वीरें खाको खून में खामोश पड़ी हुई है। आले रसूल ने रिज़ा व सब्र का वो इम्तिहान दिया जिस ने दुन्या को हैरत में डाल दिया है। बड़े से ले कर बच्चे तक मुब्तलाए मुसीबत थे।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 159*
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*सज्दए तिलावत का तरीक़ा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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खड़ा हो कर अल्लाहुअकबर कहता हुवा सज्दे में जाए और कम से कम 3 बार सुब्हान रब्बिअल अअला कहे फिर अल्लाहुअकबर कहता हुवा खड़ा हो जाए। पहले पीछे दोनों बार अल्लाहुअकबर कहना सुन्नत है और खड़े हो कर सज्दे में जाना और सज्दे के बाद खड़ा होना ये दोनों क़याम मुस्तहब है।
*✍🏽आलमगिरी 1/135*

सज्दए तिलावत के लिये अल्लाहुअकबर कहते वक़्त न हाथ उठाना है न इसमें तशह्हुद है न सलाम है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.213*
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*सवानहे कर्बला​* #37
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #17
     इसके बाद उसका भाई तल्हा बिन तारिक़ अपने बाप और भाई का बदला लेने के लिये आतिशी शोले की तरह हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه पर दौड़ पड़ा। आप ने उसके गिरेबान में हाथ दाल कर ज़ीन से उठा लिया और ज़मीन पर इस ज़ोर से पटका की उस का दम निकल गया, आप की हैबत से लश्कर में शोर बरपा हो गया।
     इब्ने साद ने एक मसहूर बहादुर मिसराअ इब्ने ग़ालिब को आप के मुक़ाबले के लिये भेजा, मिसराअ ने आप पर हमला किया, आप ने तलवार से नेज़ा कलम करके उसके सर पर ऐसी तलवार मारी की ज़ीन तक काट गई दो टुकड़े हो कर गिर गया, अब किसी में हिम्मत न रही थी की तन्हा इस शेर के मुक़ाबिल आता, ना चार इब्ने साद ने महकम बिन तुफैल और इब्ने नौफिल को एक एक हज़ार सुवारो के साथ आप पर यकबारगि हमला करने के लिये भेजा। आप ने नेज़ा उठा कर उन पर हमला किया और उन्हें धकेल कर कल्बे लश्कर तक भगा दिया। इस हमले में आप के हाथ से कितने बद नसीब हलाक हुए, कितने पीछे हटे।
     आप पर प्यास की शिद्दत बहुत हुई, फिर आप ने घोड़े दौड़ा कर अपने वालिद की खिदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ किया : बाबा ! प्यास की बहुत शिद्दत है। इस मर्तबा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया ! ऐ नुरे दीदा ! होज़े कौषर से सैराबि का वक़्त क़रीब आ गया है, दस्ते मुस्तफा से वो जाम मिलेगा जिस की लज़्ज़त न तसव्वुर में आ सकती है न ज़बान बयान कर सकती है। ये सुन कर हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه को ख़ुशी हुई और वो फिर मैदान की तरफ लौट गए।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 158*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़सज़ाइल* #
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*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَااَللّٰهُ*
जो हर नमाज़ के बाद 100 बार पढ़े ان شاء الله उसका बातिन कुशादा हो जाएगा।

*✍🏽मदनी पंजदूसर, 246*
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Sunday 16 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #36
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहादत के वाक़ीआत_* #16
     अम्र बिन साद ने तारिक़ से कहा : बड़े शर्म की बात है की अहले बैत का अकेला नौ जवान मैदान में है और तुम हज़ारो की तादाद में हो, उसने पहली मर्तबा पुकारा तो तुम्हारी जमाअत में किसी को हिम्मत न हुई फिर वो आगे बढ़ा तो सफे की सफे दरहम बरहम कर डाली और बहादुरो का खेत कर दिया, भूका है, प्यासा है, धुप में लड़ते लड़ते थक गया है, और फिर भी वो तुम्हे पुकार रहा है और तुम्हारी ताज़ा दम जमाअत में से किसी को मुक़ाबले की हिम्मत नही। तुफ़ा है तुम लोगो पर, कुछ गैरत हो तो मैदान में पहुच कर मुक़ाबला करके फ़त्ह हासिल करो तो में वादा करता हु की अब्दुल्लाह इब्ने ज़ियाद से तुझको मौसिल की हुकूमत दिला दूंगा।
     तारिक़ ने कहा की मुझे अन्देशा है की अगर में फरज़न्दे रसूल और अव्लादे बतूल से मुक़ाबला करके अपनी आकिबत भी खराब करू, फिर भी तू अपना वादा वफ़ा न करे तो न में दुन्या का रहा न दिन का। इब्ने साद ने क़सम खाई क्र पुख्ता क़ौल व क़रार किया।
     इस पर हरिस तारिक़ मौसिल की हुकूमत की लालच में फरज़न्दे रसूल से मुक़ाबले के लिये चला, सामने पहुचते ही शाहज़ादए वाला पर नेज़े का वार किया। आप ने उस का नेज़ा रद्द फरमा कर सीने पर एक ऐसा नेज़ा मारा की तारिक़ की पीठ से निकल गया और वो एक दम घोड़े से गिर गया। शहज़ादा ने घोड़े को ऐड दे कर उस को रौंद डाला और हड्डिया चकना चूर कर दी। ये देख कर तारिक़ के बेटे अम्र बिन तारिक़ को तैश आया और वो झल्लाता हुवा घोडा दौड़ा कर आप हज़रते अली अकबर पर हमला आवर हुवा आप ने एक ही नेज़े में उसका काम भी तमाम किया।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 157*
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*सवानहे कर्बला​* #35
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #15
     हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه ख़ैमे से रुख्सत हो कर मैदाने कारज़ार की तरफ तशरीफ़ फरमा हुए, हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه ने नारा मारा और फरमाया की ऐ ज़ालिमाने जफ़ाकेश ! अगर बनी फातिमा के खून की प्यास है तो तूम मेसे जो बहादुर हो उसे मैदान में भेजो, ज़ोरे बाज़ुए अली देखना हो तो मेरे मुक़ाबिल आओ। मगर किसी को हिम्मत थी की आगे बढ़ता ?
     जब आप ने मुलाहजा फ़रमाया की दुष्मनाने खूँख्वार में से कोई एक भी आगे नही बढ़ता। तो आप ने दुश्मन के लश्कर पर हमला किया, एक एक वार में कई लोगो गो गिरा दिया, कभी मैमन पर चमके तो मुन्तशिर किया, कभी मैसरा की तरफ पलटे तो सफे दरहम बरहम कर डाली। हर तरफ शोर बरपा हो गया, दिलावरो के दिल छूट गए, बहादुरो की हिम्मते टूट गई, शाहज़ादए अहले बैत का हमला न था, अज़ाबे इलाही की बलाए अज़ीम थी।
     धूप में जंग करते करते प्यास का गल्बा हुआ। जंगे मैदान मेसे आप अपने वालिद माजिद की खिदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया : प्यास का बहुत गल्बा है। गल्बे की क्या क्या इन्तिहा, 3 दिन से पानी बंद है, तेज़ धूप और इस में जाबाज़ाना दौड़ धुप, गर्म रेगिस्तान। अगर इस वक़्त हल्क़ तर करने के लिये चन्द क़तरे मिल जाए तो फातिमि शेर गुर्बा खसलतो को पैवन्दे ख़ाक कर डाले।
     शफ़ीक़ बाप ने जाबाज़ बेटे की प्यास देखि मगर पानी कहा था जो इस तिशनए शहादत को दिया जाता, दस्ते शफ़क़त से चेहरे का गर्दो गुबार साफ़ किया और अपनी अंगुश्तरी अपने बेटे के दहाने अक़दस में रख दी। वालिद की शफ़क़त से फिल जुमला तसकीन हुई फिर सहजादे ने मैदान का रुख किया फिर सदा दी : कोई जान पर खेलने वाला हो तो सामने आए।

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*दौराने नमाज़ दूसरे से आयते सज्दा सुनली तो* ?
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

रमज़ानुल मुबारक में तरावीह या शबीना में अगर्चे शरीक न हो बेशक अपनी ही अलग नमाज़ पढ़ रहे हो या नमाज़ में भी न हो तो आयते सज्दा सुन लेने से आप पर भी सज्दए तिलावत वाजिब हो जाएगा।

काफिर या ना बालिग से आयते सज्दा सुनी तब भी सज्दए तिलावत वाजिब हो गया।

नमाज़ में आयते सज्दा पढ़ी तो उसका सज्दा नमाज़ ही में वाजिब है बैरूने नमाज़ नही हो सकता और क़सदन न किया तो गुनाहगार हुवा तौबा लाज़िम है।

अलबत्ता बालिग़ होने के बाद बैरूने नमाज़ जितनी बार भी आयाते सज्दा पढा या सुन कर सज्दा वाजिब हुवा और अभी तक सज्दा न किया हो उन का गलबए ज़न के एतिबार से हिसाब लगा कर उतनी बार बा वुज़ू सज्दए तिलावत करना लाज़िम है।

*#नमाज़ के अहकाम* स.213
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*सवानहे कर्बला​* #34
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहादत के वाक़ीआत_* #14
     फरजंदाने इमामे हसनرضي الله تعالي عنه के महारबा ने दुश्मन के होश उड़ा दिए, इब्ने साद ने ऐतिराफ किया की अगर फरेब कारियों से काम न लिया जाता या इन हज़रात पर पानी बंद न किया जाता तो अहले बैत का एक एक नौजवान लश्कर को बर्बाद कर डालता, जब वो मुक़ाबले के लिये उठते थे तो मालुम होता था की क़हरे इलाही आ रहा है, उनका एक एक हुनर-वर सफ शिकनी व मुबारीज़ फिगनि में फर्द था।
     अल हासिल, अहले बैत के नौ निहालो और नाज़ के पालो ने मैदाने कर्बला में हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर अपनी जाने फ़िदा की और तिरो सना की बारिश में हक़ से मुह न मोड़ा, गर्दन कटवाई, खून बहाए, जाने दी मगर क्लिमाए नाहक़ ज़बान पर न आने दिया। बारी बारी तमाम सहजादे शहीद होते चले गए। अब हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के सामने उनके नुरे नज़र हज़रते अली अकबर हाज़िर है, मैदान की इजाज़त चाहते है, मिन्नतों समाजत हो रही है, आज़िब वक़्त है, चाहित बेटा शफ़ीक़ बाप से गर्दन कटवाने की इजाज़त चाहता है और इस पर इसरार करता है जिस की कोई हट, कोई ज़िद ऐसी नथी जो पूरी न की जाती, हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने इजाज़त देनी पड़ी। आप ने इस नौजवाने जमील को खुद घोड़े पर सुवार किया। उस वक़्त अहले बैत की बीवियों बच्चों पर क्या गुज़र रही थी जिनका तमाम कुम्बा व क़बीला शहीद हो चुके थे और एक जगमगाता हुवा चराग भी आखरी सलाम कर रहा था। इन तमाम को अहले बैत ने रिज़ाए हक़ के लिये बड़े इस्तिक़्लाल के साथ बर्दाश्त किया और ये इन्ही का हौसला था।
    हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه ख़ैमे से रुख्सत हो कर मैदाने कारज़ार की तरफ तशरीफ़ फरमा हुए, बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله

*✍🏽सवानहे कर्बला, 153*
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*कर्ज़ा उतार ने का वज़ीफ़ा*
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मरवी हुवा की एक मुकातब (मुकातब उस गुलाम को कहते है जिसने अपने आक़ा से माल की अदाएगी के बदले आज़ादी का मुआह्दा किया हो) ने हज़रते मुश्किल कुशाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم की बारगाह में अर्ज़ की : में अपनी आज़ादी की कीमत अदा करने से आजिज़ हु मेरी मदद फरमाइये। आपكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने फ़रमाया : में तुम्हे चन्द कलिमात न सिखाऊँ जो रसूलल्लाहﷺ ने मुझे सिखाए है, अगर तुम पर जबले सैर (सैर एक पहाड़ का नाम है) जितना क़र्ज़ होगा तो अल्लाह तुम्हारी तरफ से अदा कर देगा तुम यु कहा को :

*اَللّٰهُمَّ اكْفِكِىْ بِحَلَالِكَ عَنْ حَرَامِكَ وَاَغَنِِىْ بِفَضْلِكَ عَمَّنْ سِوَاكَ*

तरजमा : या अल्लाह मुझे हलाल रिज़्क़ अता फरमा कर हराम से बचा और अपने फ़ज़लो करम से अपने सिवा गैरो से बे नियाज़ कर दे।

ता हुसूले मुराद हर नमाज़ के बाद 11 और सुब्ह शाम 100 बार रोज़ाना आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़े।

*सुनन तिर्मिज़ी, 5/329*
*मदनी पंजसुरह, 245*
*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Saturday 15 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #33
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #13
     हूर के साथ उसके भाई और गुलाम ने भी नौबत बी नौबत दादे शुजाअत दे कर अपनी जाने अहले बैत पर क़ुरबान की। 50 से ज्यादा आदमी शहीद हो चुके अब सिर्फ ख़ानदाने अहले बैत बाक़ी है और दुश्मनाने इस्लाम की इन्ही पर नज़र है। ये हज़रात परवाना वार हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर निषार है। ये बात भी काबिले लिहाज़ है की इमामे आली मक़ाम के इस छोटे से लश्कर में से इस मुसीबत के वक़्त में किसी ने भी हिम्मत न हारी, साथियो में से एक भी ऐसा न था जो अपनी जान ले कर भागता या दुश्मनो की पनाह चाहता।
     अब तक नियाज़ मन्दो ने दुश्मनो को खाको खून में लिटा कर अपनी बहादुरी के गुलगुले दिखाए थे अब असदुल्लाह के शेराने हक़ का मौक़ा आया और अली मुर्तज़ा के खानदान के बहादुरो के घोड़ो ने मैदाने कर्बला को जोला निगाह बनाया। इन हज़रत का मैदान में आना था की बहादुरो के दिल सिनो में लरज़ने लगे और इनके हमलो से शेर दिल बहादुर चीख उठे, बनी हाशिम की नबर्द आज़माइ और जां शिकार हमलो ने कर्बला की तीशना लब ज़मीन को दुश्मनो के खून से सैराब कर दिया और खुश्क रेगिस्तान सुर्ख नज़र आने लगा।
     ख़ानदाने इमामرضي الله تعالي عنه के नौजवान अपने अपने जोहर दिखा कर इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه पर जान कुर्बान करते चले जा रहे थे। खैमो से चलते थे तो *बल्कि वो अपने रब के पास ज़िन्दा है* (पारह 4) के चमनिस्तान की दिलकश फ़ज़ा उनकी आँखों के सामने होती थी, मैदाने कर्बला की राह से उस मंज़िल तक पहुचना चाहते थे।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 151*
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*सवानहे कर्बला​* #32
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #12
     उस बद बातिन को यक़ीन हो गया की उस की चर्ब ज़बानी हूर पर अशर नही कर सकती, अहले बैत की महब्बत उस के क्लब में उतर गई है और उसका सीन आले रसूल की विला से ममलु है, कोई मैक्रो फरेब उस पर न चलेगा।
     बाते करते करते एक तीर हूर के सीने पर खीच मारा, हूर ने ज़ख्म खा कर एक नेज़े का वार किया जो साइन से पार हो गया और उसे ज़मीन पर पटक दिया। उस शख्स के 3 भाई थे, यकबारगि हूर पर दौड़ पड़े, हूर ने आगे बढ़कर एक का सर तलवार से उदा दिया। दूसरे की कमर में हाथ डाल कर ज़ीन से उठा कर इस तरह फेका की गर्दन टूट गई। तीसरा भाग निकला और हूर ने उस का टआक़्क़ुब किया, क़रीब पहुच कर उस की पुश्त और नेज़ा मारा वो सीने से निकल गया, अब हूर ने लश्करे इब्ने साद के मैमना पर हमला किया और खूब ज़ोर की जंग हुई, लश्कर इब्ने साद को हूर के जंगी हुन्नर का ऐतिराफ करना पड़ा और वो जाँबाज़ सादीके दादे शुजाअत दे कर फरज़न्दे रसूल पर जान फ़िदा कर गया।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه हूर को उठा कर लाए और उसके सर को जानुए मुबारक पर रख कर अपने पाक दामन से उस के चेहरे का गुबार दूर फरमाने लगे, अभी रमके जान बाक़ी थी, आँखे खोली, देखा की इब्ने रसूल की गोद में है। अपने बख्त व मुक़द्दर पर नाज़ करता हुवा फ़िरदौस बरी को रवाना हुवा।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 150*
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*सज्दए तिलावत के मदनी फूल* #02
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सज्दा वाजिब होने के लिये पूरी आयत पढ़ना ज़रूरी है लेकिन बाज़ उल्माए मूतअख्खिर के नज़्दीक वो लफ्ज़ जिसमे सज्दे का माद्दा पाया जाता है उसके साथ क़ब्ल या बाद का कोई लफ्ज़ मिला कर पढ़ा तो सज्दए तिलावत वाजिब हो जाता है लिहाज़ा एहतियात येही है कि दोनों सूरतो में सज्दए तिलावत किया जाए।
*✍🏽मूलख्खसन फतावा रज़विय्या* 8/223

आयते सज्दा बैरूने नमाज़ पढ़ी तो फौरन सज्दा कर लेना वाजिब नहीं है अलबत्ता वुज़ू हो तो ताख़ीर मकरुहे तन्ज़ीहि है।

सज्दए तिलावत नमाज़ में फौरन करना वाजिब है मगर ताख़ीर की यानी तिन आयात से ज़्यादा पढ़ लिया तो गुनाहगार होगा और जब तक नमाज़ में है या सलाम फेरने के बाद कोई नमाज़ के मुनाफि फेल नही किया तो सज्दए तिलावत करके सज्दए सहव बजा लाए।
*✍🏽दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार* 2/584
*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.212
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