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Sunday 30 September 2018

_नमाज़ की अहमिय्यत अहादिष की रौशनी में_* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : हर चीज़ की कोई ख़ास अलामत होती है और ईमान की अलामत नमाज़ है।

*✍🏼मुन्यातूल मुसल्लि*

     नमाज़ मुसलमान होने की अलामत है यानी जो नमाज़ी नहीं, समझो वो ईमान की निशानी से खाली है।


     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : बन्दे और कुफ़्र व शिर्क के दरमियान (यानी मुसलमान और काफ़िर के दरमियान फर्क करने वाली चीज़) नमाज़ का छोड़ना है।

*✍🏼सहीह मुस्लिम*

*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यात* 12

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-12, आयत, ⑨⑦*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

तुम फ़रमाओ जो कोई जिब्रील का दुश्मन हो (1) तो उस (जिब्रील) ने तो तुम्हारे दिल पर अल्लाह के हुक्म से यह कुरआन उतारा अगली किताबों की तस्दीक़ फ़रमाता और हिदायत और बशारत (ख़ुशख़बरी) मुसलमानों को(2)


*तफ़सीर*

     (1) यहूदियों के आलिम अब्दुल्लाह बिन सूरिया ने हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा, आपके पास आसमान से कौन फ़रिश्ता आता है. फ़रमाया, जिब्रील. इब्ने सूरिया ने कहा वह हमारा दुश्मन है कि हमपर कड़ा अज़ाब उतारता है. कई बार हमसे दुश्मनी कर चुका है. अगर आपके पास मीकाईल आते तो हम आप पर ईमान ले आते.

     (2) तो यहूदियों की दुश्मनी जिब्रील के साथ बेमानी यानी बेकार है. बल्कि अगर उन्हें इन्साफ़ होता तो वो जिब्रीले अमीन से महब्बत करते और उनके शुक्रगुज़ार होते कि वो ऐसी किताब लाए जिससे उनकी किताबों की पुष्टि होती है. और “बुशरा लिल मूमिनीन” (और हिदायत व बशारत मुसलमानों को) फ़रमाने में यहूदियों का रद है कि अब तो जिब्रील हिदायत और ख़ुशख़बरी ला रहे हैं फिर भी तुम दुश्मनी से बाज़ नही आते.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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क़ुरआन का चेलेंज नबी का मोजिज़ा*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     अल्लाह ने आने फ़ज़लों करम से छोटी बड़ी कमो बेस 104 कितबे मुक़द्दस रसूलों पर नाज़िल फ़रमाई, ताकि उसके बन्दों को हक़ राह मिल सके। हक़ राह को पाने में कोई शक न रहे, जन्नत से निकालके आने वाला इंसान फिर जन्नत में जाने लायक बन सके, शैतान जो उसका दुश्मन है वो उसे गलत राहपे ले जाके उसे दोज़खी न बनादे। इंसान, इंसान बनके ज़िन्दगी बसर करे, अख़लाक़, आदाब से हट के जानवर न बने। बल्कि अपने अख़लाक़ से फरिश्तों से बन के दिखाये। अल्लाह की हक़ीक़ी पहचान मिले और शिर्क और बूत परस्ती से महफूज़ रहे। अल गरज़ अल्लाह के बन्दे उसकी नाज़िल करदा किताबों से उस अल्लाह का हक़ीक़ी बन्दा बनके रहे।


*नबी की ज़रूरत*

     अगर सिर्फ किताबे नाज़िल कर दी जाती तो उसे समझने में लोगो को शको सूबा हो सकता था और शैतान गलत माना समझा के लोगो को गलत राह पे ले जा सकता था। तो अल्लाह ने किताबे अपने मुक़द्दस और प्यारे रसूलों पे नाज़िल फ़रमाई और उनको मख़लूक़ से ज़्यादा इल्म अता किया और उन्हें गुनाहों से पाक व मासूम रखा। शैतान से उनकी हिफाज़त की। जिस रसूल पे जो किताब नाज़िल की उस किताब का सच्चा इल्म भी उस नबी को अता फ़रमाया। हबीब रसूलों ने अपने अख़लाक़ व अमलो से लोगोको अल्लाह की मुक़द्दस किताब का इल्म दिया। अल्फ़ाज़ से अगर शक होता तो उनके अमल से उनको जवाब मिल जाता।

*✍️क़ुरआन एक ज़िंदा मोजिज़ा* 14

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ का तरीक़ा* #52


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #03


*_नमाज़ में खांसना_*

     ★ मरीज़ की ज़बान से बे इख़्तियार आह ! ऊह निकल नमाज़ न टूटी. युही छिक, जमाहि, खासी, डकार वगैरा में जितने हरुफ़ मजबूरन निकलते है मुआफ़ है.

*✍🏼दुर्रे मुखता, जी.1 स.416*

     ★ फूंकने में अगर आवाज़ न पैदा हो तो वो साँस की मिस्ल है और नमाज़ फासिद् नहीं होती अगर कसदन फूंकना मकरूह है और अगर दो हर्फ़ पैदा हो जेसे उफ़, तूफ तो नमाज़ फासिद् हो गई.

*✍🏼गुन्याह, स.427*

     ★ खनकार्ने में जब दो हरुफ़ ज़ाहिर हो जैसे अख तो मुफ्सिद् है. हा अगर यूज़र या सहीह मक़सद हो मसलन तबियत का तक़ाज़ा हो या आवाज़ साफ करने के लिए हो या इमाम को लुकमा देना मक़सूद हो या कोई आगे से गुज़र रहा हो उस को मुतवज्जेह करना हो इन वुजुहात की बिना पर खाँसने में कोई मुज़ायका नहीं.

*✍🏼दुर्रे मुख्तार, जी. 2 स. 455*


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 185*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*दिलचस्प मालूमात* #09


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : जो शख्स खत्मे नबुव्वत को न माने उसके मुतअल्लिक़ क्या हुक्म है?

     *जवाब* : जो शख्स हुज़ूर ﷺ के ज़माने में या आप के बाद किसी को नबुव्वत मिलने का अक़ीदा रखे या किसी नए नबी के आने को मुमकिन माने वो काफ़िर है।


     *सवाल* : अम्बियाए किराम की हयाते तैय्यबा के मुतअल्लिक़ हमारा अक़ीदा क्या है*

     *जवाब* : अम्बियाए किराम की हयाते तैय्यबा के मुतअल्लिक़ हमारा अक़ीदा ये है कि वो अपनी क़ब्रो में उसी तरह ब हयाते हक़ीक़ी ज़िन्दा है जैसे दुन्या में थे, खाते पीते है और जहां चाहें आते जाते है।

*✍️बहारे शरीअत*

*✍️दिलचस्प मालूमात* 14

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Saturday 29 September 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #264


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*सुलेमान عليه السلام का चूंटी का कलाम सुनकर मुस्कुराना*

     आम तौर पर सुलेमान عليه السلام और आपका लश्कर हवा के ज़रिये सफर किया करते लेकिन उस सफर में आप आम लोगो की तरह सफर कर रहे थे। कुछ लोग पैदल चल रहे थे और कुछ सवारी पर सवार थे। चुंटियो कि वो बस्ती ताइफ़ या शाम में थी। उनको हुक्म देने वाली उनकी मलका थी। हसने हुक्म दिया कि सब अपने घरों में दाखिल हो जाए।

     आप عليه السلام ने चूंटी की आवाज़ तीन माइल दूर से सुनी थि। ये अल्लाह के नबी का मोजिज़ा है इसमें कोई ताअज्जुब की बात नहीं। आपने मुश्कुरा कर लश्कर को आगे चलने से रोक दिया था कि चीटियां अपने घरों में दाखिल हो सकें।

     आपके मुस्कुराने की एक वजह चींटी की एहतियाती तदाबीर पर ताअज्जुब करना था और दूसरी वजह ये थी कि आपको चींटी की आवाज़ सुनने की रब ने जो तौफ़ीक़ अता फ़रमाई थी उस पर इज़हारे फरहत व सुरूर था।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 221

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*रहमत के सत्तर दरवाज़े*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     जो ये दुरुदे पाक पढ़ता है तो उस पर रहमत के 70 दरवाज़े खोल दिये जाते है।

صٙلّٙى اللّٰهُ عٙلٰى مُحٙمّٙدٍ

*✍🏽الْقٙوْلُ الْبٙدِيْع ٢٧٧*


*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*

     गराइबुल क़ुरआन पर एक रीवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم

*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।

*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*

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*_नमाज़ की अहमिय्यत अहादिष की रौशनी में_* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : इस्लाम की बुनयाद पांच चीज़ों पर है :

(१) अल्लाह की वाहदानिय्यत (उसके एक होने) की गवाही देना। इस बात का इक़रार करना कि हज़रत मुहम्मद ﷺ अल्लाह के बन्दे और रसूल है।

(२) नमाज़ अदा करना।

(३) ज़कात देना।

(४) (कर सकता हो तो) हज करना।

(५) रमज़ान के रोज़े रखना।

*✍🏼सहीह बुखारी*

     इस हदिष में पांच चीज़ों को इस्लाम की बुन्याद बताया गया है जिसमें नमाज़ भी शामिल है। अब ज़ाहिर है कि जो नमाज़ छोड़ देता है वो इस्लाम की बुन्याद ही ढा देता है।

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : नमाज़ दीन का सुतून (खम्बा) है जिसने उसे क़ायम रखा समझो उसने अपने दीन को क़ायम रखा और जिसने नमाज़ छोड़ दी समझो उसने दीन की इमारत ढा दी।

*✍🏼कन्जुल उम्माल*


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 11

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑨⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और बेशक तुम ज़रूर उन्हें पाओगे कि सब लोगों से ज़्यादा जीने की हवस रखते हैं और मुश्रिको (मूर्तिपूजको) से प्रत्येक को तमन्ना है कि कहीं हज़ार बरस जिये (27) और वह उसे अज़ाब से दूर न करेगा इतनी उम्र का दिया जाना और अल्लाह उनके कौतुक  देख रहा है 96


*तफ़सीर*

     (27) मुश्रिकों का एक समूह मजूसी (आग का पुजारी) है. आपस में मिलते वक़्त इज़्ज़त और सलाम के लिये कहते है “ज़िह हज़ार साल” यानी हज़ार बरस जियो. मतलब यह है कि मजूसी मुश्रिक हज़ार बरस जीने की तमन्ना रखते हैं. यहूदी उनसे भी बढ गए कि उन्हें ज़िन्दगी का लालच सब से ज़्यादा है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #10


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     बे नमाज़ी होना हुसैन का काम नही था, यजीद का काम था। रसूले पाक की सुन्नतों को छोड़ना हुसैन का काम न था, यजीद का काम था। बदकारी करना हुसैन काम न था, यजीद का था। दारू व जुगाड़ हुसैन का काम न था, यजीद का काम था। 

     तो अपने आप को हुसैनी कहने वालों! हुसैन नमाज़ी थे, हम बे नमाज़ी क्यूं? हुसैन नेकोकार थे, हम बदकार क्यूं? हुसैन सुन्नतों के पाबंद थे, हम सुन्नतों से गाफिल क्यूं?

     अपने दिल पे हाथ रख के इंसाफ से फैसला करके जवाब दिजिये की नमाज़ अदा न करना, सुन्नतों पे अमल न करना और दूसरी बुराइयों में मुब्तला रहना ये सब का हुसैन के न थे, यजीद के थे। तो आज हम खुद को हुसैनी कहते है। और यजीद से नफरत करते है फिर भी काम यजीद जैसा करते है हुसैन जैसा नहीं इसे क्या कहा जाए? यजीद से मुहब्बत के हुसैन से मुहब्बत? 

     इसका जवाब वही है कि ज़बान पे हुसैन की मुहब्बत और अमल में यजीद की मुहब्बत!!! 

     ओर अगर ऐसा नही है तो फिर हमे दावो से और अमलो से इमाम हुसैन की सीरत व आपकी हयाते ज़िन्दगी पर अमल करना चाहिये। तब ही हमारी मुहब्बत हुसैन से सच्ची मुहब्बत कहलाएगी, और तब ही हमारे नारे सच्चे साबित होंगे।

     अल्लाह हमे इमामे हुसैन رضي الله عنه के बताए रास्ते पर चलने की तौफ़ीक़ अता फरमाए.

اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 26

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*नमाज़ का तरीक़ा* #51


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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #02


*_नमाज़ में रोना_*

     ◆ दर्द या मुसीबत की वजह से ये अलफ़ाज़ "आह" "ऊह" "उफ़" "तूफ" निकल गए या आवाज़ से ओने में हर्फ़ पैदा हो गए नमाज़ फासिद् हो गई.

     ◆ अगर रोने में सिर्फ आसु निकले आवाज़ व हरुफ़ नही निकले तो हर्ज नही.

*✍🏼आलमगिरी, जी.1 स. 101*

    ◆ अगर नमाज़ में इमाम के पढंने की आवाज़ पर रोने लगा और "अरे" "नअम" "हा" ज़बान से जारी हो गया तो कोई हर्ज़ नही कि ये खुशुअ के बाइस है और अगर इमाम की खुश इल्हानि के सबब ये अलफ़ाज़ कहे तो नमाज़ टूट गई.


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*✍🏼दुर्रे मुख्तार, जी.2 स.456*

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*दिलचस्प मालूमात* #08


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     *सवाल* : अम्बियाए किराम को ग़ैब का इल्म होने के बारे में हमारा क्या अक़ीदा है?

     *जवाब* : अल्लाह ने अम्बिया को इल्मे ग़ैब अता फ़रमाया, ज़मीनों आसमान का हर ज़र्रा हर नबी के पेशे नज़र है मगर इन को ये इल्म ग़ैब अल्लाह के दिये से है, लिहाज़ा इन का इल्म अताई हुवा और अल्लाह का इल्म ज़ाती।


     *सवाल* : अक़ीदए खत्मे नुबव्वत से क्या मुराद है?

     *जवाब* : अक़ीदए खत्मे नबुव्वत से मुराद ये मानना है कि हमारेके आक़ा ﷺ आखरी नबी है। यानी अल्लाह ने हुज़ूर ﷺ की ज़ात पर सिलसिलए नबुव्वत को खत्म फरमा दिया। हुज़ूर ﷺ के ज़माने में या इस के बाद क़यामत तक कोई नया नबी नही हो सकता।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 13

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तज़किरतुल अम्बिया* #263


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*सुलेमान عليه السلام के लिये तांबे का चश्मा*

     अल्लाह फरमाता है: और हमने उनके लिये पिघले हुए तांबे का चश्मा बहाया।

     इसका मक़सद तो ये था कि आपके लिये अल्लाह ने तांबे को इस तरह नर्म कर दिया था जैसे आपके बाप दाऊद عليه السلام के लिये लोहा नर्म कर दिया था। तांबे की सनअत वाले लोग आपके पास ठंडा तांबा लाते आप बगैर आग और कूटने के जैसे उन्हें ज़रूरत होती उसी तरह बना देते। दूसरा मतलब ये है कि आपको अल्लाह ने तांबे की धात एक चश्मा की सूरत में अता की थी जितना तांबा ज़रूरी होता उतना उस चश्मे से ले लिया जाता।


*सुलेमान عليه السلام का लश्कर*

     सुलेमान عليه السلام का लश्कर 3 हिस्सों पर मुश्तमिल था, जिन्न, इंसान और परिंदे।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 219

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Friday 28 September 2018

*तमाम गुनाह मुआफ़*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो शख्स ये दुरुदे पाक पढ़े, अगर खड़ा था तो बैठने से पहले और बैठा था तो खड़े होने से पहले उसके गुनाह मुआफ़ कर दिये जाएंगे।

اٙللّٰهُمّٙ صٙلِّ عٙلٰى سٙيِّدِنٙا وٙمٙوْلٙانٙا مُحٙمّٙدٍ وّٙعٙلٰى اٰلِهِ وٙسٙلِّمْ

*✍🏽اٙيضاًص ٦٥*


*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*

     गराइबुल क़ुरआन पर एक रीवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم

*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।

*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*_नमाज़ छोड़ने का अन्जाम क़ुरआन की रौशनी में_* #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     एक और मक़ाम पर अल्लाह अपने ज़िक्र से गफलत बरतने वालों को झिंझोड़ते हुए यूँ फरमा रहा है :

     ऐ ईमान वालो ! तुम्हें तुम्हारा माल और तुम्हारी औलाद अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल न कर दे और जिसे (उसके माल और उसकी औलाद ने अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल कर दिया) तो वही लोग घाटा उठाएंगे।

*✍🏼सूरए मुनाफिकुन 9, पारह 28*


     मुफ़स्सिरीन फ़रमाते है कि यहाँ ज़िक्र से मुराद नमाज़ है। इस तौजीह (बात) को पेशे नज़र रखे और मुआशरे का मुहासबा करें तो जो कड़वी हक़ीक़त हमारे सामने उभरकर आती है वो ये है कि इस दौर में ज़्यादातर लोग जो नमाज़ से दूर है उनकी नमाज़ से दुरी का सबब या तो मालो दौलत जमा करने की धुन है या फिर इसकी वजह ये है कि वो औलाद की देख रेख और दीगर ज़रूरीआत की फ़िक्र में गिरफ्तार है। जबकि अल्लाह ने खुले लफ़्ज़ों में फरमा दिया है कि जो लोग माल की मुहब्बत या औलाद की फ़िक्र में नमाज़ छोड़ेंगे तो वही ख़सारे में रहेंगे। और शायद नमाज़ छोड़ने की एक बड़ी वजह ये भी हो सकती है कि लोगों के दिलों में अब आख़िरत की बर्बादी और अज़ाबे इलाही की फ़िक्र बाक़ी नहीं है। जब की अल्लाह फ़रमाता है :

     और आख़िरत का अज़ाब निहायत ही सख्त और तकलीफदेह है। काश ! लोग इसे समझ लेते।

*✍🏼सूरए जुमर 26, पारह 23*

*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 11

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑨⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     और कभी उसकी आरज़ू न करेंगे (25) उन बुरे कर्मों के कारण जो आगे कर चुके (26) और अल्लाह ख़ूब जानता है ज़ालिमों को


*तफ़सीर*

     (25) यह ग़ैब की ख़बर और चमत्कार है कि यहूदी काफ़ी ज़िद और सख़्त विरोध के बावुजूद मौत की तमन्ना ज़बान पर न ला सके.

     (26) जैसे आख़िरी नबी और क़ुरआन के साथ कुफ़्र और तौरात में काँट छाँट वग़ैरह. मौत की महब्बत और अल्लाह से मिलने का शौक़, अल्लाह के क़रीबी बन्दों का तरीक़ा है. हज़रत उमर (अल्लाह उनसे राज़ी) हर नमाज़ के बाद दुआ फ़रमाते. ” अल्लाहुम्मर ज़ुक़नी शहादतन फ़ी सबीलिका व वफ़ातन बिबल्दि रसूलिका” (ऐ अल्लाह, मुझे अपने रास्तें में शहादत अता कर और अपने प्यारे हबीब के शहर में मौत दे). आम तौर से सारे बड़े सहाबा और विशेष कर बद्र और उहद के शहीद और बैअते रिज़्वान के लोग अल्लाह की राह में मौत की महब्बत रखते थे. हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास (अल्लाह उनसे राज़ी) ने काफ़िर लश्कर के सरदार रूस्तम बिन फ़र्रूख़ज़ाद के पास जो ख़त भेजा उसमें तहरीर फ़रमाया था. “इन्ना मअना क़ौमन युहिब्बून मौता कमा युहिब्बुल अआजिमुल ख़म्रा” यानी मेरे साथ ऐसी क़ौम है जो मौत को इतना मेहबूब रखती है जितना अजमी लोग शराब को. इसमें सुन्दर इशारा था कि शराब की दूषित मस्ती को दुनिया की महब्बत के दीवाने पसन्द करते हैं और अल्लाह वाले मौत को हक़ीक़ी मेहबूब से मिलने का ज़रिया समझकर चाहते हैं. सारे ईमान वाले आख़िरत की रग़बत रखते हैं और लम्बी ज़िन्दगी की तमन्ना भी करें तो वह इसलिये होती है कि नेकियाँ करने के लिये कुछ और समय मिल जाए जिससे आख़िरत के लिये अच्छा तोशा ज़्यादा जमा कर सकें. अगर पिछले दिनो में गुनाह ज़्यादा हुए हैं तो उनसे तौबह और क्षमा याचना कर लें. सही हदीस की किताबों में है कि कोई दुनिया की मुसीबत से परेशान होकर मौत की तमन्ना न करे और वास्तव में दुनिया की परेशानियों से तंग आकर मौत की दुआ करना सब्र और अल्लाह की ज़ात पर भरोसे और उसकी इच्छा के आगे सर झुका देने के ख़िलाफ़ और नाजायज़ है.

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #09


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     सोचने वाली बात है कि जब इमाम हुसैन رضي الله عنه ने अपनी जान देना पसन्द किया लेकिन बद अमल को क़ुबूल करना पसंद न किया। तो आज हम बद अमली बन के "हुसैन का दामन नहीं छोड़ेंगे" के नारे लगाते है क्या वो इमाम हुसैन को पसन्द आएगा? और क्या आप बद अमल को पसन्द फरमाएंगे? 

     कर्बला के मैदान में तपती रेत में 3 दिन तक भूखे प्यासे रह कर भी आपने नमाज़ को न छोड़ा। बल्कि ऐसी खौफनाक मुसीबत के हालात में भी आप साथियों के साथ जमाअत से नमाज़ अदा करते थे। जब आप ज़ख्मो की हालत में ज़मीन पर तशरीफ़ ले आए वो दिन जुमुआ का था, आपने उसी हालत में आने सर को सजदे में झुका दिया और ज़िन्दगी का आखरी सजदा किया। 

     ज़बाने हाल से कर्बला की ज़मीन को गवाह बनाई के अय ज़मीन! तू गवाह रहना की हुसैन ने अपनी नमाज़ को क़ज़ा न होने दी।

     जब इमाम हुसैन ने लड़ाई के मैदान में भूखे प्यासे रह कर भी नमाज़ को न छोडा, तो फिर हम उनके अक़ीदत मंद और मुहब्बत का दावा करके अपने घरों में आराम से रह कर नमाज़ को भूल बैठे है वो कितनी शर्मिंदगी की बात है।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 25

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दिलचस्प मालूमात* #07


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : क्या गैरे नबी के पास वही आ सकती है*

     *जवाब* : वहीए नबुव्वत गैरे नबी के पास नहीं आती, जो इस का क़ाइल जो वो काफ़िर है।


     *सवाल* : क्या अम्बियाए किराम से गुनाह मुमकिन है*

     *जवाब* : जी नहीं, वो मासूम होते है उन से किसी भी तरह का कोई भी गुनाह मुमकिन नहीं।


     *सवाल* : क्या सब अम्बिया पर ईमान लाना ज़रूरी है या किसी एक पर ईमान लाना काफी है?

     *जवाब* : जी हां तमाम अम्बिया पर ईमान लाना ज़रूरी है इन मे से किसी एक का इनकार करना सब का इनकार करना है।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 12

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #262


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*हवा सुलेमान عليه السلام के ताबेअ थी*

     हवा को सुलेमान عليه السلام के ताबेअ इस तरह कर दिया गया था जिस तरह सवारी इंसान के ताबेअ होती है।

     हज़रत क़तादा رضي الله عنه फरमाते है आप عليه السلام सुबह ज़वाल तक इतना सफर कर लेते थे जितना सय्याह लोग एक माह में करते और ज़वाल से शाम तक इतना सफर कर लेते जितना एक माह में किया जाता। आप सुबह बैतूल मुक़द्दस में होते तो क़ैलुला के वक़्त अस्तगर में पहुंच जाते। फिर अस्तगर से शाम तक खुरासान के किले तक पहुंच जाते।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 218

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Thursday 27 September 2018

_नमाज़ छोड़ने का अन्जाम क़ुरआन की रौशनी में_* #03


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     एक और मक़ाम पर अल्लाह नमाज़ में सुस्ती करने वालों को अज़ाब की वईद सुनाते हुए यूँ फरमा रहा है :

     "वैल" है उन नमाज़ पढ़ने वालों के लिये जो अपनी नमाज़ में सुस्ती करते है।

*✍🏼सूरए मऊन 4,5, पारह 30*


     "वैल" अस्ल में जहन्नम की उस वादी का नाम है कि अगर उसमें दुन्या के पहाड़ डाले जांए तो वो भी उसकी शदीद गर्मी से पिघल जाएं। ये उन लोगों का ठिकाना है जो नमाज़ में सुस्ती करते है और उसको सही वक़्त से टालकर (क़ज़ा करके) पठते है।

     जब नमाज़ में सुस्ती करने वाले को इतना सख्त अज़ाब दिया जाएगा तो आप खुद अन्दाज़ा लगा लीजिये कि सिरे से नमाज़ न पढ़ने वालों को कितने सख्त अज़ाब से दो चार होना पड़ेगा ?

*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 9

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑨④*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

तुम फ़रमाओ अगर पिछला घर अल्लाह के नज़दीक ख़ालिस तुम्हारे लिये हो न औरों के लिये तो भला मौत की आरज़ू तो करो अगर सच्चे हो (24)


*तफ़सीर*

     (24) यहूदियों के झूटे दावों में एक यह दावा था कि जन्नत ख़ास उन्हीं के लिये है. इसका रद फ़रमाया जाता है कि अगर तुम्हारे सोच के मुताबिक़ जन्नत तुम्हारे लिये ख़ास है, और आख़िरत की तरफ़ से तुम्हें इत्मीनान है, कर्मों की ज़रूरत नहीं, तो जन्नत की नेअमतों के मुक़ाबले में दुनिया की तकलीफ़ क्यों बर्दाश्त करते हो. मौत की तमन्ना करो कि तुम्हारे दावे की बुनियाद पर तुम्हारे लिये राहत की बात है. अगर तुमने मौत की तमन्ना न की तो यह तुम्हारे झूटे होने की दलील होगी. हदीश शरीफ़ में है कि अगर वो मौत की तमन्ना करते तो सब हलाक हो जाते और धरती पर कोई यहूदी बाक़ी न रहता.

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हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #08


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

हज़रत इमामे हुसैन رضي الله عنه को कौन नही जानता। आप अली के लाल, फातिमा के लखते जिगर और नबी ﷺ के नवासे है। जिनको नबी ﷺ ने जन्नती जवानों के सरदार की बशारत दी। इमाम हुसैन رضي الله عنه खुद तो कोई काम शरीअत के विरुद्ध न करते बल्कि शरीअत के खिलाफ करने वाले को क़बूल भी न करते।

     क्या आप जानते है इमाम हुसैन को खिलाफत से मतलब नही था, लेकिन जब अमीरे मुआविया رضي الله عنه का विसाल हुआ। उसके बाद आप की जगह आपका बीटा यजीद खलीफा बन बैठा। उसके अमल अच्छे न थे वो फासिको फाजिर था, बेनामाज़ी था इसी वजह से वो खलीफा बनने के लायक़ नही था। लेकिन सत्ता के जोर में वो खलीफा बन बैठा और लोगो को अपनी बैत करने पर मजबूर करने लगा। लेकिन खानदाने रसूल के चश्मो चिराग ने बातिल के सामने अपना सर तो कटा सकते है पर उसके सामने सर जुका नही सकते। यजीद ने आप رضي الله عنه को भी उसकी बैत के लिए मजबूर किया। आप फासिको फाजिर को अपना अमीर क़बूल कर के दीन को नुक़्शान पोहचाना नही चाहते थे। इसी वजह से कर्बला की जंग हुई और इस जंग में आप के साथ आप के खानदान के चिराग बुझ गये और शहादत पा ली। न आपने और न आप के खानदान ने बे अमल को क़बूल किया।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 25

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नमाज़ का तरीक़ा* #50


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #01

◆ बात करना

◆ किसी को सलाम करना, सलाम का जवाब देना 

◆ छिक का जवाब देना [नमाज़ में खुद को छिक आए तो खामोश रहे] अगर अलहम्दु लिल्लाह कह लिया तब भी हर्ज़ नही और अगर उस वक़्त हम्द न की तो फारिग हो कर कहे.

◆ खुश खबरी सुन कर जवाबन अलहम्दु लिल्लाह कहना.

◆ बुरी खबर [या किसी की मौत की खबर] सुन क्र इन्न-लिल्लाहि-व-इन्न-इलैहि-राजिउन कहना.

◆ अल्लाह का नाम सुन कर जवाबन जल जलालुहु कहना.

◆ सरकारे मदीना ﷺ का इसमें गिरामी सुन कर जवाबन दुरुद शरीफ पढ़ना.


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.184*

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दिलचस्प मालूमात* #06


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : वही किसे कहते है?

     *जवाब* : वही उस कलाम को कहते है जो किसी नबी पर अल्लाह की तरफ से नाज़िल हुवा हो।


     *सवाल* : वही की कितनी अक़्साम है?

     *जवाब* : अम्बिया के हक़ में वही 3 किस्म पर है : 

● बिल वासिता : फ़रिश्ते की वसातत से कलामे रब्बानी नबी के पास आए जैसे जिब्राईल का वही लाना।

● बिला वासिता : फ़रिश्ते की वसातत के बगैर व नफ़्से नफीस कलामे रब्बानी को सुनना जैसे मेराज की रात हुज़ूर ﷺ ने सुना और कोहे तुर पर हज़रते मूसा عليه السلام ने सुना।

● अम्बियाए किराम के कुलूब में मआनी का इल्म किया जाए (दिलों में बात डाल दी जाए)।

*✍️नुज़हतुल क़ारी*

*✍️दिलचस्प मालूमात* 12

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तज़किरतुल अम्बिया* #261


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*हवा सुलेमान عليه السلام के ताबेअ थी*

     हवा को सुलेमान عليه السلام के ताबेअ इस तरह कर दिया गया था जिस तरह सवारी इंसान के ताबेअ होती है।

     हज़रत क़तादा رضي الله عنه फरमाते है आप عليه السلام सुबह ज़वाल तक इतना सफर कर लेते थे जितना सय्याह लोग एक माह में करते और ज़वाल से शाम तक इतना सफर कर लेते जितना एक माह में किया जाता। आप सुबह बैतूल मुक़द्दस में होते तो क़ैलुला के वक़्त अस्तगर में पहुंच जाते। फिर अस्तगर से शाम तक खुरासान के किले तक पहुंच जाते।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 218

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Wednesday 26 September 2018

_नमाज़ छोड़ने का अन्जाम क़ुरआन की रौशनी में_* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     एक जगह अल्लाह बेनमज़ियों की मज़म्मत करते हुए फरमा रहा है : तो उनके बाद (अच्छे लोगों के बाद) उनके बुरे लोग जानशीन हुए कि नमाज़ को ज़ाएअ (बर्बाद) कर दिया और ख्वाहिशात के पीछे पड़े तो अनक़रीब वो जहन्नम की वादी "गै" (जो बहुत ही खतरनाक है) में दाखिल किये जाएंगे मगर जिन्होंने तौबा कर ली वो बच जाएंगे।

*✍🏼सूरए मरयम 59, पारह 16*


     कस आयत में बेनमज़ियों को हौलनाक सजा की खबर दी गई है कि उन्हें जहन्नम की वादी "गै" में दाखिल किया जाएगा। उलमा फ़रमाते है "गै" अज़ाबे इलाही की एक ऐसी वादी है कि उसके खौफनाक अज़ाब से सारा जहन्नम पनाह मांगता है।


    हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضى الله عنه फ़रमाते है कि नमाज़ के ज़ाएअ करने के माना ये नहीं है कि बिल्कुल नमाज़ नहीं पढ़ते बल्कि इसका माना ये है उसे वक़्त से बेवक़्त करके पढ़ते है (यानी क़ज़ा करके पढ़ते है)।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 8

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑨③*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और याद करो जब हमने तुमसे पैमान (वादा) लिया (22) और तूर पर्वत को तुम्हारे सरों पर बलन्द किया, लो जो हम तुम्हें देते हैं ज़ोर से और सुनो. बोले हम ने सुना और न माना और उनके दिलों में बछड़ा रच रहा था उनके कुफ़्र के कारण. तुम फ़रमादो क्या बुरा हुक्म देता है तुमको तुम्हारा ईमान अगर ईमान रखते हो(23)


*तफ़सीर*

     (22) तौरात के आदेशों पर अमल करने का.

     (23) इसमें भी उनके ईमान के दावे को झुटलाया गया है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #07

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     सहाबा ज़बान से महब्बते रसूल के नारे लगाते थे वही उनके दिल भी उस बात को क़बूल करता था। इसी वजह से उनकी महब्बत अमल के ज़रिए देख ने को मिलती थी। और हम महब्बत ज़बान तक ही रहने देते है, उसे दिल तक नही पहुंचने देते। वरना मुहब्बत के बर अक्स हमारे अमल न होते। आज हम घर मे पंखे के नीचे बैठ  कर भी नमाज़ से गाफिल है और सहाबा तो रेत के ठेर पर लड़ाई के मैदान में, तलवारों की छांव में भी नमाज़े अदा किया करते थे। और आज हम नौकरी कारोबार में 2 पैसे ज़्यादा कमाने के लिए हम फरज़ो को भुलाए बैठे है। 

     ऐसा क्यूं? क्योंकि हमने दिलमा मुहब्बत को मजबूत नही बनाई और नफ़्स को मौत की दावत नहीं दी।

     गौषे पाक رضي الله عنه ने 40 साल ईशा के वुज़ू से फजर की नमाज़ अदा की यानी के आप 40 साल तक रात को सोये नही और अल्लाह की इबादत करते रहे। गौषे पाक رضي الله عنه के चाहने वाले क्यूं फ़ज़र के वक़्त आराम से सोये हुए मिलते है?

     ख्वाजा गरीब नवाज رضي الله عنه तो जब वज्द में आके बेहोश हो जाते तो बख्त्यार क़ाक़ी आपको सलात सलात कह कर होश में लाते। जब आप होश में आते तो फरमाते नमाज़ किसी पे भी माफ नहीं।

     सहाबा और बुजुर्गो के शरीअत पर अमल करने वाले अनगिनत वकीआत सुनने को मिलेंगे। क्योंकि वो अल्लाह और उसके रसूल से सच्ची मुहब्बत करते थे। इसी वजह से वो उनके हुक्म के मुताबिक़ अमल किया करते थे।

     और हमारी हाल क्या है, इसके बारे में हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां رحمة الله عليه फरमाते है:

     रिज़्के खुदा खाया किया फरमाने हक़ टाला किया..

     शुक्रे करम तरसे सज़ा ये भी नहीं वो भी नहीं...

यानी अल्लाह का रिज़्क़ खा के भी हम उसके हुक्म के खिलाफ अमल करते है, ना ही हम उसकी नेअमतों का शुक्र अदा करते है,और ना ही हमे नाफरमानी करने पर सजा से डर !


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 24

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ का तरीक़ा* #49


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*गर्द आलूद पेशानी की फ़ज़ीलत*

     हज़रते वासिला बिन अस्क़अ رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ का फरमाने पुर सुरूर है : तुम में से कोई शख्स जब तक नमाज़ से फारिग न हो जाए अपनी पेशानी की मिटटी को साफ़ न करे क्यू कि कब तक उस की पेशानी पर नमाज़ के सजदे का निशान रहता है फ़रिश्ते उस के लिये दुआए मगफिरत करते रहते है. 

     मीठे और प्यारे इस्लिमी भाइयो ! दौरान नमाज़ पेशानी से मिटटी छुड़ाना बेहतर नहीं और मआज़अल्लाह तकब्बुर के तौर पर छुड़ाना गुनाह है. और अगर न छुड़ाने से तकलीफ होती होती हो या ख़याल बटता हो तो छुड़ाने में हर्ज नही. अगर किसी को रियाकारी का खौफ हो तो उसे चाहिये कि नमाज़ के बाद पशनो से मिटटी साफ़ कर ले.

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 183-184*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*दिलचस्प मालूमात* #05


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     *सवाल* : नबी किसे कहते है?

     *जवाब* : जिस इंसान को अल्लाह ने हिदायत के लिये वही भेजी हो उसे नबी कहते है।


     *सवाल* : रसूल किसे कहते है?

     *जवाब* : अम्बियाए किराम में से जो अल्लाह की तरफ से कोई नई आसमानी किताब और नई शरीअत ले कर आए वो रसूल कहलाते है।

*✍️बहारे शरीअत*

*✍️दिलचस्प मालूमात* 11

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #260


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*सुलेमान عليه السلام परिंदों की बोलियां समझते*

     ये तो हम रोज़ मर्रा मुशाहिदा करते है कि परिंदे ज़रूर अपनी बोलियां बोलते है। एक दूसरे से मुहब्बत के वक़्त उनका बोलने का अंदाज़ और होता है। लड़ते वक़्त उनके बोलने का अंदाज़ और होता है। जब उन पर कोई दरिंदा या शिकारी शिकार करता है तो उनके कलाम की नोइयात कुछ और ही होती है। सुलेमान عليه السلام को अल्लाह ने परिंदों की बोलियां समझने की कुव्वत अता फ़रमाई थी आप समझ लेते थे कि ये क्या कह रहे है।

     आप عليه السلام ने मोर की आवाज़ को सुनकर कहा कि ये कह रहा है कि जैसा करोगे वैसा भरोगे। हुद हुद की आवाज़ को सुन कर कहा कि ये कह रहा है कि गुनाहगारो अल्लाह से मगफिरत तलब करो। खत्ताफ (लंबे बाजुओं वाला, छोटे पांव वाला, स्याह रंग का परिंदा) की बोली सुन कर कहा कि ये कह रहा है कि नेकी के काम करो, ताकि आगे उनकी जज़ा पाओ।

     कुमारी मि आवाज़ को सुन कर कहा कि ये तस्बीह पढ़ रही है "सुब्हान रब्बियल आ'ला"। चील की आवाज़ को सुन कर कहा कि ये कह रहा है कि रब के बगैर हर चीज़ को फना होजाना है। भट तीतर की आवाज़ को सुन कर कहा कि ये कह रहा है कि जो खामोश रहा वो सलामती में रहा। मुर्ग की आवाज़ को सुन कर कहा कि ये कह रहा है कि ए ग़ाफ़िलो अल्लाह को याद करो। गिद्ध की आवाज़ को सुन कर कहा कि ये कह रहा है कि ए इंसान तुम चाहे जितना ज़िंदा रहो आखिर तुझे मौत आनी है। अकाब की आवाज़ को सुन कर कहा कि ये कह रहा है कि लोगो से दूर रहने में ही उन्स है। मेंढक की आवाज़ को सुन कर कहा कि यके तस्बीह पढ़ रहा है "सुब्हानल रब्बियल कुद्दुस"।

     कयल रहे कि इन परिंदों की हमेशा यह बोली नहीं होती बल्कि बाज़ औक़ात ये बोली उन्होंने बोली।

     आपने कहा कि अल्लाह ने हमें हर चीज़ अता की है ये बतौरे शुक्र है बतौरे फख्र नहीं। जैसे नबीए करीम ﷺ ने फरमाया में औलादे आदम का सरदार हूं मुझे इस पर कोई फख्र नहीं यानी में नेअमत के इज़हार और शुक्र के तौर पर कह रहा हूँ।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 218

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*_नमाज़ छोड़ने का अन्जाम क़ुरआन की रौशनी में_* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     क़ुरआन में जहाँ नमाज़ की फ़ज़ीलते बयान हुई है वहीँ नमाज़ छोड़ने पर सख्त वईदे भी सुनाई गई है। चुनान्चे अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है : जब जन्नती झन्नमियों से पूछेंगे कि तुम्हें कौन सा काम जहन्नम ले गया ? इस पर वो कहेंगे :

"हम नमाज़ नहीं पढ़ते थे।"

*✍🏼सूरए मुदस्सिर 43, पारह 29*

     इस आयत से हर बेनमाज़ी को सबक लेना चाहिये कि कहीं वो भी नमाज़ न पढ़ने की वजह से जहन्नम का हक़दार तो नहीं बन रहा है ?


     हज़रते अय्यूब अन्सारी رضى الله عنه फ़रमाते है : नमाज़ छोड़ना कुफ़्र है।

*✍🏼मकाशफतुल कुलूब*

     इस हदिष का अगरचे उलमा व मुहद्दिसिन ने ये मतलब बयान फ़रमाया है कि कुफ़्र से मुराद कुफ़्र के क़रीब पहुच जाना है। इस मक़ाम पर खाकसार अर्ज़ करता है कि ये क्या कम गुनाह है कि मोमिन होने के बावुजूद आदमी ऐसा काम करे जिसकी वजह से कुफ़्र के क़रीब पहुँच जाए। (अल्लाह तआला की पनाह!)

*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 8

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑨②*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और बेशक तुम्हारे पास मूसा खुली निशानियाँ लेकर तशरीफ़ लाया फिर तुमने उसके बाद (20) बछड़े को माबूद (पूजनीय) बना लिया और तुम ज़ालिम थे (21)


*तफ़सीर*

     (20) यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के तूर पर तशरीफ़ ले जाने के बाद.

     (21) इसमें भी उनकी तकज़ीब है कि हज़रत मूसा की लाठी और रौशन हथेली वग़ैरह खुली निशानियों के देखने के बाद बछड़ा न पूजते.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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Tuesday 25 September 2018

*हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #06


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ऐ मुहब्बत का दावा करने वालो! तू मुहब्बत के राज़ से वाकेफ नहीं, क्योंकि तेरा नफ़्स अब तक जिंदा है और वो अपनी ख्वाहिशात ज़ाहिर कर रहा है और तू उसका गुलाम बन के गुम रहा है। मुहब्बत के क़दम उठाने से पहले तू तेरे नफ़्स को मार डाला! कान और आंख को महबूब के अलावा दुसरो के लिए अंधा और बेहरा बना दे तब ही तुझे तेरे महबूब के तरीके पसन्द आएंगे और तेरे कान को महबूब की बाते अच्छी लगेगी। 

     क्या तुजे पता नहीं? मुहब्बत दावा हम भी करते है और साहबा भी करते थे। फिर भी दोनों के अमलो में कितना फर्क है। हम अमल में फायदा देखते है और वो अमल में महबूब को देखते थे। क्योंकि वो मुहब्बत के राज़ से वाकिफ थे और हम नावाकिफ है। वो नफ़्स को मार के मुहब्बत करते थे  जबकि हम नफ़्स की ताजा रख के दावा करते है। इसी वजह से दोनों के अमलो में फर्क दिखता है।

     हज़रत राबिया बसरिययह رضي الله عنها फरमाती है: अगर तेरी मुह  त सच्ची होती तो तू महबूब के हुक्म की पैरवी करता।

     बेशक आशिक़ माशूक के हुक्म की पैरवी करता है। हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज رحمة الله عليه सच्चे आशिके रसूल थे। आपकी हर वक़्त सुन्नतों पे चलते थे। एक बार आपने वुज़ू किया तो दीठि में ख़िलाल करने की सुन्नत वो भूल गए, थोड़े वक़्त के बाद आपको याद आया तो आपको इसका बहुत अफसोस हुआ। ये सुन्नत छूटने के गम में आप रोते रहे। आपके खलीफा दख्तियार काकी رحمة الله عليه ने अर्ज़ की हुज़ूर क्या बात है, आप क्यों इतना रो रहे हो? आपने फ़रमाया वुज़ू करने मुझसे ख़िलाल की सुन्नत करना में भूल गया, जब जब मुझे वो याद आता है तो मेरी आंखोसे आंसू बहने लगते है! मुझे ये फिक्र है कि क़यामत के दिन नबीए करीम ﷺ मुझसे सवाल करेंगे कि ए मोइनुद्दीन! मेरी सुन्नत क्यों छोड़ दी? तो में क्या जवाब दूंगा, आक़ा को ये मुंह कैसे दिखाऊंगा।

     इसे कहते है सच्ची मुहब्बत! की सिर्फ एक बार महबूब के पसन्द छूट गई वो भी गलती से, फिर भी आपको इतना ज्यादा अफसोस! और हम सुन्नतों की पैरवी तो दूर, जान बूझ कर फ़राइज़ को छोड़ रहे है! हालांकि एक बार ख्वाजा साहब ने फरमाया की क्या मुसलमान नमाज़ में ताखीर कर सकता है? मतलब ये की ख्वाजा साहब ये क़बूल करने राज़ी नही की मुसलमान नमाज़ में ताखीर करे।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 21

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गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ का तरीक़ा* #48


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ के मुस्तहब्बात*

     ★ निय्यत के अलफ़ाज़ ज़बान से कह लेना. जब की दिल में निय्यत हाज़िर हो वरना तो नमाज़ होगी ही नही.

     ★ कियाम में दोनों पंजो के दर मियान 4 उंगल का फ़ासिला होना.

     ★ कियाम की हालत में सजदे की जगह, रूकू में दोनों  क़दमो की पुश्त पर, सजदे में नाक की तरफ, क़ायदे में गोद की तरफ, पहली सलाम में सीधे कंधे की तरफ और दूसरी सलाम में उलटे कंधे की तरफ नज़र करना.

     ★ मुंफरीद को रुकूअ और सजदों में तिन बार से ज्यादा [मगर ताक अदद यानि 5, 7, 9] तस्बीह कहना. 

     "हिल्या" बगैर में हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक वगैरा से  है की इमाम के लिये तसबिहात 5 बार कहना मुस्तहब है.

     ★ जिस को खासी आए उस के लिए मुस्तहसब है की जब तक मुमकिन हो न ख़ासे.

     ★ जमाहि आए तो मुह बंद किये रहिये और न रुके तो हॉट दांत के निचे दबाइये. अगर इस तरह भी न रुके तो कियाम में सीधे हाथ को पुश्त से और गैर कियाम में उलटे हाथ की पुश्त से मुह ढांप लीजिये. 

     जमाहि रोकने का बेहतरीन तरीका ये है की दिल में ख़याल कीजिये की सरकार मदीना और दीगर अम्बिया अलैहिमुस्सलाम को जमाहि कभी नही आती थी. ان شاء الله फौरन रुक जाएगी.

     ★ जब मुगब्बीर "हय्या-अ-ललफला" कहे तो इमाम व मुक्तदि सब का खड़ा हो जाना

     ★ सजदा ज़मीन पर बिल हाइल होना.

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 182-183*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

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*दिलचस्प मालूमात* #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : तक़दीर का मतलब क्या है?

     *जवाब* : हर भलाई, बुराई उस ने अपने इल्मे अज़ली के मुवाफ़िक़ मुक़द्दर फ़रमा दी है जैसा होने वाला था और जो जैसा करने वाला था अपने इल्म से जाना और वही लिख लिया। तो ये नहीं कि जैसा उसने लिख दिया वैसा हम को करना पड़ता है बल्कि जैसा हम करने वाले थे वैसा उसने लिख दिया।

     ज़ैद के ज़िम्मे बुराई लिखी इस लिए की ज़ैद बुराई करने वाला था अगर ज़ैद भलाई करने वाला होता वो उसके लिये भलाई लिखता तो उस के इल्म या उस के लिख देने ने किसी को मजबूर नहीं कर दिया।


     *सवाल* : कोई बुराई सर्ज़द हो जाने पर इसे तक़दीर की तरफ मनसूब करना कैसा है?

     *जवाब* : बुरा काम करके तक़दीर की तरफ निस्बत करना और मशिय्यते इलाही के हवाले करने बहुत बुरी बात है बल्कि हुक्म ये है कि जो अच्छा काम करे उसे मिन जानिबिल्लाह कहे और जो बुराई सर्ज़द हो उस को शामते नफ़्स तसव्वुर करे।

*✍️बहारे शरीअत*

*✍️दिलचस्प मालूमात* 10

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #259


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*हज़रत दाऊद عليه السلام के जानशीन हज़रत सुलेमान عليه السلام*

     सुलेमान عليه السلام दाऊद عليه السلام की बादशाहत और खिलाफत के जानशीन बने। माल व दौलत की विरासत यहां मुराद नहीं बल्कि नबीए करीम ﷺ के इरशाद के मुताबिक़ अम्बियाए किराम के माल व दौलत का किसी को वारिस नहीं बनाया जाता है।

     अबू दाऊद और तिर्मिज़ी ने हज़रते अबू दरदा رضي الله عنه से रिवायत किया कि हुज़ूर ﷺ इरशाद फरमाते है की बेशक उलमा अम्बियाए किराम के वारिस होते है और बेशक अम्बियाए किराम के वुरसा दराहिम व दनानीर के वारिस नहीं होते बल्कि उनके इल्म के वारिस होते है। जिसने इस इल्म को हासिल कर लिया उसने अज़ीम हिस्सा हासिल कर लिया।

     दाऊद عليه السلام के 16 बेटों में से सबसे छोटे सुलेमान عليه السلام थे अगर यहां विरासत माल की मुराद होती तो सब बेटे वारिस होते। सिर्फ सुलेमान عليه السلام न होते, नीज़ बादशाहत और नबुव्वत में भी विरासत लाज़िमी तौर पर जारी नही सिर्फ अल्लाह के फ़ज़्ल से हासिल होती है इसलिये वारिस का जानशीन मायने करना बहुत कामिल और हसीन है।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 217

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*_नमाज़ की फ़ज़ीलत और क़ुरआनी आयात_*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नमाज़ की बेपनाह फ़ज़िलतें है जिनसे हर नमाज़ी फ़ैज़याब हो सकता है उन फ़ज़िलतों और फायदों में से एक ये इलाज है। चुनान्चे फ़रमाया गया :

     जान लो ! अल्लाह के ज़िक्र ही में दिलों का सुकून है।

*✍🏼सूरए रअद, 28, पारा 13*


     एक और मक़ाम पर अल्लाह ने नमाज़ को हर तरह की बुराई व बे-हयाई से बचने का ज़रिया बताया है।

     इर्शाद फ़रमाया : बेशक नमाज़ बे-हयाई और बुराई से रोकती है।


     हदिष में आता है कि एक सहाबी से कोई गुनाह सरज़द हो गया, उन्होंने नबी ﷺ की खिदमत में हाज़िर होकर माफ़ी के लिये दरख्वास्त पेश की। इस पर ये आयत नाज़िल हुई :

     नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों किनारो और कुछ रात गए बेशक नेकियां बुराईयों को मिटा देती है। ये नसीहत है नसीहत मानने वालों के लिये।

*✍🏼सूरए अनक़्बूत 45, पारह 21*


     पता चला कि नमाज़ की बरकतों से लोगों के गुनाह मिट जाते है।

*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 7

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑨①*

سْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब उनसे कहा जाए कि अल्लाह के उतारे पर ईमान लाओ (16) तो कहते है वह जो हम पर उतरा उसपर ईमान लाते हैं (17) और बाक़ी से इन्कार करते हैं हालांकि वह सत्य है उनके पास वाली की तस्दीक़  (पुष्टि) फ़रमाता हुआ (18) तुम फ़रमाओ कि फिर अगले नबियों को क्यों शहीद किया अगर तुम्हें अपनी किताब पर ईमान था (19)


*तफ़सीर*

     (16) इससे क़ुरआने पाक और वो तमाम किताबें मुराद हैं जो अल्लाह तआला ने उतारीं, यानी सब पर ईमान लाओ.

     (17) इससे उनकी मुराद तौरात है.

     (18) यानी तौरात पर ईमान लाने का दावा ग़लत है. चूंकि क़ुरआने पाक जो तौरात की तस्दीक़ (पुष्टि) करने वाला है, उसका इन्कार तौरात का इन्कार हो गया.

     (19) इसमें भी उनकी तकज़ीब है कि अगर तौरात पर ईमान रखते तो नबियों को हरगिज़ शहीद न करते.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #05


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     जब इन बुजुर्गो के बताए राह पे न चलकर दामन छोड़ दिया है, तो ये समजमें नही आता कि उनके दामन को न छोड़ेंगे की रट क्यों लगा रहे है!

     नमाज़ न पढ़नेवाले सुन्नतों पर न चलनेवाले शैतान की पैरवी कर रहे है, गाने बाजे, फिल्मे ड्रामे देखने वाले शैतान की पैरवी कर रहे है, अल गरज़ इस्लाम की शरीअत के खिलाफ जितने भी काम है वो सब शैतान के काम है वो शैतान की पैरवी कर रहे है शैतान का दामन थाम रहे है।

     तो जब पैरवी करके शैतान का दामन पकड़े और ज़बान से बुजुर्गो के दामन पकड़ने का एलान करे! क्या इसमें जहालत का अंधेरा नहीं दिखता?

     जिनसे जितनी मुहब्बत हम रखते है उनके कमो से भी हमे उतनी ही महब्बत होती है। मुहब्बत मुहीब को अंधा व बेहरा बना देता है। वो महबूब के अमल में फायदा व नुक़्शान नही देखता, सिर्फ इतना ही देखता है कि ये काम मेरे महबूब को पसंद है? तो अब मुहब्बत का तकाज़ा ये है कि महबूब को जो पसन्द है उसे हम भी पसन्द करे।

     मजनू को लैला से मुहब्बत थी, तो वो लैला की गली के कुत्ते से भी मुहब्बत करता था! उसकी निगाह कुत्ते की और न थी बल्कि लैला की गली की और थी। तो जब एक दुन्या का आशिक़ अपनी माशुकके गली के कुत्ते को पसंद करता है, तो ए मुसलमानो हम तो अल्लाह के महबूब मुहम्मद मुस्तफा ﷺ से मुहब्बत का दावा करते है तो फिर उनकी सुन्नतों पर अमल करने में शर्म क्यों? हमारे महबूब को चेहरे पे दाढ़ी सजाना पसन्द है तो अब हम ये नहीं देखेंगे कि ये हम पे अच्छी लगेगी या नहीं। क्या तुम मुहब्बत के दावे करके भी उनके अमल में अपना फायदा देख रहे हो? आह! क्या तुम्हें पता नहीं कि मुहब्बत की राह में फायदा देखने वाला मतलब परस्त कहलाता है?

     अब तू खुद फैसला कर की तेरी मुहब्बत सच्ची नहीं? ये मतलब परस्ती की है। जो काम तुजे पसन्द आता हैं उसे अपनाता है और जो काम तेरी चाहत के मुताबिक़ नही उसे तू छोड़ देता है! तो इससे ज़ाहिर होता है कि तू नफ़्स का आशिक़ है नबी का नहीं। जब तू आमाल शैतान के करता है तो नबी का दामन न छोड़ेंगे ऐसे नारे क्यों लगता है?


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 20

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*नमाज़ का तरीक़ा* #47


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ की सुन्नते* #11


*_सुन्नते बादिय्या की सुन्नते_*

     ★जिन फर्ज़ो के बाद सुन्नते है उन में बादे फ़र्ज़ कलाम न करना चाहिये अगरचे सुन्नत हो जाएगी मगर षवाब कम होगा और सुन्नतो में ताखीर भी मकरूह है इसी तरह बड़े बड़े अवरादो वज़ाइफ की भी इजाज़त नहीं। 

     ★ फर्ज़ो के बाद क़ब्ले सुन्नत मुख़्तसर दुआ पर क़नाअत चाहिये वरना सुन्नतो का षवाब कम हो जाएगा। 

*✍🏼बहरे शरीअत, जी.3 स.81*

     ★ सुन्नत व फ़र्ज़ के दरमियान कलाम करने से दुरुस्त तरीन ये है कि सुन्नत बातिल नहीं होती अलबत्ता षवाब कम हो जाता है। यही हुक्म उस काम का है जो मुनाफिये तहरीमा है।

     ★ सुन्नते वही न पढ़िये बल्कि दाए, बाए, आगे, पीछे हट कर पढ़िये या घर जा कर अदा किजिये।

*✍🏼आलमगिरी, जी.1 स.77*

     ★ सुन्नते पढ़ने के लिये घर जाने की वजह से जो फ़ासिला हुवा उस में हर्ज नही।

     ★ जगह बदलने या घर जाने के लिये नमाज़ी के आगे से गुज़रना या उस की तरफ अपना चेहरा करना गुनाह है अगर निकलने की जगह न मिले तो वही सुन्नते पढ़ लीजिये।

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 179*

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*दिलचस्प मालूमात* #03


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     *सवाल* : आख़िरत में किसे अल्लाह का दीदार नसीब होगा?

     *जवाब* : आख़िरत में सुन्नी मुसलमान को अल्लाह का दीदार नसीब होगा।


     *सवाल* : क्या अल्लाह की ज़ात व सिफ़ात के सिवा कोई चीज़ क़दीम है?

     *जवाब* : जी नहीं बल्कि अल्लाह की ज़ात व सिफ़ात के सिवा सब चीज़े हादिस है यानी पहले न थीं फिर मौजूद हुई।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 10

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*तज़किरतुल अम्बिया* #258


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*दाऊद عليه السلام की खिलाफत और अदल व इंसाफ का हुक्म* 

     अल्लाह दाऊद عليه السلام से फरमाता है कि तुम किसी शाही खानदान के फर्द नहीं हो कि तुम्हें ये हुकूमत और तख्त वर्सा में मिला हो। तुम एक गैर मारूफ चरवाहे थे, हमने अपने फ़ज़ल व करम से आपके लिये ये राह हमवार की और अपनी महेरबानी से बनी इस्राइल का ताजदार बनाया। और वसी व अर्ज़ी सल्तनत मरहमत फ़रमा दी, और मसन्दे खिलाफत पर मुतमक्क़ीन कर दिया। इस एहसान का शुक्र करने का ये तरीक़ा है कि हर फैसला अदल व इंसाफ के मुताबिक़ करो, और अपनी पसंद व नापसंद को किसी तरह अंदाज़ न होने दो। अगर तुमने अपनी ख्वाहिशे नफ़्स पर इंसाफ को क़ुर्बान किया तो याद रखना अल्लाह की राह से बहक जाओगे। उसकी तौफ़ीक़ का दामन तुम्हारे हाथ से छूट जायेगा।


     हज़रत दाऊद عليه السلام के जालूत को क़त्ल करने का वाकिया हज़रत तालुत के वाकिया में ज़िक्र किया जायेगा ان شاء الله.

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 215

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*नमाज़ की अहमिय्यत और क़ुरआनी आयात* 


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नमाज़ की अहमिय्यत समझने के लिये ये जानना काफी है कि अल्लाह ने क़ुरआन में जितनी ताकीद नमाज़ की फ़रमाई है उतनी ताकीद किसी और बात की नहीं फ़रमाई। अल्लाह का बार बार नमाज़ की ताकीद फरमाना ही उसकी अहमिय्यत को ज़ाहिर कर रहा है। चुनान्चे अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है :

     मुसलमान वो है जो ईमान रखते है ग़ैब की बातों पर और नमाज़ कायम करते है और अल्लाह की दी हुई रोज़ी में से उसकी राह में खर्च करते है।

*सूरए बक़रह, 3*


     एक जगह नमाज़ छोड़ने की बुराई का ज़िक्र करते हुए अल्लाह फरमा रहा है :

     नमाज़ क़ायम करो और मुश्रिकों जेसे न बनो।

*सूरए रूम, 31*


     अल्लाह ने नमाज़ को ईमान की अलामत (निशानी) बताया और नमाज़ न पढ़ने को मुश्रिकों की पहचान बताया है उससे बढ़कर नमाज़ की अहमिय्यत समझने के लिये और क्या बात हो सकती है।

*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 6

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑨ⓞ*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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किस बुरे मोलों उन्होंने अपनी जानों को ख़रीदा कि अल्लाह के उतारे से इन्कार करें (12) इस जलन से कि अल्लाह अपनी कृपा से अपने जिस बन्दे पर चाहे वही (देव वाणी) उतारे (13) तो ग़ज़ब पर ग़ज़ब (प्रकोप) के सज़ावार (अधिकारी) हुए (14) और काफ़िरों के लिये ज़िल्लत का अज़ाब है (15)


*तफ़सीर*

     (12) यानी आदमी को अपनी जान बचाने के लिए वही करना चाहिये जिससे छुटकारे की उम्मीद हो. यहूद ने बुरा सौदा किया कि अल्लाह के नबी और उसकी किताब के इन्कारी हो गए.

     (13) यहूदियों के ख़्वाहिश थी कि आख़िरी नबी का पद बनी इस्राइल में से किसी को मिलता. जब देखा कि वो मेहरूम रहे और इस्माईल की औलाद को श्रेय मिला तो हसद के मारे इन्कार कर बैठे. इस से मालूम हुआ कि हसद हराम और मेहरूमी का कारण है.

     (14) यानी तरह तरह के ग़जब और यातनाओं के हक़दार हुए.

     (15) इससे मालूम हुआ कि ज़िल्लत और रूस्वाई वाला अज़ाब काफ़िरो के साथ ख़ास है. ईमान वालों को गुनाहों की वजह से अज़ाब हुआ भी तो ज़िल्लत और रूस्वाई के साथ न होगा. अल्लाह तआला ने फ़रमाया :“व लिल्लाहिल इज़्ज़तु व लिरसूलिही व लिलमूमिनीना” यानी और इज़्ज़त तो अल्लाह और उसके रसूल और मुसलमानों ही के लिये है मगर मुनाफ़िक़ों को ख़बर नहीं. (सूरए मुनाफ़िक़ों, आयत 8)

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हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     गौष का दामन नही छोड़ेंगे" का पुरजोश नारे लगाने वालों, गौषे आज़म की किताब 'गुण्यतुत्तालिबिन' आप फरमाते है: बेनामाज़ी को मुसलमानों के क़ब्रस्तान में दफन न किया जाये और उसकी नमाज़े जनाज़ा भी न पढ़ी जाये! क्योंकि वो नमाज़ न पढ़ने से इस्लाम के दायरे से खारिज हो गया है।

     ख्वाजा गरीब नवाज फरमाते है: नमाज़ को तर्क करने वाला बहुत शर्मिंदगी को जेलेंगा।

     हज़रत सुल्तान बाहु फरमाते है: बेनामाज़ी सुव्वर से भी बदतर है।

     जब बेनामाज़ी के लिये इन बुजुर्गो का ये कहना है, तो नमाज़ के साथ दूसरे भी बुरे काम करने वालो के लिए क्या हुक्म होगा!

     फिर बेनामाज़ी को कहा हक़ पहोचता है कि गौष का दामन नहीं छोड़ेंगे! जुगरियो को कहा ये हक़ पहोचता है कि वो कहे ख्वाजा का दामन नहीं छोड़ेंगे! बदकरो को कहा हक़ पहोचता है कि कहे शहीदे आज़म का दामन नहीं छोड़ेंगे!

     आह! तुम दामन छोड़ने की बात कहां कर रहे हो! तुमने तो दामनो को पांव के नीचे कुचल दिया है! नमाज़ अदा न करने वालो ने बुजुर्गो का नमाज़ पढ़ने का अमल छोड़ दिया।

     दामन पकड़ने का मतल उनके तऱीके के मुताबिक़ अमल करना है, वो नमाज़ी थे, हमे भी नमाज़ी बनना है, वो सुन्नतों पर अमल करने वाले थे, हमे भी सुन्नतों पर अमल करने वाला बनना है। वो हराम और नाजायज़ कामो से दूर थे तो हमे भी इन कामो से दूर रहना चाहिए इसी का नाम है बुज़िर्गो का दामन पकड़ना।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 19

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Sunday 23 September 2018

नमाज़ का तरीक़ा* #46


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*नमाज़ की सुन्नते* #10


*_सलाम फेरने के बाद की सुन्नते_*

★ सलाम के बाद इमाम के लिए सुन्नत ये है की दाई या बाई तरफ रुख कर ले, 

★ दाई तरफ अफज़ल है


★ और मुक्तदियो की तरफ रुख कर के भी बैठ सकता है जब की आखिरी सफ तक भी कोई इस के सामने [यानि इस के चेहरे की सीध में] नमाज़ न पढ़ता हो.


★ अकेले नमाज़ पढ़ने वाला बैगेर रुख बदले अगर वही दुआ मांगे तो जाइज़ है.


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼आलमगिरी, जी. 1 स. 77*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 179*

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दिलचस्प मालूमात* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : अल्लाह की ज़ाती सिफ़ात कौन कौन सी हैं?

     *जवाब* : हयात, क़ुदरत, सुनना, देखना, कलाम, इल्म और ईरादा ये अल्लाह की ज़ाती सिफ़ात है।


     *सवाल* : अल्लाह के क़ादिर होने से क्या मुराद है?

     *जवाब* : मुराद ये है कि वो हर मुमकिन पर क़ादिर है कोई मुमकिन उस की क़ुदरत से बाहर नहीं।


     *सवाल* : दुन्या की ज़िंदगी मे जागती आंखों से अल्लाह का दीदार किस के लिये खास है?

     *जवाब* : दुन्या की ज़िंदगी मे अल्लाह का दीदार इमामुल अम्बिया हज़रते मुहम्मद मुस्तफा ﷺ के लिये खास है।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 10

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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तज़किरतुल अम्बिया* #257


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*लोहे का दाऊद عليه السلام के हाथ मे नर्म हो जाना*

     दाऊद عليه السلام के हाथ मे लोहा मोम और गुंधे हुए आटे की तरह नर्म हो जाता था। आग में नर्म करने और हथौड़े से कूटने की ज़रूरत पेश नहीं आती थी आप जैसा चाहते उसी तरह लोहे को हाथ से इधर उधर फेर कर ज़िरह बना लेते थे। अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ आप बहुत खूबसूरत और मुअतदिल ज़िरह बनाते, न बहुत बड़ी और न बहुत छोटी। इसमें कील भी एक खास मिक़दार की लगाते। ताहम बाज़ मुफ़स्सिरिन ने कहा  आपको कील लगाने की ज़रूरत ही दरपेश नहीं आती, लोहा नर्म हो जाता जैसे चाहते आप उसको उसी तरह फेर लेते।

     हज़रत मक़ातिल से मरवी है कि आप عليه السلام जब से बनी इस्राइल ले बादशाह बने तो आपने ये अमल शुरू किया कि रात को आम आदमी की हैसियत से बाहर तशरीफ़ ले जाते, जो शख्स मिलता उससे पूछते दाऊद बादशाह कैसा है? एक मर्तबा आपकी मुलाक़ात एक फ़रिश्ते से हुई जो इंसानी शक्ल में था जब आपने उससे सवाल किया तो उसने कहा: आदमी तो बहुत अच्छा है सिर्फ एक बात उसमें न पाई जाये तो वो बहुत ही कामिल इंसान है, आपने पूछा वो कौन सी बात है? उसने कहा कि बैतूल माल से रिज़्क़ खाते है अपने हाथ की कमाई से खाएं तो उनके फ़ज़ाइल में तकमील पाई जाये।

     आप عليه السلام ने अल्लाह से दुआ की ए अल्लाह! मुझे ज़िरह बनाने का इल्म अता फरमा दे और मुझपर ज़िरह बनानी आसान फरमा दे। अल्लाह ने आपको ज़िरह बनाने का इल्म अता फरमा दिया और लोहे को आपके हाथ मे नरम फ़रमा दिया। आप उसकी आमदनी का तिहाई हिस्सा मुसलमानों की मसलेहत में खर्च फरमाते। एक ज़िरह हर रोज़ तैयार फरमाते थे 1000, 4000 और 6000 दिरहम तक आपकी बनाई हुई ज़िरहें फरोख्त हुई। उसकी आमदनी में से आप अपनी ज़ात व अपने अहल व अयाल पर खर्च करते। फुक़रा और मिस्कीन को भी इसी माल से देते। 360 ज़िरहें आपने तैयार फ़रमाई थी उनको फरोख्त करके आपने इतने दिरहम हासिल कर लिये थे कि आप बैतूल माल के मोहताज न रहे बल्कि इससे कसीर रक़म गुरबा को भी दी।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 208

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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नमाज़ की बरक़त से गुनाह मिट जाते है*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

हदिष में आता है कि एक सहाबी से कोई गुनाह सरज़द हो गया, उन्होंने नबी ﷺ की खिदमत में हाज़िर होकर माफ़ी के लिये दरख्वास्त पेश की। इस पर ये आयत नाज़िल हुई :

     नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों किनारो और कुछ रात गए बेशक नेकियां बुराईयों को मिटा देती है। ये नसीहत है नसीहत मानने वालों के लिये।

*✍🏼सूरए अनक़्बूत 45, पारह 21*


     पता चला कि नमाज़ की बरकतों से लोगों के गुनाह मिट जाते है।

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑧⑨*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब उनके पास अल्लाह की किताब (क़ुरआन) आई जो उनके साथ वाली किताब (तौरात) की तस्दीक़ (पुष्टि) फ़रमाती है (9) और इससे पहले वो इसी नबी के वसीले (ज़रिये) से काफ़िरों पर फ़त्ह मांगते थे (10) तो जब तशरीफ़ लाया उनके पास वह जाना पहचाना, उस से इन्कार कर बैठे (11) तो अल्लाह की लानत इन्कार करने वालों पर.


*तफ़सीर*

     (9) सैयदे अम्बिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत और हुज़ूर के औसाफ़ (ख़ूबियों) के बयान में. (ख़ाज़िन व तफ़सीरे कबीर)

     (10) सैयदे अम्बिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम केनबी बनाए जाने और क़ुरआन उतरने से पहले यहूदी अपनी हाजतों के लिये हुज़ूर के नामे पाक के वसीले से दुआ करते और कामयाब होते थे और इस तरह दुआ किया करते थे – “अल्लाहुम्मफ्तह अलैना वन्सुरना बिन्नबीयिल उम्मीय्ये” यानी ऐ अल्लाह, हमें नबिय्ये उम्मी के सदक़े में फ़त्ह और कामयाबी अता फ़रमा. इससे मालूम हुआ कि अल्लाह के दरबार में जो क़रीब और प्रिय होते हैं उनके वसीले से दुआ कुबूल होती है. यह भी मालूम हुआ कि हुज़ूर से पहले जगत में हुज़ूर के तशरीफ़ लाने की बात मशहूर थी, उस वक़्त भी हुज़ूर के वसीले से लोगो की ज़रूरत पूरी होती थी.

     (11) यह इन्कार दुश्मनी, हसद और हुकूमत की महब्बत की वजह से था.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #03


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     क्या आप जानते नही ! दुन्या में जब एक बाप का बेटा नाफ़रमान होता है तो बाप के लिए वो कुछ काम का नही रहता। बाप उससे नाराज हो के कहता है अगर तुझे ऐसे ही काम करने है तो मुझे अपना बाप न कहना, में तुझे अपना बेटा समझने तैयार नहीं, तूने मुआशरे में मेरा नाक कटा दिया, अब हमें घर से बाहर निकलते वक्त 100 बार सोचना पड़ता है, की अभी कोई कुछ कह न दे।

     जबकि बाप के अख़लाक़ अच्छे है, सिर्फ बेटा निकम्मा नकारा है। फिर भी बेटे की निस्बत और सम्बंध बाप के साथ है उस को लेके बाप को ये सब सुनना पड़ता है, आखिरकार वो बेटे से रिश्ता तोड़ देता है।

     जब एक बाप अपने बेटे के बुरे अख़लाक़ की वजह से अपने बेटे को बेटा कहने को तैयार नही है, तो क्या गौषे पाक رضي الله عنه बेनामाज़ी की निस्बत अपनी तरफ लगाना पंसद फरमाएंगे? क्या गरीब नवाज رضي الله عنه शराबी जुगारी को अपनी निस्बत में रखना पसंद करेंगे? बुजुर्गो और वली शैतान की निस्बत अपनी और कैसे मनसूब कर सकते है?

     हम अपनी ज़बान से चाहे कितने भी नारे लागले इससे कुछ फायदा हासिल न होगा। जम कामयाब तब कहलाएंगे जब ये बुजुर्ग हमे अपना गुलाम बना ले, और ये अज़ीम सौगात हमे तब ही हासिल होंगी जब हम उनके बताए रिश्ते पे चल पड़ेंगे।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 18

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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नमाज़ का तरीक़ा* #45


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ की सुन्नते* #09


*_सलाम फेरने की सुन्नते_*

★ इन अलफ़ाज़ के साथ दो बार सलाम फेरना "अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह"


★ पहले सीधी तरफ फिर उलटी तरफ मुह फेरना


★ इमाम के लिये दोनों सलाम बुलंद आवाज़ से कहना सुन्नत है मगर दूसरा पहले से कम आवाज़ में कहे।


★ हर तरफ के सलाम में उस तरफ वाले मुक्तदियो और उन उलमा की निय्यत करे नीज़ जिस तरफ इमाम हो उस तरफ के सलाम में इमाम की भी निय्यत करे और अगर इमाम उस के ठीक सामने की सीध में हो तो दोनों सलामो में इमाम की भी निय्यत करे


★ अकेले नमाज़ पढ़ने वाला किरामन कातिबिन् और उन मलाएका की निय्यत करे जिन को अल्लाह ने हिफाज़त के लिये मुक़र्रर किया है और निय्यत में कोई अदद मुअय्यन न करे। 


★ मुक्तदि का तमाम इन्तिक़ालात यानि रूकू सुजूद वग़ैरा इमाम के साथ होना। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 178-179*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Saturday 22 September 2018

*दिलचस्प मालूमात* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : वाजिबुल वुजूद किस को कहते हैं और इस से क्या मुराद है?

     *जवाब* : ज़ाते बारी तआला को वाजिबुल वुजूद कहते है और इस से मुराद वो ज़ात है जिस का वुजूद ज़रूरी हो।


     *सवाल* : अल्लाह के क़दीम और अज़ली होने का क्या मतलब है?

     *जवाब* : अल्लाह के क़दीम और अज़ली होने का क्या मतलब ये है कि वो हमेशा से है।


     *सवाल* : अल्लाह के अबदी होने से क्या मुराद है?

     *जवाब* : अल्लाह के अबदी होने से मुराद ये है कि वो हमेशा रहेगा।

*✍️बहारे शरीअत*

*✍️दिलचस्प मालूमात* 9

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #256


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*दाऊद عليه السلام की बादशाही*

     हज़रत इब्ने अब्बास رضي الله عنه से मरवी है कि 36 हजार आदमी रात को दाऊद عليه السلام की हिफाज़त करने वाले होते सुबह होती तो आप उनको फरमाते तुम लौट जाओ तुम पर अल्लाह का नबी राज़ी है। (इतनी तादाद में लोग अपने शौक़ व मुहब्बत की वजह से आपकी हिफाज़त के लिये आते थे इसमें अपनी सआदत और बाइसे बरकत समझते)

     एक रिवायत में है कि बनी इस्राइल के एक शख्स ने दाऊद عليه السلام के पास एक शख्स पर गाये ला दावा किया उसने इनकार किया, आप عليه السلام ने मुद्दई से गवाह तलब किये उसके पास गवाह नहीं थे। आपने उन दोनों को कहा तुम दोनों जाओ में इस मामले में ग़ौरो फिक्र करूँगा। वो दोनों आपकी महफ़िल से चले गये।

     दाऊद عليه السلام को ख्वाब में कहा गया कि मुद्दई को क़त्ल कर दो, आपने ख्याल किया ये ख्वाब है मुझे इस मामले में जल्दी नहीं करनी चाहिये, दूसरी रात फिर ख्वाब में आपको यही कहा गया कि उस शख्स को क़त्ल कर दो आपने फिर भी उस पर अमल न किया। तीसरी रात फिर आपको ये कहा गया कि उस शख्स को क़त्ल कर दो या तुम पर अल्लाह की तरफ से गिरफ्त आयेगी। आपने उस शख्स की तरफ पैगाम भेज कर उसे बुलवा लिया। आपने कहा मुझे अल्लाह ने हुक्म दिया है कि में तुम्हें क़त्ल कर दूं उसने कहा कि आप मुझे बगैर गवाहों और बगैर किसी सबूत के क़त्ल करायेंग? आपने फ़रमाया: हां क़सम है अल्लाह की में अल्लाह का हुक्म तुम पर ज़रूर जारी करूँगा।

     उस शख्स ने कहा आप जल्दी न करें क्योंकि में आपको असल बात बताता हूँ मै इस गाय के जुर्म की वजह से इस गिरफ्त में नहीं आया, बल्कि मेने इस शख्स के बाप को धोके से क़त्ल कर दिया था और उसे ज़ाहिर नहीं होने दिया था। में इस गुनाह की वजह से अल्लाह की गिरफ्त में आ गया हूँ। दाऊद عليه السلام ने उसे क़त्ल करने का हुक्म दे दिया।

     इस वाकिये के बाद बनी इस्राइल पर आपकी बहुत बड़ी हैबत और अज़ीम रॉब तारी हो गया। इस तरह आपकी बादशाहत का दबदबा हर शख्स के दिल मे बैठ गया।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 207

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*बन्दे की तौबा पर शैतान की बद हवासी*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया: जब बन्दा 40 बरस की उम्र को पहुंच जाए और उस की भलाई उस के शर पर गालिब न आए तो शैतान उस की पेशानी चुम कर कहता है कि "में इस चेहरे पे क़ुर्बान जो कभी फ़लाह नहीं पाएगा।" 

     फिर अगर अल्लाह उस बन्दे पर एहसान फरमाए और वो शख्स अल्लाह की बारगाह में तौबा कर ले और अल्लाह उसे गुनराही से बचा ले और जहालत की तारीकियों से निकाल दे तो शैतान मलऊन कहता है: हाए अफसोस! इसने मेरी आँखें ठंडी करने के लिये सारी उम्र गुमराही में गुज़ारी फिर अल्लाह ने इसकी तौबा की वजह से इसे जहालत के अंधेरो से निकाल दिया।

*✍️आंसुओं का दरिया* 139

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑧⑧*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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और यहूदी बोले हमारे दिलों पर पर्दें पड़े हैं(7) बल्कि अल्लाह ने उनपर लानत की उनके कुफ़्र के कारण तो उनमें थोड़े ईमान लाते हैं (8)


*तफ़सीर*

     (7) यहूदियों ने यह मज़ाक उड़ाने को कहा था. उनकी मुराद यह थी कि हुज़ूर की हिदायत को उनके दिलों तक राह नहीं है. अल्लाह तआला ने इसका रद्द फ़रमाया कि अधर्मी झूटे हैं. अल्लाह तआला ने दिलों को प्रकृति पर पैदा फ़रमाया है, उनमें सच्चाई क़ुबूल करने की क्षमता रखी है. उनके कुफ़्र की ख़राबी है कि उन्होंने नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत का इक़रार करने के बाद इन्कार किया. अल्लाह तआला ने उनपर लअनत फ़रमाई. इसका असर है कि हक़ (सत्य) क़ुबूल करने की नेअमत से मेहरूम हो गए.

     (8) यह बात दूसरी जगह इरशाद हुई : “बल तबअल्लाहो अलैहा बकिकुफ्रिहिम फ़ला यूमिनूना इल्ला क़लीला” यानी बल्कि अल्लाह ने उनके कुफ़्र के कारण उनके दिलों पर मोहर लगा दी है तो ईमान नहीं लाते मगर थोडे. (सूरए निसा, आयत 55).

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*हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     दुन्या में जो लोग किसी पार्टी का झंडा लिये चलते है तो उनको पार्टी के सपोर्टर कहा जाता है। अगर वो दंगे करे, लोगो को सताये, गालिया दे तो अवाम इस बिना पर पार्टी को जिम्मेदार ठहराती है। बेशक पार्टी के सिद्धांत बुरे न हो पर पार्टी के सपोर्टर के अख़लाक़ बुरे हो तो लोग पार्टी को ही बुरा कहते है।

     इसी तरह दारू पीन वाले झंडा लेके चले कि गौष का दामन न छोड़ेंगे!  बदकार लोग झंडा लेके चले कि ख्वाजा का दामन न छोड़ेंगे! चोर झंडा लेके चले कि हुसैन का दामन न छोड़ेंगे! लंफ़ंगे झंडा लेके चले कि मुश्किलकुशा का दामन न छोड़ेंगे! तो अब जो लोग ये नही जानते कि मुश्किलकुशा कौन है? गौषे आज़मे कौन है? तो देखने वाले तो यही समजेंगे की जो जिस पार्टी का झंडा लेके फिरता है उस पार्टी की राह भी उनके सपोर्टर की तरह ही होगी! 

     और जो इन बुज़ुर्गणे दिन को जानते है लेकिन उनसे अकीदत नहीं रखते तो वो लोग ऐसे बद अमलो के हाथ मे झंडा देख के उनका मजाक उड़ाएंगे! इसी लिए नारा लगाने वालों को अपने बद अमलो से बुजुर्गो के नाम को खराब नहीं करना चाहिये। सिर्फ नारे बाज़ी करके अपनी झहलत का एलान नहीं करना चाहिये। बल्कि सर से ले कर पाऊं तक उन बुजुर्गो के रंग में रंगजान चाहिये।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 17

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*नमाज़ का तरीक़ा* #44


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*नमाज़ की सुन्नते* #08


*_क़दह की सुन्नते_*

★ दूसरी रकअत के सजदों से फारिग हो कर बाय पाऊ बिछा कर दोनों सुरीन उस पर रख कर बैठना और सीधा क़दम खड़ा रखना

सीधे पाऊ की उंगलिया किब्ला रुख करना


★ सीधा हाथ सीधी रान पर और उल्टा हाथ उलटी रान पर रखना

★ उंगलिया अपनी हालत पर यानि [normal] छोड़ना की न ज्यादा खुली हुई नबिल्कुल मिली हुई.

★ उंगलियो के कनारे घुटनो के पास होंना, घुटने पकड़ना न चाहिए.


★ अत्तहियात में शहादत पर इशारा करना. 

★ इसका तरीका ये है की छुंगलिया और पास वाली को बंद कर लीजिये, अंगूठे और बिच वाली का हल्क़ा बाधिये और "लाम" पर कलिमे की ऊँगली उठाइये इस को इधर उधर मत हिलाइये और "इला" पर रख दीजिये और सब उंगलिया सीधी कर लीजिये.


★ दुसरे क़ायदे में भी इसी तरह बैठिये जिस तरह पहले में बैठे थे और अत्तहिय्यत भी पढ़िये।


★ उसके बाद दुरुदे इब्राहिम पढ़िये। 


★ नवाफ़िल और सुन्नते गैर मुअक्कदा के क़ायदे ए उला में भी अत्तहिय्यत और दुरुदे इब्राहिम पढ़ना सुन्नत है। 


★ अब दुआ ए मासुरा पढ़िये। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 177-178*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Friday 21 September 2018

तज़किरतुल अम्बिया* #255


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*पहाड़ और परिंदे दाऊद عليه السلام के ताबे*

     अल्लाह ने पहाड़ो को आपके साथ मुसख्खर कर दिया यानी पहाड़ आपके ताबे थे आप जहां चलते पहाड़ आपके साथ चलते या आप जिस जगह पहाड़ो को आपके साथ ले जाने का इरादा फरमाते पहाड़ वहां चले जाते। आप का मोजिज़ा अल्लाह की कामिल हिकमत व क़ुदरत पर दलालत करता है। आप की आवाज़ बहुत हसीन थी,  आवाज़ में रॉब और दबदबा भी था। जब आप अच्छी आवाज़ से ज़बूर शरीफ पढा करते तो पहाड़ों से भी तस्बिहात की हसीन व जमील गुनगुनाहट सुनाई देती।

     इसमें अल्लाह की क़ुदरत के कई कारनामे मौजूद है। यानी पहाड़ों के जिस्म में ज़िन्दगी पैदा फरमाता है फिर उन्हें शऊर अता फरमाता है फिर उन्हें क़ुदरत से नवाजता है फिर उन्हें बोलने की ताक़त देता है कि वो अल्लाह की तस्बीहात पढ़ते है, इसकी मिसाल क़ुरआन में एक और भी है: "जब उस (मूसा) के रब ने अपनी तजल्लियात का ज़हूर पहाड़ पर फ़रमाया।

     यानी अल्लाह ने पहाड़ में अक़्ल व फ़हद पैदा किये, फिर उसे अपने सिफ़ाती नूर के देखने के लिये ताक़त व समझ अता किये और देखने पर वो पहाड़ बर्दाश्त न कर सका।

     हज़रत दाऊद عليه السلام के खुश आवाजी से ज़बूर पढ़ने और तसबिहात पढ़ते तो परिंदे आप के करीब आ कर कान लगाकर सुनते थे इतने क़रीब हो जाते थे कि आप परिंदों को गर्दन से पकड़कर उनसे प्यार करते।

     बाज़ हज़रात ने बयान किया है कि दाऊद عليه السلام की आवाज़ में रब ने ऐसा अजीब असर रखा था कि आप ज़बूर पढ़ते तो चलता पानी रुक जाता दरख्तों पर ये असर होता कि गोया वो भी ज़बाने हाल से आपके साथ तसबिहात पढ़ रहे है और उनके पत्ते झड़ने शुरू हो जाते।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 204

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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नफ्सानी ख्वाहिशात का वबाल*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     जिसे महरूमी ने बिठा रखा है, ये तौबा करने वालों का काफिला है तू भी इनके साथ शरीके सफर हो जा। तेरे पास न तो आंसुओं का कोई खज़ाना है और न ही अफसोस करने वाला दिल है। में तुझे बे यारो मददगार देख रहा हु।ये बुढापे की घण्टी कूच का एलान कर रही है। ए शख्स आख़िरत की तैयारी कर ले कब तक उज़्र करता रहेगा? कब तक सुस्ती करेगा? कितनी गफलत करेगा?

     में क़यामत के दिन तुझे माज़ूर नहीं पाता। तेरे विसाल का घर वीरान है जब की जुदाई का घर आबाद है। क़दम बढा शायद तौबा से कोताहियों का इज़ाला हो जाए और सहरी के वक़्त एक सजदा ऐसा कर ले जो तुझे क़यामत की होलनकियों से नजात दिलाए।

*✍️आंसुओं का दरिया* 137

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-10, आयत, ⑧⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ये हैं वो लोग जिन्होंने आख़िरत के बदले दुनिया की ज़िन्दग़ी मोल ली, तो न उनपर से अज़ाब हल्का हो और उनकी मदद की जाए.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑧⑦*

     और बेशक हमने मूसा को किताब अता की (1) और उसके बाद एक के बाद रसूल भेजे (2) और हमने मरयम के बेटे ईसा को खुली निशानियां अता फ़रमाई (3) और पवित्र आत्मा (4) से उसकी मदद की(5) तो क्या जब तुम्हारे पास कोई रसूल वह लेकर आए जो तुम्हारे नफ़्स (मन) की इच्छा नहीं, घमण्ड करते हो तो उन (नबियों) में एक गिरोह (समूह) को तुम झुटलाते हो और एक गिराह को शहीद करते हो (6)


*तफ़सीर*

     (1) इस किताब से तौरात मुराद है जिसमें अल्लाह तआला के तमाम एहद दर्जे थे. सबसे अहम एहद ये थे कि हर ज़माने के नबियों की इताअत (अनुकरण) करना, उन पर ईमान लाना और उनकी ताज़ीम व तौक़ीर करना.

     (2) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम तक एक के बाद एक नबी आते रहे. उनकी तादाद चार हज़ार बयान की गई है. ये सब हज़रत मूसा की शरीअत के मुहाफ़िज़ और उसके आदेश जारी करने वाले थे. चूंकि नबियों के सरदार के बाद किसी को नबुव्वत नहीं मिल सकती, इसलिये हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की शरीअत की हिफ़ाज़त और प्रचार प्रसार की ख़िदमत विद्वानों और दीन की रक्षा करने वालों को सौंपी गई.

      (3) इन निशानियों से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के मोज़िज़े (चमत्कार) मुराद हैं जैसे मुर्दे ज़िन्दा कर 

देना, अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देना, चिड़िया पैदा करना, ग़ैब की ख़बर देना वग़ैरह.

     (4) रूहिल कुदुस से हज़रत जिब्रील मुराद हैं कि रूहानी हैं, वही (देववाणी) लाते हैं जिससे दिलों की ज़िन्दगी है. वह हज़रत ईसा के साथ रहने पर मामूर थे. आप 33 साल की उम्र में आसमान पर उठाए गए, उस वक्त तक हज़रत जिब्रील सफ़र व सुकूनत में कभी आप से जुदा न हुए. रूहुल क़ुदुस की ताईद (समर्थन) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की बड़ी फ़ज़ीलत है. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के कुछ मानने वालों को भी रूहुल क़ुदुस की ताईद (मदद) हासिल हुई. सही बुख़ारी वग़ैरह में है कि हज़रत हस्सान (अल्लाह उनसे राज़ी) के लिये मिम्बर बिछाया जाता. वह नात शरीफ़ पढ़ते, हुज़ूर उनके लिये फ़रमाते “अल्लाहुम्मा अय्यिदहु बिरूहिल क़ुदुस” (ऐ अल्लाह, रूहुल क़ुदुस के ज़रिये इसकी मदद फ़रमा).

      (5) फिर भी ऐ यहूदियो, तुम्हारी सरकशी में फ़र्क़ नहीं आया.

      (6) यहूदी, पैग़म्बरों के आदेश अपनी इच्छाओं के ख़िलाफ़ पाकर उन्हें झुटलाते और मौक़ा पाते तो क़त्ल कर डालते थे, जैसे कि उन्होंने हज़रत ज़करिया और दूसरे बहुत से अम्बिया को शहीद किया. सैयदुल अंबिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम  के पीछे भी पड़े रहे. कभी आप पर जादू किया, कभी ज़हर दिया, क़त्ल के इरादे से तरह तरह के धोखे किये.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     अगर हमारे नारे सच्चे होते तो मस्जिदे खाली न दिखाई देती, शादियो में नाच, गाना देखने को न मिलता, हमारी मां बहने बिना पर्दे के बाजारों में न गुमती, हमारे घरों में गाने बजे ओर गन्दी फिल्मे न दिखाई देती, हमारी औरते गेर मरहम मर्दो के सामने यूँ अपना दिखावा न करती।

     बल्कि हमारे नारे सच्चे होते तो आज मस्जिदे आबाद होती, हमारे घरों में गानों की जगह तिलावते क़ुरआन सुनाई देता, शादिया सुन्नत के मुताबिक़ होती, हमारी औरते बा पर्दा रहती।

     लेकिन कहा हम और कहा गौषे पाक رضي الله عنه! कहा हम और कहा गरीब नवाज رضي الله عنه! हमारे जैसो से उनका क्या रिश्ता? अमल को छोड़ के शब्दों को फ़ज़ीलत देने वालो के लिए तो ये कहावत ही सही है...ये मुंह और मसुरकी दाल!


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 16

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*नमाज़ का तरीक़ा* #43


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ की सुन्नते* #07


_*दूसरी रकअत के लिये उठने की सुन्नते*_

★ जब दोनों सज्दे कर ले तो दूसरी रकअत के लिये पन्जो के बल, घुटनो पर हाथ रख कर खड़ा होना सुन्नत है। 


★ हा कमज़ोरी या पाउ में तकलीफ वग़ैरा मजबूरी की वजह से ज़मीन पर हाथ रख कर खड़े होने में हरज नहीं। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 176*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #254


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*दाऊद عليه السلام की बादशाहत का ज़िक्र*

     ए दाऊद! हमने तुझे ज़मीन में नायब किया तु लोगों में सच्चा हुक्म कर और ख्वाहिश के पीछे न जाना कि तुझे अल्लाह की राह से बहका देगी, बेशक वो जो अल्लाह की राह से बहकते है उनके लिये सख्त अज़ाब है इसलिये कि वो अज़ाब के दिन को भूल बैठे।

     दाऊद عليه السلام को नबुव्वत और बादशाहत दोनों हासिल थी। आप को अल्लाह ने जो फ़रमाया: ख्वाहिश के पीछे न जाना, इसका मतलब ये है कि आपको ख्वाहिश के पीछे चलने से उम्मत की तालीम के लिये रोका गया है, कि वो ग़ौरो फिक्र करें। और आपको जो हुक्म दिये गये है वो उनकी ताबेदारी करें। जब ये खिताब मासूम को हो सकता है तो दूसरों को तो यक़ीनन ये हुक्म होना ही है।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 203

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लोगों की चार अक़्साम*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते अबू अली رحمة الله عليه फरमाते है की मक़ामे फना (यानी वो मर्तबा जिस तक बन्दा ब ज़रियाए इबादत दर्जा ब दर्जा तरक्की हासिल करता है, उस) मे लोगों की चार अक़्साम है।

     पहला वो शख्स जिस के दिल पर अल्लाह की अज़मत और मुहब्बत गालिब आ गई और वो अल्लाह के ज़िक्र में मशगूल हो कर दूसरों से गाफिल हो गया। अल्लाह में इरशाद फ़रमाया: 

वो मर्द जिन्हें गाफिल नहीं करता कोई सौदा और न खरीदो फरोख्त अल्लाह की याद से।

*ث ١٨ النور، ٣٧*

     दूसरा वो शख़्स जिसने अल्लाह से सच्ची इबादत, इज़हारे बंदगी, खालिस परहेज़गारी और वफादारी का वादा किया है, अल्लाह फरमाता है:

कुछ वो मर्द है जिन्हों ने सच्चा कर दिया जो अहद अल्लाह से किया था।

*ث ۲۱، الاحزاب، ٢٣*

     तीसरा वो शख्स जिसका कलाम अल्लाह के लिये हो, वो नेकी की दावत दे, बुराई की तमाम अक़्साम से खुद भी बचे और दूसरों को भी मना कर। अल्लाह फरमाता है:

और शहर के परले किनारे से एक मर्द दौड़ता आया।

*ث ۲۲، سورةليں، ۲۰*

     चौथा वो शख्स जिसका बातिन  उसकी ज़ात के बारे में और उस प्रमुक़र्रर मुवक्कल फरिश्तों ले बारे में गुफ्तगू करे और उस के राज़ को उस के मौला के इलावा कोई न जानता हो। अल्लाह फरमाता है:

अल्लाह ने उतारी सब से अच्छी किताब कि अव्वल से आखिर तक एक सी है दौहरे बयान वाली इस से बाल खड़े होते है उन के बदन पर जो अपने रब से डरते है फिर उन की खाले और दिल नर्म पड़ते है यादे खुदा की तरफ रग़बत में।

*ث ۲۳، *

*✍️आंसुओं का दरिया* 135

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