بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
*सुवाल* - तकदीर की कितनी किस्में हैं क्या तक़दीर बदल भी जाती है ?
*जवाब* - तीन किस्में हैं : (1) मुब्रमे हक़ीक़ी (2) मुअल्लके महज़ (3) मुअल्लके शबीह बिह मुब्रम।
पहली किस्म यानी मुब्रमे हक़ीक़ी वोह होती है जो इल्मे इलाही में किसी शै पर मुअल्लक नहीं।
दूसरी किस्म यानी मुअल्ल्के महज़ वोह होती है जिस का मलाइका के सहीफ़ों में किसी शै पर मुअल्लक होना ज़ाहिर फ़रमा दिया गया हो।
तीसरी किस्म यानी मुअल्लके शबीह बिह मुब्रम वोह होती है जिस का मलाइका के सहीफों में मुअल्लक होना जाहिर न फरमाया गया हो मगर इल्मे इलाही में किसी शै पर मुअल्लक हो।
तक़दीर की पहली किस्म मुब्रमे हक़ीक़ी को बदलना ना मुमकिन हैं। अल्लाह तआला के महबूब बन्दे अकाबिरीन भी इत्तिफ़ाकन इस में कुछ अर्ज करते हैं तो उन्हें इस ख़याल से रोक दिया जाता है जब कौमे लूत पर फ़िरिश्ते अज़ाब लेकर आए थे तो सय्यदुन इब्राहीम खलीलुल्लाह ने उन काफिरों के बारे में इतनी कोशिश की, कि अपने रब से झगड़ने लगे। अलाह तआला ने कुरआने करीम में येह बात इरशाद फ़रमाई कि "हम से झगड़ने लगा कौमे लूत के बारे में।"
और दूसरी किस्म ज़ाहिर क़ज़ाए मुअल्लक़ है, इस तक अक्सर औलिया की रसाई होती है, उन की दुआ से उन की हिम्मत से टल जाती है।
और तीसरी किस्म मुअल्लक़ शबीह बिह मूब्रम : मुतवस्सीत हालत में है, उस तक ख्वास अकाबिर की रसाई होती है। हुज़ीर गौषे आज़म इसी को फरमाते है : में क़ज़ाए मूब्रम को रद कर देता हूँ और इसी की निस्बत हदीस में इरशाद हुवा : बेशक दुआ क़ज़ाए मूब्रम को टाल देती है।
*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलात
No comments:
Post a Comment