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Sunday 2 December 2018

​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #13

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*आइशा और वाक़ीआए इफ्क* #02

     हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तल सुलमीرضي الله تعالي عنه लश्कर के पीछे आ रहे थे, वो सुब्ह के वक़्त मेरी जगह जगह के क़रीब आए और दूर से किसी सोए हुए इंसान का वुजूद देखा जब उन्हों ने मुझे देखा तो पहचान लिया, उन्होंने पर्दे हुक्म नाज़िल होने से पहले मंझे देखा था, और उन्होंने اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ पढ़ा तो में जाग गई मेने दुपट्टे से अपना चेहरा ढांप लिया। अल्लाह की क़सम ! हमने न तो कोई बात की और न ही मेने اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ के इलावा उनसे कोई बात सुनी। उन्होंने अपनी सुवारी को बिठाया, में उठी और उस पर सुवार हो गई और वो ऊंट पकड़ कर आगे आगे पैदल चलने लगे हत्तकी हम दोपहर की सख्त गर्मी में लश्कर के पास पहुचे जहा वो आराम के लिए उतरे हुए थे।

     आपرضي الله تعالي عنها फरमाती है : हलाक हुवा वो शख्स हलाक हुवा ! जिसने बोहतान बंधने में बहुत ज्यादा हिस्सा लिया था वो मुनाफ़िक़ीन का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य बिन सलुल था।

     उर्वह बिन ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه फर्मआते है : मुझे खबर दी गई की अब्दुल्लाह बिन उबय्य के पास इफ्क के मुतअल्लिक़ बाते की जाती और उन्हें फेलाया जाता, वो उनकी तौसीक करता, कान लगा कर उन्हें सुनता और आगे बयान करता।

     हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : फिर हम मदीना आ गए। मदीना आने के बाद में एक महीना बीमार रही और लोग बोहतान लगाने वालो की गुफ्तगू में मशगूल थे। मुझे इसके मुतअल्लिक़ कुछ मालुम न था। हत्ता की जब में कमज़ोर हो गई तो मस्तिह के साथ मनासेअ की तरफ निकली, वो हमारी क़ज़ाए हाजत की जगह थी, हम रात को ही बाहर जाया करते थे और ये हमारे घरो के क़रीब बैतूल खला बनाने से पहले की बात है।  क़ज़ाए हाजत से फारिग जोन के बाद जब में और उम्मे मिस्तह अपने घर की तरफ वापस आ रही थी तो उम्मे मिस्तह मुझे अहले इफ्क के मुतअल्लिक़ बताया, इस बात ने मेरी बिमारी में और इजाफा कर दिया। जब में अपने घर वापस आई तो रसूले खुदाﷺ मेरे पास तशरीफ़ लाए, सलाम कहने के बाद मेरा हाल दरयाफ़्त फ़रमाया, मेने आपﷺ से अपने वालिदैन के घर जाने की इजाज़त तलब की। में चाहती थी की अपने वालिदैन से इस खबर की तस्दीक़ करू।


बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله

*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 42*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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