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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
और क़ाफिरों की कहावत उसकी सी है जो पुकारे ऐसे को कि ख़ाली चीख़ पुकार के सिवा कुछ न सुने (4) बहरे गूंगे अंधे तो उन्हें समझ नहीं (5).
*तफ़सीर*
(4) यानी जिस तरह चौपाए चरवाहे की सिर्फ़ आवाज़ ही सुनते हैं, कलाम के मानी नहीं समझते, यही हाल उन काफ़िरों का है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की आवाज़ को सुनते हैं, लेकिन उसके मानी दिल में बिठाकर आपके इरशाद से फ़ायदा नहीं उठातें.
(5) यह इसलिये कि वो सच्ची बात सुनकर लाभ न उठा सके, सच्ची बात उनकी ज़बान पर जारी न हो सकी, नसीहतों से उन्होंने कोई फ़ायदा न उठाया.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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