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Wednesday 12 December 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-22, आयत, ①⑧ⓞ*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

तुमपर फ़र्ज़ हुआ कि जब तुम में किसी को मौत आए अगर कुछ माल छोड़े वसीयत करजाए अपने माँ  बाप और क़रीब के रिश्तेदारों के लिए दस्तूर के अनुसार(10) यह वाजिब है परहेज़गारों पर.


*तफ़सीर*

      (10) यानी शरीअत के क़ानून के मुताबिक़ इन्साफ़ करे और एक तिहाई माल से ज़्यादा की वसिय्यत न करे और मुहताजों पर मालदारों को प्राथमिकता न दें. इस्लाम की शुरूआत में यह वसिय्यत फ़र्ज़ थी. जब मीरास यानी विरासत के आदेश उतरे, तब स्थगित की गई. अब ग़ैर वारिस के लिये तिहाई से कम में वसिय्यत करना मुस्तहब है. शर्त यह है कि वारिस मुहताज न हों, या तर्का मिलने पर मुहताज न रहें, वरना तर्का वसिय्यत से अफ़ज़ल है. (तफ़सीरे अहमद)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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