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Wednesday 19 December 2018

फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* #29

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*हृया की तारीफ*

     प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो! आप ने उम्मुल मुमिनोन हज़रते आइशा सिद्दीक़ा رضي الله عنها का फ़रमान मुलाहज़ा फरमाया कि मकारिमे अख़्लाक की अस्ल हया है। हया के माना है : ऐब लगाए जाने के खौफ से झेपना। इस से मुराद वोह वस्फ़ है जो उन चीजों से रोक दे जो अल्लाह तआला और मख़लूक़ के नज्दीक ना पसन्दीदा हो। लोगों से शरमा कर किसी ऐसे काम से रुक जाना जो उन के नज़दीक अच्छा न हो मख़लूक़ से हया कहलाता है, येह भी अच्छी बात है कि आम लोगो से हया करना दुन्यावी बुराइयों से बचाएगा और उलमा व सुलहा से हया करना दीनी बुराइयों से बाज़ रखेगा। मगर हया के अच्छा होने के लिये जरूरी है कि मख़लूक़ से शरमाने में खालिक की ना फ़रमानी न  होती हो और न ही वोह हया किसी के हुकुक की अदाएगी में रुकावट बन रही हो। 

     अल्लाह तआला से हया येह है कि उस की हैबतो जलाल और उस का खौफ दिल में बिठाए और हर उस काम से बचे जिस से उस की नाराज़ी का अन्देशा हो।  

     हज़रते शहबुद्दीन सुहवर्दी رضي الله عنه फ़रमाते हैं : "अल्लाह के अज़मतो जलाल की ताज़ीम के लिये रूह को झुकाना हृया है। और इसी किस्म से हज़रते इसराफिल عليه السلام की हया है जैसे कि वारिद हुवा है कि वो अल्लाह से हाय की वजह से अपने परो में छुपे हुए है।

*✍️फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* 69

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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